Thursday, December 19, 2013

चरणदास चोर का धर्मसंकट

यह चरणदास चोर के पुनर्जन्म और आगे की कथा है। इसे ‘आधुनिक भारत का भविष्य पुराण’ के रचयिता आचार्य रामलोटन शास्त्री ने हाल ही में भैय्या जी को सुनाई है। पहले संक्षेप में चरणदास चोर की असली कथा सुने, जिस पर फिल्में बनीं और देश-दुनिया भर में नाटक खेले गए। यह छत्तीसगढ़ी लोककथा है, जिसे पहली बार हबीब तनवीर साहब मंच तक लाए। चरणदास चोर ऐसे चोर की कहानी है, जो मजाक ही मजाक में अपने गुरुजी को सच बोलने का वचन दे देता है और इसके साथ ही चार प्रतिज्ञाएं भी करता है। प्रतिज्ञाएं थीं कि कभी सोने की थाली में खाएगा नहीं, न ही कभी किसी रानी से शादी करेगा, कभी हाथी में बैठकर जुलूस में भी नहीं निकलेगा, न ही कभी किसी देश का राजा बनेगा। एक चोर की इन प्रतिज्ञाओं का आशय कोई भी समझ सकता है कि जो नामुमकीन है, प्रतिज्ञाएं उससे जुड़ी हैं।  एक दिन गजब हो गया। वह राजमहल के खजाने में चोरी करने गया। रानी ने उसे देख लिया। चोर ने सब कुछ सच-सच बता दिया। रानी इतनी प्रभावित हुई कि उसे अपना दिल दे बैठी। उसने सोने की थाली में भोजन परोसा, चरणदास ने मना कर दिया। फिर उसकी साफगोई और सम्मान के लिए हाथी पर बैठाकर जुलूस निकालने का प्रस्ताव दिया-चोर ने इसे भी ठुकरा दिया। रानी ने कहा, आधा राज्य उसके नाम लिख दिया जाएगा। प्रतिज्ञाबद्ध चोर ने इसे स्वीकार नहीं किया और अंतत: जब उसने रानी के विवाह का प्रस्ताव भी अस्वीकार कर दिया तो कुपित रानी ने उसे मौत की सजा सुना दी। चोर ने अपने गुरु का वचन निभाते हुए मौत को गले लगा लिया। 
चरणदास चोर के पुनर्जन्म और आगे की कहानी अब शुरू होती है। आचार्य रामलोटन शास्त्री ने जजमान भैय्या जी को कथा का मर्म समझाते हुए कहा- चरणदास चोर की आत्मा को लेकर स्वर्ग एवं नरक के दूतों में झगड़ा हुआ। नारद जी के हस्तक्षेप के बाद चरणदास चोर की आत्मा को ससम्मान उसी तरह स्वर्ग ले जाया गया, जैसा कि अजामिल कसाई और गणिका पतुरिया को ले जाया गया था। चोर की ईमानदारी और गुरु के प्रति वचनबद्धता स्वर्गलोक में चर्चा का विषय बनी रही। मृत्युलोक में चोरी कर परिवार पालने वाले को वहां देवी-देवताओं को ईमानदारी और दृढ़संकल्प की शिक्षा देने के लिए नियुक्त किया गया। इंद्र और चंद्रमा जैसे छली प्रपंची उसके शिष्यों में थे। चरणदास को हरिश्चंद्र और महात्मा गांधी वाले अतिथि गृह में जगह दी गई। यहां कभी-कभी सुभाषचंद्र बोस और जयप्रकाश नारायण भी आया करते थे। चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह जब कभी भारत की दुर्दशा की खबरों से उद्विग्न होते तो वे भी महात्मा गांधी से फरियाद करने आ जाया करते थे। पिछले जन्म में चोरी जैसे वर्जित कर्म से लज्जित चरणदास के हृदय में इच्छा जागी- क्यों ना एक बार भारत जाकर मातृभूमि की सेवा की जाए। भ्रष्टाचार और अराजकता के खिलाफ कुछ किया जाए। इससे