Friday, April 13, 2012

गद्दारों के गठजोड़ के पीछे कौन

फेसबुक में इन दिनों एक कविता युवाओं  में सबसे ज्यादा शेयर की जा रही है। धरा बेच देंगे गगन बेच देंगे,नदी पर्वत और चमन बेंच देंगे अरे नौजवानों अभी तुम न संभले तो ये भ्रष्ट नेता वतन बेंच देंगे। किसी मंचीय कविता की ये पंक्तियां युवाओं की चिन्ता और आक्रोश की अभिव्यक्ति  बनी हुई हैं। देश की सेना और रक्षा तैयारियों को लेकर एक के बाद एक खुलासे हो रहे हैं। इसी बीच अमेरिका द्वारा पाकिस्तान चरमपंथी हाफिज सईद पर जिन्दा या मुर्दा पकड़ने का इनाम घोषित करना। खबरों के पीछे किसी वरिष्ठ मंत्री के होने से सब कड़ियां कहीं न कहीं एक दूसरे से जुड़ी हैं। सबसे पहले बात करते हैं, हाफिज सईद के बहाने अमेरिकी चाल पर। देश की सुरक्षा खामियों, सेना में विद्रोह की फर्जी खबर और पाकिस्तान के राष्टÑपति आसिफ अली जरदारी की प्रस्तावित यात्रा के बीच अमेरिका द्वारा हाफिज सईद को जिन्दा या मुर्दा पकड़ने के लिए ईनाम की घोषणा और वह भी मुंबई के गुनहगार घोषित करते हुए, महज इत्तेफाक नहीं है। इसके पीछे पेंटागन और अमेरिका के सामरिक रणनीतिकारों की सोची समझी चाल है। यह सही है कि हाफिज सईद भारत का दुश्मन है और हमारे खिलाफ विष वमन करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ता, लेकिन यह भी उतना ही सही है कि हाफिज सईद वही शख्स है,जिसके संगठन जमात-उद-दावा ने पाकिस्तान में भूकंप पीड़ितों की मदद में आए अमेरिकी डॉलरों से आतंकवादियों के प्रशिक्षण शिविर संचालित कर रहा है। अमेरिका को इसकी पूरी खबर है, लेकिन तब उसने हाफिज सईद पर किसी भी तरह की कार्रवाई करने कोशिश क्यों नहीं की? अब अचानक ऐसा क्या हो गया कि उसे मुंबई के पीड़ितों का दर्द झलकने लगा व जिन्दा व मुर्दा पकड़ने के लिए 50 करोड़ डालर की घोषणा कर दी, जिसका हाफिज सईद ने खुद यह कह कर मजाक उड़ाया कि मैं लाहौर में हूं, अमेरिका आए और वह ईनाम मुझे दे।
    दरअसल, इन सबके पीछे अमेरिका की गहरी सोच छिपी हुई है। पहले हाफिज सईद को लेकर पाकिस्तान में उसके समर्थन में जितना वातावरण बनेगा भारत में उतनी ही बौखलाहट बढ़ेगी। दोनों देश के बीच रिश्तों के सुधरने की जो प्रक्रिया चल रही है और जरदारी की भारत यात्रा के साथ सौहार्द्र का वातावरण बनने की जो जरा सी भी गुंजाइश है उस पर पलीता लग जाएगा। भारत और पाकिस्तान की सरकारें और राजनयिक शक्तियां एक दूसरे के खिलाफ मुश्के कसने लगेंगी, जो कि शुरू भी हो गया है। दूसरा, सेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह की प्रधानमंत्री को लिखी गई चिट्ठी का लीक होना कि सेना के पास एक हफ्ते तक की लड़ाई के लिए गोला बारूद का स्टाक नहीं बचा है।  इस खबर में देश द्रोही लीकेज के पीछे छुपी हुई मंशा यह थी कि पूरे देश में आम नागरिकों में भय का वातावरण निर्मित हो जाएगा तथा सरकार पर रक्षा तैयारियों को तत्काल चाक चौबंद करने का दबाव बढ़ेगा, इससे लंबित पड़े रक्षा सौदे तत्काल अमल में आ जाएंगे। इस खबर के असर से सरकार और सेना उबर पाती कि इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप के सीईओ कम प्रधान संपादक शेखर गुप्ता ने खबर ब्रेक की, कि जिस दिन वी के सिंह जन्मतिथि के मसले को लेकर सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर थे, उसी दिन सेना की पलटन ने दिल्ली की ओर कूच किया था। खबर का संकेत यह था कि सेना ने वी के सिंह के इशारे पर तख्ता पलट की पूरी तैयारी कर रखी थी।
दरअसल, रक्षा सौदागरों और सेना की बीच घुसे उनके भेदियों की आंखों में जनरल वी के सिंह और रक्षामंत्री ए के एंटोनी दोनों ही बराबर खटक रहे हैं। वी के सिंह ने सेना में भ्रष्टाचार की सड़ांध में जैसे ही कार्रवाई का फिनायल छिड़कना शुरू किया, वैसे ही सेना के भीतर ही उनके खिलाफ साजिशें शुरू हो गई और जन्मतिथि का प्रकरण उभरकर सामने आ गया। वी के सिंह भ्रष्टाचार के खिलाफ जितने ही मुखर होते गए साजिशें भी उसी हिसाब से गंभीर होती चली गर्इं और एक्सप्रेस के शेखर गुप्ता की ब्रेकिंग न्यूज तो इसका चरमोत्कर्ष है। वी के सिंह को सरकार की नजरों से गिरने के प्रयास के चलते ही सैन्य विद्रोह की बात सामने लायी गई। रक्षा सौदागरों के दलालों के आड़े आ रहे ईमानदार रक्षा मंत्री ए के एंटोनी भी निशाने पर लिए गए और विवाद को इतना तूल दिया गया कि सरकार एंटोनी को हटाने के लिए मजबूर हो जाए।
कुल मिलाकर जो परिदृष्य सामने उभरता है उससे कई बातें आइने की तरह साफ है। एक तो यह कि एक के बाद एक खुलासे किसी तयशुदा स्क्रिप्ट के हिस्से हैं। पटकथा लेखक और निर्देशक कहीं सात समंदर पार बैठे हैं। इस नाटक के अभिनेता खलनायकों में, सेना के भीतर बैठे गद्दार,बाहर घूूम रहे दलाल और सत्ता के साझीदार कुछ नेता शामिल हैं। यदि गार्जियन की खबर को सही माने तो सरकार का ही एक वरिष्ठ मंत्री इस गठजोड़ में शामिल हैं,और उसी का हाथ एक्सप्रेस की ब्रेकिं ग न्यूज के पीछे है। यदि यह बात सही है तो सेनाध्यक्ष की प्रधानमंत्री को लिखी गई चिट्ठी के लीक होने के पीछे भी इन्हीं महोदय का हाथ होना चाहिए। देश की संभवत: यह पहली घटना होगी जब मीडिया का एक हिस्सा ऐलानिया तौर पर  देश द्रोहियों का औजार और प्रवक्ता बनकर सामने आया है। इस घटना के बरक्स कल्पना कीजिए कि यदि मीडिया के क्षेत्र में विदेशी पूंजी निवेश (जिसकी पैरवी बड़े कार्पोरेट   घराने कर रहे हैं) की इजाजत मिल गई तो देश के संवेदनशील मामलों का क्या होगा अन्दाजा लगाया जा सकता है।
बहरहाल, एक के बाद एक घटना क्रम उभर रहे हैं उससे अंदाजा लगा सकते हैं कि देश को कितनी गंभीर साजिश व दुश्चक्र के दलदल की और धकेलने की कोशिशें की जा रही हैं। देश की हवा पानी और राशन खाने वाले सेना में घुसे गद्दार, संसद में बैठा वह मंत्री और अखबार में संपादकीय रचने वाले पत्रकार महाशय, हथियारों के सौदागरों के हाथों की कठपुतली की मानिन्द नाच रहे हैं। जरूरी है कि इन सभी संदर्भों को ध्यान में रखते हुए एक उच्चस्तरीय आयोग का गठन किया जाए तथा तय समय-सीमा के भीतर साजिश का पर्दाफाश हो, और देश को दांव में लगाने वाले गद्दारों को चौराहे के लैम्प पोस्ट पर लटकाकर फांसी दी जाए,चाहे वह व्यक्ति सेना का ओहदेदार हो, मीडिया का संपादक या सरकार में शामिल वह वरिष्ठ मंत्री।
                             - लेखक स्टार समाचार के कार्यकारी सम्पादक हैं।
                                 सम्पर्क - 09425813208.


No comments:

Post a Comment