Thursday, April 17, 2014

जगत के कुचले हुए पथ पर भला कैसे चलूं मैं ? --हरिशंकर परसाई

जगत के कुचले हुए पथ पर भला कैसे चलूं मैं ?  

किसी के निर्देश पर चलना नहीं स्वीकार मुझको
नहीं है पद चिह्न का आधार भी दरकार मुझको
ले निराला मार्ग उस पर सींच जल कांटे उगाता
और उनको रौंदता हर कदम मैं आगे बढ़ाता

शूल से है प्यार मुझको, फूल पर कैसे चलूं मैं?

बांध बाती में हृदय की आग चुप जलता रहे जो
और तम से हारकर चुपचाप सिर धुनता रहे जो
जगत को उस दीप का सीमित निबल जीवन सुहाता
यह धधकता रूप मेरा विश्व में भय ही जगाता

प्रलय की ज्वाला लिए हूं, दीप बन कैसे जलूं मैं?

जग दिखाता है मुझे रे राह मंदिर और मठ की
एक प्रतिमा में जहां विश्वास की हर सांस अटकी
चाहता हूँ भावना की भेंट मैं कर दूं अभी तो
सोच लूँ पाषान में भी प्राण जागेंगे कभी तो

पर स्वयं भगवान हूँ, इस सत्य को कैसे छलूं मैं?



क्या किया आज तक क्या पाया?
.......................................

मैं सोच रहा, सिर पर अपार
दिन, मास, वर्ष का धरे भार
पल, प्रतिपल का अंबार लगा
आखिर पाया तो क्या पाया?

जब तान छिड़ी, मैं बोल उठा
जब थाप पड़ी, पग डोल उठा
औरों के स्वर में स्वर भर कर
अब तक गाया तो क्या गाया?

सब लुटा विश्व को रंक हुआ
रीता तब मेरा अंक हुआ
दाता से फिर याचक बनकर
कण-कण पाया तो क्या पाया?

जिस ओर उठी अंगुली जग की
उस ओर मुड़ी गति भी पग की
जग के अंचल से बंधा हुआ
खिंचता आया तो क्या आया?

जो वर्तमान ने उगल दिया
उसको भविष्य ने निगल लिया
है ज्ञान, सत्य ही श्रेष्ठ किंतु
जूठन खाया तो क्या खाया?

Saturday, April 12, 2014

'प्राइवेट कंपनियां बन गए हैं राजनीतिक दल

'

 शनिवार, 12 अप्रैल, 2014 को 09:42 IST तक के समाचार
सोनिया, प्रियंका, राहुल गांधी
"कांग्रेस माँ और बेटे की पार्टी है. समाजवादी पार्टी बाप, बेटे और बहू की, राष्ट्रीय जनता दल पति-पत्नी की और झारखण्ड मुक्ति मोर्चा बाप-बेटे की पार्टियां हैं."
ये थे भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उमीदवार नरेंद्र मोदी के शब्द, जो उन्होंने झारखण्ड के पलामू शहर में आम जनता को हाल में सम्बोधित करते समय कहे थे.
नरेंद्र मोदी का इशारा साफ़ तौर पर वंशवाद की राजनीति की तरफ़ था, जिसे वह आगे कोडरमा शहर में अपने एक भाषण में लोकतंत्र के लिए ग़लत मानते हुए कहते हैं, "वंशवाद की राजनीति का लोकतंत्र में कोई महत्त्व नहीं."
नरेंद्र मोदी के दोनों बयानों को नकारा नहीं जा सकता. वह चुनावी अभियान के शुरू में केवल गांधी परिवार को ही वंशवाद की सियासत के लिए आड़े हाथों लेते थे लेकिन अब 'लोकतंत्र के लिए हानिकारक' इस सियासत के लिए दूसरे राजनीतिक परिवारों को भी निशाना बना रहे हैं.
लेकिन एक तरफ़ मोदी वंशवाद की राजनीति को ख़त्म करने की बात करते हैं तो दूसरी तरफ़ ख़ुद उनकी पार्टी में यह परंपरा फल फूल रही है.

प्राइवेट लिमिटेड पार्टियां

उदाहरण के तौर पर भाजपा के नेता यशवंत सिन्हा के बेटे जयंत पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं और अपने पिता की सीट पर. मुंबई में प्रमोद महाजन की बेटी पूनम महाजन लोकसभा चुनाव के मैदान में पहली बार कूदी हैं. साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश भी लोकसभा के चुनावी अखाड़े में उतरे हैं.
लिस्ट और भी लंबी है. भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह और हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार के धूमल के बेटे भी चुनावी अखाड़े में उतरे हैं. यह फ़ेहरिस्त और भी लम्बी है.

