Thursday, November 3, 2011

होश करो,दिल्ली के देवो,होश करो


सन् 1954 में राष्टÑकवि दिनकर ने दिल्ली नामक एक कविता लिखी थी जिसमें उन्होंने दिल्ली को भारत का रेशमी नगर कहा था और पूरी शिद्दत से उसे देश के शोषण का केन्द्र प्रमाणित किया था। आजादी के सिर्फ सात वर्ष बाद कवि ने देशवासियों को सतर्क रहने और दिल्ली के देवताओं को चेतावनी दे दी थी। तब से अब तक दिल्ली ने और देश ने बहुत कुछ देख लिया। कुछ ही दिन बाद मुक्तिबोध ने भी महसूस किया था और प्रश्नाकुल कविता ने आत्मान्वेषण किया-
जीवन क्या जिया!/ लिया, बहुत बहुत ज्यादा/ दिया बहुत बहुत कम/ अरे! मर गया देश! / जीवित रह गए तुम!
आज अनेक प्रश्न हैं, जिनका उत्तर ही नहीं है। प्रश्न पहले भी थे, लेकिन उनके उत्तर थे। आंखों में शर्म और हया थी। अब शर्म से आंखे झुकती नहीं। पूरी बेशर्मी से गलती स्वीकारी जाती है। ‘गलती हो रही है’, यह बताने पर भी दबंगई से गलती की जाती है। एक छोटे से ड्रायवर द्वारा की गई गलती के कारण हुई दुर्घटना से आहत मंत्री त्यागपत्र दे देता था और अब गलती-दर-गलती हो रही है। माफी मांगी जा रही है, स्यापा किया जा रहा है लेकिन कुर्सी नहीं छोड़ी जा रही है। त्याग और बलिदान इतिहास की बातें हो चुकी हैं।  पूरी दुनिया को साफ करने के लिए इसी भारत ने एक मेहतर दिया था (मुक्तिबोध  की एक पंक्ति है ‘पूरी दुनिया को साफ करने के लिए एक मेहतर चाहिए’) अब उसी के देश में उसका नाम भर लेकर तर्पण करते हैं। अपने पोस्टर और बैनरों पर उसकी तस्वीर छापते हैं। जिसने जीवन के मध्यान्ह से शाम तक एक धोती पहनी, उसकी मुस्कुराती तस्वीर हजार रूपये की करेंसी पर दिखती है। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है लेकिन यह भी उतना ही सच है कि भारत विश्व का भ्रष्टतम देश है। क्या कोई एक भी व्यक्ति ऐसा दिखता है, जिस पर यकीन किया जाय। कोई रोल मॉडल नहीं है। देश बहुत धार्मिक भी है यह, लेकिन किस धार्मिक ठेकेदार की ईमानदार छवि पर भरोसा करेंगे आप! स्वतंत्रता का जितना दुरुपयोग हमारे देश में हुआ उतना शायद कहीं नहीं। ‘स्व-तंत्र’ हो गया। और अपने तंत्र में सब कुछ अपना। संसार के सबसे धनी व्यक्ति भारत में रहते हैं, सबसे गरीब व्यक्ति कहां रहते हैं? जहां गरीबी रेखा में वर्ष-दर-वर्ष लोग बढ़ रहे हों वहां राजा भी हैं, नीरा भी हैं। कहते हैं देश का कालाधन यदि सफेद हो जाय तो देश अमेरिका के बाद सबसे सम्पन्न देश बन जाय। प्रजातंत्र से बेहतर कोई शासन प्रणाली नहीं है लेकिन जिस देश की प्रजा अपने प्रतिनिधि को बिकते हुए देख रही है। जिसकी संसद में एक चौथाई दागी बैठे हों, जिस मंत्री की फाइल खोलें, घपले ही घपले दिखते हैं, जिनके विजन में सिर्फ वे और उनके रिश्तेदार आते हों उनका देश कैसा होगा। अब तो कोई जय प्रकाश भी नहीं है, जिन्दा कौमें पांच साल तक इन्तजार नहीं करतीं। हम तो मिस्र से भी गए गुजरे हैं। आजादी की रजत जयन्ती पर ‘धूमिल’ ने एक कविता लिखी थी- आजादी के पच्चीस साल बाद / मैं आपसे एक सवाल पूंछता हूं, कि जानवर बनने के लिए कितने सब्र की जरूरत है? अब सब्र का बांध टूटता नजर आ रहा है। आजादी पर धूमिल ने ही प्रश्न उठाए हैं- क्या आजादी सिर्फ तीन थके हुए रंगों का नाम है। जिसे एक पहिया ढ़ोता है,या इसका कुछ और भी अर्थ होता है।
