Monday, October 31, 2011

....इसलिए हम बने आपकी आवाज


 एक साल पूरा होने पर हम न तो ये दावा करते हैं कि स्टार समाचार ने पत्रकारिता के कोई नए प्रतिमान गढ़े हैं, या कोई सामाजिक क्रांति कर दी है। हां, सगर्व इतना जरूर कह सकते हैं कि साल भर के शिशु को जितना वात्सल्य मॉ से और स्नेह बड़े बुजुर्गों से प्राप्त होता है, ठीक वैसा ही वात्सल्य-स्नेह सम्माननीय पाठकों से मिला। 17 सितंबर 2010 को हमारी किलकारियां विन्ध्य की वदियों से गूंजीं,और एक साल के भीतर ही जनसंचार जगत की कारपोरेटी स्पर्धा के बीच स्टार समाचार की प्रभावी उपस्थिति दर्ज हो गई।
यह सब इसलिए संभव हो पाया क्योंकि हमने विन्ध्य की विशाल पाठक बिरादरी को अपना परिवार माना, औरों की तरह बाजार नहीं। हमारे विन्ध्य के साथ बिडंवना यही है कि जिसको जब भी मौका मिला इसके हितों के साथ खिलवाड़ किया। ताकतें चाहे सत्ता की हों या फिर बाजार की। कारपोरेट घरानों के बहुसंस्करणीय अखबारों के लिए रीवा और सतना रिटेल आउटलेट से ज्यादा कुछ भी नहीं। वे यहां औद्योगिक घरानों के अंधाधुंध पूंजीनिवेश और अकूत प्राकृतिक संसाधनों के बीच अपनी व्यापारिक संभावनाएं तलाशते हैं, वहीं हमें काश्त की जमीन से जबरिया बेदखल किए जा रहे किसानों के आंसू, धुआं-धूल फांककर बीमार होती नई पीढ़ी का भविष्य सामने दिखता है। हमें दुनिया के सबसे बड़े पॉवर हब बनने जा रहे सिंगरौली में नक्सली दस्तक के साथ ही औद्योगिक आतंकवाद के फैलते मकड़जाल की आहट भी महसूस होती है। यह तय है कि नए अर्थों में प्रेस मिशन नहीं रहा, बल्कि प्रोफेशन बन चुका है। आज अखबार का प्रकाशन सामाजिक नहीं बल्कि व्यावसायिक उपक्रम है। इस नाते खुले बाजार की स्पर्धा, उसके आचार-व्यवहार और नवाचार को हम स्वीकार करते हैं। लेकिन सामाजिक सरोकार अखबार की वृत्ति और प्रवृत्ति में स्वमेव शामिल है। पिछले एक साल से समाज की आकांक्षाओं को स्वर देने और धारदार बनाने के इस धर्म के सतत् निर्वहन के चलते ही आज हम आपके बीच एक सम्मानजनक मुकाम तक पहुंचे हैं।
...सनद रहे ताकि वक्त पर काम आवे, के एेलान के साथ हमने पहले अंक की शुरूआत की थी। हमारे सामने मुद्दे व लक्ष्य दोनों स्पष्ट थे। हमाने जहां प्रसार क्षेत्र के शहरों,कस्बों और गांवों की चिंताओं और विपदाओं को अपने मुद्दों में शामिल किया वहीं व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए विन्ध्य की उपेक्षा के सवाल को हर मौके पर संजीदगी से उठाया। हमने सरकार से पूछा कि क्या हमारे प्राकृतिक संसाधन दोहन और शोषण के लिए हैं? पूंजी निवेश हो, उद्योगपतिओं के घराने माल कमाएं और हम अपनी भूमि से बेदखल होकर धूल और धुआं फांकते हुए टुकुर-टुकुर औद्योगिकी करण का तमाशा देखते रहें। हमने आगे बढक़र हस्तक्षेप किया, मौका चाहे खजुराहो इनवेस्टर सम्मिट का रहा हो या मुख्यमंत्री जी से सीधी बात का । हमारे शहरों की अधोसंरचना का विकास हो, हर घर तक बुनियादी सुविधाएं पहुंचे, जन-गण-मन के स्वर को हम लगातार धारदार बनाते रहे। इसी का प्रतिफल है कि सरकार को विन्ध्य की चिंता शिद्दत से करनी पड़ी। आज फोरलेन सडक़ों, सतना में बायपास, रीवा में फ्लाइओवर के साथ महानगरीय अधोसंरचना का विकास के लिए सरकार की पहल, सिंगरौली में नेशनल इंस्टीट्यूट आफ माइन्स के लिए वचनबद्धता, रीवा में कन्ज्यूमर फोरम व रेवन्यू बोर्ड की ब्रांच,सबसे महत्वपूर्ण विन्ध्य विकास प्राधिकरण फलीभूत होने की स्थिति में हैं। बुन्देलखंड में यूनीवर्सिटी और ललितपुर-सिंगरौली रेल लाइन को लेकर खड़े हुए हर आंदोलन के स्वरों को स्टार समाचार ने धारदार बनाया व मुकाम तक पहुंचाने की कोशिश जारी रखी।  यकीन मानिए हम हर उस जगह आपके साथ खड़े मिलेंगे जहां आपके आपके हक और हकूूक पर कोई सरकारी या बाजारी ताकत डाका डालने की कोशिश करती दिखेगी।
