संयुक्त राष्ट्र की सहमति से अमेरिका ने इराक पर महज इसलिए हमला किया था क्योंकि
उसे संदेह था कि सद्दाम हुसैन नरसंहार के लिए जैविक और रासायनिक हथियार जुटा चुके हैं।
विनाश के ये हथियार मिले या नहीं मिले पर बगदाद धूल में मिल गया और सद्दाम हुसैन को चूहे
की मौत मिली। वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान परमाणु हथियारों का जखीरा जमाकर रहा है और
उसकी मिलिट्री तथा खुफिया एजेन्सी आतंकियों को पाल-पोस रही हैं फिर भी न तो संयुक्त राष्ट्र
संघ को कोई फिकर हो रही है और नहीं अमेरिका उसके परमाणु जखीरे को अपने कब्जे में लेने
की कोई पहल कर रहा है। भारत की सुरक्षा की चिन्ता करने वालों के लिए यह यक्ष प्रश्न की
अमेरिका के थिंक टैंक इन्स्टीट्यूट फार साइंस एन्ड इन्टरनल सिक्योरिटी ने अपनी ताजा
रिपोर्ट में कहा है कि पाकिस्तान में परमाणु बम बनाने लायक प्लूटोनियम तैयार करने वाले चौथे
परमाणु रियेक्टर खुशाब में काम शुरू हो गया है। इन्स्टीट्यूट ने १५ जनवरी को सेटेलाइट से
मिली तस्वीरों को भी आधार माना है जिसमें चौथी इकाई पर जोरों से काम चल रहा है।
पाकिस्तान एक मात्र इस्लामिक देश है जिसके पास परमाणु बम बनाने की तकनीक है और वह
एटमी हथियारों का जखीरा भी जमा करके रखा है। पता नहीं क्यों अभी तक ये दुनिया को ये
बात समझ में नहीं आ रही है कि इस्लामिक आतंकवाद की गर्भनाल भी इन्हीं परमाणु बमों के
जखीरे में गड़ी है। चाहे अमेरिका की ९/११ की घटना हो या अन्य कोई आतंकी वारदातें सभी के
कनेक्शन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से पाकिस्तान के साथ जुड़े हैं। ओसामा बिन लादेन की
एबटाबाद में सुरक्षित मिला था और वहीं भारत सब के लिए सबसे बड़े वांछित अपराधी दाउद
इब्राहिम और हाफिज सईद भी बेखटके घूम रहे हैं, उन्माद का कारोबार कर रहे हैं। पाकिस्तान में
लोकतंत्र के किरचे-किरचे वैसे भी बिखरे हुए है, वहां की मिलिट्री और खुफिया एजेन्सियों का
आतंकवादियों से गहरा संबंध है, कई बार यह बात साबित हो चुकी हैं। अब खतरा यह है कि
जिस दिन इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ दुनिया में निर्णायक युद्ध छिड़ेगा उस दिन परमाणु
हथियारों का यह जखीरा आतंकी समूहों के हाथ लगने से शायद ही कोई रोक पाए। ऐसे में अब
यह जरूरी हो गया है कि पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को मानव विरोधी घोषित करते हुए
संयुक्त राष्ट्र संघ उसके अणविक हथियारों के जखीरे को अपने नियंत्रण में ले। अमेरिका को भी
पाकिस्तान में वैसी ही कार्रवाई करना चाहिए जैसा कि उसने इराक में की थी क्योंकि पाकिस्तान
में जम्हूरियत वहां की मिलिट्री के हाथों की कठपुतली है।
आतंकवाद को लेकर अपने दोहरे मापदण्डों के चलते पाकिस्तान दुनिया के सबसे
अविश्वसनीय और खतरनाक देश के रूप में उभर रहा है। यहीं वजह है कि पेरिस की चार्ली-एब्दो
की घटना के बाद यदि सबसे ज्यादा विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं तो पाकिस्तान में ही हो रहे हैं। ये
अमेरिका का कैसा खेल व कैसी मजबूरी है कि जिस हाफिज सईद के लिए वह करोड़ों डालर
रुपए का ईनाम घोषित करता है वहीं हाफिज आतंकवाद के समर्थन में लाहौर बंद व मिलेनियम
मार्च का ऐलान करता है। पाकिस्तान के सेवा-शिक्षा-चिकित्सा क्षेत्र में जो वह अरबों डॉलर का
अनुदान देता है वह हाफिज के कथित समाजसेवी संगठन जमात-उददावा के माध्यम से उन