पूर्व जन्म के कुकृत्यों का प्रायश्चित भी हो जाएगा और देश की कुंठित तरुणाई को नई राह भी मिल जाएगी। चरणदास की इस इच्छा के प्रति स्वर्ग में निवास कर रहे सभी भारतीय महापुरुषों, क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने सहमति व्यक्त की। एक प्रतिनिधिमंडल भगवान से मिला और उन्हें चरणदास के पुनर्जन्म के लिए राजी किया...। इतनी कथा सुनाने के बाद शास्त्री जी चुप हो गए। जजमान भैय्या जी ने पूछा- आगे क्या हुआ। शास्त्री जी ने परंपरा के अनुसार दक्षिणा और नवग्रहों के दान का आग्रह किया। भैय्या जी के एवमस्तु कहने के बाद कथा आगे बढ़ी। 
तो चरणदास चोर भारत भूमि में एक आम आदमी के घर में आम आदमी के शिशु की भांति किलकारी भरते हुए पैदा हुए। उनका पालन-पोषण भी आम आदमी  की भांति हुआ। भगवान की अनुकंपा और स्वर्गीय भारतीय महापुरुषों के आशीर्वाद की वजह से चरणदास बचपन से ही मेधावी निकले। मां-बाप ने नए चलन के हिसाब से उनका नामकरण किया। वे नए नाम से जाने गए। मेधावी होने की वजह से उन्हें उच्च संस्थान में पढ़ने का मौका मिला। सरकारी वजीफे ने उनकी आर्थिक समस्या का हल कर दिया। पढ़ने के बाद वे उच्च नौकरी के लिए चुन लिए गए। वे नौकरी में रम ही रहे थे कि स्वर्ग से मैसेज मिला कि जिस काम से गए हो, वो अब करो। चरणदास नए अवतार में नौकरी पर चरण प्रहार करते हुए आम आदमी के बीच आ गए।  पूर्व जन्म की भांति एक गुरु का चयन किया। गुरु ने पहला संकल्प दिलवाया- जनता के लिए लड़ना, लेकिन न राजनीति करना और न राजनीति में जाना। गुरु ने शिष्य को आगे करके एक बड़ा प्रभावशाली आंदोलन चलाया। इस आंदोलन से चेला छा गया। चेला को लगा कि गुरु तो धेला भर का है, असली तो मैं हूं। गुरु द्वारा दिलाए गए संकल्प पर चरण प्रहार करते हुए चेले ने राजनीति भी करनी शुरू कर दी और पार्टी भी बना ली। चूंकि चेला था तो ईमानदार और हृदय में चरणदास जैसा दृढ़ संकल्प, इसलिए आम आदमी उसे अपना हीरो मानने लगे। चेले की नजर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर लग गई। 
ये नजर किसी तांत्रिक की मूठ से कम घातक नहीं थी। चुनाव हुआ तो वह कुर्सी उसी तरह मुरझा गई, जैसे कि तांत्रिक मूठ से हराभरा पेड़ मुरझा जाता है। चेले की पार्टी ने चुनाव में आम आदमी को रियायतों का ऐसा सब्जबाग दिखाया कि सामने वाली पार्टी सूखे पत्ते की तरह उड़ गई। जो पत्ते राजपथ पर पड़े भी मिले, उस पर तबियत से झाडूÞ फेर दिया गया। फिलहाल कथा को यही विश्राम देंगे, क्योंकि इस चरणदास के आगे गहरा धर्मसंकट आ गया है- पहला, गुरु के संकल्प की भांति जनता के प्रति संकल्पों पर चरण प्रहार कर उनसे हाथ मिला ले, जिनसे लड़ने के लिए उसे स्वर्ग से यहां भेजा गया था या फिर जनता के साथ संकल्पों की माला भजते हुए खड़ा रहे। अब क्या किया जाए, यही तो धर्मसंकट है।     

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