Thursday, August 14, 2014

मध्यप्रदेश में वन्यप्राणी प्रबंधन

भारत के केन्द्र में स्थित मध्यप्रदेश देश का ह्रदय स्थल है। मध्यप्रदेश का कुल वन क्षेत्रफल 94689 वर्ग कि.मी. है जो देश के कुल वनक्षेत्र का लगभग 12 प्रतिशत है। एवं मध्यप्रदेश के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 31 प्रतिशत है। प्रचुर वन संपदा से आच्छादित मध्यप्रदेश का भारत में वन्यप्राणी संरक्षण एवं प्रबंधन की दृष्टि से विशेष स्थान है एवं वन्यप्राणी प्रबंधन के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी विख्यात है। प्रदेश के वन्यप्राणी संरक्षित क्षेत्रों के अंतर्गत 10895 वर्ग कि.मी. वनक्षेत्र आता है जो प्रदेश के कुल वनक्षेत्र का 11.5 प्रतिशत है।
वन्यप्राणी संरक्षण एवं प्रबंधन के उद्देश्य से प्रदेश में 9 राष्ट्रीय उद्यान एवं 25 अभ्यारण्य गठित किए गए हैं। 9 राष्ट्रीय उद्यानों में से 6 राष्ट्रीय उद्यानों (कान्हा, बांधवगढ़, पन्ना, पेंच, सतपुड़ा, संजय) को टाइगर रिजर्व का दर्जा दिया गया है। करेरा एवं घाटीगाँव अभ्यारण्य विलुप्तप्राय: दुर्लभ पक्षी सोनचिड़िया के संरक्षण के लिए तथा सैलाना एवं सरदारपुर एक अन्य विलुप्तप्राय: दर्लभ पक्षी खरमोर के संरक्षण के लिए तथा तीन अभ्यारण्य चंबल, केन एवं सोन घड़ियाल जलीय वन्यप्राणियों के संरक्षण के लिए गठित किए गए हैं।
भोपाल का वनविहार राष्ट्रीय उद्यान एक अनोखा राष्ट्रीय उद्यान है, जो एक आधुनिक चिड़ियाघर के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। यह राष्ट्रीय उद्यान शहर के अंदर स्थित होकर वन्यप्राणी संरक्षण के लिए जागरूकता लाने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। डिन्डौरी जिले में घुघुवा में एक फॉसिल राष्ट्रीय उद्यान भी है, जहां 6 करोड़ वर्ष पुराने वृक्षों के फॉसिल संरक्षित किये गये हैं।
अंतर्राष्ट्रीय तौर पर दुर्लभ एवं लुप्तप्राय: प्रजातियों में से एक प्रजाति बाघ मध्यप्रदेश में सबसे अधिक पाई जाती है। इसके अलावा नदी डाल्फिन, घड़ियाल, तेंदुआ, गौर, बारासिंघा, कालाहिरण, खरमौर एवं सोनचिड़िया प्रजातियां प्रदेश की महत्वपूर्ण तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर की दुर्लभ एवं विलुप्तप्राय धरोहर में शामिल हैं।
इस सम्पन्न प्राकृतिक विरासत का वर्तमान पीढ़ियों के लिए लाभ सुनिश्चित करने के साथ-साथ आने वाली पीढ़ियों के लिए इसे बचाए रखना भी प्रदेश के वन्यप्राणी प्रबंधन की बड़ी चुनौती है। तेजी से बढ़ती हुई मानव आबादी और वन्यप्राणियों से प्राप्त होने वाले विविध उत्पादों की बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय तस्करी के कारण वन्यप्राणियों का संरक्षण दिनोंदिन कठिन और अधिक चुनौतिपूर्ण होता जा रहा है। इसके फलस्वरूप प्रदेश के सभी वन्यप्राणी क्षेत्रों में प्रबंधन और संरक्षण की चुनौतियों में बढ़ोत्तरी हुई है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए मध्यप्रदेश शासन वन विभाग द्वारा कई कदम उठाए गए हैं।
