जयंतीलाल भंडारी
देश में नीतिगत आर्थिक सुधारों के तहत सब्सिडी के दुरुपयोग को रोकने के लिए केंद्र सरकार द्वारा अगले वर्ष पहली जनवरी से देश के 15 राज्यों के 51 जिलों में 'आपका पैसा आपके हाथ' यानी नकद सब्सिडी (कैश सब्सिडी) की योजना प्रायोगिक रूप से शुरू की जा रही है। इस योजना को एक अप्रैल, 2014 से पूरे देश में लागू करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके तहत रसोई गैस, मिट्टी का तेल, छात्रवृत्ति, मनरेगा की मजदूरी और कमजोर वर्ग की मदद संबंधी 29 योजनाएं शामिल हैं। अभी खाद्यान्न और उर्वरक सब्सिडी को इसके बाहर रखा गया है।
इस व्यवस्था को इलेक्ट्रॉनिक बेनिफिट ट्रांसफर (ईबीटी) नाम दिया गया है। वस्तुतः देश में कमजोर, जरूरतमंद वर्ग को सब्सिडी देना सरकार की सामाजिक जिम्मेदारी है। देश में प्रतिवर्ष करीब 10 करोड़ गरीब परिवारों को लगभग 3.20 लाख करोड़ रुपये से अधिक की सब्सिडी दी जाती है। कमजोर तबके के लोगों को सब्सिडी देना जरूरी है, लेकिन उसका भारी दुरुपयोग भी चिंतनीय है। इसका अधिकांश भाग भ्रष्ट लोगों की जेबों में चला जाता है।
विभिन्न आर्थिक-सामाजिक अध्ययनों में यह बात उभरकर सामने आ रही है कि 100 रुपये में से 15 से 20 रुपये ही जरूरतमंदों तक पहुंच पाते हैं। नवंबर, 2012 में राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान (एनआईपीएफपी) ने विश्लेषण किया कि नकद सब्सिडी योजना से सरकार को 52.85 फीसदी की दर से फायदा हो सकता है। राजकोषीय सुदृढ़ीकरण पर सितंबर, 2012 में प्रकाशित विजय केलकर समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि सब्सिडी और राजकोषीय घाटे में भारी कमी लाने के लिए सरकार को सब्सिडी का दुरुपयोग रोकना होगा।
सब्सिडी का दुरुपयोग रोकने के लिए नंदन नीलेकणि कमेटी का साफ कहना है कि जिन लोगों को सब्सिडी की जरूरत है, उन्हें इसे नकद सहायता (कैश ट्रांसफर) के रूप में ही दिया जाना चाहिए। हमारे देश के राजकोषीय घाटे एवं सब्सिडी की स्थिति दक्षिण यूरोपीय देशों की तरह चिंताजनक होने की डगर पर आगे बढ़ रही है। ऐसे में सरकार द्वारा नकद सब्सिडी दिए जाने से संबंधित नीति में जो तब्दीली की गई है, उसकी आवश्यकता लंबे समय से बनी हुई थी।
चालू वित्त वर्ष के बजट में रखी गई 6.5 फीसदी विकास दर की प्राप्ति जिन कारणों से मुश्किल बताई जा रही है, उनमें सब्सिडी भी एक बड़ी वजह है। स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स और मूडीज जैसी वैश्विक रेटिंग एजेंसियों ने भारत की विकास दर का अनुमान पांच से साढ़े पांच फीसदी तक सीमित कर दिया है। कहा जा रहा है कि यदि भारी-भरकम सब्सिडी और राजकोषीय घाटे जैसी आर्थिक बुराइयों को शीघ्र नियंत्रित नहीं किया गया, तो देश की आर्थिक स्थिति और बिगड़ सकती है और देश में कर्ज संकट पैदा हो सकता है।
नकद सब्सिडी योजना की एक महत्वपूर्ण बाधा यह है कि इस समय सरकार के पास ऐसा कोई मूलभूत पैमाना नहीं है, जिसके आधार पर वह विभिन्न योजनाओं पर बढ़ते हुए महंगाई स्तर को माप सके और सरकारी योजना की लाभ राशि में वृद्धि कर सके। मसलन, सरकार वर्तमान बाजार मूल्य के मुताबिक वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए लोगों को नकद सब्सिडी का हस्तांतरण शुरू कर सकती है, लेकिन कीमतों में होने वाले फेरबदल के अनुरूप सब्सिडी की धनराशि बढ़ाने या घटाने से संबंधित कोई मूल्यांकन प्रणाली नहीं है।