स्टार समाचार के विचार में कभी भी प्रसार संख्या का बाजारू अंकगणित नहीं रहा। हमारी गति और नियति दोनों ही पूर्व से निर्धारित रही है। इसके बावजूद सुधी और स्नेही पाठकों ने हमें बहुसंस्करणीय कारपोरेटी अखबारों के मुकाबले खड़ा कर दिया। चुनौती स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प था ही नहीं। अखबारों की आधुनिक कार्यप्रणाली के मद्देनजर हमने अपने स्तर पर सुपरसेंट्रल डेस्क, मैग्जीन डेस्क, सिटी और अपकन्ट्री डेस्क जैसे नवाचार को अपनाना पड़ा। सौ फीसदी स्थानीय व निहायत युवा प्रतिभाओं को टीम में शामिल करके उनके समक्ष अखबार की समकालीन चुनौतियों पर लगातार विमर्श किया। प्रबंधन ने हर मौके पर हौसला आफजाई की। आईईएमएस(ऑन लाइन इन्ट्रीगेटेड एडिटोरियल मैनेजमेंट सिस्टम) जैसे अत्याधुनिक तकनीकों के साथ जोड़ा। टीम के सदस्यों के जोश,जज्बे,जुनून और कुछ कर दिखाने की ललक ने पाठकों के सामने वह सब प्रस्तुत करने की कोशिश की जिसे कारपोरेटी अखबार भोपाल, दिल्ली, जयपुर,कानपुर से असेंबल करके यहां अपने प्रकाशनों के आउटलेट्स में भेजते हैं। पाठकों ने इस प्रयास को सराहा। स्थानीय व क्षेत्रीय रिपोर्टिंग्स में तो हम प्राय: आगे रहे ही,हर प्रमुख अवसरों में हमारी सेंट्रल डेस्क ने फ्रंटपेज, स्पोर्टस,व्यापार,ग्लैमर और स्पेशल पेजेज के बेहतरीन पैकेज तैयार किए जिसे पाठकों ने खुले दिल से सराहा। हमने स्थानीय किन्तु राष्ट्रीय स्तर रखने वाले कई लेखकों को अपने साथ जोड़ा, नवलेखकों को प्रोत्साहित करते हुए स्पेश दिए। विन्ध्य की कला,संस्कृति और लोकपरंपराओं की विरासत हमारी चिंताओं की प्राथमिकता में शामिल है। कारपोरेटी अखबारों के सेलीब्रटी लेखकों के मुकाबले हम चाहते हैं कि स्थानीय रचनाकार खड़े हों, उनके लिए अखबार का मंच सदैव उपलब्ध रहेगा।
वक्त अंगड़ाई ले रहा है। व्यवस्था में बदलाव की बयार बहने को है। देश की तरुणाई जबड़े भींचे और मु_ी ताने भ्रष्टतंत्र से दो-दो हाथ करने करने को आतुर है। सामने चुनाव के तिकड़म हैं। जानवरों की सुरक्षा के नाम पर पीढिय़ों से जंगलों में गुजर-बसर कर रहे गरीब लोगों को सरकारी हांका लगाकर भगाया जा रहा है। गांवों की जमीनों पर सीमेंट और बिजली बनाने वाले पूंजीपतियों की नजरें लगी हैं। सरकारी तंत्र कारिंदों की तरह उनकी हिफाजत में लगा है। घोषणाएं हो रही हैं कि लाखों करोड़ रुपयों का पूंजीनिवेश हमारी तगदीर बदल देगा। एक खतरनाक तरीके का भ्रमजाल फैलाने की कोशिश हो रही है। आने वाले समय में विन्ध्यक्षेत्र में कुछ एेसे ही मुद्दों से वास्ता पडऩे वाला है। जाहिर है समाज से सरोकार रखने वाली पत्रकारिता के समक्ष ये चुनौतियां होंगी। हम शोषण और दोहन के बीच का फर्क साफ करने की कोशिश करते रहेंगे। हम जनजीवन की सुरक्षा के साथ संतुलित विकास के पक्षधर हैं। अखबार के एक साल पूरा होने के मौके पर आपसे हम यही गुजारिश करते हैं कि वही वात्सल्य और स्नेह बना रहे। पाठक और प्रकाशक के बीच रिश्ते की गर्मजोशी और प्रगाढ़ होती रहे। जहां हम विचलित हों वहां आप हमें साधिकार टोंके,सुझाव और मार्गदर्शन दें। आखिर आप ही तो हमारे वास्तविक जनलोकपाल हैं।
(17 सितंबर 2011 को सतना से प्रकाशित दैनिक स्टार समाचार के एक साल पूरा होने पर )