आतंकी शिविरों तक पहुँच जाता है जहां भारत के खिलाफ विध्वंश की कार्रवाई के लिए आतंकी
तैयार किए जाते हैं। भारत के लिए यह जरूरी है कि अमेरिका से यह कैफियत पूछें कि इतना सब
होते हुए और देखते हुए भी आखिर पाकिस्तान उसके लिए कैसी मजबूरी है।
एशिया के इस उपमहाद्वीप में भारत की स्थिति इजराइल सी बनती जा रही है। एक ओर
चीन तो दूसरी ओर पाकिस्तान। सीमा पर दोनों की नापाक हरकतें। श्री नरेन्द्र मोदी के
प्रधानमंत्री बनने के बाद यद्यपि भारत ने जैसे को तैसा जवाब देने की शुरूआत कर दी है और
उसका असर भी दिखने लगा है लेकिन हमें अपनी रक्षा के लिए जीरो टाँलरेंस का इजराइली
मॉडल अख्तियार करना होगा। इजराइल के लिए सहूलियत यह है कि उसके दुश्मन देशों के पास
परमाणु हथियार नहीं है लेकिन यहाँ तो पाकिस्तान की शैतानियत का ऊर्जा केन्द्र ही उसके
परमाणु प्रतिष्ठान हैं। यदि दुनिया के देशों को वास्तव में आतंकवाद के खिलाफ लडऩा हैं तो सबसे
पहले पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम पर नजर व नियंत्रण रखना होगा। यह काबू में आ जाए तो
आतंकवाद को मसलना चुटकी का खेल है क्योंकि उसकी गर्भनाल इसी इस्लामिक बम में गड़ी है।
उसे संदेह था कि सद्दाम हुसैन नरसंहार के लिए जैविक और रासायनिक हथियार जुटा चुके हैं।
विनाश के ये हथियार मिले या नहीं मिले पर बगदाद धूल में मिल गया और सद्दाम हुसैन को चूहे
की मौत मिली। वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान परमाणु हथियारों का जखीरा जमाकर रहा है और
उसकी मिलिट्री तथा खुफिया एजेन्सी आतंकियों को पाल-पोस रही हैं फिर भी न तो संयुक्त राष्ट्र
संघ को कोई फिकर हो रही है और नहीं अमेरिका उसके परमाणु जखीरे को अपने कब्जे में लेने
की कोई पहल कर रहा है। भारत की सुरक्षा की चिन्ता करने वालों के लिए यह यक्ष प्रश्न की
अमेरिका के थिंक टैंक इन्स्टीट्यूट फार साइंस एन्ड इन्टरनल सिक्योरिटी ने अपनी ताजा
रिपोर्ट में कहा है कि पाकिस्तान में परमाणु बम बनाने लायक प्लूटोनियम तैयार करने वाले चौथे
परमाणु रियेक्टर खुशाब में काम शुरू हो गया है। इन्स्टीट्यूट ने १५ जनवरी को सेटेलाइट से
मिली तस्वीरों को भी आधार माना है जिसमें चौथी इकाई पर जोरों से काम चल रहा है।
पाकिस्तान एक मात्र इस्लामिक देश है जिसके पास परमाणु बम बनाने की तकनीक है और वह
एटमी हथियारों का जखीरा भी जमा करके रखा है। पता नहीं क्यों अभी तक ये दुनिया को ये
बात समझ में नहीं आ रही है कि इस्लामिक आतंकवाद की गर्भनाल भी इन्हीं परमाणु बमों के
जखीरे में गड़ी है। चाहे अमेरिका की ९/११ की घटना हो या अन्य कोई आतंकी वारदातें सभी के
कनेक्शन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से पाकिस्तान के साथ जुड़े हैं। ओसामा बिन लादेन की
एबटाबाद में सुरक्षित मिला था और वहीं भारत सब के लिए सबसे बड़े वांछित अपराधी दाउद
इब्राहिम और हाफिज सईद भी बेखटके घूम रहे हैं, उन्माद का कारोबार कर रहे हैं। पाकिस्तान में
लोकतंत्र के किरचे-किरचे वैसे भी बिखरे हुए है, वहां की मिलिट्री और खुफिया एजेन्सियों का
आतंकवादियों से गहरा संबंध है, कई बार यह बात साबित हो चुकी हैं। अब खतरा यह है कि
जिस दिन इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ दुनिया में निर्णायक युद्ध छिड़ेगा उस दिन परमाणु
हथियारों का यह जखीरा आतंकी समूहों के हाथ लगने से शायद ही कोई रोक पाए। ऐसे में अब