परिवार की राजनीति

भारत में वंशवाद काफ़ी पुराना है. एक अंदाज़ के अनुसार स्वतंत्र भारत में अब तक वंशवाद की राजनीति करने वाले 57 परिवार हैं, जिनमें सब से पहला और सबसे पुराना नेहरू-गांधी खानदान है. कुछ ऐसे परिवारों की लिस्ट:

नेहरू-गांधी परिवार
  1. मोती लाल नेहरु : नेता और एक प्रसिद्ध वकील
  2. जवाहर लाल नेहरु : मोती लाल के बेटे और प्रधानमंत्री (1947-1964)
  3. इंदिरा गांधी : जवाहर लाल नेहरू की बेटी और प्रधानमंत्री (1966-1977 और 1980-1984)
  4. राजीव गांधी : इंदिरा के बेटे और प्रधानमंत्री (1984-1989)
  5. सोनिया गांधी : राजीव गांधी की पत्नी, अध्यक्ष कांग्रेस पार्टी और यूपीए
  6. राहुल गांधी : राजीव और सोनिया के बेटे, उपाध्यक्ष कांग्रेस पार्टी
  7. प्रियंका गांधी : राजीव और सोनिया की बेटी, कांग्रेस पार्टी नेता
  8. संजय गांधी : इंदिरा के बेटे और राजीव के छोटे भाई. उनका एक विमान दुर्घटना में देहांत न होता तो वह अपने भाई राजीव की जगह प्रधानमंत्री बन सकते थे.
  9. मेनका गांधी : संजय गांधी की पत्नी, भाजपा नेता और भूतपूर्व मंत्री
  10. वरुण गांधी : संजय एवं मेनका के बेटे और भाजपा नेता
इनके इलावा परिवार के अन्य सदस्य जो किसी न किसी सूरत में राजनीति से जुड़े रहे, वह थे इंदिरा गांधी की चचेरी बहन उमा नेहरू, उनके बेटे अरुण नेहरू.जवाहर लाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू, मोतीलाल नेहरू की बेटी विजय लक्ष्मी पंडित और उनकी बेटी नयनतारा सहगल.


अब्दुल्ला परिवार
  1. शेख अब्दुल्ला : भूतपूर्व मुख्यमंत्री जम्मू कश्मीर
  2. फारूक अब्दुल्ला : शेख अब्दुल्ला के बेटे और भूतपूर्व मुख्यमंत्री जम्मू कश्मीर, केन्द्रीय मंत्री
  3. उमर अब्दुल्ला : फारूक अब्दुल्ला के बेटे और मुख्यमंत्री जम्मू कश्मीर
इनके इलावा शेख अब्दुल्ला की पत्नी बेगम अकबर सांसद रह चुकी हैं और उनके बेटे मुस्तफा कमाल अब्दुल्ला कश्मीर विधानसभा के सदस्य थे.

