Sunday, December 15, 2013

ये जनता की साजिश है

अपने देश में कोई हारता-जीतता नहीं है, हरवाया या जितवाया जाता है। जैसे क्रिकेट में हमसे कोई नहीं जीत सकता बशर्ते एम्पायर उसे जितवा न दे। हम तभी हारते हैं जब हरवाए जाते हैं। यह धारणा हमने इंग्लैंड से ली है। अंग्रेज जब देश से गए तो स्वतंत्रता संग्रामियों से हारकर नहीं अपितु हमें देश चलाना सिखाकर गए थे। एक बार तो गजब हुआ। इंग्लैंड की क्रिकेट टीम यहां सभी टेस्ट मैच हार गई। लंदन के गर्जियन जैसे अखबारों ने लिखा कलकत्ता की उमस मुंबई की प्रदूषित झींगा मछली, कानपुर की चिलचिलाती धूप ने हमारे खिलाड़ियों का ऐसा मनोबल तोड़ा वे चेन्नई के चेपक में भी ढंग से नहीं खेल पाए। अजहरुद्दीन, तेन्दुलकर और काम्बली की सेन्चुरियां ठेंगे से। हमने जब इंग्लैंड से सब कुछ लिया तो जीत हार के बीच से निकलने की पतली गली भी उन्हीं की भांति खोज ली।

