Tuesday, December 11, 2012

लॉबिंग का काला कारोबार

सी. गोपीनाथ 
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वॉलमार्ट की लॉबिंग से जुड़ी खबर ने संसद में हंगामा खड़ा कर दिया। लेकिन सभी जानते हैं कि आज के दौर का सच यही है। अमेरिका में कॉरपोरेट लॉबिंग को कानूनी मान्यता मिली हुई है। भारत में लॉबिंग छुपछुपाकर अलग-अलग नामों का लबादा ओढ़कर की जाती है। लेकिन सभी का काम एक जैसा है-जनता से जुड़ी नीतियों और अहम आर्थिक निर्णयों को प्रभावित करना। इस क्रम में भले ही लोकतंत्र के मूल तत्वों को दबाना ही क्यों न पड़े। कृषि क्षेत्र से जुड़ा व्यवसाय, खाद, बीज, खेती में काम आने वाली मशीनें, डेयरी, ऊर्जा, विज्ञान और तकनीक और खुदरा जैसे क्षेत्र किसी भी देश की खाद्यान्न सुरक्षा को तय करते हैं। यही क्षेत्र कॉरपोरेट लॉबिस्ट के निशाने पर रहते हैं। भारत में घुसने के लिए हाल के कुछ सालों में दुनिया की नामी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाए हैं। अक्सर कई नीतियां दिखने में तो सरकार के आर्थिक फैसले का नतीजा लगती हैं, लेकिन कई बार वे जबर्दस्त लॉबिंग का परिणाम होती हैं। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि अमेरिका लॉबिस्ट का गढ़ है। 
 ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के आंकड़ों के मुताबिक औसतन अमेरिकी कॉरपोरेट कंपनियां सिर्फ लॉबिंग पर हर महीने 1,234 करोड़ रुपये खर्च कर देती हैं। इतना बड़ा निवेश, कंपनियों को मोटा मुनाफा दिलाता है।  यह बात सही है कि वॉलमार्ट इस खेल में अकेला नहीं और तकरीबन शीर्ष की 100 फॉर्चून कंपनियां लॉबिंग पर जमकर खर्च कर रही हैं। इनमें आईटी दिग्गज इंटेल, गूगल, फेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट और आईबीएम तक शामिल हैं। एग्रीबिजनेस, फार्मा, ऊर्जा और विमानन क्षेत्र शीर्ष पर इसलिए है क्योंकि यहां मुनाफा कमाने की गुंजाइश बहुत ज़्यादा है। आप पूछ सकते हैं कि लॉबिंग से कंपनियों को फायदा कैसे होता है? जवाब बहुत सरल है। लॉबिंग के जरिए कॉरपोरेशन को मिल रहे टैक्स छूट को हासिल किया जाता है। कंसास यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक वॉलमार्ट, हेवलेट-पैकर्ड, आईबीएम, फाइजर जैसे 93 बड़े कॉरपोरेशन 1,456 करोड़ रुपये की रकम लॉबिंग पर खर्च कर रहे हैं। इस रकम को लगाकर इन कंपनियों ने करीब  3.2 लाख करोड़ रुपये का टैक्स छूट हासिल किया। इतना मुनाफा होने की वजह से कंपनियां लॉबिंग के महत्व को मानती हैं। 
 अमेरिका में वॉलमार्ट का लॉबिंग को लेकर खुलासा सिर्फ एक झांकी भर है। कोई आश्चर्य नहीं कि मौजूदा वक्त में ब्रसेल्स के करीब 15,000 लॉबिस्ट यूरोपियन यूनियन के विधायी कामकाज को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं। इनमें कंस्लटेंट, वकील, संगठन, कॉरपोरेशन, एनजीओ शामिल हैं। विकीपीडिया के मुताबिक ब्रसेल्स में करीब 2,600 ऐसे दफ्तर हैं , जो यूरोपियन यूनियन को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं। इससे पता चलता है कि कॉरपोरेट लॉबिंग अमेरिका और यूरोप और अब भारत में आर्थिक नीतियों को तय कर रही है। आर्थिक फैसले लोगों की जरुरत की वास्तविक स्थिति को देखकर नहीं बल्कि इस बात पर लिए जा रहे हैं कि कौन सी कंपनी नीति को प्रभावित करने में कितना निवेश कर सकती है। 
(लेखक सफल्क यूनिवर्सिटी, बोस्टन में स्ट्रेटेजी एंड इंटरनेशनल बिजनेस में प्रोफेसर हैं)  

1 comment:

  1. आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (12-12-12) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
    सूचनार्थ |

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