ठाकरे परिवार
  1. बाल ठाकरे : शिव सेना के संस्थापक
  2. उद्धव ठाकरे : बाल ठाकरे के बेटे और शिव सेना के अध्यक्ष
  3. आदित्य ठाकरे : उद्धव ठाकरे के बेटे और युवा शिव सेना का अध्यक्ष
  4. राज ठाकरे : बाल ठाकरे के भतीजे और महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के संस्थापक
  5. स्मिता ठाकरे : बाल ठाकरे की बहु
नन्दामुरी परिवार (एनटीआर)
  1. नन्दामुरी ताराक रामाराव (एनटीआर) : भूतपूर्व मुख्यमंत्री आंध्र प्रदेश और अभिनेता
  2. चंद्रबाबू नायडू : एनटीआर के दामाद और भूतपूर्व मुख्यमंत्री आंध्र प्रदेश
  3. लक्ष्मी पार्वती : पत्नी एनटीआर तेलुगु देसम एनटीआर गुट की भूतपूर्व अध्यक्ष
  4. एन. हरिकृष्ण : एनटीआर के बेटे और भूतपूर्व मंत्री
  5. एन. बालकृष्ण : एनटीआर के बेटे अभिनेता और राज नेता
  6. डी. पुरन्देस्वरी : एनटीआर की बेटी और भूतपूर्व मंत्री
  7. डी. वेंकटेश्वर राव : एनटीआर के दामाद और भूतपूर्व मंत्री
करुणानिधि परिवार
  1. एम करुणानिधि : भूतपूर्व मुख्यमंत्री तमिल नाडु और डीएमके पार्टी नेता
  2. एम के स्टालिन : करुणानिधि के बेटे और भूतपूर्व उप मुख्यमंत्री तमिलनाडु
  3. एम के अझागिरी : करुणानिधि के सब से बड़े बेटे और भूतपूर्व केन्द्रय मंत्री
  4. कनिमोझी : करुणानिधि की बेटी और राज्यसभा सदस्य
  5. मुरासोली मारन : करुणानिधि के भतीजे और भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री
  6. दयानिधि मारन : मुरासोली के बेटे और भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री
कांग्रेस के नेता शकील अहमद कहते हैं कि भाजपा दोहरी नीति रखती है. लेकिन भाजपा के नितिन गडकरी कहते हैं उनकी पार्टी में वंशवाद नहीं है, "कांग्रेस के गांधी परिवार की तरह अडवाणी परिवार, वाजपेयी परिवार भाजपा में नहीं है. भाजपा के नेताओं के बेटे-बेटियों को टिकट इसलिए दिए गए हैं क्यूंकि वह पार्टी में वर्षों से सक्रिय हैं."
सच तो यह है कि आज जिस राज्य या जिस पार्टी पर निगाह डालें वहां आपको ऐसे परिवार मिल जाएंगे.
उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे अखिलेश यादव को आगे बढ़ा दिया. कश्मीर में शेख अब्दुल्ला ने पहले फारूक अब्दुल्ला को अपनी पार्टी नेशनल कांफ्रेंस का अध्यक्ष बनाया और वो मुख्यमंत्री बने. बाद में जब वह केंद्र सरकार में आए तो पार्टी और राज्य में सत्ता की बागडोर अपने बेटे उमर अब्दुल्ला के हवाले कर दी.
ओडिशा में बीजू पटनायक ने नवीन पटनायक को आगे बढ़ाया. महाराष्ट्र में शिव सेना की स्थापना करने वाले बाल ठाकरे ने मरने से पहले अपने बेटे उद्धव ठाकरे के हवाले पार्टी की जिम्मेदारियां सौंप दीं. अब उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे पार्टी के उभरते हुए युवा नेता हैं.
दक्षिण भारत पर निगाह डालें तो तमिलनाडु में डीएमके के करुणानिधि ने अपने बेटे और परिवार के कई सदस्यों को मुख्य स्थान दिए चाहे वह पार्टी हो या सरकार.
बिहार में लालू यादव ने अपनी बेटी मीसा भारती को पार्टी में शामिल करके इस बार उन्हें चुनाव के मैदान में भी उतार दिया है, जबकि वह पहले ही अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री बनवा चुके हैं.
वरिष्ठ महिला पत्रकार तवलीन सिंह अपने एक लेख में कहती हैं कि इन नेताओं ने अपनी पार्टियों को प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों में बदल दिया है. पार्टियों पर इन परिवारों का शिकंजा इतना कसा हुआ है कि दूसरों को आगे बढ़ने का अवसर ही नहीं मिलता.

