जयराम शुक्ल
सदियों पहले शेक्सपियर कह गए- अजी नाम में क्या धरा है। पर अपन ऐसा नहीं मानते। क्योंकि तुलसी बाबा ऐसा नहीं मानते थे। उन्होंने लिखा- कलियुग केवल नाम अधारा। यानी कि नाम की ही तूती बोलेगी। जैसे इन दिनों आसाराम का केवल नाम ही काफी है। बच्चों से कह दो कि आसाराम पर निबंध लिखो तो कॉपी भर देंगे। टीवी और प्रिन्ट मीडिया उनके अतीत और चरित्र की ऐसी खनाई-खोदाई कर रहा है कि लगता है कि वह मोहनजोदड़ो-हड़प्पा तक पहुंच जाएगा। किसी ने जानकारी निकाली कि आसूमल किस तरह से आसाराम बन गया। इधर बॉलीवुड से खबर है कि ‘मेकिंग आफ द पिपासाराम कांपू’ नाम की फिल्म पटकथा तैयार है। नामचीन हिरोइनें उस लड़की का रोल करने के लिए बेताब हैं। कई बेस्ट सेलर लेखकों ने तो प्रकाशकों के यहां आसाराम कथा पर आधारित उपन्यास के प्लाट भी रजिस्टर्ड करा डाले। आसाराम आश्रम में थे तब उनके नाम पर धंधा, आज जेल में है तो भी धंधा। टीवी चैनलों के प्राइम स्लाट में ... जहां देखो... आसाराम ...आसाराम। टीआरपी की सुई भी आसाराम के नाम पर ऊपर नीचे हो रही है। वे मीडिया के संसेक्स बन गए हैं। संत लोकमंगल के परमपुंज होते हैं। आसाराम जी ऐसे ही पुंज हैं। कल तक उनके नाम का दंतमंजन बिकता था आज उसी तरह उनकी कलुषित कथाएं बिक रही हैं, प्रिंट-मीडिया में टीवी चैनलों में। आजकल के भक्त भी कमाल के होते हैं। कल तक बापू के साथ नमो-नमो ओम ओम हा-हा कहकर नाचने वाले उनकी रासलीलाओं की सत्यकथाएं सुनते-सुनाते नहीं थकते।
एक नवोदित प्रवचनकार भक्तों को नाम की व्याख्या सुना रहे थे। भागवत कथा का एक दृष्टान्त देकर- कि अजामिल नाम का एक कसाई हुआ करता था। दिन भर पशुओं के वध का धंधा करता था। एक दिन में जीव हत्या के कई पाप। भजन कीर्तन -जप -तप का समय नहीं। उसे चिन्ता सताती थी इतना पाप करके तो वो रौरव-नरक ही जाएगा। सो अपने गुरू से पूछा- कि स्वर्ग का कोई शार्टकट रास्ता बताइए। गुरू ने सुझाया अपने बेटे का नाम नारायण रख लो। जब उसे पुकारोगे तो भगवान का नाम स्वमेव आ जाएगा। सो अजामिल ने मरते समय अपने बेटे नारायण को पुकारा, पर बेटे से पहले उसकी आवाज सुन ली भगवान ने और अजामिल को यमदूतों की कस्टडी से छुड़ाते हुए सीधे अपने लोक ले गए। एक कसाई कैसी साधारण सी जुगत लगाकर देवलोक चला गया। नवोदित प्रवचनकार ने कथाक्रम में समकालीन ट्विस्ट देते हुए बताया कि देवलोक में अजामिल के भक्तिभाव से प्रसन्न होकर प्रभु ने उसकी इच्छा पूछी तो देवलोक में शुद्ध-सात्विक और ब्रम्हचर्य की नीरस जिन्दगी से त्रस्त अजामिल ने कहा- प्रभो! मुझे फिर पृथ्वीलोक भेज दो और हां आर्यावर्त यानी भारत ही भेजना। सो.. भक्तों प्रभु ने प्रसन्न होकर अजामिल को पुन: जन्म लेने के लिए भारत भूमि भेज दिया। यहीं अजामिल सम्पूर्ण अलौकिक कलाओं के साथ आसूमल के रुप में अवतरित हुए और कालान्तर में संत आसाराम बापू के नाम से जाने गए। और हां.. शार्टकट स्वर्ग पहुंचाने की युक्ति बताने वाले अपने उस जन्म के गुरू की बात को याद रखते हुए इस जन्म में भी अपने बेटे का नाम नारायण ही रखा, जिन्हें भक्तगण और मीडियाजगत नारायण सांई के नाम से जानता है।