पर्यावरण संरक्षण की गहराती चुनौतियों के बीच विगत कुछ वर्षों में वन्यजीवों के संरक्षण का मुद्दा भी समाज की प्राथमिकता सूची में ऊपर आया है और बढ़ते जैविक दबाव के कारण वनों की स्थिति निरंतर बिगड़ते जाने के कारण प्रदेश में वन्यप्राणियों का प्रबंधन अधिक चुनौतिपूर्ण होता गया है। वन्यप्राणियों की खाल व शरीर के अन्य अवयवों की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में माँग बढ़ने के कारण अनेक वन्यप्राणियों का शिकार व तस्करी जैसी समस्याएं विगत दो-एक दशक में काफी तेजी से बढ़ रही हैं। इसी प्रकार नीलगाय, जंगल सुअर, चीतल और काला हिरण जैसे शाकाहारी वन्यप्राणियों की संख्या बढ़ने के कारण प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में वन्यजीवों के कारण खेतों में फसलों को होने वाला नुकसान किसानों के लिए पहले से अधिक समस्या उत्पन्न करने लगा है वन क्षेत्रों में जैविक दबाव बढ़ने से माँसाहारी हिंसक वन्य प्राणियों का आबादी क्षेत्र में आने और मवेशियों का शिकार कर लेने अथवा जन हानि करने की घटनाओं में भी बढ़ोत्तरी हुई है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नैतिकता के अतिरिक्त वैज्ञानिक तथ्यों की दृष्टि से भी वन्य जीवों के संरक्षण की जरूरतों को पूरा करना आवश्यक होता जा रहा है।
हमारे प्रदेश में वन्यप्राणी प्रबंधन की व्यवस्था को मोटे तौर पर तीन भागों में समझा जा सकता है। ये पहलू हैं - प्रशासनिक, तकनीकी एवं मानवीय। प्रशासनिक पहलुओं के अंतर्गत अभ्यारण्य और राष्ट्रीय उद्यानों की स्थापना तथा कानूनी संरक्षण आता है। इसके अंतर्गत राष्ट्रीय उद्यानों व अभ्यारण्यों में कर्मचारियों की पदस्थिति, दूरस्थ अंचलों में काम करने के लिए आवश्यक संसाधन एवं अधोसंरचना तथा आधुनिक तकनीक मुहैया कराये जाने के साथ-साथ दक्षता बढ़ाने के लिए आधुनिकतम प्रशिक्षण जरूरी है। प्रबंधन के तकनीकी पक्ष में वन्यप्राणियों के रहवास क्षेत्र का उचित प्रबंधन सम्मिलित है। इसके बिना वन्य जीव चैन से नहीं रह सकते। इसी के साथ वन्य जीवों के स्वभाव, खान-पान, प्रजनन जैसी जैविक गतिविधियों पर वैज्ञानिक शोध से प्राप्त जानकारी के आधार पर प्रबंधकीय निर्णय लिये जाते हैं। वन्यजीव प्रबंधन की तकनीकी पहुलओं में वैज्ञानिक शोध तथा दस्तावेजीकरण, जरूरत के अनुसार वन्यप्राणियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानांतरित करने, प्रजनन (ब्रीडिंग) जैसे जटिल और श्रमसाध्य कार्य किए जाते हैं। वन्यप्राणी प्रबंधन का मानवीय#पहलू वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रशासकीय और तकनीकी पहलुओं से भी अधिक महत्वपूर्ण हो चला है। वन्यप्राणी क्षेत्रों की स्थापना के फलस्वरूप प्रभावित गाँवों का स्वैच्छिक विस्थापन तथा पुनर्बसाहट वन्य प्राणियों की सुरक्षा के साथ-साथ ग्रामीणों के हित में है। इसके लिए भारत सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई आकर्षक मुआवजा राशि विस्थापित परिवारों को समुचित रूप से पुनर्बसाहट के लिए दी जाती है।