शुरुआत

ज़रा सोचिए सोनिया गांधी और राहुल के बिना कांग्रेस पार्टी का वजूद बाक़ी रहेगा? नटवर सिंह अब सियासत से रिटायर हो चुके हैं लेकिन वंशवाद की राजनीति की अलम्बरदार इंदिरा गांधी के क़रीब थे. वह कहते हैं, "माँ-बेटा ही कांग्रेस पार्टी है."
लेकिन नटवर सिंह कहते हैं गांधी परिवार की ही आलोचना करना ठीक नहीं, "केवल नेहरू गांधी परिवार को वंशवाद की सियासत के लिए ज़िम्मेदार मानना सही नहीं. यह कश्मीर से कन्याकुमारी तक सभी राज्यों और सभी पार्टियों में है."
उन परिवारों की संतानें क्या कहती हैं जो अपने राजनीतिक परिवार और पिता के बल पर सियासत में हैं.
मिलिंद देवड़ा दक्षिण मुंबई से सांसद हैं. क्या अगर उनके पूंजीपति पिता मुरली देवड़ा शक्तिशाली नहीं होते और मंत्री पद पर न होते तो उन्हें सियासत में प्रवेश मिलता? वह कहते हैं, "आप सियासत में जिस कारण से आएं. चुनाव में जीत और हार जनता के हाथ में होती है."
हर आम चुनाव के समय ये सवाल उठाए जाते हैं कि भारत से वंशवाद की राजनीति का अंत कब होगा? क्योंकि आम तौर से इसे लोकतंत्र के विपरीत माना जाता है.
इन्दर मल्होत्रा एक ऐसे वरिष्ठ पत्रकार हैं जिन्होंने न केवल वंशवाद की सियासत का झंडा गाड़ने वाली इंदिरा गांधी पर किताब लिखी है बल्कि दक्षिण एशिया में वंशवाद की राजनीति पर भी उनकी किताबें प्रकाशित हुई हैं. उनका जवाब साफ़ है, "वंशवाद की राजनीति भारत से ख़त्म नहीं होगी."
आम तौर पर लोग समझते हैं कि इसकी शुरुआत जवाहरलाल नेहरु ने अपनी बेटी इंदिरा गांधी को सियासत में उतार कर की थी. लेकिन इन्दर मल्होत्रा कहते हैं कि नेहरु ने इंदिरा को किसी बड़े ओहदे के लिए नहीं आगे बढाया. वह आज़ादी से पहले से अपने पिता के साथ काम करती थीं और बाद में उनका हाथ बंटाती थीं.
वह इंदिरा गांधी को वंशवाद की राजनीति की शुरुआत करने वाला मानते हैं, “इंदिरा ने संजय गांधी को आगे बढ़ा कर वंशवाद की राजनीति की बुनियाद रखी.”
लेकिन नेहरु-गांधी परिवार का दबदबा न केवल कांग्रेस पार्टी पर बल्कि देश की सियासत पर जवाहर लाल नेहरु के पिता मोती लाल नेहरु के समय से चला आ रहा है. यह आज भारत में राजनीतिक वंशवाद का सबसे पुराना उदाहरण है. कांग्रेस उसकी पुश्तैनी पार्टी की तरह है.
लेकिन परिवार का समर्थन करने वाले यह तर्क देते हैं कि जिस कमज़ोरी के लिए परिवार की आलोचना की जाती है, वही इस परिवार की शक्ति है. मणिशंकर अय्यर इंदिरा गांधी के बेटे और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के क़रीबी साथियों में से एक थे.
वह कहते हैं, “राजीव जी के मरने के बाद अगर सोनिया पार्टी का नेतृत्व न करतीं तो पार्टी बिखर सकती थी. भारत के इतिहास में इस परिवार का काफ़ी योगदान है. इसने दो प्रधानमंत्रियों का बलिदान दिया. कांग्रेस पार्टी आज देश की सबसे बड़ी पार्टी है जो इस परिवार के कारण ही संभव हो पाया है.”

वंशवाद की राजनीति में कमी?

इन्दर मल्होत्रा भी वंशवाद की सियासत के पूरी तरह से ख़िलाफ़ नहीं हैं. वह कहते हैं कि हर मैदान में- चाहे वह फ़िल्मी दुनिया हो या डॉक्टर, किसान और पत्रकार का पेशा हो– भारतीय समाज में वंशवाद का सिलसिला पुराना है. इसे बुरा नहीं माना जाता और इसीलिए हर मैदान में एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी उसी मैदान में आ जाती है.
इन्दर मल्होत्रा कहते हैं कि भारत के बाहर भी इसकी परंपरा है. बांग्लादेश में शेख हसीना और पाकिस्तान में भुट्टो परिवार इसकी मिसालें हैं.
अखिलेश, मुलायम सिंह यादव
यहाँ तक कि उनके अनुसार अमरीका जैसा लोकतंत्र भी इससे वंचित नहीं. बुश सीनियर के बाद बिल क्लिंटन राष्ट्रपति बने और उनके बाद बुश सीनियर के बेटे बुश जूनियर. अगर बिल क्लिंटन की पत्नी हिलेरी क्लिंटन बराक ओबामा को प्राइमरीज में हरा देतीं तो हो सकता था वह उनकी जगह राष्ट्रपति होतीं.
लेकिन जो वंशवाद की राजनीति के ख़िलाफ़ हैं और एक ही परिवार के शिकंजे में पार्टी को नहीं देखने के हक़ में हैं, वो कहते हैं कि इसका सब से बड़ा नुक़सान यह होता है कि पार्टी के अन्दर दूसरे योग्य लोगों को अवसर नहीं मिलते. कांग्रेस में एक से एक क़ाबिल नेता हुए हैं लेकिन पार्टी के बड़े ओहदों के लिए या प्रधानमंत्री पद के लिए उनका प्रोत्सान नहीं किया गया.
सोनिया गांधी ने 2004 चुनाव में जीत के बाद मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया. लेकिन उनके आलोचक कहते हैं कि मनमोहन सिंह के कंधे पर रख कर सोनिया गांधी बंदूक चलना चाहती हैं.
इन्दर मल्होत्रा ने अपनी पुस्तक पिछले चुनाव से पहले लिखी थी. तो क्या इस चुनाव में वंशवाद की राजनीति में कमी आई है? वह एक लम्बी सांस लेकर कहते है, "यह रिवाज और बढ़ा है. यह जारी रहेगा.”

