Monday, January 14, 2013

ये सब्र का बाँध किस कंक्रीट का बना है


कल सपने में इन्दिराजी दिखी थीं। रक्षा मंत्रालय के वाँर रूम में  स्पात से दमकते चेहरे के साथ युद्ध का संचालन करते हुए। दृश्य 1971 के युद्ध के दिख रहे थे। ढाका में पाकिस्तान का जनरल नियाजी अपने 93 हजार पाकी फौजियों के साथ ले.जनरल जेएस अरोरा के सामने घुटने टेके हुए गिड़गिड़ाता हुआ। इधर गड़गड़ाती तोपों के साथ लाहौर और रावलपिन्डी तक धड़धड़ाकर घुसते टैंक। आसमान से बमवर्षक जेटों की चीख और धूल-गदरे-गुबार से ढंका हुआ पाकिस्तान का वजूद। मेरे जैसे करोड़ों लोगों को आज निश्चित ही इन्दिराजी याद आती होंगी जिन्होंने देश के स्वाभिमान के साथ कभी समझोता नहीं किया। पाकिस्तानियों ने सरहद से हमारे दो जवानों का सिर ही नहीं काटा वरन् इन्दिराजी ने भारतीय शौर्य की जो प्राण प्रतिष्ठा की थी वे उसकी नाक भी काट ले गए हैं।
सुधाकर और हेमराज जो राजपूताना रायफल्स के जवान थे, आज उनके साथी रक्त के आंसू बहा रहे हैं। हेमराज का परिवार भूख हड़ताल पर है कि मेरे बेटे का सिर तलाश कर लाइए। सेना का गुस्सा उबल रहा है। आज हमारी पलटन में घुटनों पर दिमाग रखने वाले जवान नहीं हैं। वे बीए, एमए, एमएससी की डिग्रियों के साथ सेना में भर्ती हो रहे हैं, मिलिट्री के अनुशासन के दायरे में भी वे विवेकवान और संवेदनशील हैं। देश का भला बुरा सोचते हैं। पिछली मर्तबे जब पार्लियामेंट में पाक आतंकवादियों ने हमला किया था तब भी सेना गुस्से में थी और सीमा की ओर कूंच करने के निर्देश मिले थे। पर तब शांति के अग्रदूत अटलबिहारी वाजपेई के सब्र का बाँध छलकता रहा, फूटा नहीं। अक्षरधाम में अटैक हुआ, जेके एसंबली पर हमला हुआ और अन्तत: देश की वाणिज्यिक राजधानी मुम्बई में हमला बोला गया। एनडीए के बाद यूपीए की सरकार आई और सब्र का बाँध छलकता ही रहा फूटा नहीं।
आज देश पूछता है कि तुम्हारे सब्र का बाँध किस कंक्रीट का बना है, इसके फूटने की मियाद तो बता दीजिए, क्योंकि अब स्थितियां बर्दाश्त से बाहर हो चुकी हैं।
टीवी स्टूडियो में टाई और स्नो-पाउडर लगाकर देश की रक्षा व सुरक्षा का विश्लेषण व भावी खतरे का आंकलन करने वाले ये कथित रक्षा विशेषज्ञ, जब देखो तब संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर और युद्ध के अंतर्राष्ट्रीय नियमों का बखान करते रहते हैं।
क्या अमेरिका के लिए ये नियम लागू नहीं, जो अपने एक दुश्मन को मारने के लिए सौ पाकिस्तानियों की लाश बिछा देता है।
जिसके ड्रोन विमानों के लिए कोई एलओसी, कोई सीमा रेखा नहीं। उसके शील कमान्डो एटबाबाद में हवा से उतरते हैं और उसामा बिन लादेन का खेल खत्म कर उसकी लाश महासागर की अनंत गहराइयों में गाड़ देते हैं। चीन ने हमारे बड़े भू-भाग पर कब्जा जमा रखा है। रोज अरुणाचल प्रदेश व तिब्बत में कोई न कोई खुराफात करता रहता है। क्या इनके लिए संयुक्त राष्ट्र संघ का चार्टर और अन्तर्राष्ट्रीय युद्ध नियम नहीं है। अरे हमें तो इजराइल से सबक लेना चाहिए। हमास के मन्सूबों को हर बार मिट्टी में मिला देने वाले इजराइल के राष्ट्रपति कहते हैं कि जब तक एक भी इजराइली अपने आपको असुरक्षित महसूस करता है तब तक दुनिया की परवाह किए बगैर हमले जारी रखेंगे। युद्ध का यही सार्वभौमिक नियम है ‘हमला ही बचाव का सबसे बेहतर तरीका है।’ सांप से दोस्ती नहीं हो सकती। वह मौका मिलते ही डसेगा। पाकिस्तान 1948 में कबिलियाइयों को आगे रखकर युद्ध छेड़ा। फिर 1965 में अकारण हमले किए सन् 71 की कथा तो सभी को पता है। इधर कारगिल तो विश्वासघात की पराकाष्ठा था। हम यहां से अमन के पैगाम के साथ बस भेजते हैं वह बदले में आतंकियों के वेश में फौजियों को रवाना करता है। क्या दुनिया के सारे नियम कानून हमारे लिए ही बने हैं? कब तक संयुक्त राष्ट्र के आज्ञाकारी शिष्य बनकर ऐसे ही नाक कटाते रहेंगे, पिटते रहेंगे, अपने जवानों के सिर कटाते रहेंगे? और बार-बार उन्हें बुलाकर आगरा में बिरियानी खिलाते रहेंगे, अजमेर में चादर चढ़वाते रहेंगे। सांप को वश में करना है तो उसके विषदंत को तोड़ दीजिए, इसके बाद भी फुफकारे तो कुचल दीजिए, समूचा देश यही चाहता है।
