Wednesday, February 15, 2012

धर्म जब धंधा बन जाए


        चिंतामणि मिश्र
अभी अखबारों में खबर आई कि कई बाबा लोग हवाई यात्रा पर अपने लिए विशेषाधिकार की मांग कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि उनकों सुरक्षा जांच और तलाशी से छूट दी जाए। इनका तर्क है कि उन्हें कोई मनुष्य छू नहीं सकता और अगर ऐसा होता है तो उन्हें शुद्ध होने के लिए स्नान और पूजा करनी पड़ती है। कुछ बाबा लोगों को ऐसी छूट देने की सिफारिश कांग्रेस अध्यक्ष ने और खेल मंत्री ने नागरिक उड्डन विभाग से की है। कोई कारण नहीं है कि इन खास बाबा लोगों को यह विशेषाधिकार न मिले, क्योंकि देश के सबसे बड़े भाग्य विधाता ने सिफारिश की है। अभी ऐसा विशेषाधिकार राष्टÑपति और प्रधानमंत्री को ही मिला है। वैसे भी सरकार किसी भी दल या गठबंघन की हो, बाबाओं को नाराज कोई नहीं करना चाहता।
      बाबा लोग बड़े चमत्कार कर रहे हैं। मीडिया में छाये हुए हैं। आध्यात्म से लेकर राजनीति में इनका लीला-गान गंूज रहा है। प्रसिद्ध तो पहले भी होते थे, किन्तु आजकल बाबा लोगों ने अपनी रणनीति बदल दी है। पहले गृहस्थी त्याग कर सन्यास लेते थे, किन्तु अब योग का स्थान उपभोग ने ले लिया है। योग और समाधि वाले चिंतन को बाबा लोगों ने मुगरा खड़ा करके देश और समाज को क्रांतिकारी प्रसाद दे कर गदगद कर दिया है। आज जब पूरा समाज बाजारवाद की गोद में बैठ कर मसान-पूजन करने में तल्लीन है, तो बाबा लोग इससे दूर कैसे रह सकते हैं। अंधे और बहरे भक्तों को कब तक आत्मा और परमात्मा का नीरस चिन्तन कराया जाता। लम्बे-लम्बे नाम कीर्तिन और बन्दर नृत्य की कितनी और कब तक गणेश परिक्रमा कराई जाती है। भक्त बोर हो रहे थे और दूसरे बाबा लोगों की तरफ उनके पलायन की सम्भावना हो रही थी। बाबा लोगोें को यह रूखा-सूखा सन्यास भी अकारथ लग रहा था, सो निकाल लाये योग का आधुनिक उपभोक्तावादी संस्करण । यह ऐसा सन्यास था, जिसमें हानि का दूर-दूर तक प्रश्न नहीं था और फायदा अकूत। तीर्थ-स्थलों में, हिल स्टेशनों में, राजधानियों और महानगरों में आश्रम  ऐसे बन गए कि पांच और सात सितारे  होटल फीके हो गए हैं।
      अन्ध भक्त चेलों से मिले लाखों-करोड़ों रुपए से बाबा लोगों को संतोष नहीं हो रहा। बाबा लोग मंजन गोरे होने की कीम साबुन, गन्डा- ताबीज ,रुद्राक्ष, चमत्कारी अंगूठी-यंत्र हर मर्ज की दवा आटा-दाल आदि बेचने लगे। कई बाबा तो फैक्ट्री खोल कर मार्केटिंग में लग गए। टीवी पर तो बाबा लोगों की सुनामी ही आ गई है। कई बाबा तो टीवी चैनलों के मालिक ही बन गए है। बाबा लोग अब जीवन जगत के गूढ़ प्रश्नों से अपना सिर फोड़ने की जगह बाजार में अपनी-अपनी कम्पनियां लेकर कॉर्पाेरेटेड बाबा में रूपान्तरित हो गए।
कुछ बाबा लोगों ने तो कमाल का रास्ता कमाई के लिए तलाश लिया है। धर्म की ओट में सेक्स की दुकान शुरू कर दी। चित्रकूट के एक बाबा लम्बे समय से काल गर्ल्स की कम्पनी संचालित किए थे। इनकी कम्पनी का नेटवर्क देश के सभी बड़े शहरों में था। थोड़ी सी चूक के कारण दिल्ली में पकड़े गए। एक बड़े बाबा पर उनकी भूतपूर्व शिष्या ने यौन शोषण और बलात्कार की सबूतों सहित पुलिस में शिकायत दर्ज कराकर आरोप लगाया है। शिकायत में जबरिया गर्भपात कराने का भी आरोप है। बाबा जी का हरिद्वार में गंगा किनारे भव्य आश्रम है। वे राजनीति में भी हैं और केन्द्र सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। आन्ध््रा के एक बाबा समलिंगी के रूप में अर्न्तराष्टÑीय मीडिया की खबर बने थे। ऐसे बाबा सारे देश में बड़ी संख्या में विराजवान है जो अपने भव्य आश्रमों में महिलाओं के साथ रासलीला रचाते है।ं
