जिस दिन से सूचना आयुक्त ने फरमा दिया कि सभी राजनीतिक दलों के भीतर खाने में भी झांकने की कानूनी इजाजत है उसी दिन से सभी मौसेरे भाई फिर एक सुर से बोलने लगे। आमतौर पर जब-जब एेसे किसी अनिष्ट की आशंका होती है, तमाम बैरभाव भुलाकर सभी मौसेरे भाई एक छतरी के नीचे आ जाते हैं। पिछली मर्तबे अन्नाजी के खिलाफ एक हुए थे। अन्नाजी ने राजनीति में ऑपरेशन क्लीन की बात उठाई। कहा लोकपाल बना दो और उसकी जद में प्रधानमंत्री से लेकर मंत्री, संत्री, सांसद, विधायक सभी को ला दो। अन्ना के खिलाफ भी सभी मौसेरे भाई एक हो गए। लोकपाल बिल में पलीता लगा दिया। टीम अन्ना में तोड़भांज करवा दी।
लोग सोचते है कि ये मौसेरे भाई विधानसभा लोकसभा में तो एक-दूसरे के खिलाफ जमकर भुजा भांजते हैं तो क्या वो दिखावा है? नहीं वो बाजीगरी है। नागपंचमी के दिनों में आपने बाजीगरी देखी होगी। किसी बस्ती में बाजीगर लोग अलग-अलग रास्तों से नुक्कड़ में पहुंचते है। एक बाजीगर अपनी मंत्र शक्ति से चुनौती देता है। भीड़ में छुपा हुआ दूसरा प्रकट होता है। फिर मंत्र शक्तियों का प्रहार शुरू होता। कभी एक मुर्छित होता है तो कभी दूसरे के मुंह में बीन घुस जाती है। घंटों यह खेल चलता है। हम तमाशबीन चकित होकर बाजीगर को रुपया, पैसा, द्रव्य देते हैं। शहर से निकलते ही दोनों प्रतिद्वंद्वी एक हो जाते हैं। तमाशे के पैसे को मिलकर बांटते हैं, दारू मुर्गा छानते हैं, और फिर किसी दूसरे शहर में हम जैसों को मूर्ख बनाने पहुंच जाते हैं। बाजीगरों का खेल जारी है और इधर हमारा मूर्ख बनते रहना भी उसी तरह। कभी-कभी लगता है कि पार्लियामेंट या विधानसभाओं में कोई बिल एक झटके से पास क्यों हो जाता है और जनहित के कई बिल सालों साल लटके रहते हैं। जैसे महिला आरक्षण विधेयक। दस साल से सुन रहे हैं यह विधेयक न हुआ जैसे कोई कर्मकाण्ड हो गया। सत्र के आखिरी दिनों मे यह सदन में रखा जाता है। कई दल के लोग बीच में उठते हैं हंगामा करते हैं, सदन स्थगित और बिल फिर अगले सत्र के लिए। पर जब सांसदों, विधायकों के वेतन-भत्ते व सुविधाओं की बात होती हे तो सभी मौसेरे भाई फौलादी एकता के साथ प्रकट होते हैं और बिल एक झटके में पास होता है।
अपने देश के मौसेरे भाईयों की अंदरूनी गाणित को अंर्तयामी भी नहीं जान सकता। सदन के बाहर-मायावती-मुलायम कैसे विषवमन करते हैं, एक-दूसरे के खिलाफ और केन्द्र की सत्ता के खिलाफ भी। सदन में जब सरकार गिरने की बारी आती है तो सभी एक पाले में खड़े हो जाते हैं। और सामने वाला भी कौन सरकार गिराना चाहता है। वह तो सरकार को गिराते हुए दिखाना चाहता है। सो हम देख लेते हैं और मान भी लेते हैं। इसीलिए अन्नाजी कहते हैं एक नागनाथ तो दूसरा सांपनाथ। नागनाथ को हटाओं तो सांपनाथ आ जाएंगे। अन्नाजी देश के नागरिकों में नेवलानाथ की सूरत देखते हैं, जो सांपनाथ और नागनाथ के फन को कुतर सके। जनता नेवलानाथ कैसे बने। नागनाथ सांपनाथ भी तो उसी के बीच से ही गए हैं। सो बड़ी मुश्किल हैं। मौसेरे भाई देश के खजाने को मौसिया के श्राद्ध के महाभोज में उड़ाने में लगे हैं। बड़े भाई ने गरीबों को सस्ते से सस्ता अन्न देने की प्रणाली बनाई। छोटे भाई ने कहा हम इसे और सस्ता कर देंगे। मेहनतकश कामकाजी वर्ग के टैक्स का पैसा है, उड़ाने में क्या जाता है। एक दिन की मजदूरी माहभर का भोजन। शेष 29 दिन कबड्डी खेलों, चाहे ताश। भरपेट भोजन का इंतजाम। कभी मशीन के खिलाफ मानव के जंग की बात होती थी। अब काम के लिए मशीनों का रास्ता