थामस- प्रसंग पर हमारे देश के महाधिवक्ता कहते हैं कि निर्विवाद रूप से बेदाग होना नियुक्ति का कोई पैमाना नहीं है।  कपिल सिब्बल तो 2 जी स्पेक्ट्रम मामले में सीबीसी की रिपोर्ट को ही झूठी करार दे चुके हैं।
अपराधी को आमतौर पर काले कपड़ों में ढका देखा जाता है लेकिन अब छवि बदल गई है, एकदम सफेद कपड़ों में झक्क। मुस्कुराता हुआ चेहरा। सफेदपोश अपराधी पूरे देश में हैं, वे अभिजात वर्ग के हैं। समाज वैज्ञानिकों का निष्कर्ष है कि ये समाज के सबसे बडेÞ शत्रु होते हैं, क्योंकि इनसे सामान्य जनता की, नैतिक प्रवृत्ति के हास में सहायता मिलती है। जब किसी समाज में अपराधों में वृद्धि होती है तो उसके वास्तविक नेता सफेदपोश ही होते हैं। ये अपराधी सुशिक्षित, सम्पन्न और समाज के समादृत व्यक्ति होते हैं। इनके मुख्य कार्य कर चोरी, तस्करी, जमाखोरी घूंसखोरी, धोखाधड़ी आदि होते हैं। समाज का कोई क्षेत्र नहीं है जहां इन प्रतिभाशाली अपराधियों का प्रभाव न देखा जाता हो। हर दल में दलदल है। कोई कुआं ऐसा नहीं दिखता जिसमें भॉंग न पड़ी हो। तो क्या निराश हुआ जाए? नहीं निराश में भी आशा के संकेत हैं। इस सबा अरब की आबादी वाले देश में ढेÞर सारे ऐसे लोग हैं जो सत्ता से दूर हैं , नेक और ईमानदार हैं। देश सिर्फ आय से नहीं चल रहा है। प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर मुख्यमंत्रियों के कार्यालयों तक सेवानिवृत्त अधिकारियों के प्रतिनियुक्ति पर काम चल रहा है। आखिर क्यों? शिक्षित बेराजगारों की फौज खड़ी है और सेवानिवृत्त अधिकारियों को काम पर लगाया जा रहा है, विभिन्न आयोगों, संगठनों पर बैठाया जा रहा है। क्योंकि ये घुटे-पिटे-पिट्ठू अधिकारी वे सारे चोर- गलियारे जानते हैं जिनसे बचा या बना जा सकता है।
देश की जनता का मनोबल टूट रहा है। किसी भी घोटाले का परिणाम उसने नहीं देखा। गत तीन वर्षों का मीडिया- नायक कसाब इच्छित भोजन कर रहा है। अफजल गुरू के पक्ष में सरकार खड़ी है। रीवा के एक नाबालिक लड़की के बलात्कार के अपराधी की मृत्युदण्ड को आजीवन करावास में बदल   देने की क्षमा याचना के लिए महामहिम के पास समय है लेकिन कसाब और अफजल के लिए हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है। प्रधानमंत्री माफी मांगते रहेंगे। आप धन्य होते रहेंगे, कितना ईमानदार प्रधानमंत्री है। प्रधानमंत्रीजी आपसे ईमानदार इस देश में करोड़ों लोग हैं। आपके मंत्री तब भ्रष्ट माने जाते हंै,जब न्यायालय हटाने का आदेश देता है। न्यायालय कहता है- यह क्या हो रहा है प्रधानमंत्री जी, और आप कश्मीर की वादियों में या विदेश में चले जाते हैं। देश देख रहा है, आपका कुर्सी प्रेम! कहते हैं कि आप बहुत बडेÞ अर्थशास्त्री हैं।  मैंने दिनकर की दिल्ली से बात शुरू की थी, दिल्ली कविता आज भी मौजूं है अब भी मौका है, समझ लो, घोटालों का परिणाम जनता जानना चाहती है। जिस तरह सत्ता के लिए सीटों का समझौता कर लेते हो उसी तरह राजा और करुणानिधि से समझौता न कर लेना- जनता देख रही है दिल्ली को-
तो होश करो, दिल्ली के देवो, होश करो,
सब दिन तो यह मोहिनी न चलने वाली है।
होती जाती हैं गर्म दिशाओं की सींसें,
मिट्टी फिर कोई आग उगलने वाली है।
                               



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