मप्र सरकार भले ही विकास दर के आधार पर प्रदेश को प्रगति के पथ पर सबसे आगे बता रही हो, लेकिन वास्तविकता इससे कहीं उलट है। दस प्रदेशों के विकास सूचकांक में मप्र सबसे फिसड्डी है। पीएचडी चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के एक अध्ययन में यह बात सामने आई।
चैंबर्स ने मप्र सहित दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ और जम्मू कश्मीर के विकास सूचकांकों का अध्ययन किया। अध्ययन के अनुसार कृषि व उससे जुड़े क्षेत्रों में बेहतर विकास दर के बावजूद खाद्यान्न उत्पादन में फिसड्डी रहने और गरीबी व बेरोजगारी कम करने में असमर्थ होने के चलते राजस्थान, मप्र और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार के समानांतर भी नहीं चल पा रहे हैं।
मप्र और छत्तीसगढ़ में गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वालों का आंकड़ा 30 प्रतिशत को पार कर चुका है। बालिका संरक्षण के लिए तमाम योजनाओं के बावजूद मप्र में शिशु मृत्यु दर सबसे अधिक बनी हुई है। अध्ययन में वित्त वर्ष 2005 से 09 के बीच राज्यों के आर्थिक विकास से जुड़े सभी पहलुओं को आधार बनाया गया है।
अध्ययन के आधार पर जारी राज्य विकास सूचकांक में दिल्ली को पहला स्थान मिला है, जबकि मध्यप्रदेश सबसे निचले दसवें पायदान पर है। रिपोर्ट के मुताबिक, फूड बास्केट माने जाने वाले इन राज्यों का देश के सकल राज्य घरेलू उत्पादन (जीएसडीपी) में अकेले 34 प्रतिशत का योगदान है।
इनमें उप्र का सर्वाधिक नौ, राजस्थान का पांच, मप्र, पंजाब का 4-4 और छग का दो प्रतिशत है। अन्य राज्यों का एक प्रतिशत से भी कम है। प्रति व्यक्ति सालाना आय के मामले में दिल्ली शीर्ष पर है। वहां प्रति व्यक्ति आय 1,17,000 रुपए है, जबकि छत्तीसगढ़ व राजस्थान की 30 से 40 हजार, और मप्र और उप्र की रैंक सबसे नीचे Rमश :27,250 और 23,132 रुपए है।
क्या कहा प्रदेश के बारे में
> मप्र देश के तीन अविकसित राज्यों में शुमार हैं।
> कृषि आधारित इस प्रदेश में कृषि अनुत्पादक है, जिसके कारण प्रदेश में गरीबी विद्यमान है।
> सिंचाई के पर्याप्त साधन नहीं होने के कारण उत्पादकता कम है। फसलों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।
> प्रदेश में कृषि को विकसित करना होगा, नई तकनीक, उन्नत बीजों का प्रयोग करने के अलावा मार्केटिंग को भी विकसित करना होगा।
विकास के सूचकांक में दिल्ली अव्वल
> दिल्ली 65.15
> हरियाणा 53.61
> पंजाब 52.21
> उत्तराखंड 45.19
> हिमाचल 44.49
> छत्तीसगढ़ 44.13
> जम्मू कश्मीर 42.55
> उप्र 42.54
> राजस्थान 42.09
> मध्यप्रदेश 38.34
(स्रोत : पीएचडी चैंबर्स आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री की अध्ययन रिपोर्ट, आंकड़े फीसदी में)
मप्र विकास की ओर बढ़ रहा है। जहां तक प्रति व्यक्ति आय का प्रश्न है, वह राष्ट्रीय औसत से इसलिए कम है क्योंकि हमारी सरकार आने के पूर्व प्रदेश की स्थिति बहुत ही खराब थी। मैंने पीएचडी चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की अध्ययन रिपोर्ट नहीं देखी है, इसलिए उस पर मैं कमेंट नहीं कर सकता।
राघवजी, वित्त मंत्री
मप्र के पिछड़ने की कई वजहें हैं। हमारे यहां कुशल श्रमिकों की कमी है, सड़कें नहीं हैं, शिक्षा के मामले मंे हम पीछे हैं। कृषि उत्पादकता भी अपेक्षाकृत कम है। हम विकास के आधारभूत मानकों को भी पूरा नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में हम विकासशील से विकसित राज्य की श्रेणी में कैसे आ सकेंगे?
राजेंद्र कोठारी, पूर्व रेजीडेंट डाइरेक्टर, पीएचडी चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री
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