Tuesday, April 1, 2014

नेतृत्व में बदलाव चाहते हैं भारतीय: प्यू रिसर्च


भारतीय
अमरीका के एक शोध संस्थान के एक सर्वेक्षण के मुताबिक़ अधिकांश भारतीय देश की मौजूदा स्थिति से संतुष्ट नहीं हैं और चुनाव के बाद नेतृत्व में बदलाव चाहते हैं.
प्यू रिसर्च सेंटर के इस सर्वे के अनुसार लड़खड़ाती अर्थव्यव्था के बावजूद लोग अपनी निजी वित्तीय स्थिति से खुश हैं और देश के साथ ही अगली पीढ़ी की आर्थिक स्थिति के बारे में आशावान हैं.
प्यू रिसर्च सेंटर ने सात दिसंबर 2013 से 12 जनवरी 2014 के बीच कराए इस सर्वेक्षण में 2,464 लोगों को शामिल किया था और उनसे आमने-सामने साक्षात्कार लिए गए थे.
सर्वे के मुताबिक़ 70 प्रतिशत भारतीय देश के मौजूदा हालात से संतुष्ट नहीं है जबकि 29 प्रतिशत लोगों ने इस पर संतुष्टि जताई.
असंतुष्टि और संतोष का यह फ़र्क उन लोगों में भी था, जो चाहते थे कि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में अगली सरकार बने और उन लोगों में भी था जो चाहते थे कि कांग्रेस के नेतृत्व वाला सत्तारूढ़ वर्तमान यूपीए गठबंधन ही अगली सरकार बनाए.
सर्वे कहता है कि तीन में से एक आदमी (63% में से 19%) चाहता है कि कांग्रेस नहीं भारतीय जनता पार्टी अगली सरकार का नेतृत्व करे.

आतंकवाद बड़ी समस्या

हालांकि आर्थिक मंदी के बाद भी आधे से अधिक भारतीय (57%) देश के आर्थिक प्रदर्शन को 'ठीक-ठाक' बताते हैं और दो तिहाई नागरिक (64%) उम्मीद करते हैं कि देश के बच्चे युवा होकर आज की पीढ़ी से बेहतर रहेंगे.
भ्रष्टाचार
83 प्रतिशत भारतीय यह मानते हैं कि भ्रष्टाचार एक एक बड़ी समस्या है.
सर्वे में चीन को लेकर भारतीयों का मत विभाजित नज़र आया. 35% उसे पसंद करते हैं जबकि 41% नापसंद. और चीन के मुकाबले अमरीका के प्रति भारतीय 21% ज़्यादा सकारात्मक हैं.
करीब चार में एक भारतीय (47% में से 12%) भारतीयों का कहना है कि चीन के बजाय अमरीका दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्था है. हालांकि एक तिहाई भारतीय मानते हैं कि चीन अमरीका को हटाकर दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति बन गया है, या बन जाएगा.
करीब 10 में से नौ भारतीय आतंकवाद को देश के लिए बहुत बड़ी समस्या मानते हैं. दो तिहाई मानते हैं कि इस्लानमिक चरमपंथी समूह भारत के लिए मुख्य खतरा हैं और करीब दस में से छह लोगों को डर था कि ऐसे समूहों पर पाकिस्तान नियंत्रण कर सकता है.
कुल मिलाकर सिर्फ़ 19% भारतीयों ने पाकिस्तान के प्रति सकारात्मक नज़रिया दिखाया और भार के लिए सबसे बड़े ख़तरे के रूप में पाकिस्तान, चीन, लश्कर-ए-तैयबा और नक्सलियों में से 47 % ने पाकिस्तान को चुना.
इसके बावजूद अधिकतर (64%) भारतीयों ने कहा कि वह पाकिस्तान से बेहतर संबंध चाहते हैं और आधे से ज़्यादा ने कहा कि दोनों देशों के बीच ज़्यादा बातचीत, ज़्यादा व्यापार का वह समर्थन करते हैं.