अब अपने नेता धुरंधर धरतीपकड़ ने पार्टी नेतृत्व को कैफियत दी कि हुजूर हम हारे कहां हमें तो हरवा दिया गया। पार्टी से मैंने डिमांड की थी कि दारू, कम्बल और कलदार की व्यवस्था की जाए, पार्टी ने नहीं दिया। विपक्षी की दारू ने हमें हरवा दिया। कल तक जो वोटर हमारे साथ थे मतदान के दिन दारू पीकर बहक गए और गलत बटन दबा दी। ईवीएम वाली बात तो जानते ही हैं। चुनाव कराने वाले उनके चाकर थे सो कुछ ऐसी सेटिंग की, कि वोटर दबाता तो हमारी बटन था पर बत्ती विरोधी वाले में जलती थी। हमारे कार्यकर्ता रातों रात पल्टी मार कर भितरघाती हो गए। उन्हें ऊपर से उनके गुट के नेता का फोन आया, धुरंधर को हरा दो, नहीं तो तुम लोगों की विधायकी का रास्ता कभी नहीं खुलेगा। धुरंधर धरतीपकड़ की इस बात का समर्थन सभी हारे माफ करिए हरवाए गए उम्मीदवारों ने किया। यह चलन सभी पार्टियों में है। भितरघाती अपनी-अपनी पार्टियों को हराने  की सुपारी लेते हैं। ये तो अपनी-अपनी पार्टियों के ताबूत पर कील ठोक चुके होते हैं। आलाकमान ने कहा ये तो सब ठीक है पर ये 92 हजार से जीत-हार कैसे हो जाती है धुरंधर जी। धुरंधर धरतीपकड़ बोले- हजूर ये जो जनता है न, बड़ी साजिशबाज है। हमें हरवाने में विरोधियों ने इसी का इस्तेमाल किया। ये किसी की सगी नहीं होती। हम तो कहता हूं कि बन्द करिए ये मनरेगा फनरेगा, फोकट का राशन। आलाकमान के माथे पर शिकन आ गई। उसने एक भितरघाती को तलब किया। क्यों भाई तुमने विरोधी पार्टी के लिए काम किया, धुरंधर धरतीपकड़ का ये कहना है। भितरघाती बोला- धुरंधरजी झूठ बोल रहे हैं। घूस दे के टिकट तो ले ली पर जीतने का गुर्दा कहां से लाएं। दरअसल ये पार्टी का फंड, लोकल चंदा, सब हजम कर जाना चाहते थे, इसलिए ये खुद विरोधी प्रत्याशी से मिल गए और लंबी रकम खैंच ली। हम लोगों ने कहा खरचा करो तो मिर्ची लग गई। फिर तय किया कि इनको बैठने नहीं देंगे बस इनकी नजरों में भितरघाती हो गए। 92 हजार वोटों से हारे हैं ये। पार्टी की नाक कटा दी। आलाकमान को यह भितरघाती सच बोलता हुआ प्रतीत हुआ। दरअसल राजनीति में भितरघाती की परिभाषा अपने-अपने हिसाब से तय होती है। यह शब्द एक बहाना भी है और फंसाना भी।
अपने शहर में एक नेताजी जीते। जब उनका विजय जुलूस निकला तो बैंडबाजा के साथ आगे-आगे सबसे ज्यादा वही डांस कर रहे थे जो ओरिजनल भितरघाती थे। पार्टटाईम फ्रीलांस जर्नलिस्ट बने भैय्या जी की नजर उन भितरघातियों पर पड़ गई जो मतदान की पूर्व रात अपने ही प्रत्याशी के खिलाफ पर्चा बांट रहे थे। भैय्याजी मन मसोसकर रह गए, वे कर भी क्या सकते थे...। पत्रकार के भीतर का नेता कुलबुला रहा था, वे बोले- देखों हरामियों को कैसे नाच रहे हैं, कल नेताजी को खबर करूंगा। दूसरे दिन नेताजी के बंगले पहुंचे  तो पता चला वे देवदर्शन के लिए गए हैं, बस लौटने ही वाले हैं। इस बीच नेताजी की मोटर आ गई। वे दोनों भितरघाती पीछे की सीट से मंद-मंद मुस्काते निकले। भैय्याजी फिर चकरा गए- देखों तो इन कुत्तों को कैसे सटकर चल रहे हैं और वे जो बेचारे बूथ में जान सटाए रहे उन लोगों को ये पांच साल यहां फटकने न देंगे।
इस बीच उन दो में से एक मिठाई का डिब्बा लाया व एक चकिया भैय्याजी के मुंह में डालता हुआ बोला- भैय्याजी भूल जाइए, मुंह मीठा करिए। नेताजी मंत्री बनेंगे तो वो पैकेज-वैकेज की भरपाई हो जाएगी। भैय्याजी सन्ना गए, कितना तिकड़मी है ये जैसे मैं नेताजी से पैकेज न मिलने की फरियाद लेकर आए हों। भैय्याजी अपने पर उतर आए आखिर भैंसापुर के वही दबंग भैरोंप्रसाद थे। वे बोले सुन बे मूसरचंद, हमारे सामने ज्यादा फ्राडगीरी मारी तो हम मसल दूंगा। मतदान की पूर्व रात मोहल्ले में नेताजी के खिलाफ पर्चा तेरा बाप बांट रहा था? फिर नेताजी से मुखातिब होकर बोले- इन भितरघातियों से सावधान रहिए। बैग से उन दोनों की फोटो निकालकर दिखाते हुए कहा कि देखिए इनकी करतूत। भैय्याजी के इतने बताने का नेताजी पर कोई असर नहीं हुआ। वे दोनों भितरघाती नेताजी को कनविंस करने में सफल हो चुके थे। दूसरे भितरघाती खूसड़चंद ने कहा- भैय्याजी आपने दीवार फिल्म तो देखी होगी। उस फिल्म में डाबर (इफ्तेखार) का आदमी अमिताभ बच्चन मदनपुरी के गैंग में जाता है न। जान जोखिम में डालकर। इसलिए कि उसके गैंग की जासूसी कर सके। हम लोग   भी जान जोखिम में डालकर दूसरी पार्टी के प्रत्याशी के यहां गए थे पूरे 14 दिन रहे और ये नेताजी की जो जीत है न हम दोनों की ही शातिर खोपड़ी का फल है। हम लोगों ने उसकी मति मार दी, वह उल्टा घूमने लगा और ये जीत जाए। भैय्याजी को लगा इन टुच्चों ने विरोधी की तो नहीं नेताजी की मति मार दी है और अब वे उनके सचमुच के अमिताभ बच्चन बन गए हैं। जनता बेचारी, फिर पांच साल तक मुकरी, पेंटल की तरह एक्स्ट्रा बनी फिरती है तो फिरे।

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