नए साल में अपनी राशि का भविष्यफल पढ़ते हुए अनायास ही यह विचार उठता है कि जिस विन्ध्यभूमि के हम सब निवासी हैं आखिर उसका भविष्यफल कैसा होगा, और क्या होना चाहिए? अभी तक तो हमारी पीढ़ी ने इसके गौरवशाली अतीत के बारे में सुना है और खंडित वर्तमान के साथ वास्ता पड़ा है। खंडित इस मायने में कि कभी यह एक भरा पूरा प्रदेश रहा है। राजनीति की नियति चक्र के चलते भारतीय मानचित्र में जहां यह पिछली सदी में विलोपित हो गया वहीं इस सदी में तीन नए प्रदेश उग आए। खैर यह उन प्रदेशों की राजनीतिक इच्छाशक्ति, सांस्कृतिक और भावनात्मक एकता का फलादेश था, दुर्भाग्य से इसे हम चाहकर भी नहीं पा सके। बहरहाल आज हम जिस मुकाम पर हैं और जो स्थितियां सामने हैं, उन्हीं का आकलन करते हुए विन्ध्य की भावी तस्वीर का लेखा-जोखा लगाते हैं।
पूंजीनिवेश की तथा-कथा: पिछले कुछ महीनों से शोर-शराबे के साथ बस एक ही बात कही जा रही है कि विन्ध्य की किस्मत आने वाले वर्षों में पलटने ही वाली है। वजह देश के उद्योगपति हम पर मेहरवान हो उठे हैं और वे यहां अकूत पूंजी निवेश करने जा रहे हैं। अपना सिंगरौली दुनिया का सबसे बड़ा पॉवर हब बन जाएगा। कैमोर की तराई से लेकर सतना, रीवा और सीधी इतने बड़े सीमेंट काम्प्लेक्स में बदल जाएगा कि देश की हर पांचवीं इमारत इसी धरती की कोख से निकले चूना पत्थर से बनी सीमेंट से बनेंगे। विन्ध्य के बुंदेलखंड के हिस्सों के जिलों पन्ना, छतरपुर और टीकमगढ़ की रत्नगर्भा जमीन से ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड की मल्टीनेशनल कंपनियां हीरा, सोना प्लैटिनम खोदेंगी। खजुराहो को लॉसबेगास जैसी भव्यता मिलेगी। अपने विन्ध्य का यह भविष्यफल तो अक्टूबर की खजुराहो ग्लोबल इनवेस्टर सम्मिट में मुख्यमंत्री, उनकी मंत्रिपरिषद और उद्योगपतियों ने अपने-अपने ढंग से बांचा, और बताया कि कोई सवा लाख करोड़ का पूंजीनिवेश आने वाले पांच वर्षों के भीतर किया जाएगा। यह तो रहा हमारे विन्ध्य के आर्थिक भविष्य का सैद्धांतिक पक्ष।
अब इसका व्यवहारिक पक्ष जानिए। ये उद्योग कोई हवा मे तो खुलेंगे नहीं। इन्हें चहिए होगी बड़े क्षेत्रफल की जमीन। कारखाना खड़ा करने के लिए और चूना पत्थर व कोयला खदानों के लिए। जाहिर है कि किसानों की खेती की जमीन का बड़ा हिस्सा इन कारखानों में उसी तरह जबरिया जज्ब कर लिया जाएगा जैसे कि सिंगरौली क्षेत्र में पहले रिहंद जलाशय के लिए, फिर कोयला परियोजनाओं के लिए, फिर ताप बिजलीघरों के लिए। अब तक तीन मर्तबे अपनी जर-जमीन से बेदखल किए जा चुके किसान दुनिया के सबसे बड़े पॉवर हब के लिए चौथी और पांचवीं बार बेदखल किए जाएंगे। जैसा कि दस्तूर है सरकार और आद्यौगिक घराने विस्थापितों को भारी-भरकम मुआवजे की राशि, नौकरी का वायदा और शानदार