Saturday, September 27, 2014

'अखंड भारत' ही कश्मीर की समस्या का समाधान

नवभारतटाइम्स.कॉम| Sep 27, 2014, 10.01AM IST .. संयुक्त राष्ट्र की महासभा में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के कश्मीर मुद्दे को उठाने के बाद प्रेस काउंसिल के चेयरमैन जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने एकीकृत भारत का सुझाव दिया है। उन्होंने कहा है कि मैं सबको और खासकर कश्मीरियों को यह सचाई बताना चाहता हूं कि कश्मीर की समस्या का एक ही समाधान है और वह है एक मजबूत, सेक्युलर और आधुनिक सोच वाली सरकार के नेतृत्व में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश का एकीकरण। उन्होंने कहा, 'यह ऐसी सरकार के नेतृत्व में हो सकता है, जो किसी भी तरह के धार्मिक अतिवाद को मजबूती से कुचलने का माद्दा रखती हो। इसके अलावा और कोई हल नहीं है।'


उन्होंने अपने ब्लॉग में लिखा है, 'हकीकत में पाकिस्तान कोई देश ही नहीं है। यह एक फर्जी देश है, जिसे अंग्रेजों ने हिन्दू और मुसलमानों को एक-दूसरे से लड़ते रहने के लिए गढ़ा था ताकि भारत (जिसका पाकिस्तान और बांग्लादेश हिस्सा है) एक आधुनिक और चीन की तरह शक्तिशाली औद्योगिक देश के रूप में विकसित न हो पाए।'

अलग पाकिस्तान बनाने के औचित्य पर सवाल उठाते हुए जस्टिस काटजू लिखते हैं, 'पाकिस्तान है क्या? यह पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और उत्तर-पश्चिमी सीमांत राज्यों से मिलकर बना है। ये सभी अशोक, अकबर और ब्रिटिश के शासनकाल में भी भारत का हिस्सा थे। अंग्रेजों ने 1857 के विद्रोह के बाद अपने एजेंटों के जरिए हिन्दू और मुसलमानों के बीच नफरत की नींव रखी और उसे बढ़ावा दिया। बांटो और राज करो की नीति 1857 के बाद शुरू हुई। (पढ़े बीएन पांडेय की 'हिस्ट्री इन द सर्विस ऑफ इम्पीरियलिज्म') 1857 की लड़ाई में हिन्दू और मुस्लिम साथ मिलकर लड़े थे। गदर को कुचलने के बाद अंग्रेजों ने फैसला किया कि भारत में शासन चलाने के लिए 'बांटो और राज करो' का ही रास्ता है।'

काटजू अपनी बातों के पक्ष में तर्क देते हुए लिखते हैं, 'सारे दंगे उसके (1857 के) बाद ही शुरू हुए। ब्रिटिश कलेक्टर गुपचुप तरीके से पंडितों को बुलाते थे और उन्हें पैसे देकर मुस्लिमों के खिलाफ बोलने के लिए उकसाते थे। यही काम वे मौलाना को बुलाकर भी करते थे। इन सब चीजों को उकसाने वाले एजेंट गाय की लाश मंदिरों में फेंक देते और नमाज के वक्त मस्जिदों के सामने तेज आवाज में संगीत बजाने लगते। 1909 में मिंटो मॉर्ले सुधार के तहत हिन्दू और मुसलमानों के लिए अलग-अलग निर्वाचक मंडल की शुरुआत हुई। इन सब कदमों का नतीजा यह हुआ कि 1947 में फर्जी दो राष्ट्र के सिद्धांत पर भारत का बंटवारा हो गया।'

वह लिखते हैं, 'जब मैं पाकिस्तानियों से मिलता हूं तो कुछ भी अलग नहीं लगता। हम एक जैसे दिखते हैं, एक भाषा (हिन्दुस्तानी) में बात करते हैं। एक ही तरह का खाना खाते हैं और हमारी संस्कृति भी समान ही है। विदेश में जब भारतीय और पाकिस्तानी एक-दूसरे से मिलते हैं तो उन्हें अपनापन महसूस होता है। हमें अंग्रेजों ने मूर्ख बनाया, लेकिन और कितने समय तक हम मूर्ख ही बने रहेंगे। और कितने समय तक आपस में लड़ते रहेंगे।'

काटजू ने लिखा है, 'कुछ लोग कह सकते हैं कि बंटवारा काफी पहले 1947 में ही हो गया था और 67 सालों के बाद घड़ी की सुई को पीछे नहीं किया जा सकता है। मेरा कहना है कि चीन ने अभी तक ताइवान को एक अलग देश के रूप में मान्यता नहीं दी है, जबकि दोनों देशों का बंटवारा 1945 में ही हो गया था। पाकिस्तान का तो निर्माण ही इस उद्देश्य से किया गया था कि भारतीय उपमहाद्वीप में शांति न रहे। तो क्या हम इसी तरह मूर्ख बनते रहेंगे और अनंतकाल तक लड़ते रहेंगे।'

कश्मीरी लोगों से मुखातिब होकर वह लिखते हैं, 'मैं कश्मीरियों से अपील करता हूं कि अलगवावादी नेताओं द्वारा मूर्ख बनना बंद करे। इन नेताओं का अपना अजेंडा और स्वार्थ है। सभी कश्मीरियों को एक मजबूत, सेक्युलर और आधुनिक सोच वाली सरकार के नेतृत्व में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के एकीकरण की मांग करनी चाहिए। बहुत सारी समस्याओं के साथ कश्मीर की समस्या का भी यही एक समाधान है।'

