अरब क्रांति: एक साल, दस पड़ाव
सोमवार, 17 दिसंबर, 2012 को 16:41 IST तक के समाचार
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व्यापारी की आत्महत्या
17 दिसंबर 2010
मोहम्मद बूअज़ीज़ी नाम के ठेले पर सामान बेचने वाले ट्यूनीसियाई युवा ने ख़ुद आग क्या लगाई, पूरा अरब जगत हमेशा के लिए बदल गया.बूअज़ीज़ी तीस साल से कम उम्र के उन युवा अरब नागरिकों में से एक थे जो यहां की कुल आबादी का 60 % हिस्सा है. यही लोग अरब क्रांति के अग्रदूत बने.बूअज़ीज़ी के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने वाली पुलिस इंस्पेक्टर फ़एदा हाम्दी ने मुझे बताया, "पानी का गिलास लबालब भरा हुआ था. बूअज़ीज़ी इसमें एक बूंद की तरह गिरे और ये छलक गया."तस्वीर 1 से 10बेन अली भागते हुए
14 जनवरी 2011
मोहम्मद बूअज़ीज़ी की मौत के बाद हफ़्तों तक भारी विरोध प्रदर्शन हुए. ट्यूनीसिया में लोगों के बीच भ्रष्टाचार, बढ़ते दामों, बेरोज़गारी और स्वतंत्रता की कमी को लेकर गुस्सा सड़कों पर उतर आया.राष्ट्रपति बेन अली ने सुधारों का वादा करते हुए लोगों को शांत करने की कोशिश की लेकिन 23 साल तक सत्ता में रहने के बाद उन्हें सऊदी अरब भागना पड़ा. बाद में राष्ट्रपति और उनकी पत्नी को गैर-मौजूदगी में ही सरकारी धन के दुरुपयोग के जुर्म में 35 साल की सज़ा सुनाई गई.तस्वीर 2 से 10तहरीर चौक पर कब्ज़ा
28 जनवरी 2011
सारे मिस्र में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए और इस बीच प्रदर्शनकारियों ने काहिरा के बीचोबींच स्थित तहरीर चौक पर पुलिस के साथ झड़प के बाद कब्ज़ा कर लिया.सत्ता छोड़ने से इंकार कर चुकी होस्नी मुबारक की सरकार के लिए ये एक बड़ी चुनौती थी. बहरहाल जब प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति के महल के बाहर पहुंच गए तब 12 फ़रवरी को होस्नी मुबारक अपना पद छोड़ने के लिए तैयार हो गए.मिस्र अरबी जगत का सबसे अधिक आबादी वाला देश है और वहां तख़्ता पलटना सबसे मुश्किल माना जाता था. मिस्र की क्रांति ने यमन, बहरीन, लीबिया और बाद में सीरिया में विद्रोह को हवा दी.बहरीन में सेना पहुंची
14 मार्च 2011
जैसे-जैसे बहरीन में प्रदर्शनों की तीव्रता बढ़ती गई, सऊदी अरब ने अपने पड़ोसी की सहायता के लिए हस्तक्षेप किया. शिया-बहुल बहरीन में सऊदी अरब का ये दख़ल अहम था.सऊदी अरब इसे ईरान के साथ शीत युद्ध की तरह देख रहा था. उनका आरोप था कि बहरीन के शियाओं को ईरान भड़का रहा है.मार्च 2011 के बाद से इस क्षेत्र में शिया-सुन्नी विभाजन तीख़ा होता जा रहा था. ब्रितानी थिंक टैंक चैटम हाउस के अनुसार बहरीन सांप्रदायिक हिंसा को खाड़ी के बाक़ी देशों में निर्यात कर रहा है.त्रिपोली पर बमबारी
17 मार्च 2011
न्यूयॉर्क में सयुंक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव संख्या 1973 पारित किया. इसके प्रावधानों ने सदस्य देशों को लीबिया के नागरिकों की रक्षा के लिए 'सभी उचित क़दम उठाने' का अधिकार दे दिया. नेटो सदस्यों, विशेषकर फ़्रांस, ब्रिटेन और अमरीका ने इसका पूरा इस्तेमाल किया.कुछ ही दिनों के भीतर बेनगाज़ी में कर्नल गद्दाफ़ी की सेनाओं पर हमले शुरू हो गए और उसके बाद त्रिपोली भी नेटो के निशाने पर आ गया.गद्दाफ़ी ने धमकी दी कि 'चूहों' को घर-घर जाकर मार दिया जाएगा लेकिन संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव उनकी सत्ता की मौत का वारंट साबित हुआ.असद का भाषण