यह जरूरी हो गया है कि पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को मानव विरोधी घोषित करते हुए
संयुक्त राष्ट्र संघ उसके अणविक हथियारों के जखीरे को अपने नियंत्रण में ले। अमेरिका को भी
पाकिस्तान में वैसी ही कार्रवाई करना चाहिए जैसा कि उसने इराक में की थी क्योंकि पाकिस्तान
में जम्हूरियत वहां की मिलिट्री के हाथों की कठपुतली है।
आतंकवाद को लेकर अपने दोहरे मापदण्डों के चलते पाकिस्तान दुनिया के सबसे
अविश्वसनीय और खतरनाक देश के रूप में उभर रहा है। यहीं वजह है कि पेरिस की चार्ली-एब्दो
की घटना के बाद यदि सबसे ज्यादा विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं तो पाकिस्तान में ही हो रहे हैं। ये
अमेरिका का कैसा खेल व कैसी मजबूरी है कि जिस हाफिज सईद के लिए वह करोड़ों डालर
रुपए का ईनाम घोषित करता है वहीं हाफिज आतंकवाद के समर्थन में लाहौर बंद व मिलेनियम
मार्च का ऐलान करता है। पाकिस्तान के सेवा-शिक्षा-चिकित्सा क्षेत्र में जो वह अरबों डॉलर का
अनुदान देता है वह हाफिज के कथित समाजसेवी संगठन जमात-उददावा के माध्यम से उन
आतंकी शिविरों तक पहुँच जाता है जहां भारत के खिलाफ विध्वंश की कार्रवाई के लिए आतंकी
तैयार किए जाते हैं। भारत के लिए यह जरूरी है कि अमेरिका से यह कैफियत पूछें कि इतना सब
होते हुए और देखते हुए भी आखिर पाकिस्तान उसके लिए कैसी मजबूरी है।
एशिया के इस उपमहाद्वीप में भारत की स्थिति इजराइल सी बनती जा रही है। एक ओर
चीन तो दूसरी ओर पाकिस्तान। सीमा पर दोनों की नापाक हरकतें। श्री नरेन्द्र मोदी के
प्रधानमंत्री बनने के बाद यद्यपि भारत ने जैसे को तैसा जवाब देने की शुरूआत कर दी है और
उसका असर भी दिखने लगा है लेकिन हमें अपनी रक्षा के लिए जीरो टाँलरेंस का इजराइली
मॉडल अख्तियार करना होगा। इजराइल के लिए सहूलियत यह है कि उसके दुश्मन देशों के पास
परमाणु हथियार नहीं है लेकिन यहाँ तो पाकिस्तान की शैतानियत का ऊर्जा केन्द्र ही उसके
परमाणु प्रतिष्ठान हैं। यदि दुनिया के देशों को वास्तव में आतंकवाद के खिलाफ लडऩा हैं तो सबसे
पहले पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम पर नजर व नियंत्रण रखना होगा। यह काबू में आ जाए तो
आतंकवाद को मसलना चुटकी का खेल है क्योंकि उसकी गर्भनाल इसी इस्लामिक बम में गड़ी है।
विनाश के ये हथियार मिले या नहीं मिले पर बगदाद धूल में मिल गया और सद्दाम हुसैन को चूहे
की मौत मिली। वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान परमाणु हथियारों का जखीरा जमाकर रहा है और
उसकी मिलिट्री तथा खुफिया एजेन्सी आतंकियों को पाल-पोस रही हैं फिर भी न तो संयुक्त राष्ट्र
संघ को कोई फिकर हो रही है और नहीं अमेरिका उसके परमाणु जखीरे को अपने कब्जे में लेने
की कोई पहल कर रहा है। भारत की सुरक्षा की चिन्ता करने वालों के लिए यह यक्ष प्रश्न की
अमेरिका के थिंक टैंक इन्स्टीट्यूट फार साइंस एन्ड इन्टरनल सिक्योरिटी ने अपनी ताजा
रिपोर्ट में कहा है कि पाकिस्तान में परमाणु बम बनाने लायक प्लूटोनियम तैयार करने वाले चौथे
परमाणु रियेक्टर खुशाब में काम शुरू हो गया है। इन्स्टीट्यूट ने १५ जनवरी को सेटेलाइट से
मिली तस्वीरों को भी आधार माना है जिसमें चौथी इकाई पर जोरों से काम चल रहा है।
पाकिस्तान एक मात्र इस्लामिक देश है जिसके पास परमाणु बम बनाने की तकनीक है और वह