निस्संदेह नकद सब्सिडी की योजना लाभप्रद और महत्वाकांक्षी है, परंतु इसकी डगर में कई मुश्किलें हैं। वस्तुतः यह योजना प्रमुखतः तीन बातों पर केंद्रित है- एक लाभार्थी का आधार कार्ड, दो, लाभार्थी का बैंक खाता और तीन, मजबूत आईटी आधार। स्थिति यह है कि आधार कार्ड का परिदृश्य कमजोर है। देश के 121 करोड़ लोगों में से अब तक सिर्फ 21 करोड़ लोगों के आधार कार्ड बने हैं। इतना ही नहीं, फर्जी आधार कार्ड भी बने हैं।
हैदराबाद में 800 आधार कार्ड फर्जी मिले हैं। जिस आधार कार्ड को लेकर सरकार इतना बड़ा ताना-बाना बुन रही है, उसे अभी कानूनी जामा नहीं पहनाया गया है। आधार कार्ड के डाटा की सुरक्षा पर भी सवाल उठ रहे हैं। नकद सब्सिडी योजना के दूसरे महत्वपूर्ण आधार बैंक खातों की स्थिति भी अच्छी नहीं है। देश में इस समय करीब 40 फीसदी लोग ही बैंक खाता रखते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तो बैंक खाता रखने वाले लोगों की संख्या मात्र 18 फीसदी ही है।
इन सबके अलावा आशंका यह भी है कि सब्सिडी नकद रूप में प्राप्त करने के बाद यह जरूरी नहीं है कि उस पैसे का उपयोग उसी कार्य के लिए किया जाए, जिसके लिए अनुदान दिया गया है। परिवारों का मुखिया प्राप्त नकदी को जरूरी कामों के बजाय नशे, जुए तथा सामाजिक कुरीतियों जैसे कार्यों में खर्च कर सकता है। चूंकि अब भी बड़ी संख्या में ग्रामीण अशिक्षित हैं और वे सरकारी तंत्र से निपट पाने में सक्षम नहीं हैं।
ऐसे में बैंकों और अन्य वित्तीय कार्यों में मध्यस्थों की भूमिका बनी रहेगी। इससे गरीबों के नकदी से वंचित होने का खतरा बढ़ जाएगा। निश्चित रूप से नकद सब्सिडी योजना की डगर पर कई बाधाएं हैं। लेकिन इस योजना की उपयोगिताओं को देखते हुए इन बाधाओं को कारगर प्रयासों से दूर करना होगा।
देश के करोड़ों गरीब और जरूरतमंद लोग सामाजिक न्याय और सामाजिक सुरक्षा के लिए इस योजना से भारी उम्मीदें लगाए हुए हैं, तो दूसरी ओर अर्थव्यवस्था को जर्जर होने से बचाने, भ्रष्टाचार और महंगाई रोकने की इच्छा रखने वाले करोड़ों लोग इस योजना से भारी अपेक्षाएं रखते हैं। ऐसे में इतनी आशाओं और अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए सरकार की पुख्ता तैयारी, प्रशासनिक दक्षता तथा विश्वसनीयता के साथ त्वरित कदम और लाभार्थियों की जागरूकता जरूरी होगी।
इस व्यवस्था को इलेक्ट्रॉनिक बेनिफिट ट्रांसफर (ईबीटी) नाम दिया गया है। वस्तुतः देश में कमजोर, जरूरतमंद वर्ग को सब्सिडी देना सरकार की सामाजिक जिम्मेदारी है। देश में प्रतिवर्ष करीब 10 करोड़ गरीब परिवारों को लगभग 3.20 लाख करोड़ रुपये से अधिक की सब्सिडी दी जाती है। कमजोर तबके के लोगों को सब्सिडी देना जरूरी है, लेकिन उसका भारी दुरुपयोग भी चिंतनीय है। इसका अधिकांश भाग भ्रष्ट लोगों की जेबों में चला जाता है।
विभिन्न आर्थिक-सामाजिक अध्ययनों में यह बात उभरकर सामने आ रही है कि 100 रुपये में से 15 से 20 रुपये ही जरूरतमंदों तक पहुंच पाते हैं। नवंबर, 2012 में राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान (एनआईपीएफपी) ने विश्लेषण किया कि नकद सब्सिडी योजना से सरकार को 52.85 फीसदी की दर से फायदा हो सकता है। राजकोषीय सुदृढ़ीकरण पर सितंबर, 2012 में प्रकाशित विजय केलकर समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि सब्सिडी और राजकोषीय घाटे में भारी कमी लाने के लिए सरकार को सब्सिडी का दुरुपयोग रोकना होगा।
सब्सिडी का दुरुपयोग रोकने के लिए नंदन नीलेकणि कमेटी का साफ कहना है कि जिन लोगों को सब्सिडी की जरूरत है, उन्हें इसे नकद सहायता (कैश ट्रांसफर) के रूप में ही दिया जाना चाहिए। हमारे देश के राजकोषीय घाटे एवं सब्सिडी की स्थिति दक्षिण यूरोपीय देशों की तरह चिंताजनक होने की डगर पर आगे बढ़ रही है। ऐसे में सरकार द्वारा नकद सब्सिडी दिए जाने से संबंधित नीति में जो तब्दीली की गई है, उसकी आवश्यकता लंबे समय से बनी हुई थी।