पुनर्वास का प्रलोभन देंगे,और जमीन कब्जाने के बाद सबकुछ भूल जाएंगे या कानूनी पचड़ों में फंसा देंगे। कुछ औद्योगिक घरानों ने तो जमीन की खरीद फरोख्त का नायाब तरीका निकाला है जिसके तहत उनके एजेंट किसानों से कोई दूसरा उद्देश्य बताकर जमीन खरीदना शुरू कर दिया है ताकि पुनर्वास और रोजगार के वायदे के पचड़े से पहले से ही मुक्त रहें। यानि कि भविष्य यह है कि आने वाले वर्षों में अपनी विन्ध्यभूमि पर कदम-कदम आसमान छूती चिमनियां सीना ताने खड़ी मिलेंगी। खेती का रकबा सिमट जाएगा। किसान कभी मुआवजा पाने वाली लाइन में तो कभी अपनी ही जमीन पर तने कारखानों के पर्सनल दफ्तर के सामने नौकरी के लिए रिरयाता पाया जाएगा। और खुदा न खास्ता कभी अपने हक-हकूक के लिए संगठित हुआ और आवाज बुलंद करने की कोशिश की तो उसे विकास विरोधी, अराजक तत्व या जरूरत पड़ी तो नक्सली तक करार किया जा सकता है।
तो फिर उपचार क्या है: राशियों पर बैठे क्रूर ग्रह नक्षत्रों की भांति यहां भी शांति के सहज उपचार हाजिर हैं ताकि अपने विन्ध्य के भविष्यफल का सैद्धांंतिक पक्ष फलीभूत हो। जैसे, जिन किसानों की भूमि उद्योगों के लिए अधिग्रहीत की जाए उन्हें भूमि के मूल्य के आधार पर उस उद्योग का शेयरहोल्डर भी बनाया जाए ताकि भविष्य में वे भी उस उद्योग के मुनाफे के भागीदार बन सकें। प्रभावित परिवार के नौकरी लायक सदस्य को उद्योग के हिसाब से प्रशिक्षित किया जाए ताकि वे योग्यतानुसार सम्मानजनक पद पर काम कर सकें। विस्थापन, पुनर्वास और पर्यावरण के नियमों का सौ फीसदी पालन सुनिश्चित किया जाए। इसका उल्लंघन पाए जाने पर दोषियों को कठोर दंड देने के साथ ही उद्योग के संचालन पर रोक लगाई जाए।
सलाह: निर्वाचित जनप्रतिनिधि औद्योगिक घरानों की देमानी करने की बजाय जिन्होंने वोट दिया है उनके प्रहरी की भूमिका निभाएं, भले ही सरकार उनकी हो वे तोंते की तरह हां में हां न मिलाएं। इस सहज उपचार के बाद यकीन मानिए आप अपने विन्ध्य का उसके भविष्यफल के सैद्धांतिक पक्ष के काफी हद तक करीब पाएंगे।
अधोसंरचना विकास: जब विन्ध्य में डेढ़ लाख करोड़ रूपयों की भारी-भरकम राशि का पूंजीनिवेश होगा तो निश्चित ही इस क्षेत्र के अधोसंरचना विकास की जरूरत होगी। अपने सरकार की मानें तो आने वाले वर्षों में यहां सभी फोर से सिक्स लेन की चमचमाती सडक़ें बन जाएंगी। इन पर सौ-सौ टनों तक के बड़े ट्राले, सीमेंट का परिवहन करनेे वाले कैप्सूलनुमा दैत्याकार हाइवा ट्रक, यात्रियों के परिवहन के लिए सजी-धजी एयरकंडीशन्स बसें, नए-नए मॉडलों की चमचमाती कारें, अन्न से लदे हुए ट्रैक्टर्स, फर्राटा मारतीं बाइक्स दौड़ेंगी। यह सब पूंजीनिवेश के प्रताप से संभव होगा। अंबानी, बिरला, जेपी, धूत, रुइया, जिंदल, राहेजा, सहारा जैसे उद्योगपतियों