प्रदेश हित में वन्यजीवों के संरक्षण की जरूरतों को देखते हुए राज्य की वन नीति 2005 में वन्यप्राणी संरक्षण के महत्वपूर्ण तत्व सम्मिलित किए गए हैं। इसके अंतर्गत प्रदेश में वन्यप्राणी संरक्षण के लिए संरक्षित क्षेत्रों के प्रबंधन हेतु वन अधिकारियों और कर्मचारियों के प्रशिक्षण, वन्यप्राणी संरक्षण क्षेत्रों की प्रबंधन योजनाएं तैयार करने, स्थानीय समुदाय की वनाधारित जरूरतों को पूरा करने, संरक्षित क्षेत्रों में सूख चुके प्राकृतिक जल स्त्रोतों को पुनर्जीवित करने, वन्यप्राणी स्वास्थ्य की सुरक्षा एवं उनमें संक्रामक रोगों को रोकथाम की व्यवस्था करने, जैसे महत्वपूर्ण कार्यों को सम्मिलित किया गया है। वन क्षेत्रों से भटककर आबादी वाले क्षेत्रों में आ जाने वाले वन्य जीवों को पकड़कर वापस वन क्षेत्रों में छोड़ने के लिए उपयुक्त स्थानों पर आधुनिक उपकरणों एवं प्रशिक्षित अमले से सुसज्जित वाईल्ड एनिमल रेस्क्यू मोबाईल स्क्वाड्स का गठन, वन्य प्राणियों के अवैध शिकार एवं तस्करी पर प्रभावी अंकुश लगाना, वन्यप्राणी फॉरेन्सिक प्रयोगशालायें स्थापित करना, वन्यप्राणी के अवैध शिकार एवं उनके अवयवों की तस्करी रोकने के लिए सीमावर्ती राज्यों के साथ प्रभावी समन्वय बनाना और कारगर मुखबिर तंत्र तैयार करना राज्य की वन नीति के महत्वपूर्ण तत्व हैं। आधुनिक दृष्टिकोण पर आधारित मध्यप्रदेश राज्य की वन नीति 2005 वन्यप्राणी प्रबंधन को मजबूती देते हुए प्रदेश के विकास को टिकाऊ आधार प्रदान करने की क्षमता रखती है। राज्य सरकार इन पर कार्यवाही के लिए कटिबध्द और प्रयासरत है।
प्रदेश में वन्यप्राणी प्रबंधन के कई पहलुओं पर विगत कुछ वर्षों में काम में तेजी लाने का प्रयास किया जा रहा है। इसके अन्तर्गत घायल वन्यप्राणियों की प्राण रक्षा, चिकित्सा व रखरखाव के लिए कान्हा टाइगर रिजर्व मण्डला, पन्ना टाइगर रिजर्व पन्ना, पेंच टाइगर रिजर्व सिवनी, बाँधवगढ़ टाइगर रिजर्व उमरिया, सतपुड़ा टाइगर रिजर्व पचमढ़ी, माधव राष्ट्रीय उद्यान शिवपुरी, वन विहार राष्ट्रीय उद्यान भोपाल, वन वृत्त जबलपुर तथा वन वृत्त इंदौर में 9 वन्यजीव रेस्क्यू स्क्वाड्स का गठन किया गया है। इसी प्रकार वन्यप्राणी अपराधों पर नियंत्रण में कसावट लाने के लिए भोपाल में राज्य स्तरीय तथा सतना, सागर, इटारसी, जबलपुर तथा इंदौर में क्षेत्रीय टाइगर स्ट्राईक फोर्स की स्थापना की गई है। टाइगर स्ट्राईक फोर्स की इन इकाईयों के माध्यम से वन्यप्राणी अपराधों पर नियंत्रण के लिए वांछित स्वतंत्र और निष्पक्ष विजिलेंस व्यवस्था बनाने के प्रयास भी किए जा रहे हैं। इसी प्रकार मध्यप्रदेश में पहली बार दो प्रशिक्षित डाग स्कवाड तैयार किए गए हैं जो वन अपराधों के अन्वेषण में बहुत उपयोगी होंगे। वन्यप्राणी अपराध के संबंध में जन साधारण को शिकायत दर्ज कराने के