साफ कर रहे हैं। चीन अपने यहां से सस्ते रोबट भेज देगा। जो आपके घर के छोटे-मोटे काम करेगा। खेत से मजदूरों को वैसे भी टै्रक्टर और हारवेस्टर ने बेदखल कर दिया है। सभी काम मशीने हथिया लेंगी, श्रम की संस्कृति खत्म हो जाएगी। फिर एक दिन का भी काम आदमी के लिए नहीं बचेगा। तो सरकारें क्या करेंगी। एक गढ्ढा खोदेगा फिर उसी को पाटेगा। जैसे अलादीन ने अपने जिन्न को खंभे से उतरने व चढऩे का काम दिया था। जिन्न आज भी वही कर रहा है। इधर कर दाताओं के पैसे से मौसिया की श्राद्ध के महाभोज रचे जा रहे हैं। राजनीति के कुल गोत्र और उस की वंशावली को यूं समझएि। राजनीति सब की दादी अम्मा है। पार्टियों को उसकी बेटियां समझें और उनके नेता उनकी संतानें, इस नाते सभी मौसेरे भाई हुए। गोत्र और गृहस्थी भले ही अलग-अलग हों पर गर्भनाल तो राजनीति की दादी अम्मा से जुड़ी है। सो गाढ़े वक्त पर ये मौसेरे भाई एेसे ही एक होते रहेंगे, भले ही नुक्कड़ में ये प्रतिद्वंदी बाजीगर दिखे, या सदन के अखाड़ों में भुजा भांजते पराक्रमी योद्धा।
अपने देश के मौसेरे भाईयों की अंदरूनी गाणित को अंर्तयामी भी नहीं जान सकता। सदन के बाहर-मायावती-मुलायम कैसे विषवमन करते हैं, एक-दूसरे के खिलाफ और केन्द्र की सत्ता के खिलाफ भी। सदन में जब सरकार गिरने की बारी आती है तो सभी एक पाले में खड़े हो जाते हैं। और सामने वाला भी कौन सरकार गिराना चाहता है। वह तो सरकार को गिराते हुए दिखाना चाहता है। सो हम देख लेते हैं और मान भी लेते हैं। इसीलिए अन्नाजी कहते हैं एक नागनाथ तो दूसरा सांपनाथ। नागनाथ को हटाओं तो सांपनाथ आ जाएंगे। अन्नाजी देश के नागरिकों में नेवलानाथ की सूरत देखते हैं, जो सांपनाथ और नागनाथ के फन को कुतर सके। जनता नेवलानाथ कैसे बने। नागनाथ सांपनाथ भी तो उसी के बीच से ही गए हैं। सो बड़ी मुश्किल हैं। मौसेरे भाई देश के खजाने को मौसिया के श्राद्ध के महाभोज में उड़ाने में लगे हैं। बड़े भाई ने गरीबों को सस्ते से सस्ता अन्न देने की प्रणाली बनाई। छोटे भाई ने कहा हम इसे और सस्ता कर देंगे। मेहनतकश कामकाजी वर्ग के टैक्स का पैसा है, उड़ाने में क्या जाता है। एक दिन की मजदूरी माहभर का भोजन। शेष 29 दिन कबड्डी खेलों, चाहे ताश। भरपेट भोजन का इंतजाम। कभी मशीन के खिलाफ मानव के जंग की बात होती थी। अब काम के लिए मशीनों का रास्ता साफ कर रहे हैं। चीन अपने यहां से सस्ते रोबट भेज देगा। जो आपके घर के छोटे-मोटे काम करेगा। खेत से मजदूरों को वैसे भी टै्रक्टर और हारवेस्टर ने बेदखल कर दिया है। सभी काम मशीने हथिया लेंगी, श्रम की संस्कृति खत्म हो जाएगी। फिर एक दिन का भी काम आदमी के लिए नहीं बचेगा। तो सरकारें क्या करेंगी। एक गढ्ढा खोदेगा फिर उसी को पाटेगा। जैसे अलादीन ने अपने जिन्न को खंभे से उतरने व चढऩे का काम दिया था। जिन्न आज भी वही कर रहा है। इधर कर दाताओं के पैसे से मौसिया की श्राद्ध के महाभोज रचे जा रहे हैं। राजनीति के कुल गोत्र और उस की वंशावली को यूं समझएि। राजनीति सब की दादी अम्मा है। पार्टियों को उसकी बेटियां समझें और उनके नेता उनकी संतानें, इस नाते सभी मौसेरे भाई हुए। गोत्र और गृहस्थी भले ही अलग-अलग हों पर गर्भनाल तो राजनीति की दादी अम्मा से जुड़ी है। सो गाढ़े वक्त पर ये मौसेरे भाई एेसे ही एक होते रहेंगे, भले ही नुक्कड़ में ये प्रतिद्वंदी बाजीगर दिखे, या सदन के अखाड़ों में भुजा भांजते पराक्रमी योद्धा।
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