चालू वित्त वर्ष के बजट में रखी गई 6.5 फीसदी विकास दर की प्राप्ति जिन कारणों से मुश्किल बताई जा रही है, उनमें सब्सिडी भी एक बड़ी वजह है। स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स और मूडीज जैसी वैश्विक रेटिंग एजेंसियों ने भारत की विकास दर का अनुमान पांच से साढ़े पांच फीसदी तक सीमित कर दिया है। कहा जा रहा है कि यदि भारी-भरकम सब्सिडी और राजकोषीय घाटे जैसी आर्थिक बुराइयों को शीघ्र नियंत्रित नहीं किया गया, तो देश की आर्थिक स्थिति और बिगड़ सकती है और देश में कर्ज संकट पैदा हो सकता है।
नकद सब्सिडी योजना की एक महत्वपूर्ण बाधा यह है कि इस समय सरकार के पास ऐसा कोई मूलभूत पैमाना नहीं है, जिसके आधार पर वह विभिन्न योजनाओं पर बढ़ते हुए महंगाई स्तर को माप सके और सरकारी योजना की लाभ राशि में वृद्धि कर सके। मसलन, सरकार वर्तमान बाजार मूल्य के मुताबिक वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए लोगों को नकद सब्सिडी का हस्तांतरण शुरू कर सकती है, लेकिन कीमतों में होने वाले फेरबदल के अनुरूप सब्सिडी की धनराशि बढ़ाने या घटाने से संबंधित कोई मूल्यांकन प्रणाली नहीं है।
निस्संदेह नकद सब्सिडी की योजना लाभप्रद और महत्वाकांक्षी है, परंतु इसकी डगर में कई मुश्किलें हैं। वस्तुतः यह योजना प्रमुखतः तीन बातों पर केंद्रित है- एक लाभार्थी का आधार कार्ड, दो, लाभार्थी का बैंक खाता और तीन, मजबूत आईटी आधार। स्थिति यह है कि आधार कार्ड का परिदृश्य कमजोर है। देश के 121 करोड़ लोगों में से अब तक सिर्फ 21 करोड़ लोगों के आधार कार्ड बने हैं। इतना ही नहीं, फर्जी आधार कार्ड भी बने हैं।
हैदराबाद में 800 आधार कार्ड फर्जी मिले हैं। जिस आधार कार्ड को लेकर सरकार इतना बड़ा ताना-बाना बुन रही है, उसे अभी कानूनी जामा नहीं पहनाया गया है। आधार कार्ड के डाटा की सुरक्षा पर भी सवाल उठ रहे हैं। नकद सब्सिडी योजना के दूसरे महत्वपूर्ण आधार बैंक खातों की स्थिति भी अच्छी नहीं है। देश में इस समय करीब 40 फीसदी लोग ही बैंक खाता रखते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तो बैंक खाता रखने वाले लोगों की संख्या मात्र 18 फीसदी ही है।
इन सबके अलावा आशंका यह भी है कि सब्सिडी नकद रूप में प्राप्त करने के बाद यह जरूरी नहीं है कि उस पैसे का उपयोग उसी कार्य के लिए किया जाए, जिसके लिए अनुदान दिया गया है। परिवारों का मुखिया प्राप्त नकदी को जरूरी कामों के बजाय नशे, जुए तथा सामाजिक कुरीतियों जैसे कार्यों में खर्च कर सकता है। चूंकि अब भी बड़ी संख्या में ग्रामीण अशिक्षित हैं और वे सरकारी तंत्र से निपट पाने में सक्षम नहीं हैं।
ऐसे में बैंकों और अन्य वित्तीय कार्यों में मध्यस्थों की भूमिका बनी रहेगी। इससे गरीबों के नकदी से वंचित होने का खतरा बढ़ जाएगा। निश्चित रूप से नकद सब्सिडी योजना की डगर पर कई बाधाएं हैं। लेकिन इस योजना की उपयोगिताओं को देखते हुए इन बाधाओं को कारगर प्रयासों से दूर करना होगा।
देश के करोड़ों गरीब और जरूरतमंद लोग सामाजिक न्याय और सामाजिक सुरक्षा के लिए इस योजना से भारी उम्मीदें लगाए हुए हैं, तो दूसरी ओर अर्थव्यवस्था को जर्जर होने से बचाने, भ्रष्टाचार और महंगाई रोकने की इच्छा रखने वाले करोड़ों लोग इस योजना से भारी अपेक्षाएं रखते हैं। ऐसे में इतनी आशाओं और अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए सरकार की पुख्ता तैयारी, प्रशासनिक दक्षता तथा विश्वसनीयता के साथ त्वरित कदम और लाभार्थियों की जागरूकता जरूरी होगी।
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