देश यह भी जानता है कि पाकिस्तान के पास एटम बम है और वह उसका इस्तेमाल कर सकता है पर अब तक हम भी एटम बम बनाकर दो परीक्षण किए अग्नि, पृथ्वी, आकाश और न जाने कौन-कौन से विध्वंसक हथियारों का जखीरा जमा करके उस पर भय नहीं बना पाए तो इस जखीरे को समुद्र में तिरोहित कर देना चाहिए और हमारे नीति नियंताओं को पाकिस्तान के आगे जाकर उसी तरह गिड़गिड़ाना चाहिए जैसे ढाका में नियाजी अरोरा के सामने गिड़गिड़ाए थे। दरअसल आम देशवासी राष्ट्रीय स्वाभिमान की शर्त पर मर-मिटने का जज्बा रखता है लेकिन मुश्किल यह है कि अपने सबल भारत की कमान डरपोक इन्डियन्स के हाथों में है। लौह कवच में रहने वाले ये डरपोक इन्डियन्स इन स्थितियों के निर्मित होते ही अपनी पीढ़ियों, धन-दौलत, विदेशी बैलेंस और कारपोरेट में फंसी पूंजी को लेकर चिंतित हो जाते हैं क्योंकि उन्हें मालुम है कि एटम बम के विध्वंसक र्छे उनके व उनके परिजनों के जिस्म पर भी धंसेंगे।
आम हिन्दुस्तानी को मौत का डर नहीं क्योंकि जब राष्ट्र रहेगा उसका स्वाभिमान बना रहेगा तभी जीने का मतलब है।
उसे संयुक्त राष्ट्र संघ के नियम कानूनों की कोई परवाह नहीं। वह चाहता कि देश एक बार दुश्मन को तरीके से सबक सिखा दे।
इतिहास में जाकर देखिए अमेरिका हमेशा ही दुनिया के किसी न किसी कोने में युद्धरत रहा है। वियतनाम से लेकर अफगानिस्तान तक लाखों अमेरिकी सैनिकों ने अपने राष्ट्र की गरिमा को दुनिया में स्थापित रखने के लिए अपनी शहादतें दीं।
ईराक में भी मरे और अब अफगानिस्तान में भी मर रहे हैं पर युद्ध जारी है। हम युद्ध से क्यों डरते हैं? यही एक ऐसा तत्व है जो राष्ट्रीय भावना को प्रबल बनाता है। यह देश की कई आंतरिक बीमारियों का भी इलाज है। पाकिस्तान ऐसी चेष्ठा क्यों करता है, क्योंकि उसे मालुम है कि दुश्मन भारत और उस पर हमले की तैयारी ही पाकिस्तान को बचाए रख सकती है।
आज पाकिस्तान के कई प्रान्तों में अलगाववादी आन्दोलन चल रहे हैं। बलूचिस्तान, पख्तूनिस्तान, सिंध सभी अलग देश के रूप में उदित होना चाहते हैं। इन स्थितियों के चलते इन्दिराजी का बार-बार स्मरण हो आता है, यदि वे आज होतीं तो विश्व बिरादरी की चिन्ता किए बगैर फौज भेजकर पाकिस्तान को उसी तरह चार टुकड़ों में फाड़ देतीं जैसा कि सन् 71 में किया गया। क्या यूपीए या कांग्रेस को इन्दिराजी की विरासत संभालने का हक बचा है? इसका उत्तर आप पर छोड़ता हूं।
लेखक - स्टार समाचार के कार्यकारी सम्पादक हैं। संपर्क-9425813208 

# नियमित व प्रगाढ़ संवाद के लिए आप इस ब्लॉग के फालोवर बनेगे तो मुझे ख़ुशी होगी***

3 comments:

  1. सचमुच शुक्ल जी. मुझे भी ऐसे समय में इन्दिरा जी बहुत याद आती हैं. अब त्वरित और बहादुर फ़ैसले लेने वाला अब कोई दमदार नेता है ही नहीं... :(

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  2. आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (16-01-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
    सूचनार्थ |

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  3. Shukla Ji, Ye sabar ka baandh hamaare purvajo ne hi banana shuru kar diya tha kyoki jo vaastav mein yudh karne wale the wo ajadi ke baad bahut kam hi bache the...school's mein aaj bhi ahinsa parmodharma padhaya jaata hai....apni ahinsawadi tasveer badalni hogi aur ye sabar ka baandh todna hi padega yahi samay aur janta ki maang hai...

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