चरणदास चोर के नए अवतार सचमुच के चरणदास साहु निकले। पिछले जनम में चोर इस जनम में साहु। साहु ने वो मूर्खताएं नहीं की जो चोर ने पिछले जनम में की थी। ‘चोर’ गुरू द्वारा दी गई प्रतिज्ञाओं की रस्सी में बंधा था, और चाहकर भी न सोने की थाली में खा सका, न रानी के साथ सो सका, न आधा राज भोग सका और न ही हाथी की सवारी कर सका। ईमानदार मूर्ख था इसलिए बेमौत मारा गया। ईमादारी भर ही अपने आप में काफी नहीं होती। चतुराई के मुलम्मे में वह धारदार बन जाती है। चरणदास साहु ने गुरू की प्रतिज्ञाओं की रस्सी को तड़ से तोड़ दी। ये गुरू लोग होते ही ऐसे हैं जब खुद कुछ करने का माद्दा नहीं बचता तो चेलों का भी रास्ता बंद करने की कोशिश करते हैं। चरणदास साहु की आत्मा में बैठा पुराने जनम का चोर पुरानी बातों को याद-कर-कर के तड़प रहा था। काश मैं भी उस खूसट गुरू की बाते न मानता। रानी को भोगता, सोने की थाली में खाता, राज करता और हाथी पर चढ़ता। चरणदास की आत्मा के अन्दर बैठे नए जनम के साहु और पुराने जनम के चोर में खटपट होने लगी। चोर ने कहा- सुन बे साहु तूने गुरू को दगा दिया है। पॉलटिक्स में जाने और पार्टी बनाने से मना करने के बाद भी तू नहीं माना। सीधे नरक में जाएगा नरक में। साहु ने जवाब दिया- तू निरा चोर का चोर ही रहा। जमाने की नजाकत को समझ और मेरे में विलीन हो जा। चोर होते हुए भी जो तेरी ईमानदारी की ठसक है न चरणदास को तंग किए जा रही है। अब देख कुर्सी तक पहुंचने के लिए लोग कितनी मशक्कत करते हैं। धनबल, जनबल, बाहुबल, दारू, मुर्गा, कम्बलों के बीच से कुर्सी तक का रास्ता निकलता है। तेरी ईमानदारी की हनक ने चरणदास को कुर्सी तक तो पहुंचा दिया, अब आगे तो मुझे कुछ भोगने दे। चरणदास ने लालबत्ती लेने से मना कर दिया। गारद भगा दी। फट्टे पे सोएगा, आटो से चलेगा। न खाएगा, न खाने देगा। चरणदास के भीतर इन दिनों चोर और साहु के बीच का अन्तरद्वंद्व चल रहा है। ये कैसा विरोधाभास है कि जो चोर है वह चरणदास को ईमानदारी से नहीं डिगने दे रहा, और जो साहु है वह भौतिकवादी है सब कुछ वह भोगना चाहता है, जो चोर पुराने जन्म में नहीं भोग पाया और प्रतिज्ञाबद्ध होकर बेमौत मारा गया।
‘आधुनिक भारत का भविष्य पुराण’ के रचयिता आचार्य रामलोटन शास्त्री, भैय्याजी को चरणदास के नए अवतार के भीतर चल रहे द्वंदात्मक भौतिकवाद का अनुशीलन व मीमांशात्मक विश्लेषण करते हुए उसका मर्म समझा रहे थे। भैय्याजी को कथा की यह क्लासकी वैसे ही पल्ले नहीं पड़ रही थी जैसे कि शास्त्रीय संगीत में रागों का आरोह-अवरोह व तानपुरे की तान सामान्य श्रोताओं की समझ में नहीं आती। शास्त्री के शास्त्रज्ञान से कनफ्यूज भैय्याजी बोले- आचार्य जी अब सीधे-सीधे मुद्दे पर आइए और भविष्य बताइए कि नए जमाने का ये चरणदास राज भोग पाएगा कि नहीं? रामलोटन शास्त्री ने अपने दर्शन शास्त्र की व्याख्याओं को रहल की पोथी में दबाते हुए कहा- भैय्याजी दरअसल बात ये है- कि एक बार एक किन्नर को बच्चा पैदा हुआ। किन्नर को बच्चा! आश्चर्य!! खबर देश-दुनिया की सुर्खियों में छा गई। शहर का कोई भी आदमी यकीन नहीं कर पा रहा था पर यह सत्य था, सौ प्रतिशत। किन्नरों में उल्लास छा गया। सब नाचने गाने लगे, जश्न मनाने लगे। फिर सवाल खड़ा हुआ कि यह बच्चा जाना किस नाम से जाएगा। इसकी वल्दियत क्या लिखी जाए। किन्नरों ने पंचायत बुलाई। अन्तत: तय हुआ की इस बच्चे पर सबका समान हक है। यह सभी किन्नरों के साझे पराक्रम का प्रतिफल है। अब दूसरा सवाल खड़ा हुआ कि सबसे पहले इसके प्यार दुलार का हक किसे? सर्व सहमति से यह भी तय हो गया कि वरिष्ठता के क्रम में एक-के बाद एक सभी इसे अपना प्यार दुलार दें। उमड़े हुए वात्सल्य से विह्वल किन्नरों ने उस नवजात शिशु को अपने-अपने बाहों में भर कर चूमना-चाटना प्यार करना शुरू कर दिया। इस क्रम में किसी को होश ही नहीं रहा कि शिशु को जन्मघुट्टी भी दें, दूध भी पिलाएं। प्यार के ज्वार में सिर्फ शिशु का चेहरा दिखता उसकी भूख की चिल्लाहट नहीं, उसके पालन पोषण की जरूरत नहीं। सब उसे एक-एक करके प्यार करते गए। और जब आखिरी किन्नर की बारी आई तो उसके हाथ नवजात शिशु का पार्थिव शरीर था। किन्नरों के समवेत प्यार के ज्वार में नवजात शिशु का दम उखड़ गया। शिशु की उम्र बरहों संस्कार तक भी नहीं खिंच पाई। भैय्याजी को इस कहानी में छिपा हुआ गूढ़ अर्थ समझ में आ गया। शास्त्रीजी का चरणरज माथे पर लगाते हुए भैय्याजी फिर पुराने टॉपिक पर आ गए बोले- शास्त्रीजी उस चरणदसवा का क्या होगा जो स्वर्ग से सीधे भारत भूमि में अवतरित हुआ और सुधार में लग गया। शास्त्रीजी ने उवाचा - अभी कुछ नहीं हुआ, फिलहाल तेल देखो तेल की धार देखो। एक के बाद एक आए और चले गए। इस देश को सीधे भगवान चलाते हैं, वही आगे भी चलाते रहेंगे, चरणदास जैसे लोग आते और जाते रहेंगे। प्रभु ऐसी ही लीला रचाते रहेंगे जैसे कि किन्नरों के साथ रचाई। राजनीति अपनी लय-गति पर चलेगी, और उसे न आज कोई समझ पाया न भविष्य में ही समझ पाएगा क्योंकि वह ‘तड़ित की तरह चंचल व भुजंग की भांति कुटिल है।’
relavent crisp summary of last year... Congratulations ... Keep good pen...all the best for new year2014
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