30 मार्च 2011
अपनी सत्ता के विरुद्ध पहले प्रदर्शन के बाद राष्ट्रपति बशर अल-असद ने सीरियाई संसद को संबोधित किया. लेकिन सुधारों के वादे के बजाय उन्होंने कहा कि पहला प्रदर्शन शांतिपूर्वक रहा है और ये विदेशी साज़िश के कारण हुआ है.हांलाकि आबादी का कुछ हिस्सा उनपर भरोसा नहीं करता था लेकिन अल-असद कुछ हद तक लोकप्रिय नेता थे. अगर उन्होंने तब मान लिया होता कि लोगों का गुस्सा जायज़ है तो शायद वो सीरिया को अलग और शांतिपूर्ण भविष्य दे पाते.गद्दाफ़ी की मौत
20 अक्तूबर 2011
हफ़्तों तक भागते रहने के बाद कर्नल गद्दाफ़ी को विद्रोही सैनिकों ने उनके गृह शहर सिर्ते में मार दिया. ये एक क्रूर व्यक्ति की हिंसक मौत थी.अगर गद्दाफ़ी को ज़िंदा पकड़ कर उनपर मुकद्दमा चलाया जाता तो स्थिति कुछ और ही होती. मैंने जिस भी लीबियाई से बात की उसने गद्दाफ़ी की मौत का स्वागत किया. उन्हें यक़ीन था कि अब भविष्य के दरवाज़े उनके लिए खुल गए हैं.दरअसल लीबिया में एक संपूर्ण क्रांति हुई है. कर्नल की सत्ता उनके परिवार और रिश्तेदारों के कब्ज़े में थी. जब परिवार और रिश्तेदार ख़त्म हो गए तो राज पाठ भी जाता रहा.सालेह का इस्तीफ़ा
22 जनवरी 2012
33 साल सत्ता में रहने के बाद राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह ने देश छोड़ दिया. टीवी पर अपने भाषण में उन्होंने अपने कार्यकाल की कमियों के लिए माफ़ी मांगी.खाड़ी सहयोग परिषद के साथ समझौते के तहत सालेह अमरीका चले गए. समझौते के अनुसार उनपर कोई मुकद्दमा नहीं चल सकता है.लेकिन सालेह अपने पीछे गंभीर समस्याओं से जूझता देश छोड़ गए थे. यमन में खाद्य पदार्थों की कमी है. वहां पानी और तेल भी ख़त्म होता जा रहा है. इसके अलावा गृह युद्ध और अल-क़ायदा की मौजूदगी भी एक बड़ी समस्या है.मोर्सी ने चुनाव जीता
24 जून 2012
मिस्र में हुए पहले स्वतंत्र राष्ट्रपति चुनावों में मुस्लिम ब्रदरहुड के मोहम्मद मोर्सी जीत गए.देश के नए नेता को बड़ी सियासी और आर्थिक चुनौतियां विरासत में मिलीं थीं. सबसे बड़ी चुनौती लोगों को ये यक़ीन दिलाना थी कि मुस्लिम ब्रदरहुड उनकी समस्याओं का हल खोज सकता है.अब तक अरब क्रांति का सबसे बड़ा लाभ इस्लामी दलों को हुआ है. लेकिन मिस्र के चुनावों के एक महीने बाद लीबिया के मतदाताओं ने बता दिया कि ज़रुरी नहीं है कि उनका वोट इस्लामी पार्टियों को ही जाए.इसराइल गज़ा संघर्ष
नवंबर 2012
14 नवंबर को इसराइल ने गज़ा पर ताज़ा हमला किया. अरब जगत में मची उथल-पुथल के बाद इसराइल और फलस्तीनियों के बीच ये पहला संघर्ष था.इस घटना ने दिखा दिया कि अब क्षेत्र में समीकरण कितने बदल गए हैं. हमास को तुर्की, मिस्र और अन्य अरब देशों का खुला समर्थन मिला. उधर हमेशा की तरह पश्चिमी ताक़तें इसराइल के साथ खड़ी दिखीं. इसराइल ने अपनी सैन्य ताक़त भी दिखाई लेकिन उसे अब समझ आ गया कि मध्य-पूर्व के बदले हालात में उसके पास पहले जैसी स्वतंत्रता नहीं रही है.
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