Monday, September 16, 2013

हम भक्तन के भक्त हमारे

                                     जयराम शुक्ल
भारत तब भी लीला भूमि थी आज भी  है। अवतारी पुरूष आते थे, लीला करते थे, भक्तगणों पर कृपा बरसाते थे। आज भी अपने देश में लीलाधरों की पूरी जमात है। विधानसभा-पार्लियामेंट में, पार्टी के मंच मचानों- सभा रैलियों में जो कुछ होता है वह अवतारी पुरूषों की लीला ही है। राजनीति के मंच पर जो लीला हम देखते है, तो गांव की रामलीला याद आती है। परदे के सामने हनुमानजी और रावण का घनघोर युद्ध होता है। गत्ते की तलवारें- कनस्तर के पहाड़ और रूई के गोलों से बनाई गई गदाओं से एक दूसरे की मार-धुनाई होती है। रावण-हनुमान बने पात्र दांत पीस-पीसकर एक दूसरे को खा जाने वाले डायलॉग बोलते हैं। जब रामलीला खतम होती है तो परदे के पीछे हनुमान और रावण का पाठ करने वाले पात्र एक ही चिलिम में गांजा सोटते हुए नजर आते हैं। पट बंद होते ही बैर-भाव भी खतम। पार्लियामेंट की बहसों में राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि प्रत्यक्षत: रामलीला के पात्रों जैसा ही पाठ करते दिखते हैं। नेपथ्य में सब एक हो जाते हैं। लेकिन अब लीला की मर्यादा भी तार-तार होती दिखती है। राजनीतिक दलों को आरटीआई से दूर रखने या दागियों को चुनाव नहीं लड़ने  देने की सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग के खिलाफ जिस तरह सभी पात्र परदे के सामने ही एक हो गए उससे ऐसा ही लगता है। लोकलाज और जनभय जब तिरोहित हो जाता है तो ऐसा ही होता है।
पन्द्रह अगस्त को लालकिले के मुकाबले लल्लनपुर के कालेज की दालान से दहाड़ने वाले लालबुझक्कड़ ने तो इस बार कमाल ही कर दिया। वे तो लीलाधरों के चक्रवर्ती निकले। भुख्खड़ों के प्रान्त छत्तीसगढ़ में तो अपने लिए फर्जी लाल किला ही बनवा डाला। उसकी प्राचीर से दहाड़े। वे अब अपने सूबे में पधार रहे हैं। संभव है कि उनकी लीलामंडली के स्थानीय प्रायोजक इस बार 7 आरसीआर ही बनवा डाले। 7 आरसीआर का मतलब सात रेसकोर्स रोड जहां प्रधानमंत्री का बंगला है। ये वाकय देखकर मुझे तो बूंदी के दुर्ग वाली कहानी याद आ गयी। मेवाड़ के महाराणा लाखा ने एक बार प्रण किया कि वे जब तक हाड़ाओं को परास्त कर बूंदी का दुर्ग फतह नहीं कर लेते तब तक अन्न जल ग्रहण नहीं करेंगे। बूंदी के हांड़ा बड़े बहादुर थे। उनसे जीत पाना टेढ़ी खीर है  यह महाराणा के चमचे-चुरकुन जानते थे। बाद में महाराणा को भान हुआ कि वे भावावेश में गलत प्रतिज्ञा कर बैठे हैं। सो प्रधान चमचे ने राय दी कि ऐसा करते हैं कि बूंदी का फर्जी दुर्ग बनाते हैं, महाराणा उस पर आक्रमण करके अपना प्रण पूरा कर लें। हुआ भी यही। कभी-कभी लगता है कि पार्लियामेंट के चुनाव के पहले-पहले तक लालबुझक्कड़ के सभी प्रण ऐसे ही पूरे कर लिए जाएंगे। डर लगता है कि इनकी चमचामंडली कहीं लालकिला की तरह फर्जी पार्लियामेंट और सेन्ट्रल हाल न बनवा दें और यहीं लालबुझक्कड़ जी पीएम की शपथ न ले बैठें। खैर  ऐसा होता भी है तो कोई गलत बात नहीं। आखिर हम ऐसी लीलाएं सनातन से देखते आए हैं, अपना मुल्क लीलाभूमि जो ठहरा।
संत-महंतों के आश्रम में भी ऐसी ही लीलाएं चलती है। पिपासाराम ने जो किया वो भी रहसलीला थी। वे लीला करने के लिए ही झांसूमल से पिपासाराम बने। लोगों ने उन्हें बेमतलब जेल में डाल डिया। सिद्ध पुरूष के लिए क्या आश्रम क्या जेल। पिपासाराम जीते जी बैकुन्ठवासी हो गए। देश भर में ऐसे कई पिपासाराम हैं जिनकी लीलाएं अनवरत चल रही है और भक्तगण प्रमुदित हैं। कभी-कभी  मुझे लगता है कि ये दुनिया न तो जाति-धरम में बंटी है न ही अमीर-गरीब में। वस्तुत: ये दुनिया लीलाधरों और भक्तगणों के बीच बंटी है। एक वर्ग अवतारी पुरूषों का है जो डायरेक्ट स्वर्ग से उतरकर नेता- साधू- और कारपोरेट के सीईओ बन जाते हैं,  दूसरा वर्ग है भक्तजनों का जिसमें हम सब शामिल हैं। सदियों से ऐसी लीलाएं देखते आ रहे हैं और यह हमारी ड्यूटी है कि मंच के सामने तालियां पीटें- रह रह कर जयकारा लगाएं। एक बार फिर जोर से बोलिए- लल्लनपुर के लालबुझक्कड़ की जय। लीला सिरोमणि संत पिपासाराम की जय। ओम- ओम- नमो नमो.. हा.हा.हा..।
देश में चल रही इन लीलाओं के बारे में भैय्याजी का अपना अलग ख्याल है। भैंसापुर की नौटंकी और रामलीला उनके पुरखों के जमाने से चलती आयी है। रामलीला में भैय्याजी रावण का पाठ किया करते थे। रामलीला के बाद वे अपनी दलान में रावण की कथा सुनाया करते थे। भैय्याजी का मानना है कि रावण के साथ इतिहास ने अन्याय किया। वो विद्वान था, यही उसका सबसे बड़ा अवगुण था। रावण तो बेचारा विद्वानों की लड़ाई में मारा गया। एक तरफ वो अकेला तो दूसरी तरफ अगस्त्य, विश्वामित्र और वशिष्ठ। राम-लक्ष्मण तो बेचारे नादान थे। इनका उसी तरह यूज किया गया जैसे कि शोले फिल्म में ठाकुर ने जय-बीरू को गब्बर को मारने किया था। बहरहाल भैय्याजी यथार्थवादी है, वे चाहें तो भी बड़ों-बड़ों की तरह लीला नहीं कर सकते हैं क्योंकि यहां भी वर्गचरित्र आड़े आता है - धरम के नाम पर करते सभी अब रासलीला है.. और भैय्याजी करें तो कह दो उनका करेक्टर ढीला है।

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