खुशी की बात यह कि आम आदमी की अपनी ताकत का अहसास उसी तरह होना शुरू हुआ है जैसा कि जामवंत के याद दिलाने पर हनुमानजी को हुआ था। ईश्वर से प्रार्थना है कि नए वर्ष में हर व्यक्ति की आत्मा में बैठे हनुमानजी जाग्रत हो, और भ्रष्टाचार, अनाचार, विषमता, कुशासन की लंका का दहन करने के लिए समर्थवान बनें, देश में सुराज और रामराज्य नेताओं के नहीं आम आदमी के पराक्रम से ही संभव होगा।
......................................................................................................................
यह संयोग ही है कि नववर्ष यानी कि 2014 दिन-तिथि के हिसाब से वर्ष 1947 को दोहराने जा रहा है। वह आजादी का वर्ष था। तुर्को, मुगलों और अंग्रेजों की कोई पौने दो हजार वर्ष की गुलामी-दर-गुलामी से मुक्ति का वर्ष। 2014 में प्रवेश के पूर्व लोकशाही ने वक्त की चौखट पर दस्तक दी है। महाभारत से लेकर स्वतंत्रता संग्राम की साक्षी रही दिल्ली ने इस बार लोकसंग्राम की जीत देखा है। पिछले साल के ये दिन देश भर के लिए अवसाद व पीड़ादायक रहे। दिल्ली के वक्षस्थल पर एक बालिका का वीभत्स शीलहरण हुआ था। इसके बाद पूरा वर्ष दैवीय और मानवीय प्रकोप में डूबता उतरता रहा। शुभारंभ के संकेत ही आगत का हाल बता देते हैं। उत्तराखण्ड के केदार-बद्रीनाथ में जो प्रलय हुआ वह दिल दहलाने वाला रहा। यह हिमालय पर्वत श्रृंखला की शिखाओं से निकली एक चेतावनी थी। प्रकृति के साथ अन्याय करोगे तो वह प्रतिशोध लेगी। प्रकृति का प्रतिशोध भी समदर्शी होता है। वह चीन्ह-चीन्ह कर उपहार या दण्ड नहीं देती। सबको एक नजर से देखती है। पता नहीं इस घटना से सत्ता और व्यवस्था प्रतिष्ठानों ने क्या सबक लिया। पर संकेत और संदेश दोनों स्पष्ट हैं। भौतिक विलास और कथित औद्योगिकीकरण के विस्तार के नाम पर यदि हमने प्रकृति के उपादानों का शोषण किया तो सजा भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए। प्रलय या संहार की तिथि व अवधि तय नहीं होती। यह हमारे सुकर्मो व दुष्कर्मो पर निर्भर होता है। उत्तराखण्ड जैसे आपदा प्रकृति न दोहराए इसके लिए हम व्यवस्था और सत्ता प्रतिष्ठानों को सचेत करें। नए वर्ष में नदी- जंगल-पर्वत, झरने, जीव-जन्तु इन सबके संरक्षण की दिशा में एक जन आन्दोलन खड़ा होना चाहिए।
यह संयोग ही है कि नववर्ष यानी कि 2014 दिन-तिथि के हिसाब से वर्ष 1947 को दोहराने जा रहा है। वह आजादी का वर्ष था। तुर्को, मुगलों और अंग्रेजों की कोई पौने दो हजार वर्ष की गुलामी-दर-गुलामी से मुक्ति का वर्ष। 2014 में प्रवेश के पूर्व लोकशाही ने वक्त की चौखट पर दस्तक दी है। महाभारत से लेकर स्वतंत्रता संग्राम की साक्षी रही दिल्ली ने इस बार लोकसंग्राम की जीत देखा है। पिछले साल के ये दिन देश भर के लिए अवसाद व पीड़ादायक रहे। दिल्ली के वक्षस्थल पर एक बालिका का वीभत्स शीलहरण हुआ था। इसके बाद पूरा वर्ष दैवीय और मानवीय प्रकोप में डूबता उतरता रहा। शुभारंभ के संकेत ही आगत का हाल बता देते हैं। उत्तराखण्ड के केदार-बद्रीनाथ में जो