Wednesday, February 15, 2012

-मुकुट बिहारी सरोज

सचमुच बहुत देर तक सोए
 इधर यहाँ से उधर वहाँ तक
 धूप चढ़ गई कहाँ-कहाँ तक
 लोगों ने सींची फुलवारी
तुमने अब तक बीज न बोए ।

 दुनिया जगा-जगा कर हारी,
 ऐसी कैसी नींद तुम्हारी ?
 लोगों की भर चुकी उड़ानें
 तुमने सब संकल्प डुबोए ।

 जिन को कल की फ़िक्र नहीं है
 उनका आगे ज़िक्र नहीं है,
 लोगों के इतिहास बन गए
 तुमने सब सम्बोधन खोए । 

No comments:

Post a Comment