Thursday, August 14, 2014

मध्यप्रदेश में वन्यप्राणी प्रबंधन

भारत के केन्द्र में स्थित मध्यप्रदेश देश का ह्रदय स्थल है। मध्यप्रदेश का कुल वन क्षेत्रफल 94689 वर्ग कि.मी. है जो देश के कुल वनक्षेत्र का लगभग 12 प्रतिशत है। एवं मध्यप्रदेश के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 31 प्रतिशत है। प्रचुर वन संपदा से आच्छादित मध्यप्रदेश का भारत में वन्यप्राणी संरक्षण एवं प्रबंधन की दृष्टि से विशेष स्थान है एवं वन्यप्राणी प्रबंधन के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी विख्यात है। प्रदेश के वन्यप्राणी संरक्षित क्षेत्रों के अंतर्गत 10895 वर्ग कि.मी. वनक्षेत्र आता है जो प्रदेश के कुल वनक्षेत्र का 11.5 प्रतिशत है।
वन्यप्राणी संरक्षण एवं प्रबंधन के उद्देश्य से प्रदेश में 9 राष्ट्रीय उद्यान एवं 25 अभ्यारण्य गठित किए गए हैं। 9 राष्ट्रीय उद्यानों में से 6 राष्ट्रीय उद्यानों (कान्हा, बांधवगढ़, पन्ना, पेंच, सतपुड़ा, संजय) को टाइगर रिजर्व का दर्जा दिया गया है। करेरा एवं घाटीगाँव अभ्यारण्य विलुप्तप्राय: दुर्लभ पक्षी सोनचिड़िया के संरक्षण के लिए तथा सैलाना एवं सरदारपुर एक अन्य विलुप्तप्राय: दर्लभ पक्षी खरमोर के संरक्षण के लिए तथा तीन अभ्यारण्य चंबल, केन एवं सोन घड़ियाल जलीय वन्यप्राणियों के संरक्षण के लिए गठित किए गए हैं।
भोपाल का वनविहार राष्ट्रीय उद्यान एक अनोखा राष्ट्रीय उद्यान है, जो एक आधुनिक चिड़ियाघर के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। यह राष्ट्रीय उद्यान शहर के अंदर स्थित होकर वन्यप्राणी संरक्षण के लिए जागरूकता लाने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। डिन्डौरी जिले में घुघुवा में एक फॉसिल राष्ट्रीय उद्यान भी है, जहां 6 करोड़ वर्ष पुराने वृक्षों के फॉसिल संरक्षित किये गये हैं।
अंतर्राष्ट्रीय तौर पर दुर्लभ एवं लुप्तप्राय: प्रजातियों में से एक प्रजाति बाघ मध्यप्रदेश में सबसे अधिक पाई जाती है। इसके अलावा नदी डाल्फिन, घड़ियाल, तेंदुआ, गौर, बारासिंघा, कालाहिरण, खरमौर एवं सोनचिड़िया प्रजातियां प्रदेश की महत्वपूर्ण तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर की दुर्लभ एवं विलुप्तप्राय धरोहर में शामिल हैं।
इस सम्पन्न प्राकृतिक विरासत का वर्तमान पीढ़ियों के लिए लाभ सुनिश्चित करने के साथ-साथ आने वाली पीढ़ियों के लिए इसे बचाए रखना भी प्रदेश के वन्यप्राणी प्रबंधन की बड़ी चुनौती है। तेजी से बढ़ती हुई मानव आबादी और वन्यप्राणियों से प्राप्त होने वाले विविध उत्पादों की बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय तस्करी के कारण वन्यप्राणियों का संरक्षण दिनोंदिन कठिन और अधिक चुनौतिपूर्ण होता जा रहा है। इसके फलस्वरूप प्रदेश के सभी वन्यप्राणी क्षेत्रों में प्रबंधन और संरक्षण की चुनौतियों में बढ़ोत्तरी हुई है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए मध्यप्रदेश शासन वन विभाग द्वारा कई कदम उठाए गए हैं।
पर्यावरण संरक्षण की गहराती चुनौतियों के बीच विगत कुछ वर्षों में वन्यजीवों के संरक्षण का मुद्दा भी समाज की प्राथमिकता सूची में ऊपर आया है और बढ़ते जैविक दबाव के कारण वनों की स्थिति निरंतर बिगड़ते जाने के कारण प्रदेश में वन्यप्राणियों का प्रबंधन अधिक चुनौतिपूर्ण होता गया है। वन्यप्राणियों की खाल व शरीर के अन्य अवयवों की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में माँग बढ़ने के कारण अनेक वन्यप्राणियों का शिकार व तस्करी जैसी समस्याएं विगत दो-एक दशक में काफी तेजी से बढ़ रही हैं। इसी प्रकार नीलगाय, जंगल सुअर, चीतल और काला हिरण जैसे शाकाहारी वन्यप्राणियों की संख्या बढ़ने के कारण प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में वन्यजीवों के कारण खेतों में फसलों को होने वाला नुकसान किसानों के लिए पहले से अधिक समस्या उत्पन्न करने लगा है वन क्षेत्रों में जैविक दबाव बढ़ने से माँसाहारी हिंसक वन्य प्राणियों का आबादी क्षेत्र में आने और मवेशियों का शिकार कर लेने अथवा जन हानि करने की घटनाओं में भी बढ़ोत्तरी हुई है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नैतिकता के अतिरिक्त वैज्ञानिक तथ्यों की दृष्टि से भी वन्य जीवों के संरक्षण की जरूरतों को पूरा करना आवश्यक होता जा रहा है।
हमारे प्रदेश में वन्यप्राणी प्रबंधन की व्यवस्था को मोटे तौर पर तीन भागों में समझा जा सकता है। ये पहलू हैं - प्रशासनिक, तकनीकी एवं मानवीय। प्रशासनिक पहलुओं के अंतर्गत अभ्यारण्य और राष्ट्रीय उद्यानों की स्थापना तथा कानूनी संरक्षण आता है। इसके अंतर्गत राष्ट्रीय उद्यानों व अभ्यारण्यों में कर्मचारियों की पदस्थिति, दूरस्थ अंचलों में काम करने के लिए आवश्यक संसाधन एवं अधोसंरचना तथा आधुनिक तकनीक मुहैया कराये जाने के साथ-साथ दक्षता बढ़ाने के लिए आधुनिकतम प्रशिक्षण जरूरी है। प्रबंधन के तकनीकी पक्ष में वन्यप्राणियों के रहवास क्षेत्र का उचित प्रबंधन सम्मिलित है। इसके बिना वन्य जीव चैन से नहीं रह सकते। इसी के साथ वन्य जीवों के स्वभाव, खान-पान, प्रजनन जैसी जैविक गतिविधियों पर वैज्ञानिक शोध से प्राप्त जानकारी के आधार पर प्रबंधकीय निर्णय लिये जाते हैं। वन्यजीव प्रबंधन की तकनीकी पहुलओं में वैज्ञानिक शोध तथा दस्तावेजीकरण, जरूरत के अनुसार वन्यप्राणियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानांतरित करने, प्रजनन (ब्रीडिंग) जैसे जटिल और श्रमसाध्य कार्य किए जाते हैं। वन्यप्राणी प्रबंधन का मानवीय#पहलू वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रशासकीय और तकनीकी पहलुओं से भी अधिक महत्वपूर्ण हो चला है। वन्यप्राणी क्षेत्रों की स्थापना के फलस्वरूप प्रभावित गाँवों का स्वैच्छिक विस्थापन तथा पुनर्बसाहट वन्य प्राणियों की सुरक्षा के साथ-साथ ग्रामीणों के हित में है। इसके लिए भारत सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई आकर्षक मुआवजा राशि विस्थापित परिवारों को समुचित रूप से पुनर्बसाहट के लिए दी जाती है।
प्रदेश हित में वन्यजीवों के संरक्षण की जरूरतों को देखते हुए राज्य की वन नीति 2005 में वन्यप्राणी संरक्षण के महत्वपूर्ण तत्व सम्मिलित किए गए हैं। इसके अंतर्गत प्रदेश में वन्यप्राणी संरक्षण के लिए संरक्षित क्षेत्रों के प्रबंधन हेतु वन अधिकारियों और कर्मचारियों के प्रशिक्षण, वन्यप्राणी संरक्षण क्षेत्रों की प्रबंधन योजनाएं तैयार करने, स्थानीय समुदाय की वनाधारित जरूरतों को पूरा करने, संरक्षित क्षेत्रों में सूख चुके प्राकृतिक जल स्त्रोतों को पुनर्जीवित करने, वन्यप्राणी स्वास्थ्य की सुरक्षा एवं उनमें संक्रामक रोगों को रोकथाम की व्यवस्था करने, जैसे महत्वपूर्ण कार्यों को सम्मिलित किया गया है। वन क्षेत्रों से भटककर आबादी वाले क्षेत्रों में आ जाने वाले वन्य जीवों को पकड़कर वापस वन क्षेत्रों में छोड़ने के लिए उपयुक्त स्थानों पर आधुनिक उपकरणों एवं प्रशिक्षित अमले से सुसज्जित वाईल्ड एनिमल रेस्क्यू मोबाईल स्क्वाड्स का गठन, वन्य प्राणियों के अवैध शिकार एवं तस्करी पर प्रभावी अंकुश लगाना, वन्यप्राणी फॉरेन्सिक प्रयोगशालायें स्थापित करना, वन्यप्राणी के अवैध शिकार एवं उनके अवयवों की तस्करी रोकने के लिए सीमावर्ती राज्यों के साथ प्रभावी समन्वय बनाना और कारगर मुखबिर तंत्र तैयार करना राज्य की वन नीति के महत्वपूर्ण तत्व हैं। आधुनिक दृष्टिकोण पर आधारित मध्यप्रदेश राज्य की वन नीति 2005 वन्यप्राणी प्रबंधन को मजबूती देते हुए प्रदेश के विकास को टिकाऊ आधार प्रदान करने की क्षमता रखती है। राज्य सरकार इन पर कार्यवाही के लिए कटिबध्द और प्रयासरत है।
प्रदेश में वन्यप्राणी प्रबंधन के कई पहलुओं पर विगत कुछ वर्षों में काम में तेजी लाने का प्रयास किया जा रहा है। इसके अन्तर्गत घायल वन्यप्राणियों की प्राण रक्षा, चिकित्सा व रखरखाव के लिए कान्हा टाइगर रिजर्व मण्डला, पन्ना टाइगर रिजर्व पन्ना, पेंच टाइगर रिजर्व सिवनी, बाँधवगढ़ टाइगर रिजर्व उमरिया, सतपुड़ा टाइगर रिजर्व पचमढ़ी, माधव राष्ट्रीय उद्यान शिवपुरी, वन विहार राष्ट्रीय उद्यान भोपाल, वन वृत्त जबलपुर तथा वन वृत्त इंदौर में 9 वन्यजीव रेस्क्यू स्क्वाड्स का गठन किया गया है। इसी प्रकार वन्यप्राणी अपराधों पर नियंत्रण में कसावट लाने के लिए भोपाल में राज्य स्तरीय तथा सतना, सागर, इटारसी, जबलपुर तथा इंदौर में क्षेत्रीय टाइगर स्ट्राईक फोर्स की स्थापना की गई है। टाइगर स्ट्राईक फोर्स की इन इकाईयों के माध्यम से वन्यप्राणी अपराधों पर नियंत्रण के लिए वांछित स्वतंत्र और निष्पक्ष विजिलेंस व्यवस्था बनाने के प्रयास भी किए जा रहे हैं। इसी प्रकार मध्यप्रदेश में पहली बार दो प्रशिक्षित डाग स्कवाड तैयार किए गए हैं जो वन अपराधों के अन्वेषण में बहुत उपयोगी होंगे। वन्यप्राणी अपराध के संबंध में जन साधारण को शिकायत दर्ज कराने के लिए नि:शुल्क टेलीफोन की सुविधा (फोन नबर 155312) भी उपलब्ध कराई गई है जिसका लाभ लेते हुए कोई भी वन अथवा वन्यप्राणी अपराध की सूचना वन विभाग को दे सकता है। वन्यप्राणी प्रबंधन में आधुनिकतम सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग विभाग द्वारा पहले ही किया जा रहा है जिसे और व्यापक पैमाने पर अपनाने और व्यवस्थाओं को पारदर्शी बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
इसके अतिरिक्त अवैध शिकार की रोकथाम हेतु पुलिस एवं वन विभाग के संयुक्त तत्वावधान में वर्ष 1995 में टाइगर सैल का गठन किया गया है। इसी प्रकार जिला स्तर पर भी टाइगर सैल का गठन किया गया है। जिसका प्रमुख उद्देश्य अवैध शिकार एवं व्यापार की रोकथाम तथा सीमावर्ती प्रान्तों से समुचित समन्वय स्थापित करना है।
वन्यप्राणी संरक्षण हेतु राष्ट्रीय उद्यान एवं अभ्यारण्यों में 361 पेट्रोलिंग कैम्प, 86 निगरानी चौकियां, 136 चैकपोस्ट, 202 वायरलैस स्टेशन स्थापित किए गए हैं। पेट्रोलिंग हेतु वाहन प्रदाय किए गए हैं। साथ ही कर्मचारियों को 1571 वायरलैस हैण्डसेट्स भी उपलब्ध कराए गए हैं।
संरक्षित क्षेत्रों (राष्ट्रीय उद्यान एवं अभ्यारण्यों) से लगे हुए वन क्षेत्रों में भी वन्यप्राणी संरक्षण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता महसूस की गई है। इस परिप्रेक्ष्य में वन्यप्राणियों की सुरक्षा हेतु मध्यप्रदेश में टाईगर स्ट्राइक फोर्स के अंतर्गत संरक्षित क्षेत्रों की सीमा से लगे हुए क्षेत्रीय वनमण्डल के वनक्षेत्रों में संवेदनशील 56 परिक्षेत्रों का चयन किया गया है। इन परिक्षेत्रों में वन चौकियों का निर्माण किया जाकर चौकियों को गाड़ियों, बंदूकों, वायरलैस सेट्स आदि आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित करने की कार्यवाही प्रगति पर है। गाड़ियों का क्रय किया जा चुका है। जिससे प्रभावी रूप से वन्यप्राणी अपराधों में अंकुश लगाया जा सकेगा।
इसी प्रकार पारंपरिक रूप से शिकार करने वाली जातियां जैसे बहेलिया, पारधी, मूँगिया इत्यादि जातियों पर विशेष निगरानी रखी जाती है तथा इन जातियों के बच्चों की शिक्षा के लिए पन्ना एवं शिवपुरी में स्कूल संचालित किए जा रहे हैं तथा वैकल्पिक रोजगार हेतु भी कुछ जगह व्यवस्था की पहल की गई है।
प्रदेश में कान्हा, बांधवगढ़ एवं पेंच टाइगर रिजर्वों के लिए केन्द्र शासन द्वारा स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स के गठन की स्वीकृति दी गई है, जिसके संबंध में कार्यवाही की जा रही है। इसी प्रकार मानव एवं वन्यप्राणियों के बीच का द्वंद कम करने के प्रयास भी किए जा रहे हैं। जिसके तहत वन्यप्राणियों द्वारा जनहानि, जनघायल एवं पशुहानि किए जाने पर मुआवज का प्रावधान किया गया है। जनहानि के प्रकरणों में एक लाख रूपए तथा इलाज पर हुआ व्यय, जनघायल के प्रकरण में इलाज हेतु अधिकतम बीस हजार रूपये तथा स्थायी अपंगता होने पर 75 हजार रूपए तथा इलाज पर किया गया व्यय क्षतिपूर्ति के रूप में दिया जाता है।
वन सीमा से 5 कि.मी. की परिधि में स्थित ग्रामों में वन्यप्राणियों द्वारा फसल हानि किए जाने पर मुआवजा दिए जाने का भी प्रावधान किया गया है।
पन्ना टाइगर रिजर्व में गत वर्षों में बाघों के विलुप्त होने के कारण वर्ष 2009 में 2 बाघिनें एवं 1 बाघ लाकर पन्ना में पुर्नस्थापित किया गया था। मई, 2010 में पन्ना टाइगर रिजर्व में स्थानांतरित एक बाघिन द्वारा 4 बच्चों को जन्म देने के साथ ही पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों की सफलपूर्वक पुर्नस्थापना की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है। यह अपने आप में वन्यप्राणी प्रबंधन का एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
इसी तरह बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में गौर की पुर्नस्थापना हेतु शीघ्र ही कान्हा से 15-20 गौरों का लाकर पुर्नस्थापित करने की कार्यवाही प्रगति पर है।
वन्यप्राणियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए वन विभाग द्वारा कुछ अभिनव प्रयास भी किए जा रहे हैं। जैसे- वन विहार राष्ट्रीय उद्यान में व्यक्तियों एवं संस्थाओं में वन्यप्राणी संरक्षण के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने के लिए वन्यप्राणियों को निश्चित अवधि के लिए गोद लेने की अभिनव योजना प्रारंभ की गई है। जिसके अच्छे परिणाम आए हैं।
प्रदेश के वन्यप्राणी संरक्षण क्षेत्रों में विगत कुछ वर्षों में पर्यटन का विस्तार काफी तेजी से हुआ है। अत्यधिक पर्यटन के कारण वन्यप्राणियों की सुरक्षा को कोई क्षति न होने पाए यह सुनिश्चित करते हुए प्रदेश के वन्यप्राणी क्षेत्रों में आने वाले पर्यटकों के नियमन के साथ-साथ पर्यटन सुविधाओं का विस्तार भी वन्यप्राणी प्रबंधन की प्राथमिकताओं से अभिन्न रूप से जुड़ा है। इसके अन्तर्गत ईको पर्यटन विकास के माध्यम से गैर परम्परागत क्षेत्रों में भी पर्यटन सुविधाओं का विकास करते हुए नए-नए क्षेत्रों को पर्यटकों में लोकप्रिय बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
पर्यटकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए मध्यप्रदेश में चार टाइगर रिजर्वों (कान्हा, बांधवगढ़, पेंच एवं पन्ना) में भ्रमण हेतु ऑनलाईन बुकिंग की सुविधा वर्ष 2008 से प्रारंभ की गई है, जिसका पर्यटकों को व्यापक लाभ मिल रहा है। इसी प्रकार वन्यप्राणी संरक्षण में व्यक्तियों एवं अशासकीय संस्थाओं से सहयोग प्राप्त करने के लिए मध्यप्रदेश टाइगर फाउंडेशन सोसायटी का गठन किया गया है एवं इच्छुक व्यक्तियों एवं संस्थाओं द्वारा वन्यप्राणी संरक्षण हेतु इस सोसायटी में काफी योगदान दिया जा रहा है।
कुल मिलाकर मध्यप्रदेश शासन वन विभाग प्रदेश वन्यप्राणी प्रबंधन की चुनौतियों से निपटने के लिए पूरी तरह प्रतिबध्द और प्रयासरत है।
प्रदीप भाटिया

