Monday, March 11, 2013

बम शंकर बोलो हरी हरी...

ले सब्रो कानाअत साथ मियां, सब छोड़ यह बातें लोभ भरी.
जो लोभ करे उस लोभी की, नहीं खेती होती जान हरी.
संतोख तवक्कुल हिरनों ने, जब हिर्स की खेती आन चारी.
फिर देख तमाशे कुदरत के, और लूट बहारें हरी भरी.
जब आशा तिश्ना दूर हुई, और आई गत संतोख भरी.
सब चैन हुए आनंद हुए, बम शंकर बोलो हरी हरी.
टुक अपनी किस्मत देख मियां, तू आप बड़ा दातारी है.
पर हिर्सो तमाअ के करने से, अब तेरा नाम भिखारी है.
हर आन मरे है लालच पर हर साअत लोभ अधारी है.
ऐ लालच मारे, लोभ भरे, सब हिर्सो हवा की ख्वारी है.
जब आशा तिश्ना दूर हुई, और आई गत संतोख भरी.
सब चैन हुए आनंद हुए, बम शंकर बोलो हरी हरी.
गर हिर्सो हवा और लालच की, है दौलत तेरे पास धरी.
तू ख़ाक समझ इस दौलत को, क्या सोना रूपा लाल ज़री.
हाथ आया जब संतोख दरब, तब सब दौलत पर धुल पड़ी.
कर ऐश मज़े संतोखी बन, जय बोल मुरलिया वाले की.

जब आशा तिश्ना दूर हुई, और आई गत संतोख भरी.
सब चैन हुए आनंद हुए, बम शंकर बोलो हरी हरी.

अब इस दुनिया में कुछ चीज़ नहीं, इस लोभी के निस्तारे की.
है कीचड़  उस पर लिपट रही, सब हिर्सो हवा के गारे की.
क्या कहिये व की बात "नजीर", उस लूभी लोभ सवांरे की.
सब यारों मिल कर जय बोलो,  इस बात पे नंद  दुलारे की .

जब आशा तिश्ना दूर हुई, और आई गत संतोख भरी.
सब चैन हुए आनंद हुए, बम शंकर बोलो हरी हरी.
-नज़ीर अकबराबादी

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