Wednesday, April 6, 2011

विश्वासघात के खिलाफ उठ खड़े होने का वक्त

हाईकोर्ट और रेवेन्यू बोर्ड की स्थायी पीठ को लेकर सत्याग्रह पर बैठे रीवा के अधिवक्ताओं की अहिंसक अभिव्यक्ति आज केंद्र व राज्य की बहरी सरकारों को भले ही न सुनाई दे रही हो लेकिन कल यही पहल विन्ध्य के हितों के साथ किए गए छल और विश्वासघात के खिलाफ मुकम्मिल बुनियाद साबित होगी। पांच अपै्रल को रीवा बंद का आह्वान किया गया है। समाज के सभी वर्गों से जिस तरह समर्थन की ध्वनि सुनने को मिल रही है उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि हमें अब धीरे-धीरे यह समझ में आने लगा है कि विन्ध्यप्रदेश के अस्तित्वहीन होने के बाद सत्ता की बेशर्म सियायत हमारे हितों के साथ किस तरह छल-प्रपंच करती आई है।
 हाईकोर्ट और रेवेन्यू बोर्ड की पीठ का मुद्दा केन्द्र व एकीकृत मध्यप्रदेश सरकार की वायदा खिलाफी और विश्वासघात का एेसा जीता-जागता नमूना है जो कि सरकारी दस्तावेजों में भी दर्ज है। मध्यप्रदेश के गठन की प्रक्रिया के समय पंडित शम्भूनाथ शुक्ल के नेतृत्व वाली विन्ध्यप्रदेश की तत्कालीन मंत्रिपरिषद ने दिसंबर 1955 में सर्वसम्मति से बारह सूत्रीय संकल्प पत्र पारित किया था, जिसके पांचवें संंकल्प में न सिर्फ हाईकोर्ट की स्थायी पीठ रीवा में व रेवेन्यू बोर्ड की पीठ नौगांव में स्थापित करने की बात की गई थी बल्कि विलयन के पूर्व इसकी गारंटी भी मांगी गई थी। राज्य पुनर्गठन आयोग ने मंत्रिपरिषद का यह संकल्प पत्र जस का तस केंद्र सरकार के सामने रखा। केन्द्र सरकार ने आश्वस्त किया था कि मध्यप्रदेश के अस्तित्व में आने के बाद सभी संकल्पों को पूरा किया जाएगा। ये सभी तथ्य सरकारी दस्तावेजों में दर्ज हैं(यदि साजिशन कूड़ेदान में न डाल दिए गए होंगे तो)। ये सभी बातें पंडित विद्यानिवास मिश्र द्वारा संपादित विन्ध्यप्रदेश मासिक पत्र दिसंबर 1955 के अंक में विधिवत प्रकाशित हैं। श्री मिश्र विन्ध्यप्रदेश सरकार में प्रमुख सूचना अधिकारी थे।  कैबिनेट का संकल्प चौहट्टा गजट नहीं होता लेकिन मध्यप्रदेश बनते ही विन्ध्य के हितों के साथ विश्वासघात का जो सिलसिला शुरू हुआ वह आज भी अनवरत है। 
             

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