Sunday, December 15, 2013

उघरे अंत न होंहि निबाहू

 दिल्ली के चांदनी चौक में तफरी करते हुए भैय्याजी को अचानक बंगारू लक्ष्मण मिल गए। वे फुरसत में पकौड़ी खा रहे थे। भैय्याजी ने पूछा- का हो बंगारू भाई का हालचाल है, चुनाव में भी फुरसतिहा  भजिया भांज रहे हो। बंगारू बोले- भैय्याजी हालचाल उस ससुरे तेजपाल का पूछो जिसने मेरी ये गति की। तुम चुनाव-सुनाव की बात करते हो, इधर सांसदी की पेंशन न मिलती तो कोई घास छीलने को न पूछता। तहलका एक्सपोज के बाद से बंगारूजी को तेजपाल सपने में प्रेत की तरह आते थे।

दुखी आदमी का दुश्मन कष्ट में फंस जाए तो उसका दर्द उसी तरह गायब हो जाता है, जैसे कैंसर के आगे बवासीर की जलन।  तहलका पीड़ितों को हर उस खबर में संगीत के पंचम स्वर सुनाई देते हैं जो तेजपाल के सेक्स स्कैन्डल की परतें उधेड़ती हैं। ये तो दुनिया का चलन है, शिकारी भी शिकार हो जाता है। सच पूछें तो लोग एक दूसरे को शिकार की तरह ताके बैठे रहते हैं, वक्त जिसका साथ दे वही शिकारी।  वक्त तेजपाल के साथ नहीं। उन्हीं का औजार उन्हीं पर भारी पड़ा। खुफिया  कैमरे से वे दूसरों की नंगई कैद करवाते थे वही खुफिया कैमरा लिफ्ट में उनकी ही नंगई कैद कर बैठा। निंदा फाजली ने लिखा है-  हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी, जिसको भी देखना तो कई बार देखना। रावण के दस सिर वस्तुत: गिनती के दस सिर नहीं थे। वे इंद्रियों, प्रवृत्तियों के प्रतीक थे। साधु बनकर सीता को बेटी बोलकर भरमाता है और राक्षस बनकर उसे अंकशयनी बनाने की चेष्टा करता है। आदमी के  भीतर साधु भी है राक्षस भी। कब कौन प्रकट हो जाए यह वक्त और वहां के हालात तय करते हैं। तेजपाल को  हालात ने शिकार बना लिया।
लोग अक्सर कहते हैं कि सुख के कई हिस्सेदार होते हैं और बेचारा दुख अनाथ होता है बिना माई-बाप का। पाप-पुण्य के साथ ऐसा ही है। इसी दर्शन ने जगत को महर्षि बाल्मीक जैसा विद्वान दिया। उनसे जब एक ऋषि ने पूछा कि घर से पूछ के आना कि तुम्हारे पाप का भागीदार कौन-कौन बनेगा। दूसरे दिन बाल्मीक के ज्ञानचक्षु खुल चुके थे क्योंकि उनके लूट के हिस्सेदार तो थे पर लूट की सजा के कोई नहीं।  भाजपा कहती है तेजपाल  ने कांग्रेस के कहने पर उनके नेताओं का स्टिंग किया। किया भी होगा। पर बुरे वक्त में कांग्रेस ने उनसे पल्ला झाड़ लिया। सिब्बल साहब सफाई दे चुके कि वे उनके नात-रिश्तेदार नहीं। तेजपाल के पराक्रम की लाभार्थी तो कांग्रेस थी पर उनके पाप (यदि किया है) से वैसे ही छिटक गई जैसे आसाराम से भाजपा। शुरू-शुरू में तो लगा भाजपा अपने इस राष्ट्रीय संत के लिए देशव्यापी मोर्चा खोल लेगी, पर जैसे ही उनके चकलों का पता चलने लगा सब छिटकते गए, इस डर से कि कहीं ग्राहकों में उनका भी नाम न आ जाए।  अब तेजपाल और आसाराम जेल में हैं। कुछ दिन बाद वैसे ही भुला दिये जाएंगे जैसे की भाजपा बंगारू लक्ष्मण को भूल गई।
