पहले नहाई ओस में फिर आँसुओं में रात
यूँ बूंद बूंद उतरी हमारे घरों में रात
कुछ भी दिखाई देता नहीं दूर दूर तक
चुभती है सूइयों की तरह जब रगों में रात
वह खुरदुरी चटाने*, वह दरिया वह आबशार
सब कुछ समेट ले गयी अपने परों में रात
आँखों को सब की नींद भी दी ख्वाब भी दिए
हम को शुमार करती रही दुश्मनों में रात
बेनाम मंजिलों ने बुलाया है फिर हमें
सन्नाटे फिर बिछाने लगी रास्तों में रात..
bahut sundar!!
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