वन्य जीव संरक्षण – एक अहम जरूरत

भारत में पिछले एक दशक के दौरान पहली बार बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है। इसके लिए संरक्षण के बेहतर प्रयासों को श्रेय जाता है। इस समय बाघों की संख्या 1706 है, जो वर्ष 2008 की संख्या के मुकाबले 295 अधिक है। उस समय बाघों की संख्या 1411 थी।
      लेकिन यह इस मामले में संतुष्टि की छोटी सी बात है। मुख्य बात यह है कि पिछले वर्षों से बाघों की संख्या में लगातार कमी हो रही है, जो चिंता का कारण है।
      बड़ी बिल्ली की अन्य प्रजाति- तेंदुए के बारे में भी कहानी कोई अलग नहीं है। वर्ष 2012 के पहले नौ महीनों में भारत में 252 तेंदुए की मौत हुई, जो भारतीय वन्य जीव संरक्षण सोसायटी के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार वर्ष 1994 से यह संख्या सबसे अधिक है।  सन 1911 में यह संख्या 187 थी। एक दशक पहले यह संख्या औसतन लगभग 200 प्रति वर्ष थी।    
      जैसा हमने लिखा है, भारत में जनवरी महीने में कम से कम तीन और बाघों की मृत्यु हो गई है। 1994 से 2010 तक हमने 923 बाघ खो दिए हैं। देश में लगभग 100 वर्ष पहले बाघों की संख्या करीब 40 हजार थी, जो अब मुट्ठी भर रह गई है। बाघों की संख्या में कमी की कहानी वास्तव में समूचे विश्व में एक समान ही है। अनुमान है कि विश्व में बाघों की संख्या कोई 3500 से 4000 के आसपास है। इनमें से आधे भारत में हैं।
      लगभग आधे से ज्यादा तेंदुए अवैध व्यापार के लिए मार दिए जाते हैं। बावजूद इसके कि बाघ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत सुरक्षित हैं, उसका शिकार किया जाता है। उसके शरीर के अंगों, खासकर खाल का गैर-कानूनी तरीके से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार किया जाता है। चीतों के बारे में भी यही स्थिति है। उनका रहने का क्षेत्र मात्र दस प्रतिशत क्षेत्र में रह गया है और सिमटकर लगभग 75 लाख एकड़ हो गया है। आवास के अलावा बाघ अपने शिकार की प्रजातियां भी खोता जा रहा है। इससे इसका मनुष्यों के साथ टकराव हो गया है जिसके परिणामस्वरूप बाघों का ज्यादा शिकार होने लगा है। हालांकि सरकार ने सन 1972 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम पारित करके बाघों के शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन समस्या अभी भी वैसी ही बनी हुई है। अन्य महत्वपूर्ण बात यह है कि पहाड़ी और वन्य क्षेत्रों में सड़कों के जाल और पन-बिजली परियोजनाओं जैसे विकास कार्यों के कारण बाघों के प्राकृतिक आवास में काफी कमी हो गई है। इससे लिए वनों के निकट लोगों की तेजी से बढ़ती हुई आबादी एक अन्य कारण है।
      यदि कुछ बुनियादी बातों पर ध्यान दिया जाए तो इस स्थिति में बदलाव की अभी भी आशा है, ये बाते हैं – बाघों के अवैध शिकार पर कड़ी नजर, लोगों में इस बात की जागरुकता पैदा करना कि बाघों का संरक्षण स्वयं मानवता के हित में है, क्योंकि पर्यावरण व्यवस्था में संतुलन और वन्य क्षेत्रों के निकट रहने वाले लोगों की रोजमर्रा की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए बाघों का होना जरूरी है। इस क्षेत्र में समर्पित गैर सरकारी संगठनों का संज्ञान लेकर उनकी भागीदारी बढ़ाने और उन्हें पूर्ण समर्थन देने से भी लाभ होगा।
      कुछ निराशाओं के बावजूद, परियोजना बाघ के अच्छे परिणाम निकले हैं। सत्तर के दशक में जब बाघों की जनसंख्या सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई थी, उस समय 1973 में यह परियोजना शुरू की गई थी।  सत्तर के दशक में जहां यह संख्या 1200 पहुंच गई थी वहां नब्बे के दशक में यह 3500 हो गई, हालांकि बाद में इसमें फिर कमी होने लगी थी।
      हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकारों और संघ शासित प्रदेशों को बाघ संरक्षण योजनाएं तैयार करने को कहा है। उसने उन्हें ऐसा करने के लिए छह महीने का समय दिया है। यह योजनाएं कार्यान्वित किए जाने से पहले राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की स्वीकृति के लिए भेजी जानी हैं। गत वर्ष जुलाई में उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय पार्कों और वन्य जीव अभ्यारण्य में पर्यटन पर अंतरिम प्रतिबंध लगाया था। अभ्यारण्यों को बाघों के आवास की आवश्यकता के अनुसार तैयार किया गया है, पर इस ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। न्यायालय ने इन क्षेत्रों में पर्यटन पर लगा अंतरिम प्रतिबंध बाद में हटा लिया। लेकिन सभी हितधारकों से इस बारे में उपयुक्त कार्रवाई करने को कहा गया है।
      दुर्लभ जीवों के संरक्षण को महत्व देने के लिए देश में पांच और वन्य जीवों के पांच और पार्क बनाने को स्वीकृति दी गई है। बाघों से छह और संरक्षणस्थल बनाने का भी प्रस्ताव है। इनकों मिलाकर ऐसी अभ्यारण्यों की संख्या 41 से बढ़कर 52 हो जाएगी। राष्ट्रीय पार्कों और वन्यजीव अभ्यारण्यों की संख्या भी उत्तरोत्तर बढ़ रही है।  
योजना आयोग ने भी 12वीं योजना में बाघ संरक्षण के लिए आवंटन में उदारता बरती है। कहने का तात्पर्य है कि बाघ संरक्षण को बड़ा महत्व दिया गया है। आयोग ने 12वीं योजना में बाघ संरक्षण के लिए 5889 करोड़ रुपए का आवंटन किया है जबकि 11वीं योजना में यह राशि मात्र 651 करोड़ रुपए थी। इससे आवंटित राशि में नौ गुना वृद्धि होने का पता चलता है। अन्य सभी दुर्लभ प्रजातियों के लिए आवंटित राशि 3600 करोड़ रुपए है। इनमें हाथी, शेर, हिरन, गैंडा और तेंदुआ शामिल हैं, जिनकी संख्या 45,000 से अधिक है। यह दलील दी जाती है कि बाघ को महत्व देने से अन्य कुछ प्रजातियां जैसे हिरन व गैंडा स्वतः लाभान्वित होंगी। यह किसी हद तक सत्य हो सकता है लेकिन अन्य प्रजातियों के बारे में संभवतः अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
हजारों वर्ष से बाघों के शिकार को हैसियत का प्रतीक मान लिया गया है। उसे यादगार के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके अंग एशिया की परंपरागत दवाइयों में प्रयोग किए जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप 1930 तक बाघों की संख्या में कमी आती रही। बाघों की नौ प्रजातियों में से तीन प्रजातियां पहले ही विलुप्त हो गई हैं। इसलिए खासकर बाघों की आबादी और सामान्य रूप में वन्य जीवों की अन्य प्रजातियों की घटती संख्या पर रोक लगाने के लिए अधिक कारगर उपाय करने की आवश्यकता है। यह हमारे हित में है और इस बारे में त्रुटि महंगी सिद्ध हो सकती है। चुनौती बड़ी जरूर है लेकिन इसे पूरा करना ही होगा। (पसूका) press information beureo

आज सिर्फ 3,200 बाघ बचे हैं.

जेनेवा, 30 जुलाई 2014
वर्ल्ड वाइड फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) ने एक रिपोर्ट में बताया है कि 100 साल पहले जंगल में 1,00,000 बाघ हुआ करते थे, लेकिन आज सिर्फ 3,200 बाघ बचे हैं.
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने बाघ वाले 13 देशों- भारत, बांग्लादेश, भूटान, चीन, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, नेपाल, रूस, थाईलैंड और वियतनाम- द्वारा बाघ संरक्षण की दिशा में किए जा रहे प्रयासों में मदद करने की पेशकश भी की है.
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने मंगलवार को बाघ दिवस के मौके पर जारी अपनी रिपोर्ट में चेताया है कि शिकार और पर्यावास की समस्या के कारण एशियाई बाघ वनों से विलुप्त हो सकते हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘जंगली बाघों को शिकार का सबसे अधिकर खतरा है क्योंकि इनके अंग पारंपरिक दवाओं, लोक उपचार में प्रयोग होते हैं और कुछ एशियाई संस्कृतियों में इसे प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है.’
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने वन्यजीव तस्करी निगरानी नेटवर्क के आंकड़ों के हवाले से बताया है कि जनवरी 2000 से लेकर अप्रैल 2014 के बीच पूरे एशिया में अधिकारियों ने कम से कम 1,590 बाघों के अंग जब्त किए, जिन्हें पारंपरिक औषधियों में लिए मारा गया था.
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने रिपोर्ट में स्वीकार किया है कि भारत, नेपाल और रूस के जंगलों में मौजूद बाघों के आंकड़े तो उसके पास हैं, लेकिन म्यांमार, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया और थाईलैंड के आंकड़ा उपलब्ध नहीं हैं.
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने इन देशों में जंगलों में मौजूद बाघों की गिनती करने और बाघों को बचाने का आग्रह किया है.