बंगारूजी ने फिर भैय्याजी से पूछा- क्या हालचाल हैं देश के? टिकट कटने पर नेता से फ्रीलांस जर्नलिस्ट बने भैय्याजी ने कहा- बंगारूभाई सच पूछो तो - अपने देश में झूठ और सच, ईमादारी और बेइमानी का बड़ा घालमेल हो गया। अब देश की राजनीति के बारे में बतावें तो उसकी सच्चाई ऐसे है जैसे कि - मोदी ब्रम्हचारी हैं पर कुंवारे नहीं, और अपने अटलजी कुंवारे हैं पर ब्रम्हचारी नहीं। बड़ा घालमेल है- जो जैसा दिखता है वैसा नहीं होता, जैसा नहीं होता वैसा दिखता है। नरेन्द्र मोदी की बचपन में शादी हुई, कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह को उनकी मिसेज को ढूंढने के मिशन में लगा दिया। अब मान लो ऐन लोकसभा चुनाव के पहले ढूंढ़कर किसी मंच पर खड़ा कर दिया - तो वे  कांग्रेस की ओर से भारत रत्न के दावेदार बन जाएंगे। सब एक दूसरे की ढूंढने में लगे हैं। कभी मोदी ढूंढकर लाए थे कि सोनिया गांधी का नाम माइनो सोनिया है, और जे.एम. लिंगदोह वास्तव में जेम्स माइकल लिंगदोह। भाजपा ने दिग्विजय सिंह की एक काट और ढूंढी है वे हैं सुब्रमम्यम स्वामी।  पर ऐसा लगता है कि इन दोनों के बीच में कोई फिक्सिंग है। एक दूसरे को लेकर कुछ भी ट्वीट नहीं कर रहे हैं। भैय्याजी बोले- दोनों ओर से झूठ और सच को मिलाकर रस्सियां बुनी जा रही हैं। ईमानदार तब तक ईमानदार है जब तक उसे बेईमानी का मौका नहीं मिलता और खींझवश दूसरे को बेईमान बताता रहता है। बेईमान तब तक बेईमान है जब तक वह ईमानदारी की सर्टीफिकेट पेश नहीं करता। यह सर्टीफिकेट उसे चुनाव से मिलता है। जीत गया तो माननीय सांसद, माननीय विधायक। भला कोई बेईमान कह दे, सीधे विशेषाधिकार की नोटिस। पार्टियां जानती हैं कि फलां बेईमान है फिर भी टिकट देती हैं। चुने जाने के बाद पवित्र सदन में ईश्वर के नाम पर सत्यनिष्ठा की शपथ लेते ही उसका चोला ईमानदारी में बदल जाता है।
और इस पूरी प्रक्रिया में वोटर का अहम रोल हाता है इसीलिए चुनाव के समय पार्टियां जनता को जनार्दन मानकर पूजती हैं। यदि सरकार बनाने का काम बिना वोट के चल जाता, तो सरकारें अब तक बेचारी जनता को हिन्दमहासागर में विसर्जित कर सभी समस्याओं से पार पा लेंती। परसाई जी कह गए हैं- जनता शब्द की व्याख्या किसी दल ने नहीं की, हम पहली बार कर रहे हैं। जनता उन मनुष्यों को कहते   हैं जो वोटर हैं और जिनके वोट से विधायक और मंत्री बनते  हैं। इस पृथ्वी पर जनता की उपयोगिता कुल इतनी है कि उसके वोट से मंत्रिमण्डल बनते हैं। अगर जनता के बिना सरकार बन सकती है तो जनता की कोई जरूरत नहीं।

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