Thursday, February 28, 2013

बोले चला निरा लबरी


झूठ बोलना सबसे आसान काम है, बोल दिया सो बोल दिया। चुनाव में नेता जी ने जनता जनार्दन महोदय से कहा-हम आपके पसीने के साथ अपना खून बहाएंगे। झूठे  नारे पर सवार होकर सीधे सत्ता के साकेत में उतर गए। अब पांच साल तक जनता का खून चुसवाएं या जनार्दन जी की खाल खंैचवाए कौन रोकने वाला। फिर आएंगे, झूठ का डबल धमाका करेंगे। जरूरत पड़ी तो जाति-पांति के स्वाभिमान का तड़का लगाएंगे। फिर चुनावी ताड़का का वरण कर ले जाएंगे। झूठ बोलना भी एक कला है। घोषणापत्रों में सफेद झूठ को काली स्याही से छपवाकर बंटवा दिया जाता है लोग पकड़ नहीं पाते। पकड़ने वालों पर झूठ की ऐसी करारी मूठ मारते हैं कि रिटायर होने तक वह चकरघिन्नी खाता रहता है, इस दफ्तर से उस दफ्तर, इस शहर से उस शहर। 
रिमही बोली के स्मरणीय पुरोधा कवि शंभू काकू ने झूठ पर अदभुत कविता लिखी थी-  बोले चला निरा लबरी। लबरिन से सब काम सधाय। लबरिन नेता देय बनाय। लबरिन अब कल्याण करी, बोले चला निरा लबरी। हर हर गंगे गोदावरी। मेरे एक साथी ने बताया कि झूठ का एक अलग तर्कशास्त्र होता है। एक झूठ बोलिए जब लगे कि पोल खुलने वाली है तो पुराने झूठ को बचाने के लिए तड़ से नया झूठ बोल दीजिए । इसी तरह पुराने झूठ की रक्षा करने के लिए नया झूठ बोलते जाइए । देखेंगे कि झूठ का ऐसा जबरदस्त संजाल तैयार हो जाएगा कि उसमें उलझा बड़े से बड़ा सत्यवादी विद्वान, झूठ को ही सच के नजरिये से देखने लगेगा। एडोल्फ हिटलर ने क्या किया था? अपने मंत्रीपरिषद में गोएबेल्स नाम से झुट्ठे को प्रचारमंत्री बनाकर रखा था। पूरे आत्मविश्वास के साथ एक झूठ को सौ बार दोहराइए वह सच लगने लगेगा। गोएबेल्स अब हमारे नेताओं के आराध्य देव हैं। हर पार्टी में गोएबेल्स का एक पद आरक्षित होता है। कई सूबों के मुखिया खुद ही गोएबेल्स को अपने व्यवहार व स्वभाव में उतार लेते हैं। जैसे गांवों में अभी भी बरम बाबा - किसी सुपात्र पण्डे के सिरे आकर बोलने लगते हैं उसी तरह। अपने सूबे में तो यही है। बच्चियों के रेप में यह देश भर में नम्बर वन। पर लाडली लक्ष्मी की जय। हर शुभ काम कुमारी कन्या का पांव पूज कर। इन कन्याओं को  चुन चुनकर जिस तरह से पेट में ही मार दिया जाता है या दुर्भाग्यवश पैदा होते ही गला दबा दिया जाता है उसके चलते यह तय मानिए कि निकट भविष्य में कन्याओं के पांव ही पूजने के लिए नहीं मिल पाएंगे। पर बोलने में क्या जाता है? लाडली को लक्ष्मी कह दो, अपने घर का क्या जाता है, महालक्ष्मी कह दो, दुर्गा या सरस्वती बना दो। इश्तहारों में इन सबको पूजते हुए दिखो। सभाओं मंचों से यही बोलो। वक्तव्यों में यही, यही दुहराते जाओ। गोएबेल्स की तरह तरह सौ सौ बार दुहराओ, जनता भूल जाएगी कि अपना सूबा बच्चियों के दुष्कर्म में अव्वल नम्बर है। हाल ही में एक खबर पढ़ी। जो एक्स्ट्रा कमाएगा वो जेल जाएगा। सोचा- इस पर अमल होगा। सुबह देखा तो मंत्री जी बंगले में। अफसर बहादुर मर्सडीज में, वैसे ही मजे में थे। कोई जेल नहीं गया। किसी के घर एक्स्ट्रा कमाई नहीं निकली। आप जपते रहिए जो एक्स्ट्रा कमाएगा, जेल जाएगा। दफ्तर जाइए... चढ़ावा चढ़ाइए फाइल तभी आगे खिसकेगी। बाबू टेबिल के नीचे नोट गिनता जाएगा, और सूबे के मुखिया का नारा दोहराता जाएगा, कि जो एक्स्ट्रा कमाएगा वो जेल जाएगा। अपने शंभू काकू ठीक ही कह गए... बोल चला निरा लबरी। लबरिन अब कल्याणकारी। हर -हर गंगे गोदावरी।

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