की रोजमर्रा की आवाजाही शुरू हो जाएगी। जाहिर है कि ये यहां आकाशमार्ग से अवतरित हुआ करेंगे, इसलिए भविष्य में सतना, रीवा, सिंगरौली में स्तरीय हवाईअड्डे बनेंगे। इनके कारखानों के परिसर में हैलीपैड बनेंगे। ललितपुर-सिंगरौली रेल लाइन बन जाने के बाद तीव्रगामी-दूरंतों रेलगाडिय़ां दौडऩे लगेंगी। बड़े-बड़े मॉल, शॉपिगं काम्प्लेक्स खुल जाएंगे। यह तो रहा अधोसंरचना विकास के भविष्यफल का सैद्धांतिक पक्ष।
अब जानिए व्यावहारिक पक्ष। यहां कोई परियोजना कैसे रूपाकार लेती है बाणसागर परियोजना और ललितपुर-सिंगरौली रेललाइन इसके आदर्श मॉडल हैं। बाणसागर 1978 में मोरारजी देसाई ने शुरू किया था। तब इसकी मियाद दस साल और लागत 330 करोड़ आंकी गई थी। परियोजना को शुरू हुए 33 साल होने को हैं। लागत बढक़र 3300 करोड़ से ज्यादा की हो गई, काम आधा भी पूरा नहीं हो पाया। ललितपुर-सिंगरौली रेललाइन, हर बजट सत्र में लूपलाइन से निकलती है फिर शंट कर दी जाती है। यह सिलसिला भी पिछले तीस साल से चल रहा है। एनडीए सरकार के जमाने में स्वर्ण चतुर्भुज राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना बनी पर उसमें विन्ध्य से गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्गों को शामिल नहीं किया गया। अब आप इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि अब तक अधोसंरचना विकास हमारे लिए कितना बड़ा छलावा साबित होता आया है। अब यह मान भी लें कि फोरलेन या सिक्स लेन की सडक़े बनती भी हैं तो या तो ये पीपीपी या बीओटी मॉडल में बनेंगी जिसका पैसा भी हमी से वसूला जाएगा या फिर वे ठेकेदार बनाएंगे जो नेता भी हैं क्योंकि ठेके पाना इन्हीं का जन्म सिद्धअधिकार है। तो ये चमचमाती सडक़ें कैसे बनेंगी पूर्व के उदाहरणों से आप समझ सकते हैं। हां एक बात तय है कि हर औद्योगिक परिसर में हैलीपैड अवश्य बनेंगे जहां उद्योगपति अपना कामकाज देखने आया करेंगे और फुर्सत के समय में हमारे प्रिय नेता क्षेत्र का दौरा करने के लिए।
फिर वही उपचार: तो फिर एेसा क्या किया जाए जिससे अपने विन्ध्य का विकास वैसा ही हो जैसा कि सैद्धांतिक रूप से होना चाहिए। हमारे हिसाब से पहले यहां की अधोसंरचना विकसित हो, उद्योग-धंधे बाद में खुलें । जरूरत पड़े तो इसके लिए कानून बनाया जाए। जहां उद्योग लगाया जाना है वहां सबसे पहले बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित की जाएं। औद्योगिक घरानों से यह अंडरटेकिंग ली जाए कि वे कारपोरेट सरोकार निभाने के नाम पर स्कूल, कॉलेज, अस्पताल वहीं खोलेंगे जहां पर उद्योग लगाएंगे। सरकार वाहवाही लूटने व आंकड़े दुरुस्त करने के लिए नहीं, अपितु यथार्थ के धरातल पर परिस्थितियों का अध्ययन करने के बाद जनहित को ही सर्वोपरि रखते हुए ही उद्योगपतियों से कोई करार करे।