प्रलय हुआ वह दिल दहलाने वाला रहा। यह हिमालय पर्वत श्रृंखला की शिखाओं से निकली एक चेतावनी थी। प्रकृति के साथ अन्याय करोगे तो वह प्रतिशोध लेगी। प्रकृति का प्रतिशोध भी समदर्शी होता है। वह चीन्ह-चीन्ह कर उपहार या दण्ड नहीं देती। सबको एक नजर से देखती है। पता नहीं इस घटना से सत्ता और व्यवस्था प्रतिष्ठानों ने क्या सबक लिया। पर संकेत और संदेश दोनों स्पष्ट हैं। भौतिक विलास और कथित औद्योगिकीकरण के विस्तार के नाम पर यदि हमने प्रकृति के उपादानों का शोषण किया तो सजा भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए। प्रलय या संहार की तिथि व अवधि तय नहीं होती। यह हमारे सुकर्मो व दुष्कर्मो पर निर्भर होता है। उत्तराखण्ड जैसे आपदा प्रकृति न दोहराए इसके लिए हम व्यवस्था और सत्ता प्रतिष्ठानों को सचेत करें। नए वर्ष में नदी- जंगल-पर्वत, झरने, जीव-जन्तु इन सबके संरक्षण की दिशा में एक जन आन्दोलन खड़ा होना चाहिए।
वर्ष 2013 ने कई सामाजिक व्याधियों की सजर्री भी की है।
फोड़ा जब शरीर के अन्दर होता है तो लहकता है, उसे ठीक करने के लिए चीरा लगाकर मवाद का निकाला जाना जरूरी है।
आसाराम और नारायण सांई जैसी व्याधियां भी सामने आईं। महिला सशक्तीकरण और सूचना क्रांति ने रंग दिखाया। अत्याचार, दमन और दुष्कर्म को सामान्य तौर पर जज्ब करने वाली बहादुर महिलाएं सामने आईं, आसाराम और तरूण तेजपाल जैसे रसूखदारों के नकाब को नोचकर समाज के सामने उनकी असलियत को लाया।
अब शेष काम न्यायालय का है। न्याय तंत्र ने भी पूरे वर्ष संजीदगी का परिचय दिया। चाराघोटालें में लालू यादव और जगन्ननाथ मिश्र सहित कई अफसर हकीमों को सजा और उनकी जेल यात्रा ने सामान्यजन में न्यायतंत्र की प्राणप्रतिष्ठा की और इस मिथक को तोड़ा कि जेल और सजा सिर्फ गरीब लोगों के लिए हैं। पिछले वर्षो की भांति भ्रष्टाचार के नित नए खुलासे होते रहे। सीमा पर पाकिस्तान और चीन की हरकतों को कायरों की भांति नजरंदाज करना वर्ष भर सालता रहा लेकिन जाते-जाते अपनी राजनय देयवायानी प्रकरण में अमेरिका को अपने जिस तेवर से परिचित कराया उससे विश्वास जागा है कि अब सीमा पर भी इसी तरह दिलेरी का परिचय देते हुए अपने एक के बदले उनके चार मारेंगे भले ही यह काम उनके घर में घुस कर करना पड़े।
मीडिया साल भर अतिरेकी बना रहा। जरूरी मुद्दों से ज्यादा गैर जरुरी मुद्दे उसके टीआरपी का सनसेक्स बढ़ाते रहे। मीडिया ने साल भर नरेन्द्र मोदी की पालकी ढोई। कभी नकली लालकिला तो कभी गत्ते के सेट वाले संसद के मंच से मोदी दहाड़ते रहे। टीवी मीडिया कई गुना ज्यादा एम्प्लीफाई कर उनकी दहाड़ को चिग्घाड़ बनाकर दर्शकों को परोसता रहा। कारपोरेट मीडिया भी लोकशाही की ताकत के आगे नतमस्तक दिखा। दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी का झडू उसकी टीआरपी के लिए मजबूरी बन गया। किन्तु -परन्तु की तमाम आवांछनीय टिप्पणियों के बावजूद भी। चार राज्यों के चुनाव परिणाम ने 128 साल पुरानी कांग्रेस के अधोपतन का रास्ता तैयार