जयराम शुक्ल
ये वक्त-वक्त की बात है। उधर भोपाल के जम्बूरी मैदान में महानायक मोदी की अगवानी में मध्यप्रदेश की समूची भाजपा डांस कर रही थी और इधर बेचारे नितिन गडकरी चित्रकूट में पिन्डा पार रहे थे। पितरपख लगा है न। वैसे पितरों को पूछता कौन है। पहले जब भाजपा में कोई पेंच फंसती थी उसके नेता चित्रकूट भागे चले आते थे नानाजी के पास। अब नानाजी कहां याद रहे और कहां याद रहे दीनदयाल उपाध्याय। जम्बूरी मैदान में वे अपनी पार्टी के छोटे-बडेÞ-बूढेÞ, यानी कि विजयवर्गीय, गौर और सारंग का मंच पर डांस देखते तो निहाल हो जाते। एकात्म मानववाद-अन्त्योदय और दरिद्रनारायण की चिन्ता करने वाले उपाध्यायजी पार्टी की हाईटेक तरक्की निश्चित ही स्वर्ग से निहार रहे होंगे। जिन्दगी रेल की थर्डक्लास यात्रा में गुजार दी। अब पार्टी के तारणहारों को चार्टरप्लेन का काफिला चाहिए। गडकरी बेचारे इसी चक्कर में चित्रकूट से भोपाल नहीं जा पाए। सभी हेलीकाप्टर मोदीजी और राजनाथ की चकमेड़री में लगे रहे। वक्त कितनी तेजी से पलटी मारता है। छ: महीने पहले तक इन्हीं गडकरी के पीछे भाजपाई भागते हांफते नजर आते थे। पद से हटते ही डस्टबिन में चले गए।
हमारे देश की राजनीति का यही वास्तविक चाल-चरित्र और चेहरा है। बरसों पहले परसाईजी ने अपने कॉलम में एक मजेदार वाकयात पर लिखा था। मजमून कुछ यूं था। प्रदेश के एक मुख्यमंत्री बड़े चमचा पसंद थे। उनका दरबार चापलूसों से गुलजार रहा करता था। एक दिन कुछ चापलूसों ने मुख्यमंत्री को यूनिक आइडिया दिया। क्यों न बाबूजी (मुख्यमंत्री के पिताजी) के जीवन की हीरक जयंती मना ली जाए। मुख्यमंत्री ने हांमी भर दी। सरकारी धन से बाप का श्राद्ध कौन नहीं करना चाहेगा। सो तैयारी शुरू हो गई। संस्कृति विभाग, जनसंपर्क विभाग ने बाबूजी के हीरक जयंती की थीम तैयार की। दूसरे विभागों ने प्रबंध संभाला। कुछ उदारमना उद्योगपति भी इस पुण्यकाम में आगे आए। दरबारी कवियों ने गीत लिखे। सरकारी पे-रोल वाले पत्रकारों ने इतिहास के पन्ने पलटे और बाबूजी द्वारा आजादी की लड़ाई में किए गए पराक्रम को ढ़ूंढ निकाला। एक स्मारिका निकालने की योजना बनी। इन्हीं तैयारियों के बीच पार्टी के ही कुछ विघ्नसंतोषियों ने आलाकमान से शिकायत कर दी। मुख्यमंत्री अगले बारह घंटों में बदल दिए गए। नए मुख्यमंत्री ने शपथ ली। चापलूस दरबारियों ने सोचा अब क्या किया जाए। इस बीच सबसे फितरती और चतुर चमचे ने सुझाया कि नए मुख्यमंत्री जी के पिताजी के भी सौ साल पूरे हो रहे हैं- क्यों न पूरा कार्यक्रम इनके पिताजी को समर्पित कर दिया जाए- बस बाप भर ही तो बदलना है, बाकी जस का तस।
सो राजनीति में ऐसा होता है। हमारे शहर में एक भूतपूर्व मंत्रीजी हैं। इन्हें अब कोई चुटकी भर तम्बाखू के लिए नहीं पूछता। एक दौर था जब इनकी पीक के लिए हथेलियां हाजिर रहा करती थीं। एक बार तो गजब हुआ। एक युवामंत्री की शादी थी। बारात जनवासे से निकल पड़ी। मंत्रीजी लालबत्ती पर दूल्हा बनकर सवार थे। नाराज मुख्यमंत्री उन्हें अपने ही अन्दाज में तोहफा देना चाहते थे। सो द्वारचार लगने से पहले ही कलेक्टर ने मंत्री के कान में मुख्यमंत्री जी का फरमान सुना दिया कि आप मंत्री पद से बर्खास्त कर दिए गए हो। इतना सुनते ही सरकारी