सलाह: सरकार के हर निर्णय और उद्योगपतियों के प्रत्येक कदम पर नजर रखने की जरूरत। आवश्यकता पडऩे पर सूचना के अधिकार व अन्य कानूनी प्रावधानों का सहारा लिया जाए। विन्ध्यक्षेत्र के हित, तरक्की और बरक्कत के लिए राजनीतिक दलबंदी और सामाजिक हदबंदियों को तोड़ते हुए सभी एक जुट होकर आगे आएं।
प्रकाशन तिथि-3जनवरी 2011
पूंजीनिवेश की तथा-कथा: पिछले कुछ महीनों से शोर-शराबे के साथ बस एक ही बात कही जा रही है कि विन्ध्य की किस्मत आने वाले वर्षों में पलटने ही वाली है। वजह देश के उद्योगपति हम पर मेहरवान हो उठे हैं और वे यहां अकूत पूंजी निवेश करने जा रहे हैं। अपना सिंगरौली दुनिया का सबसे बड़ा पॉवर हब बन जाएगा। कैमोर की तराई से लेकर सतना, रीवा और सीधी इतने बड़े सीमेंट काम्प्लेक्स में बदल जाएगा कि देश की हर पांचवीं इमारत इसी धरती की कोख से निकले चूना पत्थर से बनी सीमेंट से बनेंगे। विन्ध्य के बुंदेलखंड के हिस्सों के जिलों पन्ना, छतरपुर और टीकमगढ़ की रत्नगर्भा जमीन से ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड की मल्टीनेशनल कंपनियां हीरा, सोना प्लैटिनम खोदेंगी। खजुराहो को लॉसबेगास जैसी भव्यता मिलेगी। अपने विन्ध्य का यह भविष्यफल तो अक्टूबर की खजुराहो ग्लोबल इनवेस्टर सम्मिट में मुख्यमंत्री, उनकी मंत्रिपरिषद और उद्योगपतियों ने अपने-अपने ढंग से बांचा, और बताया कि कोई सवा लाख करोड़ का पूंजीनिवेश आने वाले पांच वर्षों के भीतर किया जाएगा। यह तो रहा हमारे विन्ध्य के आर्थिक भविष्य का सैद्धांतिक पक्ष।
अब इसका व्यवहारिक पक्ष जानिए। ये उद्योग कोई हवा मे तो खुलेंगे नहीं। इन्हें चहिए होगी बड़े क्षेत्रफल की जमीन। कारखाना खड़ा करने के लिए और चूना पत्थर व कोयला खदानों के लिए। जाहिर है कि किसानों की खेती की जमीन का बड़ा हिस्सा इन कारखानों में उसी तरह जबरिया जज्ब कर लिया जाएगा जैसे कि सिंगरौली क्षेत्र में पहले रिहंद जलाशय के लिए, फिर कोयला परियोजनाओं के लिए, फिर ताप बिजलीघरों के लिए। अब तक तीन मर्तबे अपनी जर-जमीन से बेदखल किए जा चुके किसान दुनिया के सबसे बड़े पॉवर हब के लिए चौथी और पांचवीं बार बेदखल किए जाएंगे। जैसा कि दस्तूर है सरकार और आद्यौगिक घराने विस्थापितों को भारी-भरकम मुआवजे की राशि, नौकरी का वायदा और शानदार पुनर्वास का प्रलोभन देंगे,और जमीन कब्जाने के बाद सबकुछ भूल जाएंगे या कानूनी पचड़ों में फंसा देंगे। कुछ औद्योगिक घरानों ने तो जमीन की खरीद फरोख्त का नायाब तरीका निकाला है जिसके तहत उनके एजेंट किसानों से कोई दूसरा उद्देश्य बताकर जमीन खरीदना शुरू कर दिया है ताकि पुनर्वास और रोजगार के वायदे के पचड़े से पहले से ही मुक्त रहें। यानि कि भविष्य यह है कि आने वाले वर्षों में अपनी