नवोदित प्रवचनकार की यह कथा भैय्याजी यानी भैरो परसाद के गांव भैंसापुर में चल रही थी। जाहिर है इस कथा के प्रायोजक और जजमान भैय्याजी ही थे। एमडीएम जहरकाण्ड में सीबीआई की क्लीनचिट और दिल्ली से आलाकमान का वरदहस्त साथ में लेकर लौटे भैय्याजी को लगा कि लगे हाथ कुछ धरम-करम के काम कर लेना चाहिए सो उन्होंने गांव में प्रवचन का आयोजन रच दिया। कल तक पहुंचे हुए संत आसाराम जैसों के हश्र को देखते हुए भैय्याजी ने तय किया कि अपना संत प्रवचनकार खुद तैयार करेंगे। आगे चलकर यही हमारी पार्टी पॉलटिक्स प्रचार-प्रसार और जरूरत पड़ी तो राजनीति में धार्मिक टांग के रूप में इस्तेमाल करेंगे। अपने यहां राजनीति में यह चलन पहले से चलता आया है। हर पार्टी और हर नेता के पास एक धार्मिक टांग हुआ करती है। जैसे कांग्रेस के पास एक नितवले शंकराचार्य है, तो भाजपा के पास धार्मिक टांगों की पूरी मंडली है। अयोध्या-काशी-मथुरा का मामला उछालना हो तो लॉ-एन्ड-आॅर्डर की ऐसी-तैसी करते हुए ये धार्मिक टांगें राजनीति के पायताने में फंसा दी जाती है। सपा और बसपा के पास भी अपनी धार्मिक टांगे हैं। कोई फतवा जारी करके लोकतंत्र की फटी ध्वजा की चिन्दियां बिखेरता है तो कोई धम्मम् शरण गच्छामि का पुण्यवाक्य उछालकर। अपन तो तलाश में है एक अदद संत कबीर के जो अपनी शबद-साखियों के शब्दों से इन धार्मिक टांगों को फ्राई करके कंगूरों में लटका दें।.. पर जो कबीर बर्बर इब्राहीम लोदी की सल्तनत में भी काशी की गलियों में लुकाठी लिए लोक को जगाता फिरता था,वो कबीर आज पैदा हो जाए तो सभी उसका वध करने के लिए वैसे ही एक जुट हो जाएंगे जैसे कि पार्लियामेंट में आरटीआई की फारटीआई करने और चोट्टों-गिरहकटों के लिए चुनाव का मार्ग प्रशस्त करने के लिए एक जुट हुए हैं। फिलहाल अपन की उम्मीद तो भैय्याजी द्वारा तैयार किए जा रहे उस नवोदित प्रवचनकार पर टिकी है जिसने अजामिल से आसाराम तक के सफर की शोधपूर्ण कथा से अवगत कराया।Details
सदियों पहले शेक्सपियर कह गए- अजी नाम में क्या धरा है। पर अपन ऐसा नहीं मानते। क्योंकि तुलसी बाबा ऐसा नहीं मानते थे। उन्होंने लिखा- कलियुग केवल नाम अधारा। यानी कि नाम की ही तूती बोलेगी। जैसे इन दिनों आसाराम का केवल नाम ही काफी है। बच्चों से कह दो कि आसाराम पर निबंध लिखो तो कॉपी भर देंगे। टीवी और प्रिन्ट मीडिया उनके अतीत और चरित्र की ऐसी खनाई-खोदाई कर रहा है कि लगता है कि वह मोहनजोदड़ो-हड़प्पा तक पहुंच जाएगा। किसी ने जानकारी निकाली कि आसूमल किस तरह से आसाराम बन गया। इधर बॉलीवुड से खबर है कि ‘मेकिंग आफ द पिपासाराम कांपू’ नाम की फिल्म पटकथा तैयार है। नामचीन हिरोइनें उस लड़की का रोल करने के लिए बेताब हैं। कई बेस्ट सेलर लेखकों ने तो प्रकाशकों के यहां आसाराम कथा पर आधारित उपन्यास के प्लाट भी रजिस्टर्ड करा डाले। आसाराम आश्रम में थे तब उनके नाम पर धंधा, आज जेल में है तो भी धंधा। टीवी चैनलों के प्राइम स्लाट में ... जहां देखो... आसाराम ...आसाराम। टीआरपी की सुई भी आसाराम के नाम पर ऊपर नीचे हो रही है। वे मीडिया के संसेक्स बन गए हैं। संत लोकमंगल के परमपुंज होते हैं। आसाराम जी ऐसे ही पुंज हैं। कल तक उनके नाम का दंतमंजन बिकता था आज उसी तरह उनकी कलुषित कथाएं बिक रही हैं, प्रिंट-मीडिया में टीवी चैनलों में। आजकल के भक्त भी कमाल के होते हैं। कल तक बापू के साथ नमो-नमो ओम ओम हा-हा कहकर नाचने वाले उनकी रासलीलाओं की सत्यकथाएं सुनते-सुनाते नहीं थकते।