लिए नि:शुल्क टेलीफोन की सुविधा (फोन नबर 155312) भी उपलब्ध कराई गई है जिसका लाभ लेते हुए कोई भी वन अथवा वन्यप्राणी अपराध की सूचना वन विभाग को दे सकता है। वन्यप्राणी प्रबंधन में आधुनिकतम सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग विभाग द्वारा पहले ही किया जा रहा है जिसे और व्यापक पैमाने पर अपनाने और व्यवस्थाओं को पारदर्शी बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
इसके अतिरिक्त अवैध शिकार की रोकथाम हेतु पुलिस एवं वन विभाग के संयुक्त तत्वावधान में वर्ष 1995 में टाइगर सैल का गठन किया गया है। इसी प्रकार जिला स्तर पर भी टाइगर सैल का गठन किया गया है। जिसका प्रमुख उद्देश्य अवैध शिकार एवं व्यापार की रोकथाम तथा सीमावर्ती प्रान्तों से समुचित समन्वय स्थापित करना है।
वन्यप्राणी संरक्षण हेतु राष्ट्रीय उद्यान एवं अभ्यारण्यों में 361 पेट्रोलिंग कैम्प, 86 निगरानी चौकियां, 136 चैकपोस्ट, 202 वायरलैस स्टेशन स्थापित किए गए हैं। पेट्रोलिंग हेतु वाहन प्रदाय किए गए हैं। साथ ही कर्मचारियों को 1571 वायरलैस हैण्डसेट्स भी उपलब्ध कराए गए हैं।
संरक्षित क्षेत्रों (राष्ट्रीय उद्यान एवं अभ्यारण्यों) से लगे हुए वन क्षेत्रों में भी वन्यप्राणी संरक्षण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता महसूस की गई है। इस परिप्रेक्ष्य में वन्यप्राणियों की सुरक्षा हेतु मध्यप्रदेश में टाईगर स्ट्राइक फोर्स के अंतर्गत संरक्षित क्षेत्रों की सीमा से लगे हुए क्षेत्रीय वनमण्डल के वनक्षेत्रों में संवेदनशील 56 परिक्षेत्रों का चयन किया गया है। इन परिक्षेत्रों में वन चौकियों का निर्माण किया जाकर चौकियों को गाड़ियों, बंदूकों, वायरलैस सेट्स आदि आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित करने की कार्यवाही प्रगति पर है। गाड़ियों का क्रय किया जा चुका है। जिससे प्रभावी रूप से वन्यप्राणी अपराधों में अंकुश लगाया जा सकेगा।
इसी प्रकार पारंपरिक रूप से शिकार करने वाली जातियां जैसे बहेलिया, पारधी, मूँगिया इत्यादि जातियों पर विशेष निगरानी रखी जाती है तथा इन जातियों के बच्चों की शिक्षा के लिए पन्ना एवं शिवपुरी में स्कूल संचालित किए जा रहे हैं तथा वैकल्पिक रोजगार हेतु भी कुछ जगह व्यवस्था की पहल की गई है।
प्रदेश में कान्हा, बांधवगढ़ एवं पेंच टाइगर रिजर्वों के लिए केन्द्र शासन द्वारा स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स के गठन की स्वीकृति दी गई है, जिसके संबंध में कार्यवाही की जा रही है। इसी प्रकार मानव एवं वन्यप्राणियों के बीच का द्वंद कम करने के प्रयास भी किए जा रहे हैं। जिसके तहत वन्यप्राणियों द्वारा जनहानि, जनघायल एवं पशुहानि किए जाने पर मुआवज का प्रावधान किया गया है। जनहानि के प्रकरणों में एक लाख रूपए तथा इलाज पर हुआ व्यय, जनघायल के प्रकरण में इलाज हेतु अधिकतम बीस हजार रूपये तथा स्थायी अपंगता होने पर 75 हजार रूपए तथा इलाज पर किया गया व्यय क्षतिपूर्ति के रूप में दिया जाता है।