सफ़ेद बाघों का ऐतिहासिक रिकॉर्ड

लुइसियाना में न्यु ओरलियंस के औडूबोन चिड़ियाघर में व्हाइट टाइगर
एक शिकारी की डायरी में 1960 से पचास साल पहले रीवा में 9 सफ़ेद बाघों का जिक्र है. द जर्नल ऑफ द बॉम्बे नेचरल हिस्ट्री सोसाइटी की खबर के अनुसार 1907 और 1933 के बीच 17 सफ़ेद बाघ गोली के शिकार हुए. ई. पी. गी ने जंगल में रहने वाले 35 सफ़ेद बाघों का 1959 तक का विवरण इकट्ठा किया, इसमें असम, जहां उनका चाय बागान था, की संख्या को शुमार नहीं किया गया है, हालांकिअसम के आर्द्रतावाले जंगल को गी द्वारा काले बाघों के बसेरे के लिए उपयुक्त बताया गया है. जंगल में रहने वाले कुछ बाघों में लालनुमा धारियां थीं, उन्हें "लाल बाघ" के नाम से जाना जाता है. 1900 के दशक के शुरू में दो सफ़ेद बाघों को गोली मारने के बाद उनके नाम पर ऊपरी असम के टी एस्टेट का नाम बोगा-बाघ या "व्हाइट टाइगर" पड़ गया. ऑर्थर लोक के लेखन "द टाइगर ऑफ ट्रेनगानु" (1954) में सफ़ेद बाघों का जिक्र है.
कुछ क्षेत्रों में, यह जानवर स्थानीय परंपरा का एक हिस्सा है. चीन में इसे पश्चिम के देवता बैहू (जापान में बायक्कू और कोरिया में बैक-हो ) के रूप में सम्मान दिया जाता है, जो उंटमून और धातु से सम्बद्ध है. दक्षिण कोरिया के राष्ट्रीय झंडे में टैगवेक प्रतीक के रूप में सफ़ेद बाघ को दर्शाया गया है – सफ़ेद बाघ बुराई का प्रतीक है, इसके विपरीत हरा ड्रैगनअच्छाई का. भारतीय अंधविश्वास में सफ़ेद बाघ हिंदू देवता का अवतार माना गया है, और माना जाता है जो कोई इसे मारेगा वह साल भर के अंदर मर जाएगा. सुमात्रा और जावा के शाही घराने को सफ़ेद बाघों का वंशज होने का दावा किया जाता था और इन जानवरों को शाही घराने का पुनर्जन्म माना जाता था. जावा में सफ़ेद बाघ को विलुप्त हिंदी साम्राज्यों और भूत-प्रेत से सम्बद्ध किया जाता था. सत्रहवीं सदी के राजदरबार के संरक्षक का प्रतीक भी यही था.
मुगल साम्राज्य (1556-1605) के दौरान भारत के जंगलों में काली धारीवाले सफ़ेद बाघ देखे गए थे. ग्वालियर के निकट शिकार करते हुए अकबर की 1590 साल की एक पेंटिंग में चार बाघ दिखाई देते हैं, जिनमें से दो सफ़ेद लगते हैं.[12] इस चित्रकारी को आपhttp://www.messybeast.com/genetics/tigers-white.htm में देख सकते हैं. इसके अलावा 1907 और 1933 के बीच भारत के विभिन्न क्षेत्रों: उड़ीसा, बिलासपुरसोहागपुर और रीवा, में सफ़ेद बाघों के अधिक से अधिक 17 उदाहरण दर्ज किए गए. 22 जनवरी 1939 को नेपाल की तराई के बरदा शिविर में नेपाल के प्रधानमंत्री ने एक सफ़ेद बाघ को गोली मार दी. आखिरी बार देखे गए जंगली सफ़ेद बाघ को 1958 में गोली मार दी गयी थी, और माना जाता है कि जंगल से बाघ विलुप्त हो चुके हैं.[9] तब से भारत में जंगल में रहने वाले सफ़ेद बाघों के बारे में कहानियां बनती रही हैं, लेकिन इन्हें किसी ने विश्वासयोग्य नहीं माना है. औपचारिक रूप से बताया गया है कि जिम कॉर्बेट अपने "मैन-इटर ऑफ कुमाऊं" (1964)[49] में एक सफ़ेद बाघिन का सन्दर्भ देते हैं कि उनके लिए सफ़ेद बाघ सामान्य से अधिक कुछ भी नहीं थे, उन्होंने दो नारंगी शावकों के साथ इस सफ़ेद बाघिन पर फिल्म बनाया था. कॉर्बेट की यह श्वेत-श्याम फिल्म की फुटेज जंगल में रहने वाले सफ़ेद बाघ की शायद एकमात्र ऐसी फिल्म है जो अस्तित्व में है. इससे यह भी साफ होता है कि जंगल में सफ़ेद बाघों का अस्तित्व था और वहां उन्होंने बच्चे भी पैदा किए थे. इस फिल्म का इस्तेमाल नैशनल जियोग्राफी के दस्तावेजी-नाट्य रूपांतर "मैन-ईटर्स ऑफ इंडिया" (1984) में किया गया था जो कि कॉर्बेट के जीवन के बारे में और उनकी 1957 की इसी नाम की एक पुस्तक पर आधारित था. सफ़ेद बाघ का एक सिद्धांत कहता है कि वे अन्तःसंयोग के सूचक थे, क्योंकि अत्यधिक शिकार और प्राकृतिक आवास के खत्म होने के परिणामस्वीरूप बाघों की आबादी कम होती चली गयी. 1965 में वाशिंगटन डी. सी. में हिलवुड एस्टेट, जो अब एक म्युजियम की तरह संचालित है, में मार्जोरी मेरीवेदर पोस्ट के "इंडिया कलेक्शन" में एक चेयर था जिसकी गद्दी सफ़ेद बाघ के चमड़े की थी. इसकी एक रंगीन तस्वीर लाइफ पत्रिका के 5 नवंबर 1965 के अंक में छपी थी.[50] अक्तूबर नैशनल जिओग्राफी के 1975 के अंक में संयुक्त अरब अमीरात के रक्षामंत्री के दफ्तर की प्रकाशित तस्वीरों में सफ़ेद बाघों की भरमार है.[51] अभिनेता सीजर रोमेरो के पास एक सफ़ेद बाघ की खाल थी.

लोकप्रिय संस्कृति[संपादित करें]

सफ़ेद बाघों को साहित्य, वीडियो गेम, टेलीविजन और कॉमिक किताबों में अकसर पेश किया जाता है. ऐसे मिसालों में स्वीडिश रॉक बैंड केंट भी शामिल है, जिसने 2002 में अपने सबसे अधिक ब्रिकी हुए एलबम वेपेन एंड एमुनेशन के कवर पर सफ़ेद बाघ को दिखाया. यह बैंड की ओर से हावथ्रोन सर्कस के मुख्य आकर्षण को उनके अपने शहर एस्किलस्टूना के स्थानीय चिड़ियाघर में लाये गए सफ़ेद बाघ के लिए श्रद्धांजलि थी. अमेरिका के सिंथ-रॉक बैंड द कीलर ने भी अपने "ह्युमन" गीत के वीडियो में सफ़ेद बाघ को दिखाया. 1980 के दशक में सफ़ेद बाघ के नाम पर अमेरिका के एक आकर्षक धातु का भी नाम व्हाइट टाइगर रखा गया.
अरविंद अदिगा के उपन्यास "द व्हाइट टाइगर" ने 2008 में मैन बुकर प्राइज जीता. मुख्य किरदार और सूत्रधार अपने आपको "द व्हाइट टाइगर" कहता है. यह बच्चे के रूप में उसे दिया गया एक उपनाम था जो दर्शाता है कि "जंगल" (उसका शहर) में वह अनोखा था, यह भी कि वह दूसरों से कहीं अधिक होशियार था.
सफ़ेद बाघों से संबंधित खेलों में ज़ू टाइकून (Zoo Tycoon) और वारक्राफ्ट युनिवर्स (Warcraft universe) शामिल हैं. माइटी मोरफिन पावर रेंजर्सऔर जापानी सुपर सेंटाई दोनों श्रृंखलाओं में व्हाइट टाइगर की थीम वाली मेका (mecha) का इस्तेमाल किया गया है, पावर रेंजर श्रृंखला की उत्पत्ति सुपर सेंटाई से ही हुई है. Power Rangers: Wild Force और इसके सेंटाई प्रतिरूप से उत्पन्न व्हाइट रेंजर में भी व्हाइट टाइगर की थीम वाला मेका के साथ-साथ व्हाइट टाइगर की शक्ति भी है.
कनाडा के ओंटारियो के बोमैनविल ज़ू के एक प्रशिक्षित सफ़ेद बाघ का उपयोग एनिमोर्फ्स टीवी श्रृंखला में किया गया था. हीरोज ऑफ माइट एंड मैजिक IV में भी सफ़ेद बाघों को दिखाया गया है, जहां वे नेचर टीम की लेवल 2 यूनिट हैं. यहां तक कि डेक्स्टर्स लैबोरेटरी में व्हाइट टाइगर और द जस्टिस फ्रेंड्स थे, और एनीमे रॉनिन वारियर्स में व्हाइट ब्लेज नाम के एक सफ़ेद बाघ को कई बार दिखाया गया है. गिल्ड वार्स फैक्शंस में व्हाइट टाइगर्स को एक जंगली, पालनेलायक "पालतू" साथी के रूप में दिखाया गया है. अंत में, सफ़ेद बाघों की लोकप्रियता के कारण निजी उपयोगकर्ताओं नेElder Scrolls IV: Oblivion के मौड्स या खेल पैच बनाने के लिए खजित प्रजातियों के बाघों में परिवर्तन करके उनमें वास्तविक लगने वाली ऊंचाई और मानक शारीरिक आकार सहित सफ़ेद बाघों के अभिलक्षणों का समावेश करना शुरू किया.
इसी तरह बीस्ट वार्स का पात्र टिगोट्रोन जो व्हाइट टाइगर कॉमिक बुक का हीरो है, सफ़ेद बाघ के रूप में बदल जाता है. The Chronicles of Narnia: The Lion, the Witch and the Wardrobe फिल्म में सफ़ेद बाघ को व्हाइट विच के लिए लड़ते हुए दिखाया गया है.

Tuesday, August 12, 2014

'जब रेप होता है तो धर्म कहाँ जाता है?'


 मंगलवार, 12 अगस्त, 2014 को 12:54 IST तक के समाचार
म्यूज़ियम का एक दृश्य
"पाँच पांडवों के लिए पाँच तरह से बिस्तर सजाना पड़ता है लेकिन किसी ने मेरे इस दर्द को समझा ही नहीं क्योंकि महाभारत मेरे नज़रिए से नहीं लिखा गया था!"
बीईंग एसोसिएशन के नाटक 'म्यूज़ियम ऑफ़ स्पीशीज़ इन डेंजर' की मुख्य किरदार प्रधान्या शाहत्री मंच से ऐसे कई पैने संवाद बोलती हैं.
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सहयोग से मंचित इस नाटक में सीता और द्रौपदी जैसे चरित्रों के माध्यम से महिलाओं की हालत की ओर ध्यान खींचने की कोशिश की है लेखिका और निर्देशक रसिका अगाशे ने.
रसिका कहती हैं, "सीता को देवी होने के बाद भी अग्नि परीक्षा देनी पड़ी थी और इसे सही भी माना जाता है लेकिन मेरा मानना है कि 'अग्नि परीक्षा' जैसी चीज़ें ही रेप को बढ़ावा देती हैं."

ये विरोध का तरीका है

म्यूज़ियम का एक दृश्य
नाटक में शूर्पणखा पूछती है, "मेरी गलती बस इतनी थी कि मैंने राम से अपने प्यार का इज़हार कर दिया था? इसके लिए मुझे कुरूप बना देना इंसाफ़ है?"
शूर्पणखा सवाल उठाती है, "अगर शादीशुदा आदमी से प्यार करना ग़लत है तो राम के पिता की तीन पत्नियां क्यों थीं?"
रसिका कहती हैं, "16 दिसंबर को दिल्ली गैंगरेप के बाद इंडिया गेट पर मोमबती जलाने और मोर्चा निकालने से बेहतर यही लगा कि लोगों तक अपनी बात को पहुंचाई जाए और इसके लिए इससे अच्छा माध्यम मुझे कोई नहीं लगा."