एटमी हथियारों का जखीरा भी जमा करके रखा है। पता नहीं क्यों अभी तक ये दुनिया को ये
बात समझ में नहीं आ रही है कि इस्लामिक आतंकवाद की गर्भनाल भी इन्हीं परमाणु बमों के
जखीरे में गड़ी है। चाहे अमेरिका की ९/११ की घटना हो या अन्य कोई आतंकी वारदातें सभी के
कनेक्शन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से पाकिस्तान के साथ जुड़े हैं। ओसामा बिन लादेन की
एबटाबाद में सुरक्षित मिला था और वहीं भारत सब के लिए सबसे बड़े वांछित अपराधी दाउद
इब्राहिम और हाफिज सईद भी बेखटके घूम रहे हैं, उन्माद का कारोबार कर रहे हैं। पाकिस्तान में
लोकतंत्र के किरचे-किरचे वैसे भी बिखरे हुए है, वहां की मिलिट्री और खुफिया एजेन्सियों का
आतंकवादियों से गहरा संबंध है, कई बार यह बात साबित हो चुकी हैं। अब खतरा यह है कि
जिस दिन इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ दुनिया में निर्णायक युद्ध छिड़ेगा उस दिन परमाणु
हथियारों का यह जखीरा आतंकी समूहों के हाथ लगने से शायद ही कोई रोक पाए। ऐसे में अब
यह जरूरी हो गया है कि पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को मानव विरोधी घोषित करते हुए
संयुक्त राष्ट्र संघ उसके अणविक हथियारों के जखीरे को अपने नियंत्रण में ले। अमेरिका को भी
पाकिस्तान में वैसी ही कार्रवाई करना चाहिए जैसा कि उसने इराक में की थी क्योंकि पाकिस्तान
में जम्हूरियत वहां की मिलिट्री के हाथों की कठपुतली है।
आतंकवाद को लेकर अपने दोहरे मापदण्डों के चलते पाकिस्तान दुनिया के सबसे
अविश्वसनीय और खतरनाक देश के रूप में उभर रहा है। यहीं वजह है कि पेरिस की चार्ली-एब्दो
की घटना के बाद यदि सबसे ज्यादा विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं तो पाकिस्तान में ही हो रहे हैं। ये
अमेरिका का कैसा खेल व कैसी मजबूरी है कि जिस हाफिज सईद के लिए वह करोड़ों डालर
रुपए का ईनाम घोषित करता है वहीं हाफिज आतंकवाद के समर्थन में लाहौर बंद व मिलेनियम
मार्च का ऐलान करता है। पाकिस्तान के सेवा-शिक्षा-चिकित्सा क्षेत्र में जो वह अरबों डॉलर का
अनुदान देता है वह हाफिज के कथित समाजसेवी संगठन जमात-उददावा के माध्यम से उन
आतंकी शिविरों तक पहुँच जाता है जहां भारत के खिलाफ विध्वंश की कार्रवाई के लिए आतंकी
तैयार किए जाते हैं। भारत के लिए यह जरूरी है कि अमेरिका से यह कैफियत पूछें कि इतना सब
होते हुए और देखते हुए भी आखिर पाकिस्तान उसके लिए कैसी मजबूरी है।
एशिया के इस उपमहाद्वीप में भारत की स्थिति इजराइल सी बनती जा रही है। एक ओर
चीन तो दूसरी ओर पाकिस्तान। सीमा पर दोनों की नापाक हरकतें। श्री नरेन्द्र मोदी के
प्रधानमंत्री बनने के बाद यद्यपि भारत ने जैसे को तैसा जवाब देने की शुरूआत कर दी है और
उसका असर भी दिखने लगा है लेकिन हमें अपनी रक्षा के लिए जीरो टाँलरेंस का इजराइली
मॉडल अख्तियार करना होगा। इजराइल के लिए सहूलियत यह है कि उसके दुश्मन देशों के पास
परमाणु हथियार नहीं है लेकिन यहाँ तो पाकिस्तान की शैतानियत का ऊर्जा केन्द्र ही उसके
परमाणु प्रतिष्ठान हैं। यदि दुनिया के देशों को वास्तव में आतंकवाद के खिलाफ लडऩा हैं तो सबसे
पहले पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम पर नजर व नियंत्रण रखना होगा। यह काबू में आ जाए तो
आतंकवाद को मसलना चुटकी का खेल है क्योंकि उसकी गर्भनाल इसी इस्लामिक बम में गड़ी है।
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