विन्ध्यभूमि पर कदम-कदम आसमान छूती चिमनियां सीना ताने खड़ी मिलेंगी। खेती का रकबा सिमट जाएगा। किसान कभी मुआवजा पाने वाली लाइन में तो कभी अपनी ही जमीन पर तने कारखानों के पर्सनल दफ्तर के सामने नौकरी के लिए रिरयाता पाया जाएगा। और खुदा न खास्ता कभी अपने हक-हकूक के लिए संगठित हुआ और आवाज बुलंद करने की कोशिश की तो उसे विकास विरोधी, अराजक तत्व या जरूरत पड़ी तो नक्सली तक करार किया जा सकता है।
तो फिर उपचार क्या है: राशियों पर बैठे क्रूर ग्रह नक्षत्रों की भांति यहां भी शांति के सहज उपचार हाजिर हैं ताकि अपने विन्ध्य के भविष्यफल का सैद्धांंतिक पक्ष फलीभूत हो। जैसे, जिन किसानों की भूमि उद्योगों के लिए अधिग्रहीत की जाए उन्हें भूमि के मूल्य के आधार पर उस उद्योग का शेयरहोल्डर भी बनाया जाए ताकि भविष्य में वे भी उस उद्योग के मुनाफे के भागीदार बन सकें। प्रभावित परिवार के नौकरी लायक सदस्य को उद्योग के हिसाब से प्रशिक्षित किया जाए ताकि वे योग्यतानुसार सम्मानजनक पद पर काम कर सकें। विस्थापन, पुनर्वास और पर्यावरण के नियमों का सौ फीसदी पालन सुनिश्चित किया जाए। इसका उल्लंघन पाए जाने पर दोषियों को कठोर दंड देने के साथ ही उद्योग के संचालन पर रोक लगाई जाए।
सलाह: निर्वाचित जनप्रतिनिधि औद्योगिक घरानों की देमानी करने की बजाय जिन्होंने वोट दिया है उनके प्रहरी की भूमिका निभाएं, भले ही सरकार उनकी हो वे तोंते की तरह हां में हां न मिलाएं। इस सहज उपचार के बाद यकीन मानिए आप अपने विन्ध्य का उसके भविष्यफल के सैद्धांतिक पक्ष के काफी हद तक करीब पाएंगे।
अधोसंरचना विकास: जब विन्ध्य में डेढ़ लाख करोड़ रूपयों की भारी-भरकम राशि का पूंजीनिवेश होगा तो निश्चित ही इस क्षेत्र के अधोसंरचना विकास की जरूरत होगी। अपने सरकार की मानें तो आने वाले वर्षों में यहां सभी फोर से सिक्स लेन की चमचमाती सडक़ें बन जाएंगी। इन पर सौ-सौ टनों तक के बड़े ट्राले, सीमेंट का परिवहन करनेे वाले कैप्सूलनुमा दैत्याकार हाइवा ट्रक, यात्रियों के परिवहन के लिए सजी-धजी एयरकंडीशन्स बसें, नए-नए मॉडलों की चमचमाती कारें, अन्न से लदे हुए ट्रैक्टर्स, फर्राटा मारतीं बाइक्स दौड़ेंगी। यह सब पूंजीनिवेश के प्रताप से संभव होगा। अंबानी, बिरला, जेपी, धूत, रुइया, जिंदल, राहेजा, सहारा जैसे उद्योगपतियों की रोजमर्रा की आवाजाही शुरू हो जाएगी। जाहिर है कि ये यहां आकाशमार्ग से अवतरित हुआ करेंगे, इसलिए भविष्य में सतना, रीवा, सिंगरौली में स्तरीय हवाईअड्डे बनेंगे। इनके कारखानों के परिसर में हैलीपैड बनेंगे। ललितपुर-सिंगरौली रेल लाइन बन जाने के बाद तीव्रगामी-दूरंतों रेलगाडिय़ां दौडऩे लगेंगी। बड़े-बड़े मॉल, शॉपिगं काम्प्लेक्स खुल जाएंगे। यह तो रहा अधोसंरचना विकास के भविष्यफल का सैद्धांतिक पक्ष।