     पिछले साल मघ्यप्रदेश के वन विभाग की जमीन पर एक शंकराचार्य का स्थायी कब्जा करने का मामला उठा। वन विभाग ने कब्जा हटाने की नोटिस दी तो विभाग के अधिकारियों से अभ्रदता की गई जब वन विभाग ने मामला निपटाने के लिए कहा कि वे कब्जे की मंजूरी के लिए आवेदन ही दे दें तो शकंराचार्य ने अपनी सार्वभौमिकता की गुहार लगाते हुए गर्जना कर दी कि किसी की उनसे आवेदन पत्र मांगने की हैसियत नहीं है। बाद में वन मंत्री शंकराचार्य के श्रीचरणों में स्वयं पेश हुए, अपने ही विभाग का बड़ी बहादुरी से समर्पण कर आये । यह वही वन विभाग है जो गरीब ग्रामीणों के मात्र जंगल प्रवेश पर उनको दौड़ा-दौड़ा कर पीटता है , जेल की यात्रा कराता है। सरकारें बाबा लोगों के मामले में बेहद उदार रहती हैं। सरकारों का रुतबा आम आदमी के लिए सुरक्षित होता है। बाबाओं की बिरादरी अब सत्ताधारी देवताओं से पे्ररणा लेकर खुद को देश के कानून और देश की संस्कृति से ऊपर समझने लगी है। आज हम जिस दौर में हैं, उसमें धर्म भी व्यापार और उद्योग में बदल गया है और धर्म भी बाजार में खरीदने तथा बेचने की वस्तु बना दिया गया। असल में आज धर्म की जगह पाखंड विराजमान हो चुका है और बाबा लोग पाखंड को धर्म बता कर जनता को सम्मोहित किए हैं। बाबा लोग भी अपने-अपने झंडे और डंडे लेकर पाप-पुण्य और स्वर्ग- नरक से लोगों को भयभीत करके उसे दिगम्बर किये जा रहे हैं। कबीर बाबा कह गए कि- कपड़ा रंग कर पहन लेने तथा सिर मुंड़ा लेने से वैराग्य या सन्यास नहीं उपजता, जब मन, धन का ढेर लगाने, वैभवपूर्ण आवास जुटाने के जुगाड़ में जुटा  है, कंचन और कामिनी के लिए लार टपका   रहा है, सब पर शासन करने के लिये कत्थक कर रहा है तो सन्यास नाटक से अधिक कुछ नहीं है।
बाबाओं ने जन आस्था को खंड-खंड कर अखाड़ा रच डाला है जिसमें अतीत को वर्तमान से संवाद करने के लिए विकलांग बनाया गया है। सत्ता से जुड़ने के लिए पेट के बल लेट कर दंडवत की जा रही है। राम ने जिस साम्राज्यवादी रावण को मारा था, वही साम्राज्यवादी रावण बाजारवाद के रथ में बैठकर व्यंग कर रहा है। संस्कृति की सीता रावण के कब्जे में है। इस सांस्कृतिक साम्राज्यवाद को लेकर बाबा लोगों की आत्मा में अंधेरी रात व्याप्त है। सभी धर्मग्रंथों के पाठ हैं, सबद हंै- विचार बीज हैं, वाचिक परम्परा लोकानुभव हैं, शास्त्री हैं, पर शास्त्र सत्ता की ओर, बाजार की ओर लपक रहा है। आखिर क्या कारण है कि आज बाबाओं- महंतों को सत्ता की देहरी में हाजरी भरनी पड़ रही है? इसके कई कारणों में सबसे बड़ा कारण हैं कि अब उनका कोई अपना प्रभामंडल ही नहीं रहा हैंं। जंगलों, पहाड़ों में रह कर चिंतन और वैराग्य की जगह बाबाओं की भूमिका व्यापारी की हो गई है। वह आम आदमी के कल्याण हेतु अपने आश्रम का इस्तेमाल नहीं कर रहा। वह नेताओं,उद्योगपतियों,अपराधियों के हित साधने और अपने ओढ़े हुए सन्यासी लबादे की ओट में आर्थिक, राजनैतिक ताकत पर अधिकार के लिए प्रपंच रच रहा है।
                                      - लेखक वरिष्ठ साहित्यकार एवं चिंतक हैं।
                                         सम्पर्क - 09425174450.

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