किया। अर्थशाी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का मौन और मजबूरी भी देखा तो उपाध्यक्ष राहुल गांधी की प्रेस क्लब में लोकायुक्त बिल को लेकर खिलदण्डई भी। बाहें चढ़ाकर उनका चीख-चिल्लाहट भरा भाषण युवाओं को लुभा नहीं सका और न ही सिर पर तगाड़ी लेकर मनरेगा की मजदूरी वाली तस्वीर ने गरीबों को जोड़ा। बंगाल की शेरनी ममता बनर्जी के भी ताजिए ठंडे रहे। मुलायम-नीतिश की तीसरे मोर्चे की परिकल्पनाएं हवाओं में तैरती-उतराती रहीं। उम्मीद के विपरीत मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा की हैट्रिक ने राजनीति की नई परिभाषा गढ़ी। नई परिभाषा इस मायने में कि आम आदमी आज भी विकास से ज्यादा सम्मान और अपनेपन के लिए लालायित है। प्रदेश सरकार पर भ्रष्टाचार के लगे तमाम आरोपों के बावजूद शिवराज की लाजर्र दैन लाइफ इमेज बनीं और वे गरीब तथा वंचित लोगों के दिल में ऐसे बैठे कि नया चुनावी इतिहास रच दिया। वे प्रदेश की जनता के सबसे बड़े कजर्दार हैं, उनके सिर पर जगाई गई उम्मीदों और अपेक्षाओं का गुरूतर बोझ है। अपनी विनम्रता व सहजता की बदौलत भविष्य की असीम संभावनाओं के कपाट खोले हैं। उनकी कथनी और करनी में भेद नहीं रहा तो यकीन मानिए वे निकट भविष्य में देश के यशस्वी व सफल नेताओं की श्रेणी में शामिल होने के सान्निकट हैं।
गुजरा हुआ साल युवाओं और महिलाओं की नवचेतना, संघर्ष और नए आगाज का साल रहा। यह साल आम आदमी के वजूद को पुर्नव्याख्यायित करने का भी रहा। डेढ़ साल पहले भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना के आन्दोलन को राजनीतिक दलों ने जिस तरह मजाक में बदलने की कोशिश की थी दिल्ली में आम आदमी ने उसका माकूल जवाब दे दिया। राजनीति अब परम्परागत दलों, घरानों और रसूखदारों की बपौती नहीं रही और न ही किसी के नाम इसका पट्टा है। आम आदमी को केन्द्रीय थीम पर रखकर अरविन्द केजरीवाल ने जिस तरह राजनीतिक नवाचार को यथार्थ के धरातल पर उतारा है वह हताश अवाम को नया रास्ता दिखाता है। डेढ़ साल की पुरानी पार्टी ने 128 साल के राजनीतिक संस्था को उसके वजूद की चुनौती दी है। दिल्ली की जीत और ‘आप’ तमाम राजनीतिक दलों के लिए सबक है। यह सबक वंश परम्परा और यथास्थितिवाद तोड़ने का है। नए साल में सभी राजनीतिक दल ‘आप’ को सामने रखकर या तो आत्म अवलोकन के लिए विवश होंगे या फिर अपने लिए अधोगति की राह चुनेंगे। आम आदमी और उसकी मुश्किलें केन्द्र में होंगी। कोई ढोंग नहीं चलेगा। देश के दो फीसदी लोगों के कारपोरेटी प्रायोजन से 98 फीसदी लोगों की बात करने वाले लोगों का भी ढ़ोंग सामने आएगा। क्योंकि हर सूबे में एक अरविन्द केजरीवाल के जन्म लेने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
