Friday, March 16, 2012

ये बजट नहीं मंहगाई का दस्तावेज है

जयराम शुक्ल
पहली नजर में ही यह बजट फजीहत में फंसी यूपीए सरकार की खीझ के अलावा कुछ
नहीं लगता। सेवाकर, एक्साइज टैक्स और उत्पाद शुल्क में की गई बढ़ोत्तरी का
ऐसा सर्वव्यापी असर पड़ेगा जिसकी घनी छाया में ‘किसानों की चिन्ता’, रक्षा
बजट में बढ़ोत्तरी, समाज सेवा के क्षेत्र में मनरेगा और एनआरएचएम जैसी
यूपीए की ध्वजवाहक योजनाएं ढंक जाएंगी। इस बजट ने आम उपभोक्ताओं से लेकर
उद्योग जगत तक को नाखुश किया ही है, मध्य वर्ग के सपनों पर भी डाका डाला
है।
उम्मीद थी कि आयकर की सीमा तीन लाख रुपए तक बढ़ेगी, लेकिन एक लाख अस्सी
हजार से बढ़ाकर दो लाख करना दिखावे से ज्यादा कुछ नहीं, क्योंकि इससे जो
मामूली सी राहत मिलेगी वह सर्विस टैक्स के जरिए मूलधन समेत वापस हो
जाएगी। राजकोषीय घाटा पूरा करने के लिए दूसरे क्षेत्रों से संसाधन जुटाए
जा सकते थे। मसलन सरकार अनुत्पादक क्षेत्रों में कटौती करती, नौकरशाही की
फिजूल खर्ची पर लगाम कसती। इस बजट में भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के कोई
उपाय नजर नहीं आते। वित्तमंत्री का पूरा ध्यान, करदाताओं से सौ फीसदी
वसूली पर ज्यादा है। मसलन संपत्ति की खरीदारी पर भी टीडीएस काटने का
प्रस्ताव है, ताकि उपभोक्ता टैक्सेसन के राडार से बचकर न जाने पाए।
बजट में सबसे ज्यादा फोकस कृषि क्षेत्र में किया गया है। एक और हरित
क्रांति के लिए 18 प्रतिशत का बजट प्रस्ताव बढ़ा है, किसानों को कर्ज देने
की प्रणाली आसान बनायी गई है, पर देश में बढ़ती बेरोजगारी की चिन्ता कहीं
नहीं झलकती। सब्सिडी में क्रमश: कटौती का दबाव विश्व की वित्तीय संस्थाओं
की ओर से पहले से ही रहा है। वित्तमंत्री का लक्ष्य सब्सिडी को जीडीपी के
दो प्रतिशत से भी नीचे लाने का है। जाहिर है मिट्टी का तेल, रसोई गैस और
डीजल में सब्सिडी निशाने पर है। यानी कि आने वाले दिन रसोई और खेत दोनों
के लिए मुश्किलों से भरे हो सकते हैं। किसानों की जेब तक सीधे सब्सिडी
पहुंचाने और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को कम्प्यूटरीकृत करने की
बात जरूर की गई है, लेकिन इसके लिए कैसा तंत्र विकसित किया जाएगा यह नहीं
बताया गया है। आम आदमी के लिए ‘पीडीएस’ और ‘मनरेगा’ अच्छी मंशा वाली
फ्लॉप योजनाएं साबित हुई हैं। इन योजनाओं पर जिस तरह से बजट बढ़ाया गया है
उस हिसाब से इनकी मॉनिटरिंग को भी चुस्त-दुरुस्त करना होगा नहीं तो सारी
राहत भ्रष्टाचार के जबड़े में समा जाएगी।
कालेधन पर श्वेतपत्र जारी करने का संकल्प स्वागत योग्य है, पर यह धन जब
देश में लौटेगा तभी इस संकल्प का कोई परिणाम निकलेगा। बजट पेश करते हुए
वित्तमंत्री ने यह साफ किया है कि वे आलोचनाओं के लिए तैयार हैं, कल की
सुर्खी नहीं अपितु दस साल बाद के हालात को देखते हुए ऐसा बजट लाए हैं। यह
साफगोई आज उपभोक्ता की कमर तोड़कर परसों च्यवनप्राश खिलाने जैसी बात है।
बजट की जो समवेत प्रतिक्रियाएं आ रही हैं उसके चलते कई मसलों पर ‘रोलबैक’
करना होगा नहीं तो यह बजट यूपीए का आखिरी बजट भी साबित हो सकता है।

No comments:

Post a Comment