Sunday, August 18, 2013

लालबुझक्कड़ के हसीन सपने और लाल किला का आखिरी मुगल

इस साल का पंद्रह अगस्त जंगी रहा! अभी तक हम अपने शहर में कव्वाली का जंगी मुकाबला देखते व सुनते आए। लेकिन पन्द्रह अगस्त को भाषणों का जंगी मुकाबला देखा सुना। दिल्ली से आखिरी मुगल का देशराग चल रहा था, तो दूसरी ओर लल्लनपुर से लालबुझक्कड़ ललकार रहे थे। खबरिया चैनलों की भूमिका सारंगी-बैंजों वालों सी थी। सुदर्शनीय और सुदर्शना एन्कर्स तबले की थाप दे रहे थे। चैनलों के पैनलिए बुद्धिभक्षी टिप्पणीकार वाह-वाह..वाह-वाह.. करके महफिल का रंग जमा रहे थे। आखिरी मुगल और लालबुझक्कड़ जी की तकरीरें मुसलसल चलती रहीं और पैनलिए बीच-बीच में ठेका देते हुए.. इरशाद-इरशाद फरमा रहे थे। हिन्दुस्तान ने इतनी तरक्की न की होती तो उसकी जम्हूरियत में जीने वाली आवाम को ऐसी तवारीखी झलक शायद ही देखने को मिलती। टीवी के आधे में आखिरी मुगल, आधे में लालबुझक्कड़। बीच-बीच में लप्प-लप्प करते एंकर्स और स्क्रीन पर पासपोर्ट फोटो की तरह चिपके और बारी आने पर पूरे स्क्रीन में फैलकर चपर-चपर करते पैनलिए।
एक ओर दिल्ली की तकरीर में तरक्की के कसीदे। छियासठ साल में हम कहां से कहां पहुंच गए। घर-घर टीवी, हाथ-हाथ मोबाइल। लालबुझक्कड़ ने नहले पे दहला जड़ा। ये तरक्की फर्जी है इसमें नेहरू की स्मेल आती है। असली तरक्की तो वो होती है जिसमें सरदार पटेल की खुशबू बसी होती। किसानों के हाथ में देश की लगाम होती। इसी बीच एक पैनलिया बोल पड़ा- लालबुझक्कड़ जी आपके सूबे की लगाम तो कारपोरेट के हाथों में है। किसानों की जमीनें छिनती जा रही हैं। गोशालाओं की जगह धनपशुओं के चारागाह में बदलता जा रहा है आपका सूबा। किसानों को तो उसका गोबर ही हासिल होगा। एक पैनलिए की बात दूसरे पैनलिए ने काटी। दिल्ली में क्या हो रहा है.. घोटाले पे घोटाला। ये घोटाला.. वो घोटाला। कहीं दादू की दुंदभी तो, कहीं दामाद का बोलवाला। डालर के आगे रूपिया उसी तरह धड़ाम-धड़ाम गिर रहा है, जैसे 10 जनपथ में मंत्री और नेता धड़ाम से गिरते हैं। दिल्ली और लल्लनपुर के बीच जंगी मुकाबला चल रहा था.. पर इसका सबसे ज्यादा असर चैनलों के पैनलियों पर दिख रहा था। एक की आत्मा में आखिरी मुगल समाए हुए थे तो दूसरे के मुंह से लालबुझक्कड़ के बोल झड़ रहे थे। अपुन तो उस वक्त बुद्धूराम की तरह.. भैय्याजी के बारे में सोच रहे थे। भैय्याजी अपने गांव भैंसापुर की फुटही स्कूल में ध्वजारोहण करने के बाद क्षेत्रवासियों को संबोधित कर रहे थे। भैय्याजी न तो आखिरी मुगल की साइड थे, और न ही लालबुझक्कड़ के पाले में। उनकी लाइन तीसरी थी। यानी कि वे थर्ड फोर्स को रिप्रजेन्ट कर रहे थे। थर्ड फोर्स में आगे बढऩे के ज्यादा चान्सेज रहते हैं। मुट्ठीभर सदस्यों को लेकर जबसे हरफन लल्ली देदेघोड़ा ने देश की कमान संभाली, तभी से वे भैय्याजी के रोल मॉडल बन चुके थे।