कट्टरपंथियों का डर नहीं

म्यूज़ियम का एक दृश्य
नाटक में सीता का किरदार निभाने वाली प्रधान्या शाहत्री हैं, "सच से डरना कैसा? ये हमारा विरोध करने का तरीका है और हम जानते हैं, हम ग़लत नहीं हैं."
जब आस्था का मामला आता है तो घर परिवार से भी विरोध होता है. द्रौपदी की भूमिका निभाने वाली किरण ने बताया कैसे घर वाले उनसे नाराज़ हो गए थे.
रसिका का कहना था, "ये पहली बार नहीं है कि किसी ने द्रौपदी और सीता के दर्द को लिखने की कोशिश की है और उस वक़्त धर्म कहाँ जाता है जब किसी लड़की का रेप हो जाता है."

हिंदू सभ्यता पर हमला?

म्यूज़ियम का एक दृश्य
"कुंती ने हमारा सेक्स टाइमटेबल बनाया ताकि किसी भाई को कम या ज़्यादा दिन न मिलें." द्रौपदी जब मंच से ये संवाद बोलती हैं तो तालियां गूंज उठती हैं.
नाटक की सीता पूछती हैं, "लोग पूछेंगे कि सीता का असली प्रेमी कौन था? वो रावण जिसने उसकी हां का इंतज़ार किया या वो राम जिसने उस पर अविश्वास किया?"
सिर्फ़ हिंदू मान्यताओं पर ही छींटाकशी क्यों, इसके जवाब में वह कहती हैं, "हमने ये कहानियां बचपन से सुनी हैं. हमें ये याद हैं और इसलिए हम इसके हर पहलू पर गौर कर सकते हैं."

Saturday, July 12, 2014

जान दोगे या हाथ- पैर?

हम्फ्रे हॉक्सले

 शनिवार, 12 जुलाई, 2014 को 15:05 IST तक के समाचार
ईंट भट्टा मज़दूर
ओडिशा के दो युवकों के हाथ इसलिए काट दिए गए क्योंकि उन्होंने ईंट भट्टे पर काम करने से इनकार कर दिया था.
इस मामले में नामज़द व्यक्ति को ज़मानत पर रिहा कर दिया गया है, लेकिन पीड़ितों को अब भी इंसाफ़ का इंतज़ार है.
लेकिन भारत में यह ऐसा पहला मामला नहीं.

बंधुआ मज़दूरों की स्थिति पर पढ़ें पूरी रिपोर्ट

'जान दोगे, पैर या हाथ'

पिछले दिसम्बर में ओडिशा के एक छोटे से गांव के दियालु सहित क़रीब 12 लोगों को पास के एक ईंट भट्टे पर काम का लालच दिया गया.
दियालु के अनुसार उन्हें उनके पड़ोसी बिमल ने फुसलाया था जो ईंट-भट्टों पर मज़दूरी दिलाने वाला एजेंट बनने की कोशिश कर रहा था.
मगर पास के ईंट-भट्टे की जगह उन्हें 800 किलोमीटर दूर हैदराबाद के ईंट-भट्टे के लिए ट्रेन में बैठा दिया गया.
जब उन्हें लगा कि वे फंसने वाले हैं, तो वे भाग निकले. लेकिन दियालु और उसका एक दोस्त पकड़े गए और उन्हें ठेकेदार रायपुर ले आया.
ईंट भट्टा, बंधुआ मज़दूरी
ठेकेदार ने उनसे पूछा कि सज़ा के तौर पर अपना एक हाथ कटवाएंगे या पैर या फिर जान देंगे.
दोनों ने अपना दांया हाथ कटवाने का फ़ैसला किया.
पहले दियालु के दोस्त का हाथ काटा गया, दियालु की आंखों के सामने.
वह बताते हैं, ''हाथ को एक पत्थर पर रखा गया. एक ने गर्दन पकड़ी और दो ने हाथ. चौथे ने कुल्हाड़ी चलाई. हाथ यूं उड़ा जैसे मुर्गे की गर्दन.''
दियालु, ईंट भट्टा, बंधुआ मज़दूरी
इसके बाद उनकी बारी आई. वह बताते हैं, ''इतना दर्द हुआ था कि मुझे लगा मैं मर जाऊंगा.''
बहते खून और दर्द के बीच वे पास के एक गांव पहुंचे और कटे हाथ पर प्लास्टिक बैग बांधकर पास के कस्बे में इलाज के लिए गए.
दियालु को ठेकेदार को सौंपने वाले बिमल को पुलिस ने पकड़ लिया, लेकिन उन्हें ज़मानत मिल गई.
बिमल अब दियालु से 'माफ़ी मांगकर' पड़ोसियों की तरह रहना चाहते हैं.
बिमल, ईंट भट्टा, बंधुआ मज़दूरी
(बिमल को गिरफ़्तार करने के बाद ज़मानत पर रिहा कर दिया गया)
मगर दियालु कहते हैं, ''मैं ताज़िंदगी उसे माफ़ नहीं कर सकता.''

और कितने दियालु

बंधुआ मज़दूरों की मदद के लिए काम करने वाली संस्था इंटरनेशनल जस्टिस मिशन (आईजेएम) के पुनर्वास कार्यक्रम में दियालु हिस्सा ले रहे हैं. इसमें बंधुआ मज़दूरी से छुड़वाए गए 150 बच्चे और महिलाएं हैं.
ईंट भट्टा, बंधुआ मज़दूरी, बच्चे
इनमें दो महिलाएं ऐसी हैं, जिनके पेट पर लात मारकर उनका गर्भ गिरा दिया गया था. एक महिला के पति को ट्रेन के नीचे फेंककर मार दिया गया था.
आईजेएम में सलाहकार रोजेन राजन कहते हैं, ''भारत सरकार बंधुआ मज़दूरों को छुड़ाने और कसूरवारों को सज़ा देने में नाकाम है.''
ये अप्रत्यक्ष रूप से भारत के ग्लोबल ब्रांड्स और यहां मल्टीनेशनल कंपनियों के मुनाफ़े की महत्वपूर्ण वजह हैं और भारत को आर्थिक महाशक्ति बनाने में योगदान कर रहे हैं.
ईंट भट्टा मज़दूर
दि कंफ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन इंडस्ट्रीज़ (सीआईआई) कंपनियों को क़ानून का पालन करने को कहता है, जिसके अनुसार 1976 से बंधुआ मज़दूरी पर प्रतिबंध है.

आंकड़े

दियालु, ईंट भट्टा, बंधुआ मज़दूरी
सामाजिक कार्यकर्ताओं और शोधकर्ताओं के अनुसार भारत में करीब एक करोड़ बंधुआ मजदूर हैं.
मगर कई सरकारी अधिकारी इन्हें ग़लत बताते हैं.
आंध्र प्रदेश के श्रम आयुक्त डॉक्टर ए अशोक ने दिसंबर में मेरे सामने दावा किया था कि उनके इलाक़े में एक भी बंधुआ मज़दूर नहीं है. लेकिन दियालु को उनके कार्यक्षेत्र में ही ले जाया जा रहा था.
ईंट भट्टा मज़दूर
डॉक्टर अशोक हैदराबाद के बाहर रंगारेड्डी के ईंट भट्टों का उदाहरण देते हैं.
मगर आईजेएम के शिविर में दियालु के साथ मौजूद बहुत से लोग उन्हीं भट्टों से आए हैं और उनके पास सरकारी मुहर वाला सर्टिफ़िकेट है जिसमें लिखा है कि उन्हें बंधुआ मज़दूरी से मुक्त करवाया गया है.
एमनेस्टी इंटरनेशनल ब्रिटेन के आर्थिक संबंध कार्यक्रम के निदेशक पीटर फ़्रेंकेन्टेल कहते हैं, "भारत में व्यापार से जुड़ी मानवाधिकार हनन की समस्या बहुत गहरी है और कंपनियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई में क़ानून का पालने करवाने वाली संस्थाएं भी रुचि नहीं लेतीं."

Saturday, May 31, 2014

मोहन एक "रिसेसिव म्यूटेंट"

द्यपि मोहन से पहले भी जंगलों में सफेद बाघ देखे गए हैं, लेकिन उनमें और मोहन में एक खास अंतर है। मोहन इन सफेद बाघों के समान "एलबिनो" नहीं था। एलबिनो जानवरों की आंखें गुलाबी रंग की होती हैं। वे बहुधा कमजोर एवं कद में छोटे होते हैं और अधिक समय जीवित नहीं रहते। मनुष्य समेत अनेक प्राणियों में एलबिनो पैदा होते हैं। मनुष्यों में उन्हें सूर्यमुखी मनुष्य कहा जाता है। उनके शरीर - बाल समेत - सफेद रंग का होता है क्योंकि उनमें रंजक पदार्थ नहीं होते। इसके विपरीत मोहन की आंखें नीली थीं और वह सामान्य बाघों से बड़ा और शक्तिशाली था। बंदी अवस्था में भी वह स्वस्थ रहा और उसने प्रजनन किया।

सच तो यह है कि मोहन एक "रिसेसिव म्यूटेंट" था। बाघों की चमड़ी, नाक और आंख के रंग को एक खास जीन निर्धारित करता है जिसे 'क' नाम दिया जा सकता है। इसके प्रभाव को निष्क्रिय बनानेवाला एक दूसरा जीन भी होता है, जिसे इसका रिसेसिव जीन कहा जाता है। इसे 'ख' से अभिहित किया जा सकता है। यदि किसी जीव में 'क' जीन न हो तो यह रिसेसिव जीन 'ख' सक्रिय हो उठता है और उस जीव को एलबिनो बना देता है। सामान्य रंग वाले बाघों में 'क-क' अथवा 'क-ख' का जीन-संयोजन पाया जाता है, जबकि सफेद बाघ में अनिवार्यतः 'ख-ख' का जीन-संयोजन होता है, यानी उनमें 'क' जीन का अभाव होता है। इस तरह यदि बाघ-बाघिन में से एक भी 'क-क' हो, तो सभी शावक सामान्य पैदा होंगे, परंतु यदि दोनों 'क-ख' हों तो एक-आध शावक सफेद पैदा हो सकते हैं। परंतु यदि दोनों ही 'ख-ख' हों, तो उनके सभी बच्चे सफेद पैदा होंगे। यद्यपि १९५१ से पहले भी शिकारियों द्वारा सफेद बाघ मारे गए हैं, लेकिन मोहन पहला सफेद बाघ था जिसे जिंदा पकड़ा गया और उसने बंदी अवस्था में प्रजनन भी किया। उसकी संतति के कारण सफेद बाघ विश्व-प्रसिद्ध हो गए।

उनके विलक्षण रंग और विशाल आकार के अलावा सफेद बाघों और अन्य बाघों में कोई भी अंतर नहीं होता है। परंतु चिड़ियाघरों के लिए उनका अद्भुत रूप-रंग ही महत्व रखता है। इसलिए चिड़ियाघर सफेद बाघों के लिए मुंह मांगी कीमत देने को तैयार रहते हैं। एक स्वस्थ सफेद बाघ के लिए एक लाख डालर तो आसानी से मिल जाता है। दुर्भाग्य से अत्यधिक अंतरप्रजनन के कारण इस विलक्षण जीव की नस्ल बहुत क्षीण हो गई है। मोहन की वंश परंपरा में ११४ सफेद बाघ पैदा हुए, जिनमें से केवल २५ आज भारत और अन्य देशों में जीवित हैं।