एक नवोदित प्रवचनकार भक्तों को नाम की व्याख्या सुना रहे थे। भागवत कथा का एक दृष्टान्त देकर- कि अजामिल नाम का एक कसाई हुआ करता था। दिन भर पशुओं के वध का धंधा करता था। एक दिन में जीव हत्या के कई पाप। भजन कीर्तन -जप -तप का समय नहीं। उसे चिन्ता सताती थी इतना पाप करके तो वो रौरव-नरक ही जाएगा। सो अपने गुरू से पूछा- कि स्वर्ग का कोई शार्टकट रास्ता बताइए। गुरू ने सुझाया अपने बेटे का नाम नारायण रख लो। जब उसे पुकारोगे तो भगवान का नाम स्वमेव आ जाएगा। सो अजामिल ने मरते समय अपने बेटे नारायण को पुकारा, पर बेटे से पहले उसकी आवाज सुन ली भगवान ने और अजामिल को यमदूतों की कस्टडी से छुड़ाते हुए सीधे अपने लोक ले गए। एक कसाई कैसी साधारण सी जुगत लगाकर देवलोक चला गया। नवोदित प्रवचनकार ने कथाक्रम में समकालीन ट्विस्ट देते हुए बताया कि देवलोक में अजामिल के भक्तिभाव से प्रसन्न होकर प्रभु ने उसकी इच्छा पूछी तो देवलोक में शुद्ध-सात्विक और ब्रम्हचर्य की नीरस जिन्दगी से त्रस्त अजामिल ने कहा- प्रभो! मुझे फिर पृथ्वीलोक भेज दो और हां आर्यावर्त यानी भारत ही भेजना। सो.. भक्तों प्रभु ने प्रसन्न होकर अजामिल को पुन: जन्म लेने के लिए भारत भूमि भेज दिया। यहीं अजामिल सम्पूर्ण अलौकिक कलाओं के साथ आसूमल के रुप में अवतरित हुए और कालान्तर में संत आसाराम बापू के नाम से जाने गए। और हां.. शार्टकट स्वर्ग पहुंचाने की युक्ति बताने वाले अपने उस जन्म के गुरू की बात को याद रखते हुए इस जन्म में भी अपने बेटे का नाम नारायण ही रखा, जिन्हें भक्तगण और मीडियाजगत नारायण सांई के नाम से जानता है।
नवोदित प्रवचनकार की यह कथा भैय्याजी यानी भैरो परसाद के गांव भैंसापुर में चल रही थी। जाहिर है इस कथा के प्रायोजक और जजमान भैय्याजी ही थे। एमडीएम जहरकाण्ड में सीबीआई की क्लीनचिट और दिल्ली से आलाकमान का वरदहस्त साथ में लेकर लौटे भैय्याजी को लगा कि लगे हाथ कुछ धरम-करम के काम कर लेना चाहिए सो उन्होंने गांव में प्रवचन का आयोजन रच दिया। कल तक पहुंचे हुए संत आसाराम जैसों के हश्र को देखते हुए भैय्याजी ने तय किया कि अपना संत प्रवचनकार खुद तैयार करेंगे। आगे चलकर यही हमारी पार्टी पॉलटिक्स प्रचार-प्रसार और जरूरत पड़ी तो राजनीति में धार्मिक टांग के रूप में इस्तेमाल करेंगे। अपने यहां राजनीति में यह चलन पहले से चलता आया है। हर पार्टी और हर नेता के पास एक धार्मिक टांग हुआ करती है। जैसे कांग्रेस के पास एक नितवले शंकराचार्य है, तो भाजपा के पास धार्मिक टांगों की पूरी मंडली है। अयोध्या-काशी-मथुरा का मामला उछालना हो तो लॉ-एन्ड-आॅर्डर की ऐसी-तैसी करते हुए ये धार्मिक टांगें राजनीति के पायताने में फंसा दी जाती है। सपा और बसपा के पास भी अपनी धार्मिक टांगे हैं। कोई फतवा जारी करके लोकतंत्र की फटी ध्वजा की चिन्दियां बिखेरता है तो कोई धम्मम् शरण गच्छामि का पुण्यवाक्य उछालकर। अपन तो तलाश में है एक अदद संत कबीर के जो अपनी शबद-साखियों के शब्दों से इन धार्मिक टांगों को फ्राई करके कंगूरों में लटका दें।.. पर जो कबीर बर्बर इब्राहीम लोदी की सल्तनत में भी काशी की गलियों में लुकाठी लिए लोक को जगाता फिरता था,वो कबीर आज पैदा हो जाए तो सभी उसका वध करने के लिए वैसे ही एक जुट हो जाएंगे जैसे कि पार्लियामेंट में आरटीआई की फारटीआई करने और चोट्टों-गिरहकटों के लिए चुनाव का मार्ग प्रशस्त करने के लिए एक जुट हुए हैं। फिलहाल अपन की उम्मीद तो भैय्याजी द्वारा तैयार किए जा रहे उस नवोदित प्रवचनकार पर टिकी है जिसने अजामिल से आसाराम तक के सफर की शोधपूर्ण कथा से अवगत कराया।Details
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