ब्रजेश उपाध्याय
बीबीसी संवाददाता, वॉशिंगटन
शुक्रवार, 9 अगस्त, 2013 को 07:11 IST तक के समाचार
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जेफ़ बेजोस ने 25 करोड़ डॉलर में वाशिंगटन पोस्ट को खरीदा है.
वाशिंगटन पोस्ट अख़बार के बिकने की ख़बर की घोषणा के बाद से ही अमरीकी मीडिया में गरमागरम बहस जारी है कि इंटरनेट व्यापार के शातिर खिलाड़ी क्लिक करेंजेफ़ बेज़ोस ऐसा कौन सा जादू चलाएंगे जो अख़बार की काया पलट देगा.
अमेज़न डॉट कॉम के ज़रिए अरबपति बनने वाले बेज़ोस ने़ इंटरनेट की ताक़त से ख़ुदरा बिक्री की परिभाषा बदल कर रख दी. किताब हो या कैमरा, गहने हों या जूते... माऊस की बस एक क्लिक और सामान चंद दिनों के अंदर ग्राहक के घर में.
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क्लिक करेंबेज़ोस ने 25 करोड़ डॉलर में छह सालों से घाटे में चल रहे अख़बार को खरीदा है. उसे चलाने के लिए उनका बिजनेस मॉडल क्या होगा, इस पर फ़िलहाल उन्होंने कुछ नहीं कहा है. लेकिन इतना ज़रूर कहा है, "आगे का रास्ता आसान नहीं होगा, हमें आविष्कार करने होंगे और उसका मतलब है कि हमें प्रयोग करने होंगे."
दुनिया भर की नज़र
"आगे का रास्ता आसान नहीं होगा, हमें आविष्कार करने होंगे और उसका मतलब है कि हमें प्रयोग करने होंगे."
जेफ़ बेज़ोस, वाशिंगटन पोस्ट के नए मालिक
ज़ाहिर है क्लिक करेंवाशिंगटन पोस्ट नामक इस प्रयोगशाला पर पूरी दुनिया की मीडिया की नज़र होगी.
ऐसा क्या कर सकते हैं बेज़ोस जो वाशिंगटन पोस्ट को बचा ले ?
बीबीसी ने ये जानने के लिए एक ख़ास बातचीत की राजू नरिसेटी से जो वाशिंगटन पोस्ट के पूर्व संपादक रह चुके हैं और उसके इंटरनेट पाठकों की संख्या रेकॉर्ड स्तर तक ले जाने का श्रेय काफ़ी हद तक उन्हें मिला था.
नरिसेटी ने भारत में भी मिंट नाम से बिज़नेस अख़बार की शुरूआत की और आज मीडिया मुगल रूपर्ट मरडॉक की कंपनी न्यूज़ कॉर्प की वरिष्ठ प्रबंधन टीम में है.
क्या हैं उपाय
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विशेषज्ञों का मानना है कि अख़बारों को इंटरनेट के जरिए आमदनी को बढ़ाने के उपायों पर खास तौर से ध्यान देना होगा.
नरिसेटी ने तीन उपाय सुझाए.
- वाशिंगटन पोस्ट की पत्रकारिता में कहीं ग़लती नहीं है. ज़रूरत है उसकी बिज़नेस रणनीति को बदलने की और उसे स्मार्ट तरीके से कार्यान्वित करने की.
- वाशिंगटन पोस्ट ने बरसों से अपने पाठकों के बारे में जो जानकारी जुटाई है रजिस्ट्रेशन के ज़रिए उसका इस्तेमाल करके विज्ञापन और सब्सक्रिप्शन से पैसे कमाएं.
- डिजिटल के फ़ैसले अख़बार की प्रिंट की विरासत से बंधे ना हों. उनका कहना है कि अभी भी अख़बार की ज़्यादातर कमाई प्रिंट संस्करण से ही है और इसलिए रणनीति उसी के ईर्द-गिर्द घूमती है.
नरिसेटी कहते हैं कि वाशिंगटन पोस्ट भले ही एक अंतरराष्ट्रीय ब्रांड हो लेकिन उसके प्रिंट संस्करण को वाशिंगटन डीसी के लोग ही पढ़ते है और उस मायने में वो एक मेट्रो न्यूज़पेपर है.
अख़बारों का भविष्य
उनका कहना है कि अख़बार बिल्कुल ही ख़त्म हो जाएंगे ऐसा तो नहीं लगता है लेकिन उनका प्रभाव कम होता जाएगा और इसलिए उनके लिए ज़रूरी है एक वैकल्पिक आय का ज़रिया ढूंढना जो डिजिटल के क्षेत्र में नए प्रयोग से आ सकता है.
उन्होंने कहा कि भारत के लिए इसमें एक बड़ा सबक है क्योंकि इसमें कोई शक नहीं है कि जो आज अख़बारों का हाल अमरीका में है वही आनेवाले सालों में भारत में होगा.
नरिसेटी का कहना है कि ज़रूरी है कि अभी से ही भारतीय अख़बार अपनी वेबसाईट को मुफ़्त में उपलब्ध कराने की जगह उससे सब्सक्रिप्शन के ज़रिए पैसे कमाने के तरीकों पर काम करें.
उनका कहना है कि ज़रूरत है उस दिशा में छोटे-छोटे कदम उठाने की जिससे कुछ सालों में वो ठोस आय का ज़रिया बन सके और प्रिंट पर उसकी निर्भरता कम हो.
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