Mohan and the Rewa strain

Captive white tigers

From Wikipedia, the free encyclopedia
Captive white tigers are of unknown lineage and likely of mixed ancestry. The Tiger Species Survival Plan devised by theAssociation of Zoos and Aquariums has condemned the breeding of white tigers. The genes responsible for white colour are represented by 0.001% of the population. However, in 2008–2009, a closing stock of 264 Bengal tigers and 100 white Bengal tigers were accounted for in Indian zoos. The disproportionate growth in numbers of the latter points to the relentlessinbreeding resorted to among homozygous recessive individuals for selectively multiplying the white animals. This progressively increasing process will eventually lead to inbreeding depression and loss of genetic variability.[1]

Mohan and the Rewa strain[edit]

A white tigress with her cubs.
Mohan was the founding father of the white tigers of Rewa.[2] He was captured as a cub in 1951 by Maharaja of Rewa,<http://www.banglalive.com/News/SpecialNewsDetail/6173> whose hunting party inBandhavgarh found a tigress with four 9-month-old cubs, one of which was white. All of them were shot except for the white cub. After shooting a white tiger in 1948 the Maharaja of Rewa had resolved to capture one, as his father had done in 1915, at his next opportunity. Water was used to lure the thirsty cub into a cage, after he returned to a kill made by his mother. The white cub mauled a man during the capture process and was clubbed on the head and knocked unconscious. He was not necessarily expected to wake up, and this was his second brush with death. He recovered though, and was housed in the unused palace at Govindgarh in the erstwhile harem courtyard. The Maharaja named him Mohan, which roughly translates as "Enchanter", one of the many names of the Hindu deity Krishna.
The white tiger the previous Maharaja had kept in captivity from 1915 to 1920 was also a male, unusually large like most white tigers (Mohan was no exception in this regard), and had a white male sibling still living in the wild. After the captive white tiger's death in 1920 he was mounted and presented to the Emperor King George V, as a token of loyalty.[3] This specimen is now in the British Museum. The first live white tiger reached England in 1820, and was exhibited at London'sExeter Change menagerie where it was examined by the famous French anatomist Georges Cuvier, who described it in his "Animal Kingdom" as having faint stripes only visible from certain angles of refraction. In 1960 there was a mounted white tiger, with faint reddish brown stripes, in the throne room of the Maharaja of Rewa.
In 1953, Mohan was bred[4] to a normal-coloured wild tigress called Begum ("royal consort"), which produced two male orange cubs on September 7, one of which went to Bombay Zoo. In 1955 they had a litter of two males and two females on April 10 (which included a male named Sampson and a female named Radha), all normal-coloured. On July 10, 1956 they again had a litter of two males and two females, which included a male named Sultan who went to Ahmedabad Zoo, and a female named Vindhya who went to the Delhi Zoo and was later bred to an unrelated male named Suraj.[5] Once again, the breeding experiments failed to yield a single white cub.[3]
Mohan was then bred to his daughter Radha (who carried the white gene inherited from her father) with success. The initial litter of four cubs—a male named Raja, and three females named Rani, Mohini, and Sukeshi—were the first white tigers born in captivity, on October 30, 1958.[3][6] Raja and Rani went to the New Delhi Zoo, and Mohini was bought by the German-American billionaire John Kluge[7] for $10,000, for the National Zoo in Washington D.C., as a gift to the children of America, in 1960.
The Government of India made a deal with the Maharaja, under the terms of which Raja and Rani would go to the New Delhi Zoo[8][9] for free. In exchange the Maharaja's white tiger breeding would be subsidized and he would receive a share of their cubs. He wanted Rs 100,000 for them. Technically Sukeshi was also the property of the New Delhi Zoo, and in a sense India had nationalized the captive white tigers of Rewa. The Parliament of India would hear reports on the progress of the white tigers, and Prime Minister Indira Gandhi and U Nu of Burma participated in public christening ceremonies for white cubs at New Delhi Zoo.[10] Sukeshi remained at Govindgarh Palace, in the harem courtyard where she was born, as a mate for Mohan.
That same year, India imposed a ban on the export of white tigers,[11][12][13][14][15][16] in an effort to preserve a monopoly (as a tourist attraction), possibly because Anglo-Indian naturalist Edward Pritchard Gee recommended that Govindgarh Palace, and its white tiger inhabitants, be made a "national trust", which did not happen. Mohini was only allowed to leave India because US President Dwight D. Eisenhower intervened personally with Prime Minister Jawaharlal Nehru, to ask for the release of the United States government's white tiger. A white sister of Mohini's had been brought to New Delhi the year before to show the President, who was no stranger to white tigers. After the export ban was imposed the Maharaja threatened to release all of his white tigers into the Rewa forest, and so he was given dispensation to sell two more pairs abroad, to offset his costs.[17]
Six zoos acquired white tigers from the Maharaja of Rewa including the Bristol Zoo in England (a brother and sister pair named Champak and Chameli on June 22, 1963 for the equivalent of $10,000 each.)[3][18] and the Crandon Park Zoo (which closed around 1983, and moved out of Crandon Park to the site of the Miami MetroZoo) in Miami acquired a white tigress in 1968.[19] Bristol Zoo's pair, born in 1962, came from another litter of four, all white, but two (one female and one male) did not survive. Years later the Bristol Zoo needed a new breeding male and traded a white female to New Delhi Zoo for a white tiger named Roop, who had been named by U Nu, the Prime Minister of Burma.[3] He was the son of Raja by his own mother and half sister- Radha, born in New Delhi. Radha, and many other tigers from Govindgarh including Sukeshi, were later transferred to New Delhi. Begum went to live at Ahmedabad Zoo and was bred to her son Sultan. They produced twelve cubs in four litters between 1958 and 1961.[5] Bristol Zoo later transferred two male white tigers to Dudley Zoo.
The government of West Bengal bought two white males, named Niladari and Himadri, from the Maharaja for the Alipore Zoological Gardens (Calcutta Zoo), and an orange female named Malini, from the same litter of three born in 1960, accompanied them there. The Alipore Zoo in Kolkata, recovered the purchase price of its white tigers within six months by charging extra to see them. By 1966 the Bombay Zoo had a white tigress named Lakshmi, born in 1964, from the Maharaja. The Calcutta Zoo sold a white tigress named Sefali to Gauhati Zoo and sent a second white tiger there on loan. Circus owner Clyde Beatty also bought a white tiger from the Maharaja in 1960, for $10,000 in a deal facilitated by the Smithsonian National Zoo director T.H. Reed, who had traveled to India to escort Mohini toWashington, which had to be canceled because of the export ban,[20] which made Mohini even more valuable. She was estimated to be worth $28,000. President Titoof Yugoslavia visited New Delhi Zoo and asked for white tigers for Belgrade Zoo, but was refused.[21] A white tiger named Dalip from New Delhi Zoo represented India in two international expositions in Budapest and Osaka. A white tigress named Nandni, who was born in New Delhi Zoo in 1971, went to Hyderabad Zoo.[5] By 1976 the Lucknow Zoo also had a white tiger which was a gift from New Delhi Zoo. Zoos with white tigers constituted a most exclusive club and the white tigers themselves represented a single extended family. In 1965 or 1966 Terence Walton, a member of the Maharaja of Rewa's staff, was attending a performance of the Ringling Bros. Circus in Madison Square Garden and had a note passed to tiger trainer Charles Baumann, on the Maharaja's stationary, requesting an opportunity to discuss white tigers. He may have hoped to make a sale. Baumann was invited to Rewa, but was not able to go.
Mohan was featured in the National Geographic documentary "Great Zoos Of The World" in 1970. He died later that year, aged almost 20, and was laid to rest with Hindu rites as the palace staff observed official mourning. He was the last recorded white tiger born in the wild. The last white tiger seen in the wild was shot in 1958 in the Hazaribagh forests of Bihar.[3] There have been rumors of white tigers in Hazaribagh, the Tora forsts of Rewa, and Kanha National Park since 1958, but these were not considered credible by K.S. Sankhala. A photograph of Mohan's stuffed head, in a display case in the private museum of the Maharaja of Rewa in Govindgarh Lake Palace, appears in the National Geographic book "The Year Of The Tiger."[22] Another picture of Mohan's head appears on the official website of the Maharaja of Rewa (MP).[23]
The Maharaja of Rewa turned Mohan's native forest into the Bandhavgarh National Park, because he could not control the poaching. The Maharaja was negotiating the sale of a white male, named Virat, as late as 1976, when he died of enteritis. Virat was a son of Mohan and Sukeshi.
At Bandhavgarh visitors can stay at the White Tiger Lodge, which is the local version of Tiger Tops in Royal Chitwan inNepal. Pushpraj Singh, the reigning Maharaja of Rewa, has asked students to sign a petition to ask the President of India to return at least two white tigers to Govindgarh Lake Palace, as a tourist attraction.[24]

Mohini Rewa (Enchantress) and Sampson[edit]