     

“दर्द होता रहा छटपटाते रहे,


दर्द होता रहा छटपटाते रहे, आईने॒ से सदा चोट खाते रहे, वो वतन बेचकर मुस्कुराते रहे, हम वतन के लिए॒ सिर कटाते रहे
280 लाख करोड़ का सवाल है ...
भारतीय गरीब है लेकिन भारत देश कभी गरीब नहीं रहा"* ये कहना है स्विस बैंक के
डाइरेक्टर का. स्विस बैंक के डाइरेक्टर ने यह 
भी कहा है कि भारत का लगभग 280
लाख करोड़ 
रुपये उनके स्विस 
बैंक में जमा है. ये रकम
इतनी है कि भारत का आने वाले 30सालों का बजट 
बिना टैक्स के 
बनाया जा सकता 
है.
या यूँ कहें कि 60 करोड़ 
रोजगार के अवसर 
दिए जा सकते है. या यूँ भी कह सकते है
कि भारत के किसी भी गाँव से दिल्ली तक 4 
लेन रोड बनाया 
जा सकता है. ऐसा भी कह
सकते है कि 500 से ज्यादा सामाजिक प्रोजेक्ट पूर्ण किये जा सकते है. ये 
रकम
इतनी ज्यादा है कि अगर हर भारतीय को 2000 रुपये हर महीने भी दिए जाये तो 60
साल तक ख़त्म ना हो. यानी भारत को किसी वर्ल्ड बैंक से लोन लेने कि कोई जरुरत
नहीं है. जरा सोचिये ... हमारे भ्रष्ट राजनेताओं 
और नोकरशाहों ने 
कैसे देश को

लूटा है और ये लूट का सिलसिला अभी तक 2011 तक जारी है. 
इस सिलसिले को 
अब रोकना

बहुत ज्यादा जरूरी हो गया है. अंग्रेजो ने हमारे भारत पर करीब 200 सालो तक राज
करके करीब 1 लाख
करोड़ रुपये लूटा. मगर आजादी के केवल 64 सालों में हमारे भ्रस्टाचार ने280
लाख करोड़ लूटा है. एक तरफ 200 साल में 1 लाख करोड़ है और दूसरी तरफ केवल 64
सालों में 280 लाख करोड़ है. यानि हर साल लगभग 4.37 लाख करोड़, या हर महीने
करीब 36 हजार करोड़ भारतीय मुद्रा स्विस बैंक में इन भ्रष्ट 
लोगों द्वारा जमा
करवाई गई है. भारत को किसी वर्ल्ड बैंक के लोन की कोई दरकार नहीं है.सोचो की
कितना पैसा हमारे भ्रष्ट राजनेताओं और उच्च अधिकारीयों ने ब्लाक करके 
रखा हुआ
है. हमे भ्रस्ट राजनेताओं और भ्रष्ट अधिकारीयों के खिलाफ जाने का पूर्ण अधिकार
है.हाल ही में हुवे घोटालों का 
आप सभी को पता ही है - CWGघोटाला, २ जी
स्पेक्ट्रुम घोटाला , आदर्श होउसिंग घोटाला ... और ना जाने कौन कौन 
से घोटाले
अभी उजागर होने वाले है ........आप लोग जोक्स फॉरवर्ड करते ही हो. इसे भी इतना
फॉरवर्ड करो की पूरा भारत 
इसे पढ़े ... और एक आन्दोलन बन जाये