Saturday, November 3, 2012

56 साल पूरे हुए विंध्यप्रदेश का सितारा अस्त होने के

क्षेत्रीय विषमता की खाई तो पाटना ही होगा!
मध्यप्रदेश का स्थापना दिवस हर साल विंध्यप्रदेश का सितारा अस्त होने का शोक संदेश भी दे जाता है। साथ ही यह भी ताकीद मिल जाती है कि क्षेत्रीय विषमता पर विजय पाने का गुर कोई छत्तीसगढ़ियों से सीखे। मध्यप्रदेश प्रौढावस्था में है, तो छत्तीसगढ़ के बाल्यकाल के दिन चल रहे हैं। इन दोनों प्रदेशों की वर्षगांठ के मौके पर एक तुलनात्मक अध्ययन पर नजर गई।
अध्ययन का निष्कर्ष था कि 12 साल का छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश से 12 मानकों में आगे है। ये मानक, साक्षरता, स्वास्थ्य, उर्जा, अधोसंरचना विकास, विकास दर, उत्पादकता, पर्यटन के क्षेत्रों में है। एक छोटा और स्वायत्त राज्य किस तेजी के साथ विकास की रफ्तार पकड़ता है, छत्तीसगढ़ इसकी मिसाल है। आज वह भी 12 साल की पूर्व की स्थिति में होता तो उसका हश्र अपनी ही तरह होता। आज वहां शिक्षा के सभी राष्ट्रीय स्तर के संस्थान हैं, जो नही हैं, वो प्रस्तावित हैं या खुल रहे हैं। रायपुर की चमक के आगे भोपाल की दमक फीकी होने को है। बस नए रायपुर को एक बार बस जाने दीजिए। छत्तीसगढ़ के हर शहरों के तोरण द्वार में गर्व व स्वाभिमान के साथ एक वाक्य टंका मिलेगा। . ‘छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया’।
वाकय.. छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया है। क्योंकि उन्होंने क्षेत्रीय विषमता के विरुद्ध आवाज बुलंद की और मुकाम तक पहुंचाया। हम विंध्यप्रदेशी.. मवेशी के माफिक भोपाल का मुंह ताके पिछले छप्पन सालों से सिर्फ जुगाली कर रहे हैं।
सत्ताएं किसी भी दल की रही हों, वो हमे जिधर हांकती है हम चल देते हैं।
अविभाजित मध्यप्रदेश में विंध्य क्षेत्र की खनिज सम्पदा से अजिर्त राजस्व का हिस्सा 27 प्रतिशत था। आज की तारीख में 65 से 70 फीसदी है। सीमेण्ट और ऊर्जा क्षेत्र के सभी बड़े करार इसी क्षेत्र की खदानों के आधार पर हुए। 30 हजार मेगावाट बिजली और प्रदेश में 90 फीसदी सीमेंट का उत्पादन हमी करने जा रहे हैं।
धूल-धुआं, जल संकट- प्रदूषण और नाना प्रकार की बीमारियां हमी व हमारे बच्चे ङोलने वाले हैं। ये सरकार उद्योगों में पूंजीनिवेश की बात तो करती हैं पर सुविधा संसाधनों में निवेश भूल जाती हैं।
यहीं से कमाने वाले उद्योगपति भोपाल- इंदौर में कारपोरेट सोशल रिस्पांसबिल्टी की बात करते हैं। क्या विंध्यवासियों को एम्स, आईआईटी, एनआईटी, आईआईएम जैसे संस्थान नहीं चाहिए? क्या छोटी बीमारियों के इलाज के लिए ताउम्र ऐसे ही जबलपुर-नागपुर भागते रहेंगे..? यदि प्रदेश सरकार और उसके मुखिया अब तक यह नहीं समझ पाए तो वे मुगालते में हैं..। वक्त आ जाए तो मवेशी भी सांड़ की तरह फुफकारता है और सींगे चलाता है। विकास के मामले में क्षेत्रीय विषमता की खाई को पाटने की पहल नहीं हुई तो एक दिन वह वक्त भी आयेगा। देखते रहिए।

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