Mohini, a daughter of Mohan, was officially presented to President Eisenhower by John W. Kluge, in a ceremony at theWhite House on December 5, 1960, and went to live at the Lion House, in the National Zoo, in Rock Creek Park.[25][26][27][28]A reporter for The New York Times described the meeting of Mohini and President Eisenhower: "The President shied noticeably when the beast roared and leaped in his direction inside the traveling cage drawn up on the White House south driveway. An eloquent "Well!" was the President's only comment for the next few seconds."[29][30] T.H. Reed, the director of the National Zoo, gave this description of Mohini: "Her stripes were black, shading into brown, but her main coat was eggshell white instead of the normal rufous orange. Exotic coloring and magnificent physique made her a tiger without peer. For a two year old kitten she had tremendous growth-almost 190 pounds, three feet tall at the shoulders, and eight feet from nose to tail."[7] White tigers are larger and heavier than regular orange tigers. The average length of a white tiger at birth is 53 cm, compared to 50 cm for a normal orange cub. Shoulder height is 17 cm (normal 12 cm), weight 1.37 kg (normal 1.25 kg). Dalip and Krishna, two white tigers at New Delhi Zoo, weighed 139 kg and 120 kg respectively, at two years of age. Ram and Jim, two normal colored tigers at the same zoo, weighed 106 kg and 119 kg, at the same age. Raja, the white tiger, had a shoulder height of 100 cm, at ten years of age, while Suraj, an orange tiger, had a shoulder height of only 90 cm, at 12 years of age, according to New Delhi Zoo director K.S. Sankhala. Ratna and Vindhya, orange tigresses "from the white race", who carried the white gene as a recessive (both were fathered by Mohan), were higher at the shoulder than average, measuring 87 and 88 cm, compared to a normal orange tigress named Asharfi, who measured 82 cm at the shoulder.[3]White tigers also grow faster than orange tigers.[31] This would have given them an advantage in the wild.
Following Mohini's arrival in New York City from India, with National Zoo director T.H. Reed, she spent one night in the Bronx Zoo[32] A reception was scheduled at the Explorer's Club, and Mohini was to appear on the children's television show "Wonderama", with big game hunter Ralph S. Scott, who had been instrumental in bringing her to America. Mohini was also scheduled to appear on television in Philadelphia and Washington D.C.[33] On Dec. 7, 1960 a television special was aired titled "White Tiger", which was a film about Mohini's trip from India.[34] (The birth of Mohini's first litter in 1964 was televised in a national special.) Mohini was exhibited for three days in the Philadelphia Zoo,[35][36][37] before traveling on to Washington.[7] Her name is the feminine of Mohan, and translates as "Enchantress". She was her father's namesake. She was a great attraction, and the zoo wanted to breed more white tigers. At the time, no more white tigers were being allowed out of India, so Mohini was mated to Sampson, her uncle and half brother, who was sent from Ahmedabad Zoo in 1963.[38] (It seems probable that financial considerations may have also precluded Washington from acquiring a second white tiger as a mate for Mohini.) Sampson was donated to the National Zoo by Ralph S. Scott.[39] Mohini was originally betrothed to an orange Bengal tiger named "Mighty Mo", who was captured in Central India in the forests of the Maharaja of Panna by Ralph S. Scott, and donated to the National Zoo on June 19, 1959. Today there is a Panna National Park. Unfortunately Mohini used to push Mighty Mo around. The original plan was to breed Mohini with an unrelated orange tiger, and then breed her to one or more of her male offspring, in the hope of producing white cubs. That was before Sampson arrived. Sampson fathered the first two of Mohini's four litters, which were born in 1964 and 1966. Mighty Mo and another tiger named "Foa" were given to the Pittsburgh Zoo in August 1966.
After Sampson's death in 1966, at age 11 of kidney failure, Mohini was bred to her son Ramana, who was then the only male white gene carrier available. This resulted in the birth of a white daughter named Rewati on April 13, 1969[40] and a white son named Moni on Feb. 8, 1970.[41] Moni died of a neurological disorder in 1971 at 16 months. Moni was to have undertaken a fund raising tour for Project Tiger. He was born in a litter of five, which included two white males and three orange females. One was stillborn and the mother crushed the others after three days. When Moni was a cub he was photographed with Mrs. Suharto, the wife of Indonesian President Suharto, when she visited the National Zoo. Rewati had an orange male littermate which died after two days. Ramana was born on July 1, 1964 and had two litter mates-a white male named Rajkumar, who was the first white tiger born in a zoo, and an orange female named Ramani.[42][43][44][45][46][47] Both died of feline distemper despite having been vaccinated, at ten months of age.[48][49][50] Rajkumar had a particularly nasty disposition. All of Mohini's cubs were named by the Indian Ambassador. At the time of his death, at only ten months of age, Rajkumar already weighed 175 pounds, and could hardly be called a cub. He was first named "Charlie" by one of his keepers, before the Indian Ambassador gave him his official name. The National Zoo planned to trade Rajkumar for a number of other animals. He was equal to ten zebras in value. The Smithsonian Institution stepped in and vetoed the plan, insisting that Rajkumar would remain a permanent resident of Washington D.C. Rajkumar was the only white tiger fathered by Sampson.
The birth of Mohini's first litter was televised in a national special. Mohini's orange daughter Kesari was born in 1966 with an orange female who was stillborn. It was even suggested, although probably not too seriously, that Indian Prime MinisterIndira Gandhi be asked to bring a white tiger cub for the zoo, when she was scheduled to visit Washington in 1966. After Moni died in 1971 the National Zoo tried to acquire an orange tiger named Ram from Trivandrum Zoo, in southern India, as a mate for Mohini.[51] Ram was her first cousin, a grandson of Mohan, and there was a 50% chance that he carried white genes. 25% of Ram's genes came from Mohan and 25% from Begum. 25% of Mohini's genes were from Begum and 75% from Mohan. Ram was a son of Vindhya and Suraj born on 23 IV 1965 at New Delhi Zoo, the same Ram discussed earlier. Two sisters of Ram, born on 22 Feb. 1967, went to the Romanshorn Zoo in Switzerland. In 1973 an Indochinese Tiger(Panthera tigris corbetti) named Poona, who was born at the Woodland Park Zoo in Seattle in 1962, was sent to Washington on a six month breeding loan from the Brookfield Zoo and bred to Mohini[52] and Kesari.[53] (Poona would have been regarded as a Bengal tiger for the first two years of his life because the Indo-Chinese subspecies was not recognized until 1968.) Mohini did not conceive. Kesari produced six orange cubs, an extraordinary number, especially for a first litter, but only one survived, a female named Marvina. Kesari handed Marvina over to her keepers and kept the other five. Marvina was mistaken for male, and named Marvin which was changed to Marvina when it was discovered that he was a she. Washington Zoo keeper Art Cooper, who hand reared Marvina, observed that white tigers were the most obstinate cats in the zoo, and said that Marvina had a typical white tiger personality.[54] (Poona also fathered litters by two other tigresses in Brookfield.) In 1974 Marvina, Ramana, and Kesari were sent to the Cincinnati Zoo and Botanical Garden, and Rewati and Mohini went to the Brookfield Zoo, to be boarded during renovations in Washington, until 1976.[55] On June 20, 1974 while at the Cincinnati Zoo Ramana and Kesari produced a litter of three white and one orange cub, including a white male named Ranjit, two white females named Bharat and Priya, and an orange male named Peela. Devra Kleiman of the National Zoo said that she knew all about the white gene and made a point of asking that these tigers (Ramana, Kesari, or Marvina)not be bred while in Cincinnati. The Cincinnati Zoo said that Ramana and Kesari never bred in Washington, but they did so shortly after arriving in Ohio.[56] As a fringe benefit of inbreeding the four cubs were pure-Bengal tigers, and they were the last registered Bengal tigers born in the United States. Ranjit, Bharat, Priya, Peela, and Rewati had inbreeding coefficients of 0.406.[57] Ramana died in 1974 of a kidney infection and became a father for the last time posthumously.
A white half sister of Mohini's, bred from Mohan and Sukishi, born on March 26, 1966, named Gomti[5] and later renamed Princess, lived in the Crandon Park Zoo in Miami for almost three years, before she died of a viral infection at age five in December 1970.[19] She arrived in Miami on January 13, 1968. Miami mayor Chuck Hall met the 22-month-old 350 lbs. white tigress at the airport and rode with her to the zoo. He wanted to call her Maya, the name suggested by the Maharaja, which translates as Princess. Ralph S. Scott, who paid $35,000 for her and gave her to the Zoological Society of Florida, preferred the name Princess.[19][58][59] The Zoological Society of Florida loaned Princess to the Crandon Park Zoo. It was Ralph S. Scott, a famous big game hunter, who suggested to John W. Kluge that he buy a white tiger for the children of America. He had seen the white tigers in Govindgarh Palace while tiger hunting in India.[7] The government of India wanted Princess to be the last white tiger exported from the country. A male white tiger, named Ravi, acquired by Ralph S. Scott for the Crandon Park Zoo died at Kanpur railway station en route from India in 1967. He was a son of Raja and Rani born in New Delhi Zoo, and sold by the Maharaja of Rewa. In 1970 Jimmy Stewart was on The Tonight Show Starring Johnny Carson and said that his wife was going to buy a white tiger from the Maharaja of Rewa for the Los Angeles Zoo. Ralph S. Scott was watching and felt as though he was being robbed. He had been trying to get a mate for Princess for years. A bidding war erupted between Scott, Jimmy Stewart, a major league baseball team, a Hollywood producer, and a major European zoo. Scott said of Princess "It is cruel to expect an animal like that to live alone. And you can't mate her with an ordinary tiger-she's so superior...I appealed to the Maharaja from a conservation standpoint and it hit home." Princess and Rajah were to be a "royal couple." The Los Angeles Zoo had already spent $20,000 building a white tiger exhibit. Scott said that he would try and send them a pair of cubs from Princess and Rajah, but Princess died a week before Rajah was scheduled to arrive. Scott hired an Indian taxidermist to stuff Princess, and she was presented to the Museum Of Science in Miami in 1972, but she is now in the reception area of the Miami MetroZoo's administration building. Scott paid around $45,000 for Raja, who he thought might still be mated to Mohini, but Rajah never arrived in Crandon Park. Scott was so respected as a tiger hunter that he was asked to deal with man eaters which were terrorizing villages. He was a hunter turned conservationist, and a cat-lover.[60] Mohini died in 1979.[61] The skins and skulls of Mohini and Moni are in the Smithsonian, but are not on display.
An orange brother of Mohini's named Ramesh lived in the Ménagerie du Jardin des Plantes (Paris Zoo), and was bred to an unrelated tigress, but none of the offspring survived to reproduce. Ramesh was born in Govindgarh Palace and had an orange female littermate, named Ratna who went to New Delhi Zoo, and a white male littermate named Ramu.[5] They were the fourth and last litter of Mohan and Radha. Ratna was paired with a wild caught male named Jim, at New Delhi Zoo, and produced three litters. Each cub would have had a 50% chance of inheriting the white gene from Ratna. Jim was captured in the Rewa forest, so they thought there was a chance he carried white genes. He had been somebody's pet, but after he ate a cat he was given to New Delhi Zoo. Jim used to appear leaping into his pond, at New Delhi Zoo, in the opening of one ofGerald Durrell's TV shows. Edward Pritchard Gee mentioned, in his book "The Wildlife Of India" (which has a foreword byJawaharlal Nehru), that Bristol Zoo wanted to acquire one of the cubs of Mohan and Begum, as a mate for one of its white tigers, Champak or Chameli, to lessen the degree of inbreeding, as the US National Zoo had done with Sampson.[62] The Bristol Zoo did acquire one of the daughters of Mohan and Begum.[63] In 1987 Ranjit, Bharat, Priya, and Peela were sold to the International Animal Exchange. Ranjit, Priya, and Peela went to the IAE's facility in Grand Prairie, Texas. The phenomenon of spontaneous ovulation in a tiger was first observed by Devra Kleiman, in one of the white tigresses at the National Zoo, which meant that it was possible to breed tigers by artificial insemination. Mohini died in 1979 at 20 years of age. Edwards Park wrote in Smithsonian magazine that National Zoo director Ted Reed was "mourning his queen the late Mohini Rewa." Ted Reed said "It's impossible to say how much the zoo owes that cat and her cubs. They drew attention to the facility and made all of our recent improvements so much easier. If she had been human she would have been a movie star."[61]

Tony, Bagheera, and Frosty: A new strain[edit]