भैंसापुर की फुटही स्कूल के चहला भरे प्रांगण में प्रिय गांववासियों को संबोधित करते हुए भैय्याजी ने कहा- साथियों.. आज हमारे विचारों में इतनी 'अमसाखमसीÓ हो चुकी है कि यह तय कर पाना मुश्किल है कि कौन सही और कौन गलत। दिल्ली की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा एक आदमी पूंजीपतियों के लिए नीति बनाता है। देश की अर्थव्यवस्था का गोबराइजेशन (वे जानबूझकर ऐसा ही उच्चारण करते हैं) करता है। तो लल्लनपुर वाला लालबुझक्कड़ अपने सूबे में कारपोरेटियों के लिए लाल कारपेट बिछाता है। ये दिल्ली और लल्लनपुर वाला अन्दरूनी मिले हुए हैं। भाइयों! ये दिखावे की नूराकुश्ती है। देश को तीसरे विकल्प की जरूरत है। भैय्याजी बोले -कहने को अपने मुल्क की फौज दुनिया में तीसरे नम्बर की है, पर पिद्दी सा पड़ोसी हमारे जवानों की मुंडी कटवा लेता है। घुसकर जवानों को मरवा देता है। दिल्ली के सब्र का बांध किस कंक्रीट का बना है? हमें बताया जाए! ये बांध कब तक छलकता रहेगा? और लालबुझक्कड़ जी के क्या कहने वे तो उसी लाइन के लग्गेबाज हैं जिनके नेता हवाईजहाज में दामाद की तरह आतंकवादियों को बैठाकर उन्हें उनके पीहर पहुंचा आए थे? ये किस मुंह से बड़ी-बड़ी हांकते हैं।
आदत के मुताबिक भैय्याजी दिन में ही सपनों में तैरने लगे। उन्हें रह-रहकर हरफन लल्ली देदेघोड़ा याद आने लगे। फिर सेन्ट्रल हॉल के मंद-मंद चलते पंखे। सामने फैला विस्तृत वोट क्लब। शान से तना इन्डिया गेट। दूब में दाने चुगते कबूतर और हवा में गुब्बारे उड़ाते बच्चों के बीच से भैय्याजी का कारकेड़ रायसिना हिल्स के पैलेस की ओर बढ़ रहा है। भैय्याजी ने अचानक कारकेड रुकवाया। काली लंबी कार की विन्डो का ग्लास खोलकर देखा कि... लालबुझक्कड़ जी इन्डिया गेट के समीप मूंगफली बेच रहे हैं। और वे.. दिल्ली के आखिरी मुगल, फुटपाथ पर स्टाल लगाकर अर्थशास्त्र की फटी पुरानी पुस्तकें आधे दाम पर बेच रहे हैं। पांच मिनट की इस चुप्पी के बीच गांव वाले घबड़ा गए। भैय्याजी अचकचा कर संभलने की कोशिश करते कि इतने में ही उनके एक पट्ठे ने कान में कुछ कहा। सकपकाकर भैय्याजी ने कहा... आज बस यहीं तक।
भैय्याजी वहां से सटक निकलने की कोशिश करते कि सांय-सांय करती हुई एक मोटर रुकी। उससे उतरने वाले पांच लोगों में से एक ने आईडी कार्ड दिखाते हुए कहा.. मैं सीबीआई से हूं, चलिए एमडीएम जहर काण्ड में आपसे पूछताछ करनी है। अचानक बदली हुई सीन पर बुदबुदाते हुए भैय्याजी ने कहा मीडिया इतना फास्ट है और दिल्ली के कान इतने तेज हैं आज मुझे पहली बार पता चला।
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