Friday, December 16, 2011

धूल-धुआं फांकते रहिए

स्टार समाचार,सतना।  केन्द्र सरकार ने प्रदेश को फिर एक नेशनल इंस्टीट्यूट की सौगात दी है, लेकिन इस बार भी तय है कि यह रीवा-सतना में नहीं स्थापित होगी। इस महत्वपूर्ण संस्थान को ग्वालियर ले जाने की तैयारी की जा रही है। इंस्टीट्यूट का सीधा ताल्लुक उद्योगों से जुड़ा है और सरकार ने सबसे ज्यादा औद्योगिक करारनामे विन्ध्य क्षेत्र के लिय ही किए हैं। यानी कि एक बार फिर हम धूल-धुआं फांकते रह जाएंगे।
केन्द्र सरकार ने जिन चार राज्यों में एनआईडी (नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ डिजाइन) के लिए स्वीकृति दी है उनमेंंहरियाणा,असम और आन्ध्रप्रदेश के साथ मध्यप्रदेश भी शामिल है। 12वीं योजना के तहत स्थापित होने वाले ये संस्थान केन्द्रीय वाणिज्य,उद्योग व कपड़ा मंत्रालय के अधीन होंगे। राज्य सरकारों की भूमिका जगह-जमीन के चयनऔर संसाधन उपलब्ध कराने की होगी। इस नाते सरकार चाहे तो रीवा या सतना का भी उसी तरह प्रस्ताव रख सकती है जैसा कि ग्वालियर के लिए रखा है। एनआईडी के डायरेक्टर प्रदुम्न व्यास ने इंदौर में एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत करते हुए बताया कि वे तो चाहते थे कि यह संस्थान भी भोपाल में ही खुले लेकिन अब संभवत: यह ग्वालियर में खुलेगा। सरकार से पचास एकड़ जमीन के लिए गुजारिश की गई है। जमीन मिलने के  बाद संस्थान के शुरू होने में चार से पांच साल लगेंगे, इसके लिए प्रारंभिक तौर पर 150 करोड़ का बजट भी स्वीकृत हो चुका है।
क्या है एनआईडी
एनआईडी, ट्रिपलआईटी व एनआईटी के समकक्ष एक संस्थान है जिसमें इंडस्ट्रियल, कम्युनिकेशन और टेक्सटाइल डिजाइनिंग के साथ आईटी के इट्रीगेटेड प्रोग्राम के बारे में पढाया जाएगा। यहां से निकलने वाले स्रातक वैश्विक मानकों के अनुरूप औद्योगिक इकाइयों की अधोसंरचना निर्माण में अपना योगदान देंगे। देश में फिलहाल सालाना चार लाख इंन्जीनियर्स, एक लाख मैनेजर्स निकलते हैं जबकि इंडस्ट्रियल डिजाइनर्स की संख्या महज तीन हजार सालाना है। इससे इसका महत्व समझा जा सकता है।
तो विन्ध्य में क्यों नहीं  
एक ओर सरकार विन्ध्य को देश का सबसे बड़ा सीमेंट व पॉवर हब बनाने का बखान करते नहीं थकती और गर्व के साथ कहती है कि यहां सवा लाख करोड़ का पूंजीनिवेश होने जा रहा है तो दूसरी ओर एनआईडी जैसे विशुद्व औद्योगिक नवाचार के संस्थान को खोलते समय यह विन्ध्य क्यों भूल जाता है? वैसे भी सभी राष्टÑीय संस्थान भोपाल या इंदौर में खुले हैं और ज्यादा हुआ तो ग्वालियर या जबलपुर पर नजरें इनायत हो जाती हैं। क्या यह हमारे साथ घोर नाइंसाफी की एक और और नजीर नहीं है?
अब क्या कर सकते हैं हम
करने को चाहें तो कुछ भी किया जा सकता है। सरकार का पर दबाव बनाया जा सकता है कि इस राष्टÑीय संस्थान को विन्ध्य के किसी शहर में खोलने का प्रस्ताव तैयार करे। इसके लिए क्षेत्र के सभी सांसद केंद्र सरकार पर दबाव बनाएं और वास्तविकता से अवगत कराएं, सभी विधायक राज्य सरकार पर अपना साझा दबाव बनाएं व बताएं कि हमारे साथ उपेक्षा हो रही है और विन्ध्यक्षेत्र के लोग अब ज्यादा वर्दाश्त करने वाले नहीं। हर स्तर के जनप्रतितनधि, युवा व छात्र नेताओं को इसके लिए आवाज बुलंद करना होगा। सामाजिक संगठनों को भी कमर कसनी होगी। यदि हम इस अवसर को भी गंवा देते हैं तो आने वाली पीढ़ी क्षमा नहीं करेगी।


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