बिजली का कारखाना लगाने जा रही कम्पनी मोजरवेयर के खिलाफ किसानों के गुस्से को प्रशासन और फैक्ट्री प्रबंधन ने भले ही लाठी- गोली का भय दिखाकर दबा दिया हो, पर अनूपपुर जैतहरी से शोषण के खिलाफ जो आग सुलगी है वक्त रहते सचेत नहीं हुए तो उसे लपट का रूप लेते देर नहीं लगेगी और ऐसे में कोई जैतहरी नहीं समूचा विंध्य झुलसेगा। प्रदेश सरकार ने पूंजीनिवेश के लिए जिस तरह कारपोरेट के लिए कारपेट बिछाए और प्रशासन के लठैतों को उनके हितों की रक्षा के लिए तैनात कर रखा है उसका प्रतिरोध होना तय है। आदिवासी बहुल अनूपपुर जैतहरी में बिजली कारखाने के लिए किसानों की जमीनें औने-पौने दाम पर अधिग्रहीत की गई गुस्से की जड़ रही है। यह प्रक्रिया हर उस क्षेत्र में है जहां बिजली व सीमेण्ट के कारखाने खुलने जा रहे हैं। आज जैतहरी के किसान गुस्से में हैं, तो कल वेलेस्पन के खिलाफ बहरी के ग्रामीण उठ खड़े होंगे। मैहर के आसपास के सैकड़ों गांवो की जमीनों पर रिलायंस से लेकर कई जाइंट कम्पनियों की नजर है। सतना के इर्द गिर्द भी खुलने जा रहे कारखानों की यही स्थिति है। रीवा के डभौरा क्षेत्र में वीडियोकोन और अभिजीत इण्डस्ट्रीज के थर्मल प्लांट खुलने जा रहे हैं यहां की कहानी भी जैतहरी के मोजरवेयर से जुदा नहीं है। दरअसल हर कम्पनियां सरकार की भू-अधिग्रहण व विस्थापन नीति की अपने तई धज्जियां उड़ा रही हैं। नौकरी, बेहतर विस्थापन और कारपोरेट सोशल रिस्पान्सबिल्टी से बचने के लिए ये कम्पनियां अपने दलालों के माध्यम से किसी दूसरे काम के नाम पर सस्ते में जमीनें खरीद रही हैं और उसे अपने नाम कर रही हैं। निश्चित ही इस छल से बचने वाले अरबों रुपयों में नेता नौकरशाहों का भी हिस्सा होगा नहीं तो किसानों के शोषण की ऐसी अनदेखी हरगिज नहीं की जाती। अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने रूलिंग दी है कि निजी उद्योगों के लिए सरकार भू-अधिग्रहण से परहेज बरते। इस रूलिंग पर जब तक अमल होगा तब तक किसानों की लाखों एकड़ जमीनें ठगी जा चुकी होंगी। भू-अधिग्रहण व विस्थापन पर केन्द्र सरकार में कानून बनने की प्रक्रिया लगातार लटकती जा रही है। अपने प्रदेश की सरकार भी इस कानून को लेकर ज्यादा संजीदा नहीं दिखती, लिहाजा, पंूजीपतियों- किसानों व ग्रामीणों के बीच संघर्ष की बुनियाद स्वमेव पक्की होती जा रही है। जैतहरी- अनूपपुर के किसानों के लिए लू लपट के बीच उत्तर भारत के किसानों ने जिस तरह एकजुटता दिखाई, प्रशासन के डंडे व गोलियों के भय से भले ही उसका प्रकटीकरण न हो पाया हो लेकिन अपने काश्त की जमीनों से हाथ धोते जा रहे विंध्य के किसानों में एक उम्मीद जागी है कि राजनीतिक पार्टियों के इतर भी उनके लिए लड़ने वाले लोग और संगठन है। स्टार समाचार ने कई दफे इस मुद्दे को संजीदगी से उठाते हुए कहा है कि जब तक केन्द्र व राज्य में भू-अधिग्रहण व विस्थापन का कानून अमली जामा नहीं पहनता तब तक हर उद्योगों के लिए भू-अधिग्रहण और विस्थापन का हरियाणा मॉडल लागू किया जाना चाहिए। हरियाणा मॉडल काफी हद तक किसानों की व्यथा, उनकी बेहतरी को ध्यान में रखकर हुड्डा सरकार ने तैयार किया है और इस मॉडल के लागू होने के बाद वहां कभी संघर्ष की स्थिति नहीं बनी। आशा है कि औद्योगिकीकरण के खिलाफ कई और सिंगुर बनने से पहले हमारी सरकार जरूर चेतेगी।
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