Saturday, February 9, 2013

कितना कारगर है ये जुवेनाइल एक्ट!



संतोष खरे
ऐसे बच्चों और किशोरों की देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता होती है जिनकी आयु 18 वर्ष से कम हो। जो बेघर-साधनहीन हो। भीख मांग कर जीवनयापन करते हों। जिस व्यक्ति के साथ रहते हो उससे उनकी जान का खतरा हो या वे उपेक्षित हो। मानसिक या शारीरिक रूप से अस्वस्थ हो। जिनके माता-पिता या संरक्षक उस पर नियंत्रण न कर पाते हो। घरों से भागे हुये हो या माता-पिता के द्वारा त्याग दिये गये हो। जिनके साथ लैंगिक दुराचार किया जाता हो। अवैध कार्य कराये जाते हो। ड्रग (नशे) का आदी हो। किसी प्राकृतिक आपदा, युद्ध आदि का शिकार हो गया हो। कोई अपराध किया हो। अत: उनके पुनर्वास तथा कल्याण के उद्देश्य से जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन) एक्ट, 2000 लागू किया गया।

इस अधिनियम के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये किशोर न्याय बोर्ड का गठन किया गया जिसमें मेट्रोपोलिटन या ज्युडिशियल मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी तथा दो सामाजिक सदस्य जिनमें से एक महिला सदस्य होगी, रहते हैं। जब किसी किशोर या बच्चे ने कोई अपराध किया हो और उसे किसी न्यायालय में उपस्थित कराया गया हो तो वह ऐसे किशोर या बच्चे को संरक्षण अधिकारी के पास भेज देगा। न्यायालय जांच करने के बाद इस बात की पुष्टि करेगा कि उसके समक्ष लाया गया बच्चा किशोर की उम्र का है तो वह उसे बोर्ड के समक्ष भेज देगा।

राज्य शासन ने इस अधिनियम के अंर्तगत की जाने वाली जांच की अवधि के लिये आब्जरवेशन होम तथा पुनर्वास के लिये स्पेशल होम की स्थापना की है। ऐसे संस्थानों की स्थापना राज्य शासन स्वयं या स्वैच्छिक संगठनों के साथ अनुबंध करके करता है। यह जानकारी मिलने पर कि किसी किशोर ने कोई अपराध किया है, विशेष किशोर पुलिस इकाई या पदेन पुलिस अधिकारी उसे 24 घंटों के अंदर बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत करेगा। किसी भी किशोर अपराधी को जेल या पुलिस लॉकअप में नहीं रखा जायेगा। जब किसी किशोर ने कोई जमानती या गैर जमानती अपराध किया हो और उसे गिरफ्तार किया गया हो तो उसे या तो जमानत पर रिहा किया जायेगा या किसी परिवीक्षा- अधिकारी की देख-रेख में रखा जायेगा किन्तु यदि यह संभावना हो कि वह रिहा होने पर किसी ज्ञात अपराधी के साथ मिलकर अपराध कर सकता है तो उसे रिहा नहीं किया जायेगा। जब उसे रिहा न किया गया हो तो उसे आब्जरवेशन होम में भेज दिया जायेगा। किसी किशोर को गिरफ्तार करने पर पुलिस तत्काल उसके माता-पिता या संरक्षक को सूचित करेगी तथा किशोर को बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत करेगी। बोर्ड चार माहों के अंदर जांच संपन्न करेगा जांच में यह पाये जाने पर कि उसने अपराध किया है उसके माता-पिता या संरक्षक को समुचित सुझाव देकर उसे उसके घर भेजा जा सकता है, सामूहिक सुझाव प्राप्त करने या सामुदायिक सेवा करने हेतु आदेशित किया जा सकता है, 14 वर्ष से अधिक आयु का हो तो उस पर या उसके माता-पिता पर अर्थदंड लगाया जा सकता है, उसे तीन वर्ष तक के प्रोबेशन पर छोड़ा जा सकता है अथवा उसे स्पेशल होम में भेजा जा सकता है। यदि किशोर ने 16 वर्ष की आयु पूर्ण कर ली हो और बोर्ड इस बात से संतुष्ट हो कि उसके द्वारा गंभीर प्रकृति का अपराध किया गया था तो उसे किसी सुरक्षित स्थान पर भेजा जायेगा और इसकी सूचना राज्य शासन को भेज दी जायेगी।