अब जानिए व्यावहारिक पक्ष। यहां कोई परियोजना कैसे रूपाकार लेती है बाणसागर परियोजना और ललितपुर-सिंगरौली रेललाइन इसके आदर्श मॉडल हैं। बाणसागर 1978 में मोरारजी देसाई ने शुरू किया था। तब इसकी मियाद दस साल और लागत 330 करोड़ आंकी गई थी। परियोजना को शुरू हुए 33 साल होने को हैं। लागत बढक़र 3300 करोड़ से ज्यादा की हो गई, काम आधा भी पूरा नहीं हो पाया। ललितपुर-सिंगरौली रेललाइन, हर बजट सत्र में लूपलाइन से निकलती है फिर शंट कर दी जाती है। यह सिलसिला भी पिछले तीस साल से चल रहा है। एनडीए सरकार के जमाने में स्वर्ण चतुर्भुज राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना बनी पर उसमें विन्ध्य से गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्गों को शामिल नहीं किया गया। अब आप इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि अब तक अधोसंरचना विकास हमारे लिए कितना बड़ा छलावा साबित होता आया है। अब यह मान भी लें कि फोरलेन या सिक्स लेन की सडक़े बनती भी हैं तो या तो ये पीपीपी या बीओटी मॉडल में बनेंगी जिसका पैसा भी हमी से वसूला जाएगा या फिर वे ठेकेदार बनाएंगे जो नेता भी हैं क्योंकि ठेके पाना इन्हीं का जन्म सिद्धअधिकार है। तो ये चमचमाती सडक़ें कैसे बनेंगी पूर्व के उदाहरणों से आप समझ सकते हैं। हां एक बात तय है कि हर औद्योगिक परिसर में हैलीपैड अवश्य बनेंगे जहां उद्योगपति अपना कामकाज देखने आया करेंगे और फुर्सत के समय में हमारे प्रिय नेता क्षेत्र का दौरा करने के लिए।
फिर वही उपचार: तो फिर एेसा क्या किया जाए जिससे अपने विन्ध्य का विकास वैसा ही हो जैसा कि सैद्धांतिक रूप से होना चाहिए। हमारे हिसाब से पहले यहां की अधोसंरचना विकसित हो, उद्योग-धंधे बाद में खुलें । जरूरत पड़े तो इसके लिए कानून बनाया जाए। जहां उद्योग लगाया जाना है वहां सबसे पहले बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित की जाएं। औद्योगिक घरानों से यह अंडरटेकिंग ली जाए कि वे कारपोरेट सरोकार निभाने के नाम पर स्कूल, कॉलेज, अस्पताल वहीं खोलेंगे जहां पर उद्योग लगाएंगे। सरकार वाहवाही लूटने व आंकड़े दुरुस्त करने के लिए नहीं, अपितु यथार्थ के धरातल पर परिस्थितियों का अध्ययन करने के बाद जनहित को ही सर्वोपरि रखते हुए ही उद्योगपतियों से कोई करार करे।
सलाह: सरकार के हर निर्णय और उद्योगपतियों के प्रत्येक कदम पर नजर रखने की जरूरत। आवश्यकता पडऩे पर सूचना के अधिकार व अन्य कानूनी प्रावधानों का सहारा लिया जाए। विन्ध्यक्षेत्र के हित, तरक्की और बरक्कत के लिए राजनीतिक दलबंदी और सामाजिक हदबंदियों को तोड़ते हुए सभी एक जुट होकर आगे आएं।
प्रकाशन तिथि-3जनवरी 2011
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