Saturday, September 27, 2014

'अखंड भारत' ही कश्मीर की समस्या का समाधान

नवभारतटाइम्स.कॉम| Sep 27, 2014, 10.01AM IST .. संयुक्त राष्ट्र की महासभा में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के कश्मीर मुद्दे को उठाने के बाद प्रेस काउंसिल के चेयरमैन जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने एकीकृत भारत का सुझाव दिया है। उन्होंने कहा है कि मैं सबको और खासकर कश्मीरियों को यह सचाई बताना चाहता हूं कि कश्मीर की समस्या का एक ही समाधान है और वह है एक मजबूत, सेक्युलर और आधुनिक सोच वाली सरकार के नेतृत्व में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश का एकीकरण। उन्होंने कहा, 'यह ऐसी सरकार के नेतृत्व में हो सकता है, जो किसी भी तरह के धार्मिक अतिवाद को मजबूती से कुचलने का माद्दा रखती हो। इसके अलावा और कोई हल नहीं है।'


उन्होंने अपने ब्लॉग में लिखा है, 'हकीकत में पाकिस्तान कोई देश ही नहीं है। यह एक फर्जी देश है, जिसे अंग्रेजों ने हिन्दू और मुसलमानों को एक-दूसरे से लड़ते रहने के लिए गढ़ा था ताकि भारत (जिसका पाकिस्तान और बांग्लादेश हिस्सा है) एक आधुनिक और चीन की तरह शक्तिशाली औद्योगिक देश के रूप में विकसित न हो पाए।'

अलग पाकिस्तान बनाने के औचित्य पर सवाल उठाते हुए जस्टिस काटजू लिखते हैं, 'पाकिस्तान है क्या? यह पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और उत्तर-पश्चिमी सीमांत राज्यों से मिलकर बना है। ये सभी अशोक, अकबर और ब्रिटिश के शासनकाल में भी भारत का हिस्सा थे। अंग्रेजों ने 1857 के विद्रोह के बाद अपने एजेंटों के जरिए हिन्दू और मुसलमानों के बीच नफरत की नींव रखी और उसे बढ़ावा दिया। बांटो और राज करो की नीति 1857 के बाद शुरू हुई। (पढ़े बीएन पांडेय की 'हिस्ट्री इन द सर्विस ऑफ इम्पीरियलिज्म') 1857 की लड़ाई में हिन्दू और मुस्लिम साथ मिलकर लड़े थे। गदर को कुचलने के बाद अंग्रेजों ने फैसला किया कि भारत में शासन चलाने के लिए 'बांटो और राज करो' का ही रास्ता है।'

काटजू अपनी बातों के पक्ष में तर्क देते हुए लिखते हैं, 'सारे दंगे उसके (1857 के) बाद ही शुरू हुए। ब्रिटिश कलेक्टर गुपचुप तरीके से पंडितों को बुलाते थे और उन्हें पैसे देकर मुस्लिमों के खिलाफ बोलने के लिए उकसाते थे। यही काम वे मौलाना को बुलाकर भी करते थे। इन सब चीजों को उकसाने वाले एजेंट गाय की लाश मंदिरों में फेंक देते और नमाज के वक्त मस्जिदों के सामने तेज आवाज में संगीत बजाने लगते। 1909 में मिंटो मॉर्ले सुधार के तहत हिन्दू और मुसलमानों के लिए अलग-अलग निर्वाचक मंडल की शुरुआत हुई। इन सब कदमों का नतीजा यह हुआ कि 1947 में फर्जी दो राष्ट्र के सिद्धांत पर भारत का बंटवारा हो गया।'

वह लिखते हैं, 'जब मैं पाकिस्तानियों से मिलता हूं तो कुछ भी अलग नहीं लगता। हम एक जैसे दिखते हैं, एक भाषा (हिन्दुस्तानी) में बात करते हैं। एक ही तरह का खाना खाते हैं और हमारी संस्कृति भी समान ही है। विदेश में जब भारतीय और पाकिस्तानी एक-दूसरे से मिलते हैं तो उन्हें अपनापन महसूस होता है। हमें अंग्रेजों ने मूर्ख बनाया, लेकिन और कितने समय तक हम मूर्ख ही बने रहेंगे। और कितने समय तक आपस में लड़ते रहेंगे।'

काटजू ने लिखा है, 'कुछ लोग कह सकते हैं कि बंटवारा काफी पहले 1947 में ही हो गया था और 67 सालों के बाद घड़ी की सुई को पीछे नहीं किया जा सकता है। मेरा कहना है कि चीन ने अभी तक ताइवान को एक अलग देश के रूप में मान्यता नहीं दी है, जबकि दोनों देशों का बंटवारा 1945 में ही हो गया था। पाकिस्तान का तो निर्माण ही इस उद्देश्य से किया गया था कि भारतीय उपमहाद्वीप में शांति न रहे। तो क्या हम इसी तरह मूर्ख बनते रहेंगे और अनंतकाल तक लड़ते रहेंगे।'

कश्मीरी लोगों से मुखातिब होकर वह लिखते हैं, 'मैं कश्मीरियों से अपील करता हूं कि अलगवावादी नेताओं द्वारा मूर्ख बनना बंद करे। इन नेताओं का अपना अजेंडा और स्वार्थ है। सभी कश्मीरियों को एक मजबूत, सेक्युलर और आधुनिक सोच वाली सरकार के नेतृत्व में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के एकीकरण की मांग करनी चाहिए। बहुत सारी समस्याओं के साथ कश्मीर की समस्या का भी यही एक समाधान है।'