Saturday, September 21, 2013

जाति से जाति भिड़ाते चलो

                                         जयरामशुक्ल 

इस देश में पिछले दो दशकों से सबसे ज्यादा गाली खाने वाले महापुरुष का नाम है ‘मनु’। मनु महाराज पर आरोप है कि उन्होंने समाज को वर्ण और जातियों में बांटा। अब बांटा हो या ना बांटा हो, पर दलित विद्वान ऐसा कहते हैं तो मानना पड़ेगा। नहीं मानेंगे तो वे मुझे मनुवादी बना देंगे। कल्पना करिए यदि मनु नहीं होते तो आज कौन जान पाता कि अपने नरेन्द्र भाई मोदी तेली हैं। मोदी जब से चर्चाओं में आए, जातिवाद के रिसर्च स्कालरों ने सबसे पहली यही खोज की थी। देश में जितने भी राजनीतिक दल हैं, उन सबका आधार मनु के जातीय वर्गीकरण का है। अब लालू-मुलायम अहीर हैं, तो यह मान लिया जाता है कि देश भर के अहीर या तो जनता दली हैं या सपाई। दूसरे दलों में जो अहीर हैं उनपर भी संदेह किया जाता है कि इनकी सिम्पैथी लालू-मुलायम से होगी। यह वैसे ही है जैसे संघी और विहिप वाले हर मुसलमान के दिल में पाकिस्तान झांकते हैं। नीतीश की सारी काबीलियत पर उनका कुनबी होना भारी पड़ जाता है। आप सरनेम लिखो या नहीं हमारे रिसर्च स्कालर ढूंढ लेंगे कि आप किस जाति से हैं। खैर आदमी और दल को जाति के आधार पर वर्गीकृत किया जाना तो ठीक है लेकिन विद्वानों ने देवी देवताओं को भी जातियों में बांट दिया। जैसे परशुराम ब्राह्मणों के देवता, तो किसन कन्हैया अहिरों के, भगवान राम ठाकुरों के, विश्वकर्मा महाराज मकैनिकों के और चित्रगुप्त लालाओं के। लगभग हर जातियों ने अपने-अपने देवी देवता खोज लिए हैं। भगवान न करे कि ऐसा दिन आए कि जन्माष्टमी सिर्फ अहीर मनाएं, तो रामनवमी सिर्फ क्षत्रिय और परशुराम जयन्ती बाम्हन लोग। जातियों के इस ढूंढा-ढांढी और हड़पछत्तीसी के बीच कई देवी-देवता है जो जाति निरपेक्ष बने हुए हैं। जैसे शंकर जी का घराना, बजरंगबली आदि। इसलिए बेसहारों के सबसे बड़े सहारा यही हैं। ये दोनों देवता ऐसे हैं जिन तक बीपीएल वालों की सीधी पहुंच है। नदी से एक कंकर निकाल कर वहीं शंकर जी बन जाएंगे या किसी पत्थर को सिंदूर से रंगकर बजरंगबली बना लीजिए। ये मंदिर और महलों में भी नहीं रहते, कहीं भी इन्हें विराज सकते हैं। भोग न लगाएं या चढ़ावा न चढ़ाएं तो भी चलेगा। चुल्लू भर पानी से अभिषेक कर दीजिए या चुुटकी भर सिंदूर चढ़ा दीजिए इतने में ही खुश। खैर जब देवी देवताओं तक को हमने जाति में बांट दिया तो ये महापुरुष किस खेत की मूली हैं। देश के महान नेता बल्लभभाई पटेल पटेलों के नेता हो गए, तो सुभाष बाबू बंगालियों के, तिलक महाराज मराठियों के और इसी तरह भगत सिंह पंजाबियों के। देश के टुकड़े-टुकड़े नहीं हो पाए तो समाज के हो गए। दिल कई फाक में बंट गयें। और यही टुकडेÞ-टुकड़े वाली सामाजिक व्यवस्था राजनीति की मूल आधार बन गई। मुझे नहीं लगता कि दुनिया के किसी दूसरे मुल्क में आदमियों का ऐसा बंटवारा हुआ होगा। सो इसीलिए कहता हूं कि सभी राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे अपने-अपने पार्टी कार्यालयों में मनु महाराज की भी फोटो लगाकर भजन-पूजन किया करें, उन्हें गाली देने के बजाय जयकारा लगवाएं। क्योंकि जिस दिन देश की राजनीति से ये जाति-पांति खत्म हो गई तो कई राजनीतिक दलों को हिन्द महासागर में विसर्जित करना पड़ेगा। इसलिए भारतीय राजनीति मनु महाराज की चिर ऋणी रहेगी और यदि न रहे तो इसे कृतघ्नता समझा जाएगा। अपने भैय्याजी यानी कि भैंसापुर के पंडित भैरों प्रसाद, मनु महाराज के पक्के भक्त हैं। वोटरलिस्ट की तरह हर जाति की वंशावली और उसकी नाभिनाल उनके पास सुरक्षित है। इसी के दम पर वे इलाके के सबसे प्रभावशाली नेता माने जाते हैं। इस विधानसभा में टिकट के लिए उनका बायोडाटा यूं ही सब पर भारी नहीं। उसमें वोटरों की जाति, उपजाति और गोत्र तक का सूक्ष्म ब्योरा है। आलाकमान जब उनके इलाके में रायशुमारी करने पहुंचा तो उन्होंने पूरे समाजशास्त्रीय तरीके से पर्यवेक्षक को समझाया। भैयाजी बोले- ‘हम तो टीटीएस को रिप्रेजेट करता हूं।’ पर्यवेक्षक असम का था पूछा- टीटीएस माने। तो वे बोले, मतलब ‘तीन तेरा सवा लख्खी’ हमने ब्राम्हणों के ऐसे ही पट्टी है। अब टीटीएस तो मेरे साथ है ही मेरी ससुराल डीएमटियों में है। डीएमटी बोले तो दुबे, मिसिर, तिवारी। सो इस तरह सारे ब्राम्हण हमारे। अब रही बात ओबीसी की तो हम केकेए का गुरुबाबा हूं। पीढ़ियों से उनके कानों में गुरुमंत्र फूंकता आया हूं। पर्यवेक्षक ने पूछा- केकेए क्या? भैय्याजी बोले- जैसे मुल्ला एम सिंह का एम वाई यानी मुस्लिम-यादव। दलितों के हम जनम-जनम से ब्योहर हैं। हमारे पुरखों ने न जाने कितना कोदौं इन लोगों को कर्जें में दिए है। सबके बही खाते हमारे पास हैं। चुनाव से पहले जैसे सरकार कर्जे माफ करती है वैसे हम भी माफ कर देंगे। अब रही बात ठाकुरों की। तो उन्हें तो हम महाराज कुमार चिरंजी कह के पोटिला लूंगा। सो पूरा इलाका हमारे साथ है। कोई अपनी छतरी से बाहर नहीं। असमियां पर्यवेक्षक सुन कर दंग रह गए। वह भी अपने इलाके में भैयाजी की तरह का एक नेता था। उसकी आंखें खुल चुकी थी कि कैसे जाति-जाति को जोड़-तोड़कर चुनाव का रुख मोड़ा जा सकता है। भैय्याजी का चेला रामसलोना मंद-मंद मुस्कराते हुए बुदबुदा रहा था- जाति से जाति भिड़ाते चलो, चुनाव में चहला मचाते चलो।

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