नहीं सुनाएं भजन कीर्तन नहीं गान व तान,
नहीं दिखाएं नाटक वाटक न कोई मंच मचान।
हम तो सच बतलाने आए
सच ही सच दिखलाने आए,
सच कहना जो पागलपन है
समझो हम पगलाने आए ।
एक
ये लंबोदर पेट बड़ा है,
इसमें सारा देश पड़ा है।
सभी समस्या यहीं घुसी हैं,
सारी जनता यहीं ठुसी है।
देखो कैसे आग धधकती,
देखो कैसे आह फफकती।
गजब हाजमा इसी पेट का,
कुछ भी खाए पच जाता है।
जनता का ये हाड़ चबाए
फिर भी भूखा बच जाता है।
देखो ये अपने नेता हैं,
ये कलयुग हैं ये त्रेता हैं।
टिकट झटक कर फिर आए हैं,
गली भटक कर फिर आए हैं।
करो आरती पूजो इनको,
जोड़ नहीं हैं दूजो इनको।
चुनो इन्हीं को भारी मत से मारो ठप्पा तान।
नहीं सुनाएं भजन कीर्तन नहीं गान व तान,
नहीं दिखाएं नाटक वाटक न कोई मंच मचान।
हम तो सच बतलाने आए -------------
दो
इनसे मिलिए ये हैं अफसर,
इनका जूता अपना दफ्तर।
फाइल पर बैठे अजगर ये,
अपने हैं सच्चे रहबर ये।
ये कागज में नहर बना दें ,
करखानों में जहर में बना दे।
गिरगिट जैसा रंग देख लो,
पल में बदले ढंग देख लो।
जब चाहे तो अकड़ देख लो,
राजनीति में पकड़ देख लो।
रीवा से भोपाल व दिल्ली
हर बिसात पर इनकी चालें,
राजनीति ने पाला इनको
अब ये राजनीति को पालें।
ये जो कहें वही सब सच है गीता ग्रंथ—कुरान।
नहीं सुनाएं भजन कीर्तन नहीं गान व तान,
नहीं दिखाएं नाटक वाटक न कोई मंच मचान।
हम तो सच बतलाने आए -------------
तीन
इनसे मिलो ये धर्माचारी,
सत्य अहिंसा के ब्रतधारी।
बिना हवा पानी के जीते,
ये बस केवल लोहू पीते।
धरम इन्हीं पर टिका हुआ है,
देश इन्हीं को बिका हुआ है।
बड़े- बड़े धंधे हैं इनके,
जोरदार बंदे हैं इनके ।
मंदिर मस्जिद ठौर ठिकाने,
इसमें इतने हैं तहखाने।
ये मंदिर से वेद बोलते,
तहखानों से भेद खोलते।
जामा जमजम हर हर गंगे,
गांव शहर में भडक़े दंगे।
ये घर बैठे ताश बिछाएं,
इनके बंदे लाश बिछाएं।
लाशों की ये ओट लगाएं
लाशों से ये वोट जुटाएं।
सुनो इन्हीं की धरम के खातिर हो जाओ कुर्बान।
नहीं सुनाएं भजन कीर्तन नहीं गान व तान,
नहीं दिखाएं नाटक वाटक न कोई मंच मचान।
हम तो सच बतलाने आए -------------
चार
रौब देख लो इस वर्दी की,
खौफ देख लो बेदर्दी की।
इसकी महिमा अजब निराली,
बात बात में देवे गाली।
बिल्डर का पक्का गुर्गा है,
मंत्री के घर का मुर्गा है।
चौहट्टा घूमे वारंटी,
साहु फसेगा है गारंटी।
लूट, डकैती, काले धंधे,
सब में फिट हैं इसके बंदे।
जनता जब अपना हक मांगे,
लाठी भांजे गोली दागे।
हड्डी पसली नहीं मिलेगी
एेसी पक्की मार है प्यारे।
सूरत सकल आदमी जैसी
अपना थानेदार है प्यारे।
कालदूत हे प्रजातंत्र के कलयुग के जजमान।
नहीं सुनाएं भजन कीर्तन नहीं गान व तान,
नहीं दिखाएं नाटक वाटक न कोई मंच मचान।
हम तो सच बतलाने आए -------------
पांच
देखो इसके बदन की लाली,
पूछो इसने कहां चुरा ली।
यही गांव का जिमीदार है,
यही शहर में सहूकार है।
अन्न बेंचकर भरता थैला,
देता मजदूरी दो पैला।
ये सबको कलदार दिखाए,
ये सब को दरबार बुलाए।
मंत्री अफसर पुलिस पुजारी,
इसकी ही सब भरे हुंकारी।
लंबी जेब बड़ी थैली है,
इससे सभा और रैली है।
इसकी मसनद अपनी संसद इसका हिन्दुस्तान।
नहीं सुनाएं भजन कीर्तन नहीं गान व तान,
नहीं दिखाएं नाटक वाटक न कोई मंच मचान।
हम तो सच बतलाने आए -------------
छ:
मरियल मरियल पीली पीली,
आंखें इसकी गीली गीली।
फटेहाल यह फिरे सडक़ पर,
थोकभाव यह बिके सडक़ पर।
इसकी कौन कहां सुनता है,
यह तो बेचारी जनता है।
यही समस्याओं की जड़ है,
यही हस्तिनापुर की फड़ है।
चाहे इसको दांव लगा दो,
चाहे इसको पांव दबा दो।
नहीं बोलती चुप रहती है,
जुलम तुम्हारे सब सहती है।
पर एक दिन जब मुंह खोलेगी,
थर्राकर धरती डोलेगी।
आखिर कब तक मौज करोगे,
कुत्तों जैसी मौत मरोगे।
बजाके डंका बोलके हल्ला करते हैं ऐलान।
नहीं सुनाएं भजन कीर्तन नहीं गान व तान,
नहीं दिखाएं नाटक वाटक न कोई मंच मचान।
हम तो सच बतलाने आए
सच ही सच दिखलाने आए,
सच कहना जो पागलपन है
समझो हम पगलाने आए ।
---जयराम शुक्ल