Tony, born in July 1972 in the Circus Winter Quarters of the Cole Bros. Circus (the Terrell Jacobs farm) in Peru, Indiana, was the founder of many American white tiger lines, especially those used in circuses.[64] His grandfather was a registered Siberian tiger, named Kubla, who was born at the Como Park, Zoo, and Conservatory in Saint Paul, Minnesota.[65][66]Kubla's parents were born in the wild and believed to be brother and sister. Kubla was bred to a Bengal tigress named Susie, from a west coast zoo, at the Great Plains Zoo in Sioux Falls in South Dakota. She was once co-owned by Clyde Beatty. Between April 10, 1966 and August 3, 1969 Kubla and Susie produced 13 or 14 cubs in 5 or 6 litters. The cubs were widely distributed. One eventually reached Paris, and another went from the Utica Zoo in New York State to Japan. Two of their cubs (Rajah and Sheba II) were bred by Baron Julius Von Uhl, who lived in Peru, Indiana. Julius Von Uhl was born inBudapest and came to America in 1956 from Hungary after the revolution. One of the results of his tiger breeding was Tony, who therefore carried mixed blood[67] He may have been the source of a gene for stripelessness. Kubla was also bred to an Amur tigress named Katrina, who was born at the Rotterdam Zoo, and passed through the hands of two American zoos before joining Kubla and Susie at the Great Plains Zoo. Kubla and Katrina have living pure-Amur descendants which may include a line of white tigers, that are claimed as pure-Amurs, which originated out of Center Hill, Florida. These white tigers are not registered Amur tigers. A tiger trainer named Alan Gold owned a pair of Amur tigers which once produced a stillborn white cub.
In 1972 there were four white tigers in the United States: Mohini and her daughter Rewati in Washington D.C., Tony, and his first cousin named Bagheera, a female born on July 8, 1972 in a litter of two white cubs, including a male which did not survive, in the Hawthorn Circus of John F. Cuneo Jr. Bagheera's mother, Sheba III, was a sister of Tony's mother, Sheba II. Bagheera's father was either an Amur tiger, named Ural, who was her preferred mate, and may have been her uncle and a littermate, or younger sibling, of Kubla, born at the Como Zoo; or one of two of her brothers, named Prince and Saber, who were also brothers to Tony's parents.[68]
Most of Sheba III's litters did not include white cubs, but at least 50% of her orange cubs would have been white gene carriers, since they could have inherited the gene from their mother, and if both parents were heterozygotes 66%, or two out of three, of their orange cubs are likely to have been carriers. She had 27 cubs in 9 litters between July 8, 1972 and July 26, 1975, of which only 3 were white, or 11%, not 25% as would be expected if both parents in each mating were heterozygotes. Prince was castrated before Sheba III conceived another white cub, a male named Frosty, born on Feb. 25, 1975, in a litter which included two orange females and one orange male.[68] It seems odd that a tiger which may have been fathering such valuable cubs (Prince) would have been neutered. Saber was never observed trying to mate, so perhaps Ural did sire one or more of Sheba III's white cubs, which would have been three quarters Siberian had this been the case. It is possible for tigers from the same litter to have different fathers. It's also possible that any or all three tigers-Ural, Prince, and Saber, carried the white gene. Ural was a sad specimen. He was cross eyed, although he was not white. Bagheera and Frosty were both severely cross eyed.
Tony was purchased by John F. Cuneo Jr., owner of the Hawthorn Circus Corp. of Grayslake, Illinois,[69][70] in February 1975 for $20,000 in Detroit. Tony's parents, Raja and Sheba, produced two more white cubs at the Baltimore County Fair on June 27, 1976.[71] The cubs were a white male, named "Baltimore County Fair", a white female named "Snowball", and an orange male. National Zoo spokeswoman Sybille Hamlem said: "This could be a real bonus for the breed if the two stay in the United States. The white tigers are no longer found in the wild and there have been genetic problems because of inbreeding. But that's apparently not the case here."[72] Snowball's name was later changed to "Maharani", and all three cubs were sold to the Ringling Bros. Barnum & Bailey Circus in Washington D.C.. Maharani died in 1984. Baron Julius Von Uhl had another three white cubs born between June 18 and 19, 1977 at Kingdom's 3 (formerly Lion Country Safari) atStockbridgeGeorgia off I-75 south of Atlanta.[73] Two lived only a short time. The other, named Scarlett O'Hara, died at the Grady Memorial Hospital's animal research clinic in Atlanta, on Jan. 30, 1978, of cardiac arrest resulting from anaesthesia. She was there to undergo surgery to correct crossed eyes. (She was only cross eyed in the right eye, which turned inward toward the nose.) She was still owned by Julius Von Uhl at the time.[74][75] Tony was sent on breeding loan to the Cincinnati Zoo in 1976, to be bred to Rewati from the US National Zoo. However, Tony and Rewati did not breed, so he was bred to Mohini's orange daughter Kesari instead, resulting in a litter of four white and one orange cub June 27, 1976, the same day that eight year old Sheba had her white cubs in Baltimore, Maryland. It is an astounding coincidence that both tigresses gave birth to white cubs on exactly the same day. On that one day America's white tiger population nearly doubled from 8 to 14. Kesari's 1976 litter represented a mixture of the two unrelated strains.
All of the white cubs from Kesari's 1976 litter by Tony were cross-eyed, as were Rewati, Bagheera, and Frosty. The Cincinnati Zoo retained a brother and sister pair from the litter, named Bhim and Sumita, and their orange sister Kamala. Two white males returned to the Hawthorn Circus with Tony as John Cuneo's share from the breeding loan. John Cuneo also asked the Bristol Zoo to trade some white tigers, to diversify the gene pool, but the Bristol Zoo declined, perhaps not wishing to exchange pure-Bengals for mongrels. Tony, Bagheera, and Frosty lived for years with a troop of Hawthorn Circus tigers stationed at Marineland and Game Farm, in Niagara Falls, OntarioCanada. Because of selective breeding only a few of the oldest white tigers in the Hawthorn Circus today are cross eyed. Bhim and Sumita became the world record parents of white cubs. In 1976 there were 39 white tigers-7 in New Delhi, 7 in Kolkata, one in Guwahati, one in Lucknow, one in Hyderabad, 8 in Bristol, Cincinnati Zoo had 2, Washington had 5, John Cuneo had 5, and Julius Von Uhl had 2. The Maharaja of Rewa retired from the white tiger business in 1976. He later abdicated in favor of his son so that he could run for the family seat in parliament and became an MP. There is a white tiger cub on the shield of the coat of arms of the Maharajas of Rewa.
Over 70 white tigers have been born at the Cincinnati Zoo, which is no longer in the white tiger business. The Cincinnati Zoo sold white tigers[76] for $60,000 each. Siegfried & Roy bought a litter of three white cubs from the Cincinnati Zoo, which were offspring of Bhim and Sumita, for around $125,000. Prior to 1974 the Cincinnati Zoo wanted to acquire a white tiger, but no zoo would sell at any price. By the 1980s the Cincinnati Zoo was the world's leading purveyor of white tigers. It was a cousin of the Maharaja of Rewa, Lt. Col. Fatesinghrao "Jackie" Gaekwad, the Maharaja of Baroda, who was also the Commissioner of Indian Wildlife and an MP, who suggested to Siegfried and Roy that they acquire white tigers from the Cincinnati Zoo and include them in their act.[77]"Jackie" was also the President of the World Wildlife Fund India. In the mid 1980s Siegfried & Roy owned 10% of the world's white tigers, and they were escorting two big white tiger cubs, with dark stripes, to their new home in Phantasialand in BrühlGermany, when the white tigers were briefly stolen with their truck in New York City.[78] The driver stopped for coffee. The white tigers made their debut in Germany at a ceremony attended by the United States Ambassador.
The Henry Doorly Zoo in Omaha, Nebraska bought Tony's parents and orange sister Obie (born in 1975) in 1978,[79] and bred more white tigers. Kesari also went to live at Omaha Zoo, but did not have any more cubs. Some of Tony's white siblings born in Omaha proved to be sterile. Obie was paired with Ranjit from the National Zoo, and their cubs like those of Tony and Kesari, included non inbred white tigers. A white tiger named Chester, who was a son of Ranjit and Obie, born at the Omaha Zoo, fathered the first test tube tigers,[80] and then became the first white tiger in Australia when he was sent to the Taronga Zoo in Sydney. His brother, Panghur Ban, was the National Zoo's last white tiger.[81] A white tiger named Rajiv, a son of Bhim, became the first white tiger in Africa, when he was sent to Pretoria Zoo in exchange for a king cheetah.[82]
In 1983 Rewati was paired with Ika, from Kesari's 1976 litter, at the Columbus Zoo.[83] By this time he was a three legged amputee retired from circus performance, put out to pasture to breed. Ika killed Rewati in the act of mating.[84] Ika was then mated with a white tigress named Taj, who was a grand daughter of his brothers Ranjit and Bhim. Ika was also bred to Taj's orange mother Dolly, a daughter of Bhim and an unrelated orange tigress named Kimanthi, in Columbus. Taj's father, Duke, was a son of Ranjit from an outcross to an unrelated orange tigress. Isson, a white grandson of Kesari and Tony, was also dispatched to Columbus on breeding loan from the Hawthorn Circus, of Grayslake, Illinois, which eventually had 80 white tigers, the largest collection in the world at the time. In 1984 five white tiger cubs were stolen from the Hawthorn Circus in Portland, Oregon, and two died. The tigers were touring with the Ringling Bros. Barnum & Bailey Circus. The culprit was a veterinarian who was sentenced to one year in prison and six months in a halfway house. Cincinnati Zoo director Ed Maruska testified in the case that the five white cubs had a dollar value in excess of $5000.[85][86]
In 1974 a white cub was born in the Racine Zoological Gardens in Wisconsin, from a father-daughter mating. The father, named Bucky, killed the white cub. The mother, named Bonnie, was later bred with an orange littermate of Tony named "Chequila", who belonged to James Witchey of Ravenna, Ohio, who bought him from Dick Hartman of South Lebanon, Ohio, when he was four or five years of age. Chequila proved to be a white gene carrier and fathered at least one white cub in the Racine Zoo in 1980. It is not known whether Bucky, who came from the Fort Wayne Children's Zoo in Indiana, and his daughter Bonnie, were related to any of the established strains of white tigers, but it is possible that Bucky was another one of the cubs of Kubla and Susie, born in Sioux Falls. By 1987 10% of North American zoo tigers were white.

The Orissa strain[edit]

Three white tigers were also born in the Nandankanan Zoo in BhubaneswarOrissa, India in 1980. Their parents were an orange father–daughter pair called Deepak and Ganga, who were not related to Mohan or any other captive white tiger – one of their wild-caught ancestors would have carried the recessive white gene, and it showed up when Deepak was mated to his daughter. Deepak's sister also turned out to be a white gene carrier. These white tigers are therefore referred to as the Orissa strain, as opposed to the Rewa strain, of white tigers founded by Mohan.[87][88][89][90][91]
When the surprise birth of three white cubs occurred there was a white tigress already living at the zoo, named Diana, from New Delhi Zoo. One of the three was later bred to her creating another blend of two unrelated strains of white tigers. This lineage resulted in several white tigers in Nandan Kanan Zoo. Today the Nandankanan Zoo has the largest collection of white tigers in India. The Cincinnati Zoo acquired two female white tigers from the Nandan Kanan Zoo, in the hopes of establishing a line of pure-Bengal white tigers in America, but they never got a male, and did not receive authorization from the Association of Zoos and Aquariums (AZA)'s Species Survival Plan (SSP) to breed them. The Zoo Outreach Organisation used to publish studbooks for white tigers, which were compiled by A.K. Roychoudhury of the Bose Institute in Calcutta, and subsidized by the Humane Society of India.[92] The Columbus Zoo had also hoped to breed pure-Bengal white tigers, but were unable to obtain a white registered Bengal mate for Rewati from India.[93]
There were also surprise births of white tigers in the Asian Circus, in India, to parents not known to have been white gene carriers, or heterozygotes, and not known to have any relationship to any other white tiger strains. There was a female white cub born at Mysore Zoo in 1984, from orange parents, descended from Deepak's sister. The white cub's grandmother Thara came from the Nandankanan Zoo in 1972. Mysore Zoo had a second female white tiger cub from New Delhi Zoo in 1984. On August 29, 1979 a white tigress named Seema was dispatched to Kanpur Zoo to be bred to Badal, a tiger who was a fourth generation descendant of Mohan and Begum. The pair did not breed so it was decided to pair Seema with one of two wild caught, notorious man eaters, either Sheru or Titu, from the Jim Corbett National Park. Seema and Sheru produced a white cub, and for a while it was thought there might be white genes in Corbett's population of tigers, but the cub did not stay white.[94][95][96]
There have been other cases of white tiger, white lion, and white panther cubs being born, and then changing to normal color. White tigers which were a mixture of the Rewa and Orissa strains, born at the Nandan Kanan Zoo, were non inbred. A white tiger from out of the Orissa strain found its way to the Western Plains Zoo in Australia. Australia's Dreamworld, on theGold Coast, wanted to breed this tiger to one of their white tigers from the United States.

See also[edit]

References[edit]

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