ड्रायवर कार में ब्रेक लगा कर बोला उतरिए और पैदल जाइए। डांस कर रहे गनमैनों और निजी अमले के पांव थम गए। सब वहीं से लौट लिए। अपने भैय्याजी राजनीति को शुरू से ही तिरिया चरित्र की तरह मानते रहे हैं। सो पर्यवेक्षक को जब टिकट के लिए बायोडाटा देने का समय आया तो उन्होंने रामसलोना को तलब किया। यह इसलिए कि जब ये हमारा बायोडाटा देने के लिए जुलूस-जलसे के साथ जाएगा तो बात साफ हो जाएगी कि रामसलोना टिकट की दौड़ में नहीं है। रामसलोना राजी हो गया और गाजे-बाजे के साथ सर्किट हाउस पहुंचा। अपने साथ चार-पांच बन्दे और ले गया। आधे घंटे बाद जब भैय्याजी पहुंचे - तो देखा पर्यवेक्षक उनके बायोडाटा की जगह रामसलोना के बायोडाटा का अध्ययन कर रहा था। दरअसल रामसलोना ने भैय्याजी के बायोडाटा की पुंगी बनाकर जेब में डाल ली थी और ब्रीफ कर दिया कि भैय्याजी के नेतृत्व में चुनाव हम लड़ेंगे। दांत पीसते हुए भैय्याजी ने पर्यवेक्षक से पूछा-ये कैसा विश्वासघात है। आलाकमान से हमारा पैक्ट हो चुका है। पर्यवेक्षक बिना भाव दिए बोला-आलाकमान की गाइडलाइन की क्राइटेरिया में आप नहीं फंसते। पांव पटकते हुए वे बाहर निकले तो रामसलोना खीस निपोरे हुए खड़ा था। वे कुछ बोलते कि समर्थक नारे लगाने लगे, रामसलोना संघर्ष करो... हम तुम्हारे साथ हैं। भैय्याजी के समर्थकों ने भी पलटी मार दी थी। भैय्याजी भावुक हो गए फिर दार्शनिक अंदाज में बुदबुदाए - राजनीति भुजंग की भांति कुटिल और तड़ित की तरह चंचल होती है। फिर बोले हम तो राजनीति का भुजंगनाथ हंू। देखता हूं ये गूलर रामसलोना कब तक बच पाता है।
ये वक्त-वक्त की बात है। उधर भोपाल के जम्बूरी मैदान में महानायक मोदी की अगवानी में मध्यप्रदेश की समूची भाजपा डांस कर रही थी और इधर बेचारे नितिन गडकरी चित्रकूट में पिन्डा पार रहे थे। पितरपख लगा है न। वैसे पितरों को पूछता कौन है। पहले जब भाजपा में कोई पेंच फंसती थी उसके नेता चित्रकूट भागे चले आते थे नानाजी के पास। अब नानाजी कहां याद रहे और कहां याद रहे दीनदयाल उपाध्याय। जम्बूरी मैदान में वे अपनी पार्टी के छोटे-बडेÞ-बूढेÞ, यानी कि विजयवर्गीय, गौर और सारंग का मंच पर डांस देखते तो निहाल हो जाते। एकात्म मानववाद-अन्त्योदय और दरिद्रनारायण की चिन्ता करने वाले उपाध्यायजी पार्टी की हाईटेक तरक्की निश्चित ही स्वर्ग से निहार रहे होंगे। जिन्दगी रेल की थर्डक्लास यात्रा में गुजार दी। अब पार्टी के तारणहारों को चार्टरप्लेन का काफिला चाहिए। गडकरी बेचारे इसी चक्कर में चित्रकूट से भोपाल नहीं जा पाए। सभी हेलीकाप्टर मोदीजी और राजनाथ की चकमेड़री में लगे रहे। वक्त कितनी तेजी से पलटी मारता है। छ: महीने पहले तक इन्हीं गडकरी के पीछे भाजपाई भागते हांफते नजर आते थे। पद से हटते ही डस्टबिन में चले गए।
