Saturday, August 24, 2013

कहि न जाए.. का कहिए

भारत देश में नौकरिहों और उनके डिपार्टमेंटस का एक ही मूल काम है कि उन्हें जो काम करना है उसको छोड़कर बाकी सब काम करें। जैसे हमारे जमाने में राज्य परिवहन की लारियां होती थी जिनका हार्न छोड़कर सब कुछ बजता था। अब देखिए मास्टरों को ही। इनके पास पढ़ाने को छोड़कर इतना काम है कि मरने की फुर्सत तक नहीं। पशुगणना-जनगणना- पेडग़णना, वोटरलिस्ट बनाना, चुनाव करना। जब ये राष्ट्रीय काम न हों तो बच्चों को पन्जीरी बांटना आदि-आदि। पुलिस के पास भी चोरों और मुजलिमों को पकडऩे के अलावा ढेर सारे काम होते हैं। जैसे ही व्हीआईपी ड्यूटी बजाना। बिल्डरों के लिए जमीन-मकान खाली कराना, जब कोई ज्यादा काम न हो तो लगे हाथ अवैध दारू बिकवाना, सट्टे की पर्ची कटवाना आदि-आदि। हमारे देश की सीबीआई के पास ले-देकर एक ही काम है नेता पकडऩा। जो नेता आलाकमान के खिलाफ मुंहखोले उसे पकड़कर उसका होश ठिकाने लगाना।
भैय्याजी का होश ठिकाने लगाने के लिए ही सीबीआई ने उन्हें पकड़ा था। यद्यपि सीबीआई को पता था कि एमडीएम जहर काण्ड में उनका रोल है। पर पकडऩे की वास्तविक वजह अपराधिक नहीं राजनीतिक थी। भैय्याजी तो खैर जानते ही थे। वे कम गुणन्तेबाज नहीं थे। यदि सीबीआई उन्हें बैठे-ठाले पकड़ लेती तो पब्लिक में मैसेज जाता कि वे वाकई अपराधी हैं - सो उन्हें जबसे आशंका हुयी उन्होंने मामले को पॉटलिकल टर्न दे दिया। पन्द्रह अगस्त को वे दिल्ली के आखिरी मुगल और लल्लनपुर के लालबुझक्कड़ पर जानबूझकर सावन-भादौं की तरह बरसे थे। सीबीआई पकड़ ले गई तो इलाके में वही मैसेज गया जो भैय्याजी चाहते थे। यानी कि राजनीतिक अदावत के चलते दिल्ली वालों ने उन्हें पकड़वाया है।
अपने देश में नेताओं को अपराध करने का यही मुफीद तरीका है। जैसे मवेशियों के चारे के नाम पर करोड़ों डकार जाओ। लड़के-बेटे बहू भाई सबको छूट देकर सूबे को भ्रष्टाचारगाह में बदल दो। आदमी की बस्ती उजाड़कर उसे बेघर करके हाथियों की मूर्ति लगवाओं। जिससे जो भी बन पड़े करो। सीबीआई पकड़े तो प्रचारित कर दो कि दिल्ली ने राजनीतिक दबाव बनाने के लिए पकड़वाया है। यह सच भी है दिल्ली को देश में भ्रष्टाचार से ज्यादा चिन्ता अपने राजनीतिक गुणा-भाग की रहती है, इसलिए जेल का भय दिखाकर पॉलटिकल ब्लैकमेल के लिए पकड़वाती है। सीबीआई इसी जनम में किसी जीव का रुप धरे तो वह क्या होगी ? सुप्रीमकोर्ट कहता है कि तोता होगी.. पर भैय्याजी का मानना है कि वह कुत्ता होगी.. ऐसा कुत्ता जिसके दांत और नाखून तोड़ दिए गए हों वह सिर्फ इशारा पाकर भोंके और झपटकर कपड़े फाड़ दे। अपने देश में कई ऐसी एजेन्सियां हैं जो इसी तरह पालतू है। सेन्ट्रल विजीलेन्स कमीशन, प्रेस कौंसिल और न जाने किस-किस नाम से। प्रदेशों में कमोवेश लोकायुक्त, ईओडब्लू, सीआईडी भी उसी के नक्शे कदम पर। ये संस्थाएं भोंक तो सकती है ज्यादा से ज्यादा कपड़े फाड़ सकती हैं पर काट नहीं सकतीं। ये विषहीन दंतहीन जीव हैं- मदारी के पिटारे में बंद सांप की तरह। 