वन सीमा से 5 कि.मी. की परिधि में स्थित ग्रामों में वन्यप्राणियों द्वारा फसल हानि किए जाने पर मुआवजा दिए जाने का भी प्रावधान किया गया है।
पन्ना टाइगर रिजर्व में गत वर्षों में बाघों के विलुप्त होने के कारण वर्ष 2009 में 2 बाघिनें एवं 1 बाघ लाकर पन्ना में पुर्नस्थापित किया गया था। मई, 2010 में पन्ना टाइगर रिजर्व में स्थानांतरित एक बाघिन द्वारा 4 बच्चों को जन्म देने के साथ ही पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों की सफलपूर्वक पुर्नस्थापना की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है। यह अपने आप में वन्यप्राणी प्रबंधन का एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
इसी तरह बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में गौर की पुर्नस्थापना हेतु शीघ्र ही कान्हा से 15-20 गौरों का लाकर पुर्नस्थापित करने की कार्यवाही प्रगति पर है।
वन्यप्राणियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए वन विभाग द्वारा कुछ अभिनव प्रयास भी किए जा रहे हैं। जैसे- वन विहार राष्ट्रीय उद्यान में व्यक्तियों एवं संस्थाओं में वन्यप्राणी संरक्षण के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने के लिए वन्यप्राणियों को निश्चित अवधि के लिए गोद लेने की अभिनव योजना प्रारंभ की गई है। जिसके अच्छे परिणाम आए हैं।
प्रदेश के वन्यप्राणी संरक्षण क्षेत्रों में विगत कुछ वर्षों में पर्यटन का विस्तार काफी तेजी से हुआ है। अत्यधिक पर्यटन के कारण वन्यप्राणियों की सुरक्षा को कोई क्षति न होने पाए यह सुनिश्चित करते हुए प्रदेश के वन्यप्राणी क्षेत्रों में आने वाले पर्यटकों के नियमन के साथ-साथ पर्यटन सुविधाओं का विस्तार भी वन्यप्राणी प्रबंधन की प्राथमिकताओं से अभिन्न रूप से जुड़ा है। इसके अन्तर्गत ईको पर्यटन विकास के माध्यम से गैर परम्परागत क्षेत्रों में भी पर्यटन सुविधाओं का विकास करते हुए नए-नए क्षेत्रों को पर्यटकों में लोकप्रिय बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
पर्यटकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए मध्यप्रदेश में चार टाइगर रिजर्वों (कान्हा, बांधवगढ़, पेंच एवं पन्ना) में भ्रमण हेतु ऑनलाईन बुकिंग की सुविधा वर्ष 2008 से प्रारंभ की गई है, जिसका पर्यटकों को व्यापक लाभ मिल रहा है। इसी प्रकार वन्यप्राणी संरक्षण में व्यक्तियों एवं अशासकीय संस्थाओं से सहयोग प्राप्त करने के लिए मध्यप्रदेश टाइगर फाउंडेशन सोसायटी का गठन किया गया है एवं इच्छुक व्यक्तियों एवं संस्थाओं द्वारा वन्यप्राणी संरक्षण हेतु इस सोसायटी में काफी योगदान दिया जा रहा है।
कुल मिलाकर मध्यप्रदेश शासन वन विभाग प्रदेश वन्यप्राणी प्रबंधन की चुनौतियों से निपटने के लिए पूरी तरह प्रतिबध्द और प्रयासरत है।
प्रदीप भाटिया

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