हमारे देश की राजनीति का यही वास्तविक चाल-चरित्र और चेहरा है। बरसों पहले परसाईजी ने अपने कॉलम में एक मजेदार वाकयात पर लिखा था। मजमून कुछ यूं था। प्रदेश के एक मुख्यमंत्री बड़े चमचा पसंद थे। उनका दरबार चापलूसों से गुलजार रहा करता था। एक दिन कुछ चापलूसों ने मुख्यमंत्री को यूनिक आइडिया दिया। क्यों न बाबूजी (मुख्यमंत्री के पिताजी) के जीवन की हीरक जयंती मना ली जाए। मुख्यमंत्री ने हांमी भर दी। सरकारी धन से बाप का श्राद्ध कौन नहीं करना चाहेगा। सो तैयारी शुरू हो गई। संस्कृति विभाग, जनसंपर्क विभाग ने बाबूजी के हीरक जयंती की थीम तैयार की। दूसरे विभागों ने प्रबंध संभाला। कुछ उदारमना उद्योगपति भी इस पुण्यकाम में आगे आए। दरबारी कवियों ने गीत लिखे। सरकारी पे-रोल वाले पत्रकारों ने इतिहास के पन्ने पलटे और बाबूजी द्वारा आजादी की लड़ाई में किए गए पराक्रम को ढ़ूंढ निकाला। एक स्मारिका निकालने की योजना बनी। इन्हीं तैयारियों के बीच पार्टी के ही कुछ विघ्नसंतोषियों ने आलाकमान से शिकायत कर दी। मुख्यमंत्री अगले बारह घंटों में बदल दिए गए। नए मुख्यमंत्री ने शपथ ली। चापलूस दरबारियों ने सोचा अब क्या किया जाए। इस बीच सबसे फितरती और चतुर चमचे ने सुझाया कि नए मुख्यमंत्री जी के पिताजी के भी सौ साल पूरे हो रहे हैं- क्यों न पूरा कार्यक्रम इनके पिताजी को समर्पित कर दिया जाए- बस बाप भर ही तो बदलना है, बाकी जस का तस।
सो राजनीति में ऐसा होता है। हमारे शहर में एक भूतपूर्व मंत्रीजी हैं। इन्हें अब कोई चुटकी भर तम्बाखू के लिए नहीं पूछता। एक दौर था जब इनकी पीक के लिए हथेलियां हाजिर रहा करती थीं। एक बार तो गजब हुआ। एक युवामंत्री की शादी थी। बारात जनवासे से निकल पड़ी। मंत्रीजी लालबत्ती पर दूल्हा बनकर सवार थे। नाराज मुख्यमंत्री उन्हें अपने ही अन्दाज में तोहफा देना चाहते थे। सो द्वारचार लगने से पहले ही कलेक्टर ने मंत्री के कान में मुख्यमंत्री जी का फरमान सुना दिया कि आप मंत्री पद से बर्खास्त कर दिए गए हो। इतना सुनते ही सरकारी ड्रायवर कार में ब्रेक लगा कर बोला उतरिए और पैदल जाइए। डांस कर रहे गनमैनों और निजी अमले के पांव थम गए। सब वहीं से लौट लिए। अपने भैय्याजी राजनीति को शुरू से ही तिरिया चरित्र की तरह मानते रहे हैं। सो पर्यवेक्षक को जब टिकट के लिए बायोडाटा देने का समय आया तो उन्होंने रामसलोना को तलब किया। यह इसलिए कि जब ये हमारा बायोडाटा देने के लिए जुलूस-जलसे के साथ जाएगा तो बात साफ हो जाएगी कि रामसलोना टिकट की दौड़ में नहीं है। रामसलोना राजी हो गया और गाजे-बाजे के साथ सर्किट हाउस पहुंचा। अपने साथ चार-पांच बन्दे और ले गया। आधे घंटे बाद जब भैय्याजी पहुंचे - तो देखा पर्यवेक्षक उनके बायोडाटा की जगह रामसलोना के बायोडाटा का अध्ययन कर रहा था। दरअसल रामसलोना ने भैय्याजी के बायोडाटा की पुंगी बनाकर जेब में डाल ली थी और ब्रीफ कर दिया कि भैय्याजी के नेतृत्व में चुनाव हम लड़ेंगे। दांत पीसते हुए भैय्याजी ने पर्यवेक्षक से पूछा-ये कैसा विश्वासघात है। आलाकमान से हमारा पैक्ट हो चुका है। पर्यवेक्षक बिना भाव दिए बोला-आलाकमान की गाइडलाइन की क्राइटेरिया में आप नहीं फंसते। पांव पटकते हुए वे बाहर निकले तो रामसलोना खीस निपोरे हुए खड़ा था। वे कुछ बोलते कि समर्थक नारे लगाने लगे, रामसलोना संघर्ष करो... हम तुम्हारे साथ हैं। भैय्याजी के समर्थकों ने भी पलटी मार दी थी। भैय्याजी भावुक हो गए फिर दार्शनिक अंदाज में बुदबुदाए - राजनीति भुजंग की भांति कुटिल और तड़ित की तरह चंचल होती है। फिर बोले हम तो राजनीति का भुजंगनाथ हंू। देखता हूं ये गूलर रामसलोना कब तक बच पाता है।
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