भैय्याजी को ये सब मालुम है - इसलिए वे निश्चिंत हैं। चुनाव सामने हैं। वे खुद एक रीजनल फोर्स हैं। और जब केन्द्र में सरकार बनाने के लिए एक-एक सीट की पड़ी हो तो भैय्याजी का राजनीतिक महत्व कुछ ज्यादा ही बढ़ जाता है, एमडीएम जहरकाण्ड (जिसमें कई स्कूली बच्चे मरे थे) का वास्तविक अपराधी होने के बावजूद। भैय्याजी सीबीआई की हिरासत में दिल्ली में थे। बड़े लोगों की हिरासत भी मजेदार होती है। लग्जरी गाड़ी से आना-जाना। किसी सरकारी गेस्टहाउस को हिरासतगृह बना दिया जाना। मुजरिम की मांग के मुताबिक डाइट। यानी कि वह मटन-बिरियानी या मुर्ग मुसल्लम चाहे तो हाजिर। व्हिस्की-स्कॉच-शैम्पेन... क्या चाहिए। एक गरीब आदमी ऐसी हिरासत में एक दिन भी रहे तो तर जाए। स्वर्ग की कल्पना भूल जाए। दरअसल नेताओं की गिरफ्तारी और उनकी हिरासत भी एक म्यूचुअल अन्डरस्टैन्डिंग होती है। क्योंकि आज जिसकी सरकार है कल वह सड़क पर आ सकता है, और आज जो हिरासत में है कल उसके हाथ सत्ता की लगाम हो सकती है। इसलिए भविष्य का ध्यान रखते हुए ही विपक्षी को यथोचित ट्रीटमेंट दिए जाने का चलन आजादी के बाद से ही चला आ रहा है। सो भैय्याजी अपने गांव भैंसापुर के मच्छरों और वहां के गन्धाते लोगों से दूर दिल्ली के एक सरकारी गेस्टहाउस में हिरासत काट रहे हैं। सीबीआई के अफसर ने एक हफ्ते के दरम्यान एमडीएम जहरकाण्ड के संदर्भ में एक बात भी नहीं पूछी। अफसर यह जानने की कोशिश करता रहा कि उस इलाके में भैय्याजी की राजनीतिक जड़ें क्यों इतनी गहरी हैं। उनकी सभा में हजारों की भीड़ किस जादू के चलते जुटती है। भैय्याजी ठहरे खांटी नेता वे सरकारी चाकरों से क्या बोलें? इस बीच अफसर ने उन्हें खबर दी.. नेताजी कान्ग्रेचुलेशन.. कैबिनेट ने आपके उस मुद्दे का हल खोज लिया है जिसमें आपने चिन्ताव्यक्त की थी, कि जिस पर अपराधिक प्रकरण दर्ज हो वह चुनाव नहीं लड़ सकेगा। अब कानून ही बदल दिया जाएगा, सभी चोट्टे-गिरहकट- खन्तीमार (जैसा कि कानूनन दुष्प्रचारित किया जाता है) ठप्पे से चुनाव लड़ सकेंगे। सिर के लटों को अंगुलियों से सवांरते हुए भैय्याजी ने कहा- हुं..ह.. अब आया न ऊंट पहाड़ के नीचे..। अफसर... आलाकमान को मैसेज दे दो हम राजी हैं, मैं उनसे कब मिल सकता हूं ?
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