हम उम्मीद करते हैं कि नया वर्ष आम आदमी की मुश्किलों को कम करने वाला होगा। मंहगाई पर लगाम लगेगी और भ्रष्टाचार के खिलाफ छेड़ी गई निर्णायक जंग मुकाम तक पहुंचेगी। मई 2014 में दिल्ली के सिहासन पर एनडीए का राज होता है, तीसरा मोर्चा आता है या फिर यूपीए करिश्मा करती है यह अभी इतिहास के गर्भ में है। लेकिन खुशी की बात यह कि आम आदमी की अपनी ताकत का अहसास उसी तरह होना शुरू हुआ है जैसा कि जामवंत के याद दिलाने पर हनुमान जी को हुआ था। ईश्वर से प्रार्थना है कि नए वर्ष में हर व्यक्ति की आत्मा में बैठे हनुमानजी जाग्रत हो, और भ्रष्टाचार, अनाचार, विषमता, कुशासन की लंका का दहन करने के लिए समर्थवान बनें, देश में सुराज और रामराज्य नेताओं के नहीं आम आदमी के पराक्रम से ही संभव होगा। नए वर्ष की असीम शुभकामनाएं।
फोड़ा जब शरीर के अन्दर होता है तो लहकता है, उसे ठीक करने के लिए चीरा लगाकर मवाद का निकाला जाना जरूरी है।
आसाराम और नारायण सांई जैसी व्याधियां भी सामने आईं। महिला सशक्तीकरण और सूचना क्रांति ने रंग दिखाया। अत्याचार, दमन और दुष्कर्म को सामान्य तौर पर जज्ब करने वाली बहादुर महिलाएं सामने आईं, आसाराम और तरूण तेजपाल जैसे रसूखदारों के नकाब को नोचकर समाज के सामने उनकी असलियत को लाया।
अब शेष काम न्यायालय का है। न्याय तंत्र ने भी पूरे वर्ष संजीदगी का परिचय दिया। चाराघोटालें में लालू यादव और जगन्ननाथ मिश्र सहित कई अफसर हकीमों को सजा और उनकी जेल यात्रा ने सामान्यजन में न्यायतंत्र की प्राणप्रतिष्ठा की और इस मिथक को तोड़ा कि जेल और सजा सिर्फ गरीब लोगों के लिए हैं। पिछले वर्षो की भांति भ्रष्टाचार के नित नए खुलासे होते रहे। सीमा पर पाकिस्तान और चीन की हरकतों को कायरों की भांति नजरंदाज करना वर्ष भर सालता रहा लेकिन जाते-जाते अपनी राजनय देयवायानी प्रकरण में अमेरिका को अपने जिस तेवर से परिचित कराया उससे विश्वास जागा है कि अब सीमा पर भी इसी तरह दिलेरी का परिचय देते हुए अपने एक के बदले उनके चार मारेंगे भले ही यह काम उनके घर में घुस कर करना पड़े।
मीडिया साल भर अतिरेकी बना रहा। जरूरी मुद्दों से ज्यादा गैर जरुरी मुद्दे उसके टीआरपी का सनसेक्स बढ़ाते रहे। मीडिया ने साल भर नरेन्द्र मोदी की पालकी ढोई। कभी नकली लालकिला तो कभी गत्ते के सेट वाले संसद के मंच से मोदी दहाड़ते रहे। टीवी मीडिया कई गुना ज्यादा एम्प्लीफाई कर उनकी दहाड़ को चिग्घाड़ बनाकर दर्शकों को परोसता रहा। कारपोरेट मीडिया भी लोकशाही की ताकत के आगे नतमस्तक दिखा। दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी का झडू उसकी टीआरपी के लिए मजबूरी बन गया। किन्तु -परन्तु की तमाम आवांछनीय टिप्पणियों के बावजूद भी। चार राज्यों के चुनाव परिणाम ने 128 साल पुरानी कांग्रेस के अधोपतन का रास्ता तैयार किया। अर्थशाी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का मौन और मजबूरी भी देखा तो उपाध्यक्ष राहुल गांधी की प्रेस क्लब में लोकायुक्त बिल को लेकर खिलदण्डई भी। बाहें चढ़ाकर उनका चीख-चिल्लाहट भरा भाषण युवाओं को लुभा नहीं सका और न ही सिर पर तगाड़ी लेकर मनरेगा की मजदूरी वाली तस्वीर ने गरीबों को जोड़ा। बंगाल की शेरनी ममता बनर्जी के भी ताजिए ठंडे रहे। मुलायम-नीतिश की तीसरे मोर्चे की परिकल्पनाएं हवाओं में तैरती-उतराती रहीं। उम्मीद के विपरीत मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा की हैट्रिक ने राजनीति की नई परिभाषा गढ़ी। नई परिभाषा इस मायने में कि आम आदमी आज भी विकास से ज्यादा सम्मान और अपनेपन के लिए लालायित है। प्रदेश सरकार पर भ्रष्टाचार के लगे तमाम आरोपों के बावजूद शिवराज की लाजर्र दैन लाइफ इमेज बनीं और वे गरीब तथा वंचित लोगों के दिल में ऐसे बैठे कि नया चुनावी इतिहास रच दिया। वे प्रदेश की जनता के सबसे बड़े कजर्दार हैं, उनके सिर पर जगाई गई उम्मीदों और अपेक्षाओं का गुरूतर बोझ है। अपनी विनम्रता व सहजता की बदौलत भविष्य की असीम संभावनाओं के कपाट खोले हैं। उनकी कथनी और करनी में भेद नहीं रहा तो यकीन मानिए वे निकट भविष्य में देश के यशस्वी व सफल नेताओं की श्रेणी में शामिल होने के सान्निकट हैं।
गुजरा हुआ साल युवाओं और महिलाओं की नवचेतना, संघर्ष और नए आगाज का साल रहा। यह साल आम आदमी के वजूद को पुर्नव्याख्यायित करने का भी रहा। डेढ़ साल पहले भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना के आन्दोलन को राजनीतिक दलों ने जिस तरह मजाक में बदलने की कोशिश की थी दिल्ली में आम आदमी ने उसका माकूल जवाब दे दिया। राजनीति अब परम्परागत दलों, घरानों और रसूखदारों की बपौती नहीं रही और न ही किसी के नाम इसका पट्टा है। आम आदमी को केन्द्रीय थीम पर रखकर अरविन्द केजरीवाल ने जिस तरह राजनीतिक नवाचार को यथार्थ के धरातल पर उतारा है वह हताश अवाम को नया रास्ता दिखाता है। डेढ़ साल की पुरानी पार्टी ने 128 साल के राजनीतिक संस्था को उसके वजूद की चुनौती दी है। दिल्ली की जीत और ‘आप’ तमाम राजनीतिक दलों के लिए सबक है। यह सबक वंश परम्परा और यथास्थितिवाद तोड़ने का है। नए साल में सभी राजनीतिक दल ‘आप’ को सामने रखकर या तो आत्म अवलोकन के लिए विवश होंगे या फिर अपने लिए अधोगति की राह चुनेंगे। आम आदमी और उसकी मुश्किलें केन्द्र में होंगी। कोई ढोंग नहीं चलेगा। देश के दो फीसदी लोगों के कारपोरेटी प्रायोजन से 98 फीसदी लोगों की बात करने वाले लोगों का भी ढ़ोंग सामने आएगा। क्योंकि हर सूबे में एक अरविन्द केजरीवाल के जन्म लेने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
हम उम्मीद करते हैं कि नया वर्ष आम आदमी की मुश्किलों को कम करने वाला होगा। मंहगाई पर लगाम लगेगी और भ्रष्टाचार के खिलाफ छेड़ी गई निर्णायक जंग मुकाम तक पहुंचेगी। मई 2014 में दिल्ली के सिहासन पर एनडीए का राज होता है, तीसरा मोर्चा आता है या फिर यूपीए करिश्मा करती है यह अभी इतिहास के गर्भ में है। लेकिन खुशी की बात यह कि आम आदमी की अपनी ताकत का अहसास उसी तरह होना शुरू हुआ है जैसा कि जामवंत के याद दिलाने पर हनुमान जी को हुआ था। ईश्वर से प्रार्थना है कि नए वर्ष में हर व्यक्ति की आत्मा में बैठे हनुमानजी जाग्रत हो, और भ्रष्टाचार, अनाचार, विषमता, कुशासन की लंका का दहन करने के लिए समर्थवान बनें, देश में सुराज और रामराज्य नेताओं के नहीं आम आदमी के पराक्रम से ही संभव होगा। नए वर्ष की असीम शुभकामनाएं।
No comments:
Post a Comment