किशोर अपराधी के संबंध में की जाने वाली जांच कार्यवाही की सूचना किसी अखबार, पत्रिका या किसी दृश्य मीडिया में प्रकाशित नहीं की जायेगी तथा उसका नाम, पता, विद्यालय आदि का विवरण प्रकाशित नहीं किया जायेगा। ऐसा करने पर दोषी व्यक्ति को 25 हजार रुपयों तक के अर्थदंड से दंडित किया जा सकता है। यदि स्पेशल होम या आब्जरवेशन होम से कोई किशोर फरार हो गया हो तो पुलिस अधिकारी उसे बिना वारण्ट के अभिरक्षा में लेकर उपरोक्त स्थानों में वापस भेजेगा पर ऐसी फरारी के आधार पर उसके विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की जायेगी। जिसके नियंत्रण या वास्तविक नियंत्रण में किशोर रहता हो उसके द्वारा यदि उसके साथ निर्दयता का व्यवहार किया जाता हो या अनावश्यक उपेक्षा कर उसे शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता हो तो उसे 6 माह तक के कारावास अथवा अर्थदंड या दोनों से दंडित किया जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति किसी किशोर का उपयोग भीख मांगने के लिये करता हो, बच्चे को कोई व्यक्ति सार्वजनिक स्थान पर नशीले पदार्थ खिलाता हो, खतरनाक पदार्थो से संबंधित कार्यो में किशोर का नियोजन करता हो तो उसे 3 वर्ष तक का कारावास तथा अर्थदंड से दंडित किया जा सकता है। राज्य शासन बाल कल्याण समिति का गठन कर सकता है जो बालकों के कल्याण से संबंधित कार्यो का निष्पादन करेगी।

इन्ही उद्देश्यों के लिये शासन "बालगृह" की स्थापना तथा "शेल्टर होम" को मान्यता प्रदान कर सकता है। इनका प्रमुख कार्य बालकों को उनके घर-परिवारों में पुर्नस्थापित करना होता है। बालगृहों या स्पेशल होम में रहने वाले बालकों का पुनर्वास, पूर्व एकीकरण तथा दत्तक ग्रहण कराया जा सकता है। उनको पोषण सुविधा तथा अन्य सुविधायें उपलब्ध कराई जाती है। जब इस अधिनियम के प्रावधानों के अंर्तगत किसी किशोर को सक्षम प्राधिकारी के समक्ष लाया जाता है तो उसके माता-पिता या संरक्षक उसके संबंध में की जाने वाली कार्यवाही में उपस्थित रह सकते है। आवश्यक न होने पर कार्यवाही बालक की अनुपस्थित में की जा सकती है। यदि ऐसे किशोर या बालक को उसकी बीमारी के लिये लगातार चिकित्सा की आवश्यकता हो तो उसे मान्यता प्राप्त स्थान पर भेज दिया जायेगा। इस अधिनियम के अंर्तगत सक्षम प्राधिकारी के आदेश से असंतुष्ट होने पर 30 दिवस के अंदर सत्र न्यायालय को अपील तथा उच्च न्यायालय के समक्ष रिवीजन प्रस्तुत की जा सकती है। बालगृह तथा स्पेशल होम में रहने वाले बालक या किशोर को अन्य किसी बालगृह या स्पेशल होम में स्थानांतरित किया जा सकता है।

और अंत में...ऐसा प्रतीत होता है कि इस कानून की संरचना इस आधार पर की गई है कि बालकों तथा किशोरों के प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाते हुये उन्हें दंडित करने के बजाय सुधारा जाये। पर यह देखा गया है कि इस लचीले कानून का लाभ लेकर बालकों और किशोरों का उपयोग गंभीर अपराधों के लिये किया जाता है। निर्धन वर्ग के बालकों या किशोरों से उन्हें लालच देकर आपराधिक कृत्य कराना आसान होता है। कानून निर्माताओं को इन तथ्यों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिये अन्यथा इस कानून का उद्देश्य पूरा नहीं होगा।
लेखक सुपरिचित व्यंग्यकार एवं अधिवक्ता हैं।

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