Saturday, November 5, 2011

दश (दस) हरा या दसराहा?

शक्ति परम्परा में दुर्गा पूजा के ये नौ दिन ‘शारदीय नवरात्र’ के रूप में माने जाते हैं। आदिकाव्य रामायण, जो रामकथा का अधिकारिक रुप है (जिसे लेकर भारत की सभी भाषाओं में रामकाव्य लिखे गए) में रावण के मरने की तिथि का कहीं उल्लेख नहीं है, लेकिन दशहरा (दस सिर के खत्म होने की तिथि) निश्चित है। शाक्त परम्परा पूर्वोत्तर भारत की देन है। आर्य परम्परा में शक्ति के यज्ञ हवन-पूजन की चर्चा नहीं है। जबकि बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों में मात्र शक्ति की ही न सिर्फ पूजा होती है वरन् यह राज्य सरकारों का भी उत्सव होता है। दुर्गा नवमी के ये दिन आराधना-हवन और साधना (तंत्र) मंत्र के हैं। काली (बंगाल) कामाख्या (आसाम) दन्तेश्वरी (बस्तर) चामुण्डा (मैसूर) और देश के अन्य हिस्सों में भी मां दुर्गा की पूजा के ये दिन, रज-सत-तम तीनों भाव से पूरी श्रद्धा और दृढ़ता के साथ मनाये जाते हैं। दशहरा के दिन रावण के मरने का उल्लेख, हिन्दी क्षेत्र में सबसे अधिक लोकप्रिय रामचरित मानस में भी नहीं है। जो कथा, काव्य और पुराणों में नहीं है, उसे लोक ने सूमची ताकत से देश भर में व्यापक बना दिया है। हां लोक में दशहरा नहीं ‘दसराहा’ है। इस तिथि के बाद दसों रास्ते खुल जाते हैं। जो शुभ कार्य चतुर्मास में वर्षा के कारण बन्द थे, उनकी शुरुआत हो जाती है। तुलसी के राम ने भी चतुर्मास ऋदय मूक पर्वत पर बिताया था तत्पश्चात वानरों, भालुओं द्वारा सीता की खोज का श्री गणेश हुआ था। नदी-नालों का पानी कम होने लगता है। आकाश निरभ्र हो जाता है। खुशनुमा (न गर्मी, न सर्दी) मौसम, प्राचीन काल में राजे-महाराजे इस दिन शस्त्रपूजा किया करते थे और युद्ध करने के के लिए (सीमा-विस्तार)  निकला करते थे। निष्कर्षत: दशहरा की प्रामाणिकता की अपेक्षा ‘दसराहा’ लोक जीवन में अधिक साम्य रखता है किसी अधिक सजे-धजे व्यक्ति को देखकर यह लोकोक्ति यहां के जनजीवन में आम है- ‘दसराहा’ के हाथी कस सजे हैं। राजा हाथी पर सवार होते थे, हाथी को खूब सजाया जाता था। जनता को दर्शन देने के लिए राजे निकलते थे। शक्ति की आराधना परम्परा काव्य और पुराणों में वर्णित राक्षसों में भी हैं।
    लंकाकाण्ड में जब मेघनाद को जाम्ववान पैर पकड़कर फेंकते हैं, तो वे देवी के मंदिर में जाकर हवन-पूजन करने लगता है। विभीषण कहते हैं यदि मेघनाद अनुष्ठान पूरा कर लेगा तो अजेय हो जाएगा अत: उसके यज्ञ का विध्वंश आवश्यक है। राम के आदेश से सभी वानर-भालू जाकर यज्ञ में बाधा डालते हैं। मेघनाद यज्ञ पूरा नहीं कर पाता। गोस्वामी तुलसी भी यज्ञ और देवी की सार्थकता स्वीकार करते हैं। रावण शिव का उपासक था। राम ने रावण के आराध्य शिव की समुद्र तट पर स्थापना की और ‘शिव समान प्रिय मोहि न दूजा’ भी कहा, यह कथन एक वैष्णव की शिव महिमा की स्वीकारोक्ति थी। राम कथा में शिव की स्थापना के साथ शिव-शक्ति अनायास जुड़ जाती है। बिना शक्ति के शिव अग्राह्य हैं। प्रकारान्तर में शक्ति की आराधना राम से सम्पन्न कराके शाक्तों  ने शक्ति को भी रामकथा से जोड़ दिया। ‘निराला’ की ‘रामशक्ति पूजा’ हिन्दी साहित्य में दशहरा के प्रमाणीकरण का एकमात्र आधार है। अश्विन कृष्ण की अमावस का वह दिन था। राम-रावण के युद्ध का दिन। राम ने अपने सारे दिव्यास्त्रों के प्रयोग उस दिन किया अन्य दिनों वे दिव्यास्त्र कार्य पूर्ण कर वापस राम के पास आ जाते थे। उस दिन एक भी बाण वापस नहीं लौटे। राम हताश-निराश थके, शाम को युद्ध से लौटे। ‘रवि हुआ अस्त ज्योति के पत्र पर लिखा अमर। रह गया राम-रावण का अपराजेय समर।’ उन्होंने ध्यानाव्यस्थित होकर देखा-देखा है महाशक्ति रावण को लिए अंक ’ लांक्षन को ले जैसे शशांक नभ में अशंक । उन्होंने देखा ‘अन्याय जिधर-उधर शक्ति’।  राम का स्थिर मन संशय ग्रस्त हो उठा। आज के भयानक युद्ध की वह भीमा मूर्ति। रावण का अट्टहास। सभा ने राम को ऐसा उद्धिग्न कभी नहीं देखा था। वे उठे, उनकी आंख से दो मुक्तादल छलक पड़े। मंत्रियों ने शक्ति की आराधना का महात्म्य बताया। एक सौ आठ कमल के फूलों का एक-एक पुरश्चरण के बाद हवन।  यह तिथि आश्विन की प्रतिपदा थी। नवरात्र तो वासंती थी। यह असमय आई हुई अकाल ‘नवरात्र’।  पूजा आस्था-विश्वास का नाम है। संशय ग्रस्त राम का मन विश्वास में परिवर्तित हो गया। ‘बोले, आवेग-रहित’ स्तर से विश्वास-स्थित। मात: दस भुजा! विश्व ज्योति:! मैं हूं आश्रित! राम द्वारा स्थापित यह दूसरी अर्चना है। सभी दिशायें इस दशभुजा देवी के हाथ हैं। पर्वत के नीचे यह समुद्र जो गरज रहा है, वह सिंह है। राम देखते हैं कि ‘अम्बर में हुए दिगम्बर अर्चित शशिशेखर’। राम करमाला एक बार मंत्र-जप करने के बाद एक कमल चढ़ाते हैं। छठें दिन मन आज्ञा चक्र पर पहुंच कर ठीक से बैठ गया । राम के जप से अम्बर भी थर-थर कांपने लगा। आठवां दिवस मन ध्यान-मुक्त चढ़ता ऊपर कर गया अतिक्रम ब्रह्मा-हरि-शंकर का स्तर! महाष्टमी के अंतिम प्रहर दुर्गा साकार हुई वे हंंस उठा ले गर्इं पूजा का प्रिय इन्दीवर! पूजा के चरम पर जब राम ने हाथ से पीछे रखा नीलकमल उठाना चाहा तो फूल नदारद थे। ‘आसन छोड़ना असिद्धि भर उठाना चाहा तो फूल नदारद! राम एकाएक अस्थिर हो उठे।’ ‘आसन छोड़ना असिद्धि भर नयनद्वय।’ राम की बुद्धि ने एक युक्ति सोची-मां मुझे राजीव नयन कहती थी अभी तो दो शेष है। बाण खींचकर फलक को ज्योंहिं आंख से लगाया। दुर्गा ने राम का हाथ पकड़कर साधु कहा-   होगी जय, होगी जय, हे पुरुषोत्तम नवीन! कह महाशक्ति राम के बदन में लीन।
‘निराला’ की शक्ति पूजा यहीं विराम लेती है। लोकमन इतना विश्वासी है वह मानता है कि दूसरे दिन अर्थात् दशमी के दिन रावण शक्तिहीन हो गया और विजय की यह तिथि दशमी ही रही होगी। सभी दिशाओं को रावण ने घेर रखा था। चर-अचर सारी शक्तियां उसी के नियंत्रण में थी। रावण-वध के साथ ही सभी दिशाएं मुक्त हो गर्इं। अत: लोक का दसराहा काव्य और पुराणोंतिहास का दशहरा हो गया। भारतीय मनीषा प्रकृति के प्रत्येक रूपों में आनंदानुभूति की है। दशहरा के बाद वर्षाकालीन खरीफ फसल काटकर घर में लाने का समय है। नवान्न के आने के शुरुआती दिन आनंद के हैं। जातीय विभाजन के त्यौहारों में दसराहा क्षत्रियों का त्यौहार है। आयुध-पूजन की शास्त्रीय परम्परा विजयादशमी से जुड़ी है। पान-खाना और नीलकंठ पक्षी देखना दसराहा के दिन शुभ माना जाता है। योग-साधना और तंत्र-मंत्र की सिद्धि के लिए दुर्गानवमी एवं दशहरा का विशिष्ट महत्व है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस के बारे में प्रसिद्ध है कि काली मां उनको सिद्ध थी। वे उनसे बात करते थे। वामपंथी भारतीय नेता भी दुर्गा मां की पूजा से असहमत नहीं हो सके। दशहरा दुर्गा पूजन के फलागम है तो दसराहा लोक जीवन में वर्षा के चतुर्मास के बंधन का मुक्ति पर्व ।


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