नरेन्द्र नतेजा
ऊर्जा विशेषज्ञ
शनिवार, 26 अक्तूबर, 2013 को 09:08 IST तक के समाचार
भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने आज सबसे बड़ी चुनौती ऊर्जा की है. अगर हमें भारत के सभी लोगों को ऊर्जा मुहैया करानी है तो एक ठोस नीति के आधार पर आगे बढ़ना होगा.
अभी भारत में 40 करोड़ लोग ऐसे हैं जो औपचारिक रूप से ऊर्जा के बाज़ार के बाहर हैं. उनको ऊर्जा उपलब्ध ही नहीं होती है.
संबंधित समाचार
इनमें से करीब 30 करोड़ लोग ऐसे हैं जिनके घर में एक बल्ब नहीं जलता है. 40 करोड़ लोग ऐसे हैं जिनके यहां न कोई एलपीजी जाती है न कोई और गैस जाती है. जब तक हम इन सबको ऊर्जा के दायरे में शामिल नहीं करेंगे, तब तक हमारे देश का आर्थिक विकास नहीं हो सकता है.
आज की तारीख में हम अपनी कुल ज़रूरत का 80 फीसदी तेल आयात कर रहे हैं, 26 फीसदी गैस आयात कर रहे हैं. आने वाले समय में आयातित तेल पर हमारी निर्भरता 90 प्रतिशत हो जाएगी. आयातित गैस पर हमारी निर्भरता बढ़कर 40 प्रतिशत हो जाएगी.
ख़तरनाक निर्भरता
"बंगाल की खाड़ी में तेल और गैस पर जो काम होना चाहिए था वो लगभग ठप पड़ा हुआ है. काम शुरू होते ही वहां कोई न कोई घोटाला हो जाता है."
हम साल में जितनी भी विदेशी मुद्रा कमाते हैं उसका 52 प्रतिशत हम ऊर्जा के आयात में लगा देते हैं. क्या यह टिकाऊ है? इस तरह क्या भारत एक आर्थिक महाशक्ति बन सकता है?
वो देश जिसकी आयात पर इतनी अधिक निर्भरता है वो क्या आर्थिक रूप से समृद्ध बन सकता है? इसका सीधा जवाब है कि नहीं हो सकता है.
हमारे देश में जितना तेल, गैस या कोयला है हमें उसका जल्दी खनन करना चाहिए. हमारी नीतियां गलत हैं. हम जी-जान लगाकर काम नहीं करते हैं.
बंगाल की खाड़ी के बारे में कहा जाता है कि वो गैस पर तैर रही है और हम गैस आयात कर रहे हैं. बंगाल की खाड़ी में तेल और गैस पर जो काम होना चाहिए था वो लगभग ठप पड़ा हुआ है. काम शुरू होते ही वहां घोटाला हो जाता है. कभी वहां सीबीसी अडंगा लगाती है कभी सीबीआई अडंगा लगाती है.
भारत का विरोधाभास
यह सोचना होगा कि हमारी आयात पर निर्भरता बढ़ने की वजह क्या है? उसकी वजह यह है कि हमारे पास कोई रणनीति नहीं है.
हम फोकस करके काम नहीं कर पा रहे हैं. आप इतिहास उठाकर देख लीजिए कोई भी देश आर्थिक महाशक्ति नहीं बन पाया है जहां विकास के लिए आयातित ऊर्जा पर निर्भरता इतनी ज्यादा रही हो.
हमें जल्द से जल्द नई खोज और उत्पादन शुरू करना चाहिए. हमारे देश में कोयले के भारी भंडार हैं. मुझे समझ में नहीं आता है कि भारत जहां दुनिया के 34 सबसे ज्यादा बड़े कोयले के भंडार हैं वो हर साल 20 अरब डॉलर का कोयला आयात क्यों कर रहा है.
नीतियां गलत हैं. कोयला क्षेत्र को 52 प्रतिशत अपने कब्जे में किया हुआ है. उसका निजीकरण और आधुनिकीकरण होना चाहिए.
वैकल्पिक ऊर्जा में निवेश
इसके साथ ही हमारे देश में सौर ऊर्जा सहित दूसरी वैकल्पिक ऊर्जा के भारी भंडार हैं. अब समय आ चुका है कि सरकार इस बारे में समयबद्ध लक्ष्य बनाकर काम करे.
वर्तमान स्थिति में हमारा ऊर्जा परिदृश्य बहुत ही खराब है. ऊर्जा के मामले में हम लगातार आयात पर निर्भर होते जा रहे हैं. ऊर्जा नीतियों पर न तो केन्द्र ठीक तरह से काम कर रहा है और न ही राज्य सरकारें ठीक तरह से काम कर रही हैं.
नतीजतन भारत में ऊर्जा की कीमत लगातार बढ़ रही है और वो दिन दूर नहीं है जब भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती ऊर्जा की उपलब्धता से संबंधित होगी.
आज हम देख रहे हैं कि दिल्ली में लोग बिजली की मार को लेकर परेशान हैं. वो दिन दूर नहीं है कि देश के अंदर और चुनावों में राजनीतिक दलों के लिए तेल और गैस सबसे बड़ा मुद्दा होगा.
No comments:
Post a Comment