Wednesday, February 27, 2013

इंद्रधनुष अच्छे हैं,काले बादलों को भी देखिये

 चिदम्बरम साहब ने यह आलेख 14 मार्च 2004 को फाइनेंशियल एक्सप्रेस में लिखा था, तब केंद्र में एनडीए की सरकार थी और वे संसद के सदस्य नहीं थे। लेख में देश के गरीबों का दर्द व उनके संघर्ष को चिदम्बर साहब ने शिद्दत से महसूस किया है। 28 फरवरी को बतौर वित्तमंत्री आम बजट पेश करेंगे। इस लेख के बरक्स समङिाएक थनी और करनी के बीच का यथार्थ।

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पी. चिदम्बरम
चिड़िया की आंख से तसवीर का एक पहलू नजर आता है।
हवाई जहाज से हर शहर खूबसूरत दिखता है। रोशनी के समंदर में सभी गड्ढे और टीले खो जाते हैं। राष्ट्र के विकास की बातें जोश पैदा करती हैं। एक केंचुए की नजर से देखने पर तसवीर का एक अलग ही पहलू नजर आता है। धारावी मुम्बई है और मुम्बई धारावी। झोपड़पट्टी, गटर और गलियों में भटकते बच्चे, किसी की भी संवेदनशीलता पर भारी पड़ेंगे। क्या सचमुच देश का विकास हुआ है? हम ताज्जुब करते हैं।
दोनों ही पहलू तस्वीर के सही रूप को स्पष्ट नहीं करते हैं।
तस्वीर अपने वास्तविक रूप में तभी नजर आएगी, जब हम उसे व्यक्तिगत, घरेलू व सामुदायिक स्तर पर देखेंगे। राष्ट्रीय अनुप्रयुक्त अर्थशास्त्र शोध परिषद समय-समय पर बाजार सव्रेक्षण करता रहता है। जिसे ‘मिश’ (मार्केट इन्फार्मेशन आफ हाउसहोल्ड) कहा जाता है। ‘मिश’ हर परिवारी के मुखिया से पूर्व वित्तीय वर्ष के दौरान परिवार के आय के आकलन के लिए कहता है। हाल के सव्रेक्षण के परिणामों से इस बात पर रोशनी पड़ी है भारत 1991 के बाद किस रास्ते चला है।
1989-90 में भारत में 142 मिलियन परिवार थे। इन परिवारों में से 58.8 प्रतिशत की वार्षिक आय 2001-02 की कीमतों के हिसाब से 45,000 से भी कम थी। (इस तरह इन परिवारों की वास्तविक आय 1989-90 में इससे भी कम होगी, लेकिन 2001-02 में क्रय क्षमता 45,000 के बराबर होगी) कुल परिवारों में से 14.2 प्रतिशत की आय 90,000 रुपये या उससे अधिक है। बाकी परिवार जिस स्तर के अंतर्गत आते हैं, उन्हें निम्न मध्यम वर्ग कहा जाता है। इनकी वार्षिक आय 45,000 से 90,000 के बीच में है। फिर दस वर्ष के आर्थिक सुधारों के बाद इसमें क्या बदलाव आया है? 2001-02 में परिवारों की संख्या बढ़कर 188 मिलियन हो गई। यह बढ़ोत्तरी लगभग एक तिहाई है। परिवारों की संख्या में हुई अच्छी खासी बढ़ोतरी के बावजूद, एक बड़ी संख्या में से केवल 34.6 प्रतिशत की वार्षिक आय 45,000 के ऊपर थी।
और दूसरी तरफ जिनकी वार्षिक आय 90,000 से ऊपर थी, उनका प्रतिशत 14 से बढ़कर 28 हो गया। स्वाभाविक है कि निम्न मध्यम वर्ग भी 27 से बढ़कर 37.4 प्रतिशत हो गया।
चिड़िया इस बारे में क्या कहेगी कि क्या भारतीय लोग ज्यादा उन्नति कर रहे हैं? परिवार की आय का स्तर निम्न से निम्न मध्यम वर्ग में पहुंच गया और निम्न मध्यम वर्ग से मध्यम वर्ग पहुंच गया।
लेकिन ये तब जब सभी परिवार में सदस्यों की संख्या औसतन पांच हो, निम्न वर्ग में भी और मासिक आय कम से कम 3500 रुपये हो। मकान मिल पाएगा और बच्चों को उचित शिक्षा।
सफलता की कहानी मध्यम वर्ग के पास है- कुल परिवार की संख्या में से 20 प्रतिशत इसी श्रेणी में आते हैं यानी 52 मिलियन परिवार-260 मिलियन लोग। इन परिवारों की मासिक आय 7500 रुपये या ज्यादा है। गत वर्षो में भारतीय मध्यम वर्ग उभरकर सामने आया है और यही सच है।
उभरते मध्यम वर्ग की सफलता की कहानी पर तो कई पृष्ठ अलग से लिखे जा सकते हैं। वे उपभोग ज्यादा करते हैं, इच्छा भी ज्यादा की करते हैं। बहुत साल पहले मैंने एक सीधी सी बात रखी थी कि क्या चीजें अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है। मैंने कहा था,‘इच्छाएं उपभोग को प्रभावित करती हैं, उपभोग उत्पादन को और उत्पादन निवेश को प्रभावित करता है।’ और मेरा विश्वास है कि वह बात यहां बिल्कुल सटीक बैठती है।
260 मिलियन लोगों का मजबूत मध्यम वर्ग, देश को ऊंचाइयों तक ले जा सकता है। यह वर्ग शिक्षित है, बहुत कुछ करना चाहता है, हर तरह का जोखिम उठाने को तैयार है। अगर इस वर्ग के विचार प्रज्वलित हो उठें। इंजीनियर, मैनेजर, बैंकर, चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट और विश्व बाजार में दिग्गज कंपनियों का नेतृत्व कर रहे कर्मचारी इस वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं।
अब केंचुए की आंख से तस्वीर को देखें। जमीनी स्तर पर 65 मिलियन परिवार है, जिनकी मासिक आय 3,750 रुपये या उससे कम है। क्योंकि 3,750 रुपये की औसत मासिक आय है, इसलिए ऐसे कई परिवार भी हैं जिनकी मासिक आय इससे भी कम है। 65 मिलियन परिवार यानी 325 मिलियन लोग। इतनी आबादी तो किसी एक महाद्वीप की है। इसलिए हमारे पास असंतोषियों का एक पूरा महाद्वीप है, जो दो छोरों को मिलाने के लिए संघर्ष करता रहता है। दो भागों में विभाजित है, शहरी और ग्रामीण। 7.5 मिलियन परिवार शहरी हैं (37.5 मिलियन लोग)। इनमें से जो सबसे गरीब हैं वो अपने लिए दो जून का खाना नहीं जुटा पाते, वे कच्चे डेरों में रहते हैं। उनके बच्चे स्कूल नहीं जाते, अगर जाते भी तो शुरुआती कुछ साल के लिए। उनके पास शारीरिक श्रम के अलावा कोई दूसरी योग्यता नहीं है। अब परिस्थितियां उन्हें अपने चंगुल में पूरी तरह दबोच लेती है। तो सैकड़ों की संख्या में आत्महत्या के लिए विवश हो जाते हैं, जैसा आंध्र प्रदेश में हुआ। भारत चमक रहा है, 260 मिलियन लोगों के लिए। भारत अवसाद में है 325 मिलियन लोगों के लिए।
आर्थिक सुधार के पहले उस वर्ष की कहानी खट्टी-मीठी दोनों हैं। 260 मिलियन लोगों के जीवन में आई चमक के उत्सव के लिए 325 मिलियन लोगों के संघर्ष पर कंबल डालना एक क्रूर मजाक है। अगले आठ वर्षो में यानी 2009-10 तक भारत की कहानी इसी पटकथा पर चलेगी। मध्यम वर्ग बढ़कर 107 मिलियन परिवारों का हो जाएगा। (535 मिलियन लोग)। निम्न आय वर्ग अपने 35 मिलियन परिवार की सीमा पर टिका रहेगा।
(175 मिलियन लोग)। ज्यादा और तेज गति के आर्थिक सुधार मध्यम वर्ग के लिए संभावनाओं के और दरवाजे खोलेगा। ये गरीब हैं, जिन्हें सहायता की जरूरत है। बिना सहायता के वे अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित नहीं होंगे। बिना सहायता के वे कोई नई योग्यता हासिल नहीं कर सकते।
गरीबों के अलावा, यहां कई और उपेक्षित वर्ग हैं जैसे जनजाति, विकलांग, बीमार और वृद्ध। इनकी संख्या लाखों में है। इनके मामले में राज्य अक्सर कठोर और हृदयहीन दिखता है। और ज्यादातर मामलें में वह अपनी प्रत्यक्ष ज्ञान के हिसाब से सही भी रहता है। इस समस्या के समाधान और उपेक्षित वर्ग की जरूरतों को पूरा करने के लिए व्यवस्था के लिए रूप को डिजाइन करना पड़ेगा। जब हम आसमान में चमकीली रेखा को देखें, तो आसपास के काले बादलों को अनदेखा न करें। भारत खुशी से चमक भी रहा है, और अवसाद ग्रस्त भी है। आने वाले चुनाव ही दिखा पाएंगे कि कौन सी राजनैतिक पार्टी (या पार्टियों का समूह) भारत की सही तस्वीर सामने रखने के काबिल है।

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