नेताजी हाल ही में चार धाम की तीर्थयात्रा और गंगाजी में पितरों का तर्पण करके लौटे। देवस्थानों में कुछ न कुछ छोड़ने का संकल्प लेने का दस्तूर है। मसलन तम्बाकू, शराब, कोई बुरी लत, खानपान की चीजें। मैंने पूछा क्या छोड़ आए... नेताजी ने बताया ‘सांप की कलेजी, कभी नहीं खाऊंगा?’ मैंने कहा जो सम्भव नहीं उसे छोड़ने का संकल्प कैसा? पितरों की गति का खयाल तो रखना चाहिए था... वाह... छोड़ा भी तो क्या... सांप की कलेजी! नेताजी बोले- भैय्ये खुदा न खास्ता, चीन वीन जाने का फॉरेन टूर मिला तो वहां तो आदमी सांप ही खाते हैं! सो मैंने भविष्य का ध्यान रखा। मैंने कहा -नेताजी यदि गयाधाम में जीवनभर सच नहीं बोलने का संकल्प ले आते तो यह तो आपके काम की भी बात होती और पितर भी मजे से तर जाते! नेता जी बमके- तुम पत्रकार लोग उलटवांसी ही बोलते हो... जानते नहीं गांधीजी कह गए ‘सत्य अहिंसा परमोधर्म:। यह तो हमारी पूंजी है कि हम निरा सच बोलें!’ फिर वे राजा बिसुनाथ प्रताप सिंह की कहानी पर उतर आए! राजा मांडा ने बोफोर्स का भांडा फोड़ा... कहा राजीव गांधी व उनकी मण्डली ने कमीशन खाया। जनता ने सच माना। राजीव गांधी को सत्ता से उतार दिया। कमीशन से चौगुनी रकम जांच में खर्च हो गई। जांच राजीव गांधी तक पहुंच ही न पाई। जनमोर्चा बना तो राजा मांडा ने कहा-‘वे चुनाव नहीं लड़ेंगे!’ पर इलाहाबाद से चुनाव भी लड़ा-कैफियत दी कि जनभावना के आगे मजबूर था। फिर जनता दल बनाते समय बोला हम प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे, ताऊ देवीलाल को बनाएंगे। फिर प्रधानमंत्री भी बन गए कैफियत दी कर्त्तव्य के आगे मजबूर था। ताऊ देवीलाल को भी फेंटे से लगा दिया। सो सच ऐसे ही बोलिए, फिर आपकी सुविधानुसार भावनात्मक तरीके से मजबूर करने के लिए लोग हैं ही।
अपने सूबे के भैयाजी ने महीने भर पहले कहा था कि इंटरनेट, सिन्टरनेट, फेसबुक-ट्विटर युवाओं को बरबाद करने वाली बातें हंै। युवाओं को चाहिए कि वे कसकर लंगोट बांधा करें, विवेकानन्द के बताए मार्ग पर चला करें। रोज सबेरे ईश विनय कर शीश नवाएं। सूर्य नमस्कार करके उसकी अजस्त्र ऊर्जा को ग्रहण करें। देश के निर्माण में योगदान दें। बाद में पता चला भैयाजी खुद ट्विटर में टूट पड़े और अब कार्यकर्ताओं को ट्वीट किया करते हैं। एक आईटी सेल खुल गया है जो उनके फेसबुक और ट्विटर के एकाउन्ट को अपग्रेड व मेन्टेन करता है। सो भैय्या बातें हैं बातों का क्या? बोलने में क्या जाता है, बोल दो... फिर जनता के सामने अपने कर्त्तव्य के सामने, वक्त के साथ मजबूर हो जाओ। अपना नफा-नुकसान देखकर जो मन पड़े सो बोलो- वक्त उसे उसी तरह परिभाषित कर देगा- जैसे विक्रमादित्य के दरबार में मूरख कालिदास के वक्तव्यों को विद्योत्तमा परिभाषित करती थी। अब देखो न विधानसभा में यूपीएससी में हिन्दी के लिए संकल्प पारित हो रहा है। संकल्प के साथ होंगे- मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक सभी। पर पूछो तो किसके बच्चे हिन्दी में पढ़ते हैं। कितनों के नाम सरकारी स्कूलों में लिखा है? अरे जब सरकारी चपरासी अपने बच्चों को पब्लिक स्कूल में अंग्रेजी पढ़ाता है... तो इनकी क्या बात करना, जिनकी ख्वाहिश रहती है कि बच्चा पैदा होते ही इंग्लिश में किलकारी भरे। पर संकल्प लेने में क्या... ले लो। वक्त इस संकल्प को भी परिभाषित कर देगा... देखा ये लोग कितने महान हैं, अपने बच्चों की अंग्रेजी को कुर्बान करते हुए... अंतिम छोर पर खड़े उस मजदूर के बच्चे के भविष्य के लिए कितना महान संकल्प ले रहे हैं, जो फुटही सरकारी स्कूल में ट्विंकल-ट्विंकल लिटिल स्टार की बजाए... सिरी गानेसाए नमहा, से क ख ग घ